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एक बहुध्रुवीय दुनिया में रणनीतिक स्वायत्तता, ऊर्जा व्यापार और भू-राजनैतिक बदलावों का सामना करते हुए भारत और रूस अपनी ब्रिक्स साझेदारी को मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हैं.
Image Source: Getty
वैश्विक स्तर पर रणनीतिक और आर्थिक समीकरण जैसे-जैसे विकसित हो रहे हैं, वैसे-वैसे ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) समूह उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए खुद को एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में मज़बूती से स्थापित कर रहा है. BRICS का धीरे-धीरे विस्तार हो रहा है. महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देशों जैसे कि मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ईरान के ब्रिक्स में आने से इस समूह की आर्थिक स्थिति और भी ज़्यादा मज़बूत हुई है. BRICS ने आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देकर वैश्विक मंच पर पहुंच के लिए वैकल्पिक मंच प्रदान किया है. अब ये नया विस्तारित BRICS वैश्विक जनसंख्या के लगभग 45 प्रतिशत और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 30 प्रतिशत से ज़्यादा का प्रतिनिधित्व करता है.
भारत के ऐतिहासिक संबंध और रूस के साथ सामान्य रणनीतिक हित ब्रिक्स में इसकी भागीदारी का मुख्य आधार बने हुए हैं. भारत-रूस के ये संबंध शीत युद्ध के दौरान तत्कालीन सोवियत संघ के साथ विकसित हुए. 1990 के दशक में भारत में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी) सुधारों के बाद दोनों देशों ने आपसी रिश्तों में क्रांतिकारी बदलाव अनुभव किया है. आर्थिक परिवर्तन और भू-राजनीतिक चिंताओं को अगर एक किनारे भी रख दिया जाए तो 2024 में हुए BRICS शिखर सम्मेलन ने ऊर्जा, वाणिज्य, बुनियादी ढांचे और वित्तीय एकीकरण जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में भारत-रूस सहयोग की मज़बूती को दोहराया.
2006 से ही ब्रिक्स वैश्विक वित्त और सुरक्षा मुद्दों पर भारत-रूस सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण मंच रहा है. यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में वृद्धि को देखते हुए रूस ने BRICS पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया.
2006 से ही ब्रिक्स वैश्विक वित्त और सुरक्षा मुद्दों पर भारत-रूस सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण मंच रहा है. यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में वृद्धि को देखते हुए रूस ने BRICS पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया. रूस ने वैकल्पिक अर्थव्यवस्थाओं तक पहुंचने के लिए ब्रिक्स को माध्यम बनाया, जबकि भारत इस मंच का इस्तेमाल पूर्वी और पश्चिमी भागीदारों के बीच संतुलन बनाकर अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को प्रदर्शित करने के लिए कर रहा है. हालांकि, चीन और रूस ब्रिक्स को पश्चिमी देशों के विरोधी ब्लॉक के रूप में देखते हैं, लेकिन इनके विपरीत भारत इस समूह को पश्चिम विरोधी नहीं मानता. भारत BRICS को एक ऐसे मंच के रूप में देखता है जो बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थन करता है. उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए अधिक प्रतिनिधित्व हासिल करने की कोशिश करता है, और संतुलित वैश्विक शासन को बढ़ावा देता है.
BRICS के प्रमुख सदस्यों के रूप में, भारत और रूस अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और विश्व बैंक जैसे वैश्विक संस्थानों में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व की वकालत करते हैं. यूक्रेन युद्ध के बाद भारत, रूस का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है. इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध काफ़ी मज़बूत हुए हैं. 2022 से दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 1.8 गुना बढ़ा है. 2023 में भारत और रूस के बीच कुल व्यापार 65 अरब डॉलर तक पहुंच गया. रूस अब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया. हालांकि, व्यापार असंतुलन जैसी चुनौतियां अभी बनी हुई हैं.
तालिका 1: 2010-2021 तक भारत और रूस के बीच वस्तुओं के लिए द्विपक्षीय व्यापार (डॉलर और बिलियन में)
साल |
रूस से भारत का आयात (डॉलर-बिलियन में) |
रूस से भारत का आयात (डॉलर-बिलियन में) |
रूस से भारत का आयात (डॉलर-बिलियन में) |
रूस से भारत का आयात (डॉलर-बिलियन में) |
कुल व्यापार में वृद्धि, प्रतिशत में (साल-दर-साल) |
2010 |
6.39 |
2.14 |
-4.25 |
8.53 |
14.4 |
2011 |
6.09 |
2.79 |
-3.3 |
8.89 |
4.19 |
2012 |
7.91 |
3.04 |
-4.87 |
10.95 |
23.8 |
2013 |
7.01 |
3.1 |
-3.91 |
10.11 |
-7.34 |
2014 |
6.34 |
3.17 |
-3.17 |
9.51 |
-5.6 |
2015 |
5.58 |
2.26 |
-3.32 |
7.83 |
-17.67 |
2016 |
5.23 |
2.36 |
-2.87 |
7.59 |
-3.07 |
2017 |
6.46 |
2.9 |
-3.56 |
9.36 |
23.32 |
2018 |
7.75 |
3.23 |
-4.52 |
10.98 |
17.31 |
2019 |
7.24 |
3.92 |
-3.32 |
11.16 |
1.64 |
2020 |
5.83 |
3.48 |
-2.35 |
9.31 |
-17 |
2021 (जनवरी से जून) |
3.22 |
2.01 |
-1.21 |
5.23 |
+31.4 (इसी अवधि में 2020 की तुलना में) |
स्रोत : मॉस्को में भारतीय दूतावास
सस्ते रूसी तेल पर भारत की बढ़ती निर्भरता ब्रिक्स की डीडॉलराइजेशन की कोशिशों से मेल खाती है. इसके अलावा इससे दक्षिण-दक्षिण आर्थिक सहयोग को मज़बूत करने में भी मदद मिलती है. इतना ही नहीं भारत-रूस रक्षा संबंध भी उनके द्विपक्षीय संबंधों का एक महत्ववूर्ण स्तंभ रहे हैं. रूस अब भी भारत का सबसे प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. 2023 में भारत ने जितने हथियार आयात किए, उसके 36 प्रतिशत अकेले रूस से आए. इसके अलावा नियमित सैन्य अभ्यास जैसे कि इंद्र, एवीआईए इंद्र, और इंद्र नौसेना दोनों देशों के बीच सामंजस्य को बढ़ाते हैं.
विपरीत भू-राजनीतिक परिस्थितियां: भारत, रूस, और BRICS का भविष्य
मास्को के दृष्टिकोण से, भारत-रूस संबंध खास हैं. हालांकि व्यापार के नज़रिए से देखें तो रूस का प्राथमिक व्यापारिक साथी चीन है. फिर चाहे आयात की बात हो या निर्यात की. रूस के निर्यात के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है लेकिन रूस के आयात के लिए भारत टॉप-20 में भी नहीं है. यूक्रेन युद्ध के बाद दोनों देशों के व्यापार में काफ़ी वृद्धि हुई है, विशेष रूप से परमाणु सहयोग और रूस से भारत को तेल का निर्यात बहुत अधिक बढ़ा है. युद्ध से पहले भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से भी कम थी और जून 2024 तक ये बढ़कर 40 प्रतिशत से ज़्यादा हो गई.
चित्र 1- 2022 में रूस से भारत को ऊर्जा आपूर्ति में असाधारण वृद्धि
स्रोत : टाइम्स ऑफ इंडिया
हालांकि, एक क्षेत्र ऐसा है जिसने रूस की चिंता बढ़ा रखी है. रूस चाहता है कि हथियारों की खरीद के मामले में भारत की उस पर निर्भरता बनी रहे, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है. 2009-2013 के बीच भारत के हथियारों के आयात में रूस की हिस्सेदारी 76 प्रतिशत तक थी. 2019-2023 के दौरान ये आंकड़ा गिरकर 36 प्रतिशत तक रह गया. 'मेक इन इंडिया' योजना और हथियार खरीद के स्रोतों में विविधता लाने की भारत की रणनीति का लक्ष्य रूस पर निर्भरता को कम करना है. ये रूस के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है, क्योंकि भारत अब भी रूस के हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है.
दोनों देशों के ऐतिहासिक रिश्तों की जड़ पूर्व सोवियत संघ के युग से जुड़ी है, इसलिए भारत-रूस संबंध सकारात्मक बने हुए हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले एक दशक में 17 बार मुलाकात की है. दोनों देशों के बीच बिना वीज़ा यात्रा के विषय पर चर्चा चल रही है. हालांकि हथियारों की आपूर्ति में विविधीकरण की भारत की रणनीति के अलावा एक और मुद्दा जिस पर दोनों देशों में एक राय नहीं है, वो है विचारधारा का. भारतीय प्रधानमंत्री मोदी सभी देशों से संबंध रखना चाहते हैं. पश्चिमी देशों से भी भारत दूरी नहीं बनाता लेकिन पुतिन का दृष्टिकोण पश्चिम विरोधी है. भारत भी उन गैर-पश्चिमी बहुपक्षीय मंचों से दूरी बना रहा है, जहां रूस की प्रमुख भूमिका है, जैसे कि शंघाई सहयोग संगठन (एसीओ). भारत अब पारंपरिक मंचों जैसे जी-20 पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.
दोनों देशों के ऐतिहासिक रिश्तों की जड़ पूर्व सोवियत संघ के युग से जुड़ी है, इसलिए भारत-रूस संबंध सकारात्मक बने हुए हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले एक दशक में 17 बार मुलाकात की है.
इन चुनौतियों के बावजूद, रूस और भारत रणनीतिक रूप से जुड़े हुए हैं. पहला, सबको समान भाव से देखने का भारत का दृष्टिकोण उसे यूक्रेन संघर्ष में एक संभावित मध्यस्थ के रूप में स्थापित करता है. दूसरा, भारत को चीन के बढ़ते प्रभाव का संतुलन बनाना चाहिए, क्योंकि बीजिंग की रूस के साथ ऐसी दोस्ती है, जिसकी 'कोई सीमाएं नहीं' हैं. ये परिदृश्य की ब्रिक्स के भीतर चीन की स्थिति को मज़बूत करता है, जिसे रूस टालना चाहता है. रूस के लिए अपने रिश्तों का विविधीकरण करना महत्वपूर्ण है, और भारत खुद को चीन के एक मूल्यवान विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करता है. रूस को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से जोड़ने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. भारत ये दिखाता है कि उभरती बहु-ध्रुवीय व्यवस्था में सभी देशों से औपचारिक राजनयिक संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है.
इसलिए, भारत और रूस को BRICS के भीतर मौजूद जटिलताओं से पार पाना होगा. चीन का बढ़ता प्रभुत्व, रूस पर आर्थिक प्रतिबंध और भारत की विकसित बहुआयामी नीति ऐसी चुनौतियां पेश करती हैं जिनसे निपटने के लिए कूटनीतिक निपुणता की आवश्यकता है. यही वजह है कि भारत ब्रिक्स को एक बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था बनाने के लिए एक तंत्र के रूप में महत्व देता है. रूस के चीन के साथ गहराते संबंधों के प्रति भारत का रुख़ सतर्कता का है.
आख़िर में यही कहा जा सकता है कि भारत-रूस की साझेदारी महत्वपूर्ण बनी हुई है क्योंकि भू-राजनीतिक तनाव अंतरराष्ट्रीय संबंधों को फिर से नया आकार दे रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध, हिंद-प्रशांत सुरक्षा समीकरण और ट्रंप 2.0 के तहत वैश्विक संरक्षणवाद में वृद्धि उनके द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर सकती है. वहीं रूस की बात करें तो वो पश्चिमी प्रतिबंधों को कम करने के लिए भारत के साथ गहरा आर्थिक एकीकरण चाह रहा है. भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए अमेरिका, यूरोप और क्वॉडिलेट्रल सिक्योरिटी डायलॉग (QUAD) देशों के साथ अपने संबंधों का संतुलन रखता है. ये कूटनीतिक संतुलन दोनों देशों को बदलते शक्ति समीकरणों में तालमेल बिठाने और अपने रणनीतिक हितों को बढ़ाने में सक्षम बनाता है.
(सौम्या भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक पॉलिसीज़ (CNED) में वर्ल्ड इकोनॉमीज़ और सस्टेनेबिलिटी में फेलो और लीड हैं.)
(आंद्रिया स्टॉडर ब्लूम्सबरी इंटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी इंस्टीट्यूट (BISI) में यूरोप विश्लेषक हैं. वो इटालियन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिकल स्टडीज़ (ISPI) में यूरोप और ग्लोबल गवर्नेंस में रिसर्च इंटर्न भी रह चुके हैं.)
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...
Read More +Andrea Stauder is the Europe Analyst at Bloomsbury Intelligence and Security Institute (BISI) and a former Research Trainee, in Europe and Global Governance, at the ...
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