भारत की कूटनीति में एक भव्य रणनीति की कमी ख़राब वैचारिक तैयारी के ज़रिए सामने आ रही है. मानो भारत-चीन के बीच सीमा पर सैन्य विवाद और चीन के साथ भारत का 85 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा ही पर्याप्त नहीं था कि सरकार की एक सलाहकार संस्था अब एक ऐसे देश से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) आकर्षित करने के विचार पर ज़ोर दे रही है जिसने चार बिंदुओं पर भारत के ख़िलाफ़ सामरिक दुश्मनी साफ कर दी है: पहला, भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़ा करने की उसकी कभी न ख़त्म होने वाली लालसा जो कि उसके सामान्य ज़मीन हथियाने वाले हथकंडों के मुताबिक है. इस मामले में आख़िरी नहीं तो निश्चित रूप से नया हथकंडा दक्षिण चीन सागर में भिड़ंत है जो संघर्ष में बदलने की क्षमता रखता है.
दूसरा बिंदु आतंकवादी देश पाकिस्तान को उसका समर्थन और जुड़ाव है. यहां वो एक ऐसे देश को सामरिक कवर और यहां तक कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की सूची में भी वैधता मुहैया कराता है जो अपनी ही आक्रामकता में फंस रहा है और फिर इस नाकाम देश को भारत के ख़िलाफ़ एजेंट के रूप में इस्तेमाल करता है. तीसरा बिंदु हुआवे और ZTE के द्वारा बनाए गए 5G उपकरणों के माध्यम से तकनीकी घुसपैठ की चीन की कोशिश है. लेकिन अच्छी बात ये है कि इसे सरकार ने रोक दिया. चौथा और अंतिम बिंदु चीन के द्वारा नक्शा बनाने का खेल है. ये सभी बातें विश्व व्यवस्था से अमेरिका को बेदखल करने के रास्ते के रूप में चीन के क्षेत्रीय वर्चस्व की भव्य रणनीति में जुड़ते हैं.
लेकिन इसके बावजूद ताज़ा आर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024- जो कि अन्यथा एक अच्छा दस्तावेज़ है, योजनाओं और आंकड़ों के मामले में समृद्ध है- का ध्यान चीन से FDI आमंत्रित करने पर है. चीन यानी ऐसा देश जो दुश्मन कहे जाने से महज़ एक झड़प दूर है. दो रुझानों (चाइना प्लस वन की तरफ पश्चिमी देशों का बदलाव और चीन का सामरिक-आर्थिक अलगाव) के आधार पर सर्वेक्षण भारत के सामने दो विकल्प पेश करता है- या तो चीन की सप्लाई चेन में शामिल हो जाए या वहां से FDI को बढ़ावा दे. इसमें सुझाव दिया गया है कि दूसरा विकल्प अमेरिका को भारत का निर्यात बढ़ाने में मदद कर सकता है. आर्थिक सर्वे में कहा गया है "चूंकि अमेरिका और यूरोप अपनी तात्कालिक ज़रूरतों के लिए चीन से दूर जा रहे हैं, ऐसे में चीन से आयात करने, उसमें न्यूनतम वैल्यू जोड़ने और फिर उनका फिर से निर्यात करने की तुलना में चीन की कंपनियों का भारत में निवेश करना और उत्पादों का उन बाज़ारों में निर्यात करना अधिक प्रभावी होगा."
चीन के साथ भारत का 85 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा ही पर्याप्त नहीं था कि सरकार की एक सलाहकार संस्था अब एक ऐसे देश से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) आकर्षित करने के विचार पर ज़ोर दे रही है जिसने चार बिंदुओं पर भारत के ख़िलाफ़ सामरिक दुश्मनी साफ कर दी है
ये सर्वे ब्राज़ील, तुर्किए और यूरोप के उदाहरणों पर आधारित है. इन सभी ने चीन के इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के आयात पर बाधाएं बढ़ा दी हैं लेकिन इस सेक्टर में चीन के FDI को आकर्षित करने के लिए कदम उठाए हैं. वैश्विक नीतियों की इस तरह से आंख मूंदकर नकल और उन्हें भारत में लागू करने में कई प्रकार के ख़तरे हैं. सबसे बड़ा ख़तरा भू-राजनीतिक परिणामों को समझने का अभाव है. ब्राज़ील, तुर्किए और यूरोप में से कोई भी चीन के साथ सीमा साझा नहीं करता है लेकिन भारत की सीमाएं चीन से लगती हैं. ब्राज़ील, तुर्किए और यूरोप के लिए इकलौता ख़तरा असंतुलित व्यापार है.
बदलती भू-राजनीतिक व्यवस्था
जिस तरह से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन के हर नागरिक और संस्थान को खुफिया जानकारी जुटाने के संभावित माध्यम में बदल दिया है, उसे देखते हुए चीन के FDI को अनुमति देना उसके जासूसों के लिए पिछला दरवाज़ा खोलने की तरह है. जासूसी सुनिश्चित करने के लिए चीन में पांच कानून हैं- जासूसी विरोधी कानून (2014), राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (2015), राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा कानून (2016), राष्ट्रीय इंटेलिजेंस कानून (2017) और व्यक्तिगत सूचना संरक्षण कानून (2021).
उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय इंटेलिजेंस कानून का अनुच्छेद 7 कहता है कि “सभी संगठन और नागरिक राष्ट्रीय इंटेलिजेंस के प्रयासों के साथ समर्थन, सहायता और सहयोग करेंगे.” इसी तरह से अनुच्छेद 9, 12 और 14 हैं. चीन के FDI के लिए भारत की तरफ से आगे का दरवाज़ा खोलना और ये सोचना कि FDI के साथ आने वाला मैनेजमेंट और कामगार अच्छा व्यवहार करेंगे और अपने दफ्तर का इस्तेमाल तब भी नहीं करेंगे जब कानून के तहत उनसे खुफिया जानकारी देने की मांग की जाती है, तो ये चीन के काम-काज के तरीकों को लेकर पूरी तरह से अज्ञानता होगी.
ये अच्छी बात है कि सरकार ने इस विचार को खारिज कर दिया है. वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि “वर्तमान में भारत सरकार ने अपने रुख में बदलाव नहीं किया है.” विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर भी इस मामले में स्पष्ट हैं. आर्थिक सर्वे जारी होने के कुछ दिनों के बाद उन्होंने कहा, “चीन के साथ फिलहाल न तो अच्छे, न ही सामान्य संबंध हैं.” विदेश मंत्री के मुताबिक, “पड़ोसी के रूप में हम अच्छे संबंध की उम्मीद करते हैं लेकिन ये तभी संभव हो सकता है जब वो LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) का सम्मान करेगा और अतीत में उसने जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, उनका आदर करेगा.”
भारत पर चीन के आक्रमण का मुद्दा तीन मंत्रालयों- विदेश मामलों, रक्षा और वित्त- के पास है. अगर एक अच्छी तरह से परिभाषित भव्य रणनीति का दस्तावेज़ होता तो वो प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत तीनों मंत्रालयों का रवैया एक रखता. लेकिन भारत के पास चूंकि भव्य रणनीति नहीं है, इसलिए आर्थिक सर्वे के द्वारा इस तरह का दुस्साहस किया गया है.
विदेश मंत्री के मुताबिक, “पड़ोसी के रूप में हम अच्छे संबंध की उम्मीद करते हैं लेकिन ये तभी संभव हो सकता है जब वो LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) का सम्मान करेगा और अतीत में उसने जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, उनका आदर करेगा.”
चीन वही करता है जो उसके “चेयरमैन ऑफ एवरीथिंग” और राष्ट्रपति शी आदेश देते हैं. पिछले दशक के दौरान शी ने चीन को सामरिक रूप से एक दुष्ट देश में बदल दिया है जिससे हर देश को अलग होने की ज़रूरत है. लेकिन ये कल्पना करना कि “सम्राट शी”, जिन्होंने अमेरिका से भव्य रणनीति के विचार को अपनाया है और पिछले दशक के दौरान इसे नया रूप दिया है, अपने देश से चीन की कंपनियों को हटाकर उन्हें भारत में निवेश करने के लिए राजी कर लेंगे, ये ऐसी दुनिया में रहने की तरह है जहां अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का कोई अस्तित्व नहीं है.
दूसरी तरफ, ये सोचना कि “मेड इन इंडिया” की आड़ में “फाइनेंस्ड बाई चाइना” की साज़िश को अमेरिका नहीं समझ पाएगा, ये रणनीतिक सरलता है. अंत में, ये विश्वास करना कि चाइना-प्लस-वन-वर्ल्ड की दुनिया में चीन की मदद से भारत एक वैश्विक केंद्र बन सकता है, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके पास बड़े पैमाने पर उत्पादन की क्षमता और बाज़ार है, हमें कहीं नहीं ले जाएगा.
चीन के FDI को आमंत्रण उसके सालाना पूर्ण अधिवेशन के बाद दिया गया है जिसका समापन 18 जुलाई को हुआ. अधिवेशन, जिस दौरान अगले पांच वर्षों के लिए देश की आर्थिक नीति तय की जाती है, उस दौरान हुआ जब आर्थिक मंदी को लेकर चिंता है, प्रॉपर्टी के बाज़ार में संकट है, आंतरिक स्तर पर बेरोज़गारी बढ़ रही है और बाहरी स्तर पर टैरिफ की बढ़ती दीवार एवं दुनिया से अलग-थलग होने का संकट है. अपनी तरफ से शी अर्थव्यवस्था में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए मज़बूत भूमिका चाहते हैं. वो व्यवसाय में सरकार की भूमिका की वापसी और उसका विस्तार चाहते हैं. इसके तहत वो एयरोस्पेस एवं एविएशन, नई ऊर्जा, बायोमेडिसिन, क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी, एडवांस्ड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे सामरिक उद्योगों के लिए फंडिंग का रास्ता चाहते हैं. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि इससे पुराने और कम उत्पादकता वाले उद्योगों के लिए पूंजी का आवंटन रुक जाएगा.
इसके अलावा, चीन की तरफ से ग्लोबल वैल्यू चेन को हथियार की तरह इस्तेमाल करने का काम जारी है. 2020 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के जर्नल क्विशि में एक लेख में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साफ तौर पर कहा कि उनके देश को अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन श्रृंखला (प्रोडक्शन चेन) में निश्चित रूप से शामिल होना चाहिए. इस तरह चीन पर अलग-अलग देशों की निर्भरता बढ़ेगी. उनकी दलील है कि वैश्विक उत्पादन श्रृंखलाओं में इस तरह शामिल होने से विदेशी शक्तियों के द्वारा मनमाने ढंग से सप्लाई में कटौती के ख़िलाफ़ एक ताकतवर जवाबी उपाय तैयार होगा. इस तरह चीन वैश्विक वैल्यू चेन को किसी भी तरह के दंडात्मक रोकथाम के उपायों के ख़िलाफ़ एक बीमा पॉलिसी की तरह देखता है.
भारत को किसी भी तरह के बेतरतीब विचार को लेकर प्रतिक्रिया देने वाले देश के रूप में नहीं देखा जा सकता. भारत को एक समन्वित और सर्वव्यापी दृष्टिकोण की आवश्यकता है.
आर्थिक सर्वे में निर्यात में बढ़ोतरी के लिए चीन के निवेश को आमंत्रित करने का प्रस्ताव ऐसे समय आया जब भारत और चीन की सरकारें सीमा गतिरोध को हल करने के तरीकों पर चर्चा कर रही हैं. जयशंकर ने जुलाई में चीन के विदेश मंत्री वांग यी से दो बार मुलाकात की. सबसे ताज़ा मुलाकात ईस्ट एशिया समिट के दौरान हुई जबकि उससे पहले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की शिखर वार्ता के दौरान हुई. इन मुलाकातों के दौरान दोनों ने व्यापक मुद्दों पर चर्चा की. इससे भारतीय हलकों में अटकलें तेज़ हो गई हैं कि “रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने” वाली है.
आगे की राह
लेकिन सच्चाई से और दूर कुछ भी नहीं हो सकता है. 2020 में गलवान संघर्ष के समय से भारत सरकार ने दोनों देशों के बीच संबंधों को असामान्य बताया है और सीमा पर यथास्थिति को बदलने की चीन की कोशिश को द्विपक्षीय संबंध के पूरे आधार को कमज़ोर करने वाला कहा है. लेकिन अब सीमा गतिरोध के समाप्त होने से भी पहले चीन की पूंजी को आमंत्रण हमारी सामरिक कमज़ोरी जताने और हमारी भू-राजनीतिक समझ की कमी को उजागर करने की तरह है. इसी तरह भारत को चाहिए कि वो चीन को किसी भी हाल में कम नहीं आंके. 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले देश को ये नहीं सोचना चाहिए कि शी चीन की कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए राजी करके एक प्रतिद्वंद्वी तैयार करेंगे.
ख़राब वैचारिक सोच किसी देश की उभरती हुई शासन कला को कमज़ोर कर सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शी की वर्चस्ववादी महत्वाकांक्षाओं के जटिल जाल में नहीं फंसना चाहिए. वैसे तो पीयूष गोयल ने इस विचार को आगे किसी भी तरह के नीतिगत ध्यान या कारोबारी रफ्तार मिलने से पहले ही खारिज कर दिया है लेकिन भारत को किसी भी तरह के बेतरतीब विचार को लेकर प्रतिक्रिया देने वाले देश के रूप में नहीं देखा जा सकता. भारत को एक समन्वित और सर्वव्यापी दृष्टिकोण की आवश्यकता है.
ये दृष्टिकोण भारत की भव्य रणनीति को स्पष्ट करने का होगा. प्रधानमंत्री मोदी, विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की सदस्यता वाली सुरक्षा पर कैबिनेट समिति को सैन्य नेतृत्व के साथ मिलकर भव्य रणनीति तैयार करनी चाहिए और इसके माध्यम से भारत की शासन कला के हर पहलू में रणनीतिक सोच डालने की ज़रूरत है.
गौतम चिकरमाने ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के उपाध्यक्ष हैं.
कल्पित ए. मनकिकर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं.
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