Author : Vijay Sappani

Published on Sep 30, 2021 Updated 0 Hours ago

आर्थिक संबंधों में जिस तरह श्रीलंका चीन के क़रीब जा रहा है, उससे भारत-श्रीलंका द्विपक्षीय साझेदारी के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं.

भारत-श्रीलंका संबंध: आपसी संबंधों को नई राह पर लाने की क़वायद

भारत और श्रीलंका के संबंध दोनों देशों की स्वतंत्रता के समय से दोस्ताना और अपेक्षाकृत स्थायी रहे हैं. लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (एलटीटीई) के बाद के युग में दोनों पड़ोसी सुरक्षा और आर्थिक उद्देश्यों में एक साथ रहे हैं. इन उद्देश्यों में हिंद महासागर क्षेत्र में नौपरिवहन की स्वतंत्रता, आतंकवाद के ख़तरे का मुक़ाबला करना और समृद्ध दक्षिण एशियाई पड़ोस की ओर काम करना शामिल है. लेकिन इसके बावजूद दोनों देशों की साझेदारी में ताज़गी की ज़रूरत है. पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक समर्थन के लिए श्रीलंका का झुकाव चीन की तरफ़ हो गया है और वो घरेलू आर्थिक विकास के लिए चीन को ज़्यादा भरोसेमंद साझेदार के रूप में देखता है. श्रीलंका और चीन के बीच द्विपक्षीय साझेदारी की स्थिति को लेकर भारत में चिंता व्याप्त है. श्रीलंका के साथ चीन की नज़दीकी को भारत इस द्वीपीय देश में अपने असर के कमज़ोर होने की तरह देखता है.

श्रीलंका की नौसेना के द्वारा भारतीय मछुआरों की हत्या के साथ-साथ भारत को मिले ईस्ट कंटेनर टर्मिनल बंदरगाह ठेके को रद्द करने जैसे मामलों ने इन चिंताओं में बढ़ोतरी की है. इसके अलावा, राजपक्षे परिवार के नेतृत्व में श्रीलंका की सरकार ऐतिहासिक तौर पर भारत के मुक़ाबले चीन के नज़दीक मानी जाती रही है और इन घटनाओं ने भारत और उसके सहयोगियों को इंडो-पैसिफिक सागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता में डाल दिया है. मिसाल के तौर पर वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन कोलंबो के नज़दीक श्रीलंका के समुद्र तट के किनारे 13 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से एक शहर बनाने की शुरुआत करने जा रहा है.

राजपक्षे परिवार के नेतृत्व में श्रीलंका की सरकार ऐतिहासिक तौर पर भारत के मुक़ाबले चीन के नज़दीक मानी जाती रही है और इन घटनाओं ने भारत और उसके सहयोगियों को इंडो-पैसिफिक सागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता में डाल दिया है. 

इसलिए उद्देश्यों और हितों में समानता के बावजूद भारत और श्रीलंका के लिए सावधानीपूर्वक और सोच-समझकर अपनी द्विपक्षीय साझेदारी को फिर से जीवित करने की तत्काल ज़रूरत है.

चीन का दबदबा निश्चित है?

पिछले कुछ वर्षों में इस द्वीपीय देश में चीन की पहुंच में नाटकीय ढंग से बढ़ोतरी हुई है. श्रीलंका ने दो वजहों से चीन को गले लगाया है. पहली वजह ये है कि तमिल मुद्दे के बारे में भारत की नीयत को लेकर श्रीलंका का शक बना हुआ है. दूसरी वजह भारत में नौकरशाही की प्रक्रिया की धीमी रफ़्तार है जो किसी मंज़ूरी में देर लगाती है. इसके कारण श्रीलंका को लेकर भारत की प्रतिबद्धता वहां संदेह पैदा करती है. पिछले साल श्रीलंका ने एक लोन मोरेटोरियम की मांग की थी जिसे मंज़ूर करने में भारत सरकार को पांच महीने लग गए जबकि चीन ने बिना वक़्त गंवाए अपने विकास बैंक से अतिरिक्त 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का एक कर्ज़ मंज़ूर किया. चीन के तुरंत फ़ैसला लेने की प्रक्रिया और बड़ी मदद उसे एक ज़्यादा आकर्षक साझेदार बनाती है.

लेकिन तब भी चीन के साथ ये आर्थिक मेलजोल श्रीलंका के लिए मुश्किलों के बिना नहीं रहा है. श्रीलंका को कर्ज़ के जाल में फंसने के लिए मजबूर किया गया है और उसे अपनी रणनीतिक संपत्तियों को डेट-इक्विटी स्वैप के ज़रिए बेचना पड़ा है जिसकी वजह से वहां ऐसे क्षेत्र बन गए हैं जहां उसकी अपनी संप्रभुता बेअसर हो गई है. इसकी वजह से मजबूर होकर श्रीलंका को आने वाले समय में अलग-अलग देशों के साथ संबंधों को ज़्यादा प्राथमिकता देनी होगी और अपनी विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को संतुलित करना होगा.

भारत की ताक़त

शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और पर्यटन में चीन के मुक़ाबले भारत काफ़ी मज़बूत साझेदार है. भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग योजना और कोलंबो प्लान के तहत श्रीलंका के नागरिकों के लिए अलग-अलग तकनीकी और प्रोफेशनल कोर्स में अल्प और मध्यकालीन ट्रेनिंग के लिए 400 सीटें हैं. 2017 से श्रीलंका के छात्र नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (एनईईटी) और आईआईटी जेईई (एंडवास्ड) परीक्षा में भी शामिल हो सकते हैं.

चीन के साथ ये आर्थिक मेलजोल श्रीलंका के लिए मुश्किलों के बिना नहीं रहा है. श्रीलंका को कर्ज़ के जाल में फंसने के लिए मजबूर किया गया है और उसे अपनी रणनीतिक संपत्तियों को डेट-इक्विटी स्वैप के ज़रिए बेचना पड़ा है जिसकी वजह से वहां ऐसे क्षेत्र बन गए हैं जहां उसकी अपनी संप्रभुता बेअसर हो गई है.

इन शैक्षणिक आदान-प्रदान को भारत श्रीलंका के संभावित शैक्षणिक ज़ोन में एक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) स्थापित करके और मज़बूत कर सकता है. श्रीलंका के पूर्वोत्तर में कैंडी में भारत तकनीकी और इंग्लिश लैंग्वेज ट्रेनिंग सेंटर जैसे कि श्रीलंका-इंडिया सेंटर फॉर इंग्लिश लैंग्वेज ट्रेनिंग (एसएलआईसीईएलटी) स्थापित कर सकता है. इसके अलावा भारत और श्रीलंका को फार्मास्युटिकल्स मैन्युफैक्चरिंग में गहन सहयोग पर विचार करना चाहिए जैसा कि भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर की इस साल श्रीलंका यात्रा के दौरान साझा बयान में एलान किया गया था.

भारत के सॉफ्ट पावर का फ़ायदा उठाना

तकनीकी सेक्टर में भारत अपनी इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनियों की श्रीलंका में मौजूदगी का विस्तार करके वहां नौकरियों के अवसर बढ़ा सकता है. ये संगठन हज़ारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियों के मौक़े बना सकते हैं और इस द्वीपीय देश की सेवा अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकते हैं. ये ऐसा विषय है जिसे दोनों पक्षों ने विदेश मंत्री जयशंकर की यात्रा के दौरान स्वीकार किया था. फार्मास्युटिकल्स के लिए एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईज़ेड) के अलावा दोनों पक्ष इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और शिक्षा के सेक्टर में भी ऐसा प्रावधान करने पर विचार कर सकते हैं.  अभी श्रीलंका संविधान का मसौदा तैयार करने का कठिन काम शुरू कर रहा है, उसमें भारत अल्पसंख्यकों के अधिकार और अलग-अलग लोगों के प्रबंधन में अपने अनुभव के बारे में बता सकता है. भाषाई और सांस्कृतिक स्वतंत्रता, शिकायतों के समाधान और प्रतिनिधिक संगठनों में आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए नीतियों का मसौदा तैयार करने में भारत श्रीलंका की मदद कर सकता है.

आख़िर में भारत और श्रीलंका को लोगों के स्तर पर संपर्क को बढ़ाने का तरीक़ा तलाशना चाहिए. श्रीलंका में ज़्यादातर पर्यटक भारत से आते हैं लेकिन धार्मिक पर्यटन की संभावना की तलाश करना अभी बाक़ी है. पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका के साथ बौद्ध संबंधों को बढ़ावा देने के लिए 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान का ऐलान किया था. इस पैसे का इस्तेमाल कर दोनों देश एक बौद्ध ज्ञान और पर्यटन कॉरिडोर का निर्माण करने पर विचार कर सकते हैं. अंत में, दोनों देशों में क्रिकेट के महत्व और मौजूदगी का फ़ायदा उठाना चाहिए. श्रीलंका प्रीमियर लीग (एलपीएल) के साथ साझेदारी के ज़रिए इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का विस्तार श्रीलंका में करने से आम लोगों के स्तर पर संपर्क को बढ़ावा मिलेगा और पर्यटन को भी प्रोत्साहन मिलेगा.

श्रीलंका में ज़्यादातर पर्यटक भारत से आते हैं लेकिन धार्मिक पर्यटन की संभावना की तलाश करना अभी बाक़ी है. पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका के साथ बौद्ध संबंधों को बढ़ावा देने के लिए 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान का ऐलान किया था. इस पैसे का इस्तेमाल कर दोनों देश एक बौद्ध ज्ञान और पर्यटन कॉरिडोर का निर्माण करने पर विचार कर सकते हैं.

इन क्षेत्रों में सहयोग से उन मुद्दों पर चिंता कम नहीं होगी जहां दोनों पड़ोसियो की सोच एक जैसी नहीं है यानी तमिल अल्पसंख्यकों का अधिकार और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में चीन का महत्व. लेकिन इतिहास, सांस्कृतिक नज़दीकी और भौगोलिक मजबूरी भारत और श्रीलंका को इन मुद्दों से आगे बढ़कर स्वाभाविक और स्थायी साझेदार बनाते हैं और नये क्षेत्रों में सहयोग की तलाश करके अपने-अपने देशों की आर्थिक और विकास संबंधी आकांक्षाओं को साझा तौर पर प्रोत्साहन देने के लिए कहते हैं.

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