Published on Dec 29, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत ने स्वच्छ और सतत ऊर्जा की ओर आगे बढ़ने में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका का प्रदर्शन किया है. इस संदर्भ में भारत द्वारा कार्बन वित्त की नेतृत्वकारी भूमिका लेना दूर की कौड़ी नहीं लगती.

“नई ऊर्जा से जुड़ी वार्ताओं में भारत को नेतृत्वकारी भूमिका निभानी होगी”

भारत की G20 अध्यक्षता के आख़िरी दिनों में COP28 की तैयारियों के दौरान COP28 के अध्यक्ष डॉ. सुल्तान अल जाबेर ने स्पष्टता भरे रुख़ के साथ एक बड़ा आह्वान किया. उन्होंने दुनिया के राष्ट्रों से विचारों को कार्रवाई में तब्दील करने को कहा वरना भावी पीढ़ियों की ज़िंदगी ख़तरे में पड़ सकती है. विविधतापूर्ण भू-आर्थिक समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य देश उचित शब्दावलियों के लिए जद्दोजहद करते रहे हैं. चरणबद्ध तरीक़े से हटाने (फेज़-आउट) या चरणबद्ध तरीक़े से कम करने (फेज़-डाउन) को लेकर हफ़्ते भर चला मंथन हर मायने में एक बड़ी कामयाबी के तौर पर आगे की राह तैयार कर सकता है. अब तक के सबसे विविधतापूर्ण स्टेकहोल्डर्स में से एक की भागीदारी से जलवायु कार्रवाई के उभरते विमर्श को आकार देने में ज्ञान का भंडार तैयार हुआ है. उस हद तक, भले ही बहस राजनीतिक रूप से गरमागरम हो, सटीक शब्दावली महत्वहीन रह सकती है. G20 अध्यक्षता के हिस्से के रूप में जलवायु कार्रवाई पर भारत के ज़ोर के नतीजतन विश्व जैव-ईंधन गठजोड़ जैसे गठजोड़ सामने आए हैं, जो निश्चित रूप से सराहनीय है. जलवायु कार्रवाई को लेकर पेचीदगियों से भरी वार्ताओं में आगे बढ़ने का दायित्व संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को सौंपा गया, जो उचित ही है क्योंकि वो दुनिया में ऊर्जा के अग्रणी उत्पादकों में से एक है. UAE जलवायु कार्रवाई के इर्द-गिर्द संवाद की मध्यस्थता करने और उसकी अगुवाई करने के लिए आदर्श क्षमताओं से लैस हैUAE ने नवीकरणीय ऊर्जा में भारी-भरकम निवेश किया है, जिसमें 30 अरब अमेरिकी डॉलर वाला मसदार भी शामिल है. सौर और परमाणु ऊर्जा क्षमता के साथ UAE के पास 2050 तक स्वच्छ ऊर्जा के 44 प्रतिशत हिस्से को हासिल करने का स्पष्ट रोडमैप मौजूद है. ये बात जीवाश्म ईंधन से संक्रमण की क़वायद में सर्वसम्मति तैयार करने को लेकर UAE को एक आदर्श उम्मीदवार बनाती है. COP28 के दौरान हासिल समझौते यानी UAE सर्वसम्मति से ये बात जगज़ाहिर है

भले ही ग्लोबल नॉर्थ बनाम ग्लोबल साउथ की विविधतापूर्ण ज़रूरतों के साथ दुनिया में विभाजन क़ायम है, लेकिन COP28 जैसे मंच संकीर्ण घरेलू स्वार्थों के तुष्टिकरण की बजाए पृथ्वी के साझा हित के लिए भविष्य का खाका तैयार करने को लेकर एक आदर्श मंच मुहैया कराते हैं. इस लक्ष्य की ओर, 'प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन' जैसे उत्तेजक मापकों की रट लगाने वाले बाध्यकारी विमर्शों से अविचलित रहना अपरिहार्य है. दरअसल चरणबद्ध तरीक़े से ऊर्जा संक्रमण के इर्द-गिर्द संचालित होने वाली बड़ी बहसों में आर्थिक वास्तविकताएं निश्चित रूप से अनवरत तरीक़े से जुड़ी रहेंगी, ताकि अनेक विकासशील देशों के औद्योगीकरण के लक्ष्य पर कोई ख़तरा ना आए. ऊर्जा मांग को पूरा करने की क़वायद की ग़ैर-मौजूदगी में सामाजिक-आर्थिक अशांति के नतीजे के तौर पर जलवायु पर थोपे गए स्पष्ट ख़तरे अब कपोल कल्पना नहीं रह गई हैं. मिसाल के तौर पर अफ्रीका के खनन उद्योग को ही लीजिए. स्वच्छ ऊर्जा की ओर परिवर्तन की शुरुआत करने के लिए इस उद्योग में खनन निगमों के लिए एक इष्टतम ऊर्जा पोर्टफोलियो को अपनाया जाना अपरिहार्य है, ताकि उन्हें लागत प्रतिस्पर्धा मिल सके और स्वच्छ ऊर्जा में भावी पूंजी निवेश के लिए पर्याप्त बफ़र तैयार हो सके. संयंत्रों को पूरी तरह से चलन से बाहर करने की कोई भी क़वायद ना सिर्फ़ आर्थिक स्थिति को ख़तरे में डाल देगी बल्कि इससे जुड़े तमाम बदक़िस्मत किरदारों को ऐसी गतिविधियों (मसलन जंगल की कटाई और शिकार) की ओर मोड़ देगी जिससे पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर विनाशकारी प्रभाव होने लगेंगे. दुर्भाग्य से इन गंभीर वास्तविकताओं की ओर संवेदनशीलता के अभाव के चलते ग्लोबल नॉर्थ और साउथ के बीच विभाजन जारी है

स्वच्छ ऊर्जा की अगुवाई करता हिंदुस्तान

इसी बिंदु पर एक बार फिर भारत और UAE का बेजोड़ नेतृत्व इन चिंताओं को कम करने के लिए कारगर साबित होता है, जिसके ज़रिए सभी किरदारों के हितों को पूरा करने वाली एक साझी रूपरेखा तक पहुंचना मुमकिन है. जलवायु कार्रवाई को धीमी करने में तकनीक और वित्त की जुगलबंदी से हासिल होने वाली भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती. बढ़ती अर्थव्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के बावजूद भारत पहले से ही स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण की दिशा में नपे-तुले प्रयास करता आ रहा है. भारत के सकल ऊर्जा मिश्रण में स्वच्छ ऊर्जा का हिस्सा 40 प्रतिशत के क़रीब है. अंतरराष्ट्रीय सौर गठजोड़ (ISA) के संस्थापक सदस्य के नाते भारत ने स्वच्छ और सतत ऊर्जा की ओर आगे बढ़ने की क़वायद में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका का प्रदर्शन किया है. तकनीक के क्षेत्र में निरंतर उन्नतियों के बूते उसने ये उपलब्धि पाई है. इस कड़ी में, भले ही धीमी रफ़्तार से लेकिन प्रति इकाई ऊर्जा की लागत प्रतिस्पर्धी स्तर पर पहुंच गई है. दूसरी ओर, प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से समृद्धतम देशों में से एक के तौर पर UAE नवाचारयुक्त वित्तीय समाधान तैयार करने के लिए आदर्श स्थिति में है. दुनिया के राष्ट्र और निगम, सतत ऊर्जा की ओर सामरिक परिवर्तन को रेखांकित करते हुए विशिष्टतापूर्ण वित्त की होड़ में लगे हैं. बढ़ते वित्तीय अंतर को पाटने की दिशा में कुछ सराहनीय क़दम उठाए गए हैं. इस कड़ी में ऊर्जा उत्सर्जन व्यापार के नए मंचों के साथ-साथ वैश्विक सतत वित्त पहल (GSFI) की घोषणा शामिल है

इस संदर्भ में, भारत द्वारा कार्बन वित्त की नेतृत्वकारी भूमिका ले लेना दूर की कौड़ी नहीं लगती. तयशुदा मांग और बेहतर रूप से विकसित पूंजी बाज़ारों के साथ, सेबी जैसे बाज़ार नियामक निकायों के लिए सक्रिय कार्बन-व्यापार मंच की अगुवाई की दिशा में आवश्यक सुधारों की शुरुआत करने के लिए ये एक सटीक वक़्त है, जो देश के भीतर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्बन ऑफसेट्स के लिए कार्यकुशल और किफ़ायती मार्ग मुहैया कराएगा. ये सेबी के लिए एक अवसर है कि वो भारत को स्वच्छ ऊर्जा व्यापार के लिए वित्तीय केंद्र बनाने को लेकर पूंजी बाज़ार सुधारों की शुरुआत कर सके. इनमें तरलता और हेजिंग को व्यापक बनाने के लिए डेरिवेटिव्स (कार्बन फ्यूचर्स) भी शामिल हैं. एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय क्षेत्राधिकार के तौर पर गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (GIFT) के पास भी बाज़ार की बढ़ती मांग को भुनाने का अवसर मौजूद है

शायद, दुबई अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र (DIFC) जैसों केंद्रों के जवाब के तौर पर भारत का GIFT अपेक्षाकृत आकर्षक विनियमनों के साथ कार्बन-क्रेडिट बाज़ारों की शुरुआत करने के लिए आदर्श रूप से बेहतर स्थिति में है. इसमें अग्रणी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के लिए जोख़िम को विविधतापूर्ण बनाने के साथ-साथ तरलता में गहराई लाने की प्रक्रिया में मदद की क़वायद में हिस्सा लेने को लेकर प्रोत्साहन भी मौजूद है. तमाम देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाज़ार सहभागिताएं- जैसे GIFT और DIFC के बीच- इन अवसरों को और भी विस्तार दे सकती हैं. IOSCO के सदस्य के तौर पर भारत को विनियामक और रिपोर्टिंग मानकों में समग्रता लानी चाहिए ताकि विनियामक मध्यस्थता में कमी लाई जा सके और स्वच्छ ऊर्जा पर भौतिक बुनियादी ढांचे के बूते समानता के आधार पर विदेशी पूंजी को आकर्षित किया जा सके. चूंकि भारत छलांग लगाकर दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, लिहाज़ा भारत की संप्रभु मुद्रा का दबदबा अपरिहार्य है. इस लक्ष्य की ओर, भारतीय रुपये में नई ऊर्जा वित्तीय परिसंपत्तियों की सुविधा और मूल्य अंकन, रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण को मज़बूत आधार देगा. शंघाई (CYN) में बेंचमार्क किए गए कच्चे तेल की बढ़ती मात्रा और मूल्य इस कड़ी में एक प्रमुख उदाहरण है

सॉवरिन वेल्थ फंड का भारतीय संस्करण, द नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (NIIF), UAE द्वारा स्थापित किए जाने वाले कार्बन विज़न फंड जैसी इकाइयों के साथ सहभागी अवसर की पड़ताल कर सकता है. जोख़िम के साथ समानुपातिक रिटर्न पैदा करने में सक्षम स्वच्छ टेक्नोलॉजी के आवंटन के पोर्टफोलियो को विस्तार देने के स्पष्ट जनादेश के साथ इसे आगे बढ़ाया जा सकता है. ग्लोबल साउथ के चेहरे के तौर पर भारत नई ऊर्जा से जुड़ी संवाद प्रक्रिया में अपना लोहा मनवाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, ऐसे में नीति-निर्माताओं के लिए नवाचारयुक्त वित्तीय उपायों के ज़रिए वित्त उगाही को आगे बढ़ाना अनिवार्य हो जाता है. इनमें नए-नवेले हरित-ऊर्जा उद्योग में निवेश को रास्ता देने के लिए 'हरित संप्रभु' वित्त भी शामिल है, जो संपूर्ण आर्थिक वृद्धि में योगदान देने में सक्षम हो और राजकोषीय ख़जाने को खाली किए बिना सतत विकास में भारत को बेमिसाल नेता बनाता हो. विस्तृत बॉन्ड बाज़ार के साथ, निजी क्षेत्र भारत के स्वच्छ ऊर्जा सेक्टर में प्रवेश के इच्छुक अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को आकर्षित कर सकता है. हरित एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF), और दोहरी सूचीबद्धता के साथ हरित इंडेक्स फ्यूचर्स (मसलन सिंगापुर में NSE फ्यूचर्स) इन क़वायदों के पूरक के तौर पर काम कर सकते हैं. स्वच्छ ऊर्जा की निगरानी करने वाले निष्क्रिय कोष के साथ-साथ सॉवरिन कोष को आकर्षित करने को एक उत्प्रेरक के तौर पर देखा जाएगा.


उल्लास राव UAE के दुबई में स्थित एक अग्रणी शिक्षाविद और वित्तीय अर्थशास्त्री हैं, जो भारत और UAE के प्रतिष्ठित संस्थानों में काम कर चुके हैं.

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