इस महीने की शुरुआत में तमिलनाडु के राजमार्ग और लघु बंदरगाह विभाग के मंत्री ई वी वेलु ने राज्य विधानसभा में विभागीय अनुदान मांगों का जवाब देते हुए एक बड़ी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच अगले कुछ महीनों में लघु फ़ेरी सेवा लॉन्च करने की कोशिशें चल रही हैं. इस कड़ी में सबसे पहले रामेश्वरम को 50 किमी दूर स्थित तलाईमन्नार से जोड़ने का विचार है. इसके बाद एक अन्य फ़ेरी सेवा शुरू की जाएगी, जिसके ज़रिए रामेश्वरम को 100 किमी दूर स्थित कांकेसंथुराई (KKS) के साथ जोड़ा जाएगा.
रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच अगले कुछ महीनों में लघु फ़ेरी सेवा लॉन्च करने की कोशिशें चल रही हैं. इस कड़ी में सबसे पहले रामेश्वरम को 50 किमी दूर स्थित तलाईमन्नार से जोड़ने का विचार है. इसके बाद एक अन्य फ़ेरी सेवा शुरू की जाएगी
मंत्री वेलु ने बताया कि इस बारे में तमिलनाडु समुद्री बोर्ड ने केंद्र सरकार की मंज़ूरी के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी भेज दी है. तमिलनाडु के अधिकारियों के हवाले से ख़बरों में बताया गया है कि “रामेश्वरम लघु बंदरगाह में ज़रूरी सुविधाएं नदारद हैं. राज्य की सरकार लगातार केंद्र के संपर्क में है. केंद्र सरकार भी ये परियोजना शुरू करने को तत्पर है और बंदरगाह के विकास के लिए ज़रूरी कोष मुहैया कराने को तैयार है. इसमें 10-15 करोड़ रु की लागत आएगी. इसके बाद फ़ेरी सेवा शुरू की जा सकेगी.” ख़बर में दावा किया गया है कि विदेश मंत्रालय और केंद्र सरकार के जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय ने इस परियोजना पर सहमति जता दी है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि “फ़ेरी 30 नॉट्स की रफ़्तार से रामेश्वरम से तलाईमन्नार के बीच का सफ़र तय कर सकती है.” रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि “150 सवारियों के बैठने की क्षमता के साथ तलाईमन्नार और कांकेसंथुराई तक यात्रा का समय क्रमशः एक और दो घंटे होगा. पाक जलसंधि का सुरक्षित जलक्षेत्र इस परियोजना में सहायक सिद्ध होगा.”
समाचारों के मुताबिक इस घटनाक्रम के बाद हाल ही में नई दिल्ली स्थित श्रीलंकाई उच्चायोग के अधिकारियों, भारतीय विदेश मंत्रालय और भारत के बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय के साथ-साथ तमिलनाडु सरकार के अधिकारियों के बीच वीडियो कॉन्फ़्रेंस के ज़रिए एक बैठक का आयोजन किया गया. बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने रामेश्वरम से फ़ेरी संचालन के इच्छुक संचालकों की पहचान के लिए ‘रुचि की अभिव्यक्ति’ (Expression of Interest) से जुड़ी प्रक्रिया शुरू कर दी है. एक अधिकारी ने अख़बार को जानकारी दी है कि “राज्य सरकार इस परियोजना को छह महीनों में पूरा कर लेने की इच्छुक है. इस सिलसिले में रामेश्वरम में जहाज़ों के रुकने के लिए घाट का निर्माण इकलौती समस्या है. भारत में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ श्रीलंका की सरकार भी फ़ेरी सेवा शुरू किए जाने को लेकर एकमत है.”
आंतरिक विरोधाभास
बहरहाल, तमिलनाडु सरकार और श्रीलंका सरकार के आधिकारिक रुख़ में एक अंतर्निहित विरोधाभास आसानी से देखा जा सकता है. ये ना सिर्फ़ चुने गए रास्ते, बल्कि फ़ेरी सेवा लॉन्च किए जाने की समयसीमा से भी जुड़ा है.
श्रीलंका के जहाज़रानी, बंदरगाह और उड्डयन मंत्री निर्मल सिरिपाला डि सिल्वा के मुताबिक फ़ेरी सेवा की शुरुआत तमिलनाडु के मंत्री द्वारा बताए गए मार्ग से ना होकर कांकेसंथुराई-कराईकल रूट से होगी. ग़ौरतलब है कि कराईकल केंद्र-शासित प्रदेश पुडुचेरी का इलाक़ा है. श्रीलंका के जहाज़रानी मंत्रालय के बयान में आगे कहा गया है कि हो सकता है कि इस फ़ेरी सेवा की शुरुआत आगामी 29 अप्रैल से ही कर दी जाए.
बीते 26 मार्च को मंत्री डि सिल्वा और भारतीय विदेश मंत्रालय के बीच हुई चर्चा के मुताबिक आवागमन के उद्देश्य से कांकेसंथुराई और कराईकल में दो आप्रवासन और प्रवासन कार्यालयों की स्थापना की जाएगी. इस दिशा में शुरुआती क़दम उठाए भी किए जा चुके है. मंत्री डि सिल्वा का कहना है कि KKS जेटी में आप्रवासन दफ़्तर और बंदरगाह पूरी तरह से क्रियाशील है और कामकाज शुरू करने को तैयार है. मंत्री ने साफ़ किया कि दोनों में से कोई भी सरकार सेवा संचालन के लिए फ़ेरी मुहैया नहीं कराएगी. इसकी बजाए भारतीय विदेश मंत्रालय 150 सवारियों को ढोने की क्षमता रखने वाली नौकाओं के संचालकों के लिए निविदा जारी करेगी. ये फ़ेरी सेवा तमिलनाडु और श्रीलंका के उत्तर और पूर्व के इलाक़े के व्यापारियों को ध्यान में रखकर शुरू की जा रही है. ऐसे में प्रति सवारी 100 किलो माल भार ले जाने की छूट एक आकर्षक क़वायद होगी. एक-ओर का टिकट किराया भी 50 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति के अपेक्षाकृत सस्ते दायरे में रखने का प्रस्ताव किया गया है. हालांकि टिकट की लागत चुने गए फ़ेरी संचालकों को ही तय करनी है.
‘बोट मेल’ सेवा की बहाली
इससे पहले दिसंबर 2022 में भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (IOR) पुनीत अग्रवाल के साथ कोलंबो में हुई बैठक में मंत्री डि सिल्वा ने फ़ेरी सेवा की जल्द शुरुआत किए जाने का अनुरोध किया था. इस बैठक में श्रीलंका ने कांकेसंथुराई बंदरगाह के लिए भारत के रियायती ऋणों का आकार बढ़ाने की गुहार लगाई थी. निर्माण सामग्रियों की क़ीमतों में उतार-चढ़ावों के चलते बढ़ी लागतों के मद्देनज़र श्रीलंका ने ये अनुरोध किया था. ग़ौरतलब है कि भारत ने 2018 में कांकेसंथुराई बंदरगाह को एक वाणिज्यिक बंदरगाह के तौर पर उन्नत करने और क्षेत्रीय सामुद्रिक अड्डा बनने की श्रीलंका की क़वायदों में मज़बूती लाने के लिए 4.53 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान की थी. श्रीलंका की ओर से की गई रकम की ताज़ा मांग इसके अतिरिक्त है. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ड्रेजिंग कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया पहले ही कांकेसंथुराई बंदरगाह को गहरा करने का काम पूरा कर चुकी है. भारत ने भविष्य में विशाल कार्गो जहाज़ों के आवागमन को ज़ेहन में रखते हुए संपर्क मार्ग की तलहटी से दलदल की सफ़ाई करने के काम का वित्त-पोषण किया है.
फ़िलहाल फ़ेरी सेवा के लिए भारतीय तट का विकल्प कराईकल से बदलकर पुडुचेरी हो गया है. दरअसल कराईकल में स्थित निजी बंदरगाह के ख़िलाफ़ दिवालिएपन से जुड़ी कार्यवाही के ख़ुलासे के बाद ये फ़ैसला लिया गया. बताया जाता है कि फ़ेरी संचालकों ने भी इस बात का इशारा किया है कि पुडुचेरी तक की लंबी यात्रा के चलते यात्रियों को समुद्री यात्रा से जुड़ी शारीरिक तकलीफ़ों का सामना करना पड़ सकता है. ख़ासतौर से समुद्री यात्रा का तजुर्बा नहीं रखने वाले मुसाफ़िरों को ऐसी मुश्किलों से जूझना पड़ सकता है. इसी वजह से कांकेसंथुराई और तमिलनाडु के नागपट्टिनम (जो कराईकल से ज़्यादा दूर नहीं है) के बीच फ़ेरी सेवा चलाने का निर्णय हुआ था.
दिसंबर में श्रीलंका द्वारा जारी किए गए बयान में भारतीय अधिकारी अग्रवाल का हवाला देते हुए कहा गया था कि भारत धनुषकोडी और रामेश्वरम के बीच सवारी फ़ेरी सेवा में दोबारा जान फूंकने को तत्पर है. काफ़ी समय से इस सेवा को भुला दिया गया है और भारत इसको फिर से चालू करने को उपयुक्त मानकर उसपर ज़ोर दे रहा है.
बहरहाल ऐसा लग रहा है कि दिवालियापन से जुड़ी कार्यवाही अब अपने निर्णायक चरण में है. ऐसे आसार हैं कि एक निजी संचालक (अदाणी समूह) निकट भविष्य में ही दूसरे संचालक (Marg) की जगह ले लेगा. इससे श्रीलंकाई मंत्री की घोषणा के हक़ीक़त में तब्दील होने की संभावना बन जाएगी. हालांकि इस महीने के अंत तक ऐसा होता दिखाई नहीं देता. इस फ़ेरी सेवा के लिए भारतीय तट के तौर पर केंद्र सरकार को अंतिम रूप से स्थान का चयन करना है. साथ ही तमाम ज़रूरी मंजूरियां और कार्यों को समय से पूरा किए जाने तक इंतज़ार करना होगा. ऐसे में पूरी संभावना है कि इस साल के आख़िर तक उत्तर-पूर्वी मानसून चक्रवाती मौसम के अंत में इस फ़ेरी सेवा की शुरुआत हो जाएगी.
दिसंबर में श्रीलंका द्वारा जारी किए गए बयान में भारतीय अधिकारी अग्रवाल का हवाला देते हुए कहा गया था कि भारत धनुषकोडी और रामेश्वरम के बीच सवारी फ़ेरी सेवा में दोबारा जान फूंकने को तत्पर है. काफ़ी समय से इस सेवा को भुला दिया गया है और भारत इसको फिर से चालू करने को उपयुक्त मानकर उसपर ज़ोर दे रहा है. मंत्री डि सिल्वा ने इस प्रस्ताव से रज़ामंदी जताते हुए ज़ोर दिया कि इस पैसेंजर फ़ेरी सेवा के साथ श्रीलंकाई रेलवे सेवा को भी जोड़ दिया जाए. इस तरह ‘बोट मेल’ के ज़रिए आज़ादी से पहले के दौर वाली कोलंबो-चेन्नई रेल सेवा को पुनर्जीवित किया जा सकेगा. इसमें धनुषकोडी/रामेश्वरम से श्रीलंका के तलाईमन्नार तक मध्यवर्ती फ़ेरी सेवा की दरकार होगी.
दरअसल साल 1964 में आए एक चक्रवाती तूफ़ान के चलते सवारियों से भरी ट्रेन के साथ-साथ समूचा रेलवे स्टेशन और सेतु-बांध समुद्र में बह गया था. इस हादसे के बाद ‘बोट मेल’ को मौलिक धनुषकोडी बिंदु से दूर हटाकर रामेश्वरम ले जाया गया था. बाद में LTTE के ‘सी टाइगर’ द्वारा समंदर से संचालित तमिल विद्रोही गतिविधियों से यहां असुरक्षा फैल जाने के चलते रामेश्वरम-तलाईमन्नार सेवा को 1984 में लंबे अरसे के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
व्यापार और पर्यटन
हाल ही में टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक रामेश्वरम-केंद्रित फ़ेरी सेवा के अगले चरण में आंशिक कार्गो सेवा को भी जोड़े जाने की योजना है. आगे चलकर रामेश्वरम से श्रीलंका तक कार्गो सेवा (300-500 टन क्षमता के साथ) को मंज़ूरी दी जाएगी. एक अधिकारी के मुताबिक “राज्य सरकार केंद्रीय जहाज़रानी मंत्रालय को 600 करोड़ रु के आकार का एक विस्तृत प्रस्ताव भेज चुकी है और इस पर चर्चा जारी है.”
तमिलनाडु के लिए फ़ेरी सेवा के प्रवेश बंदरगाह के तौर पर श्रीलंका, कांकेसंथुराई का नाम आगे बढ़ाने को लेकर दृढ़ है. भारतीय बंदरगाह के बारे में अंतिम निर्णय लिया जाना अभी बाक़ी है और इस पर भारत सरकार और तमिलनाडु सलाह-मशविरा कर रहे हैं. राज्य विधानसभा में तमिलनाडु के मंत्री के बयान के हिसाब से देखें तो इस दिशा में अभी कुछ बुनियादी मसलों का निपटारा किया जाना बाक़ी है. बहरहाल, शुभ काम में देरी ना हो, इसके लिए श्रीलंका के साथ जिस मार्ग पर भी अंतिम सहमति बने, इस सेवा को जल्द से जल्द अमली जामा पहनाए जाने की दरकार है.
इन सबके इतर दोनों देशों के बीच व्यापार और पर्यटन (धार्मिक पर्यटन समेत) को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं. ज़ाहिर तौर पर फ़ेरी सेवा, हवाई यात्रा के मुक़ाबले सस्ती है, साथ ही समुद्री सफ़र, ख़ासतौर से छोटी क्रूज़ यात्राओं में थोड़ा-बहुत रोमांच भी होता है. ऐसे में तमिलनाडु और शेष भारत के कम बजट वाले तीर्थयात्री इस सेवा के ज़रिए प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थानों की भी यात्रा कर सकते है. इनमें कीरिमलाई नागुलेश्वरम मंदिर और सुदूर दक्षिण में स्थित काठिरगामम या कतारागम मंदिर शामिल हैं. ये हिंदुओं और बौद्धों, दोनों के धार्मिक महत्व वाले स्थान हैं. ऐसे मौक़े पर बजट टूरिस्ट ऑपरेटर की भी भूमिका शुरू हो जाएगी.
श्रीलंका के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के तीर्थयात्री कम ख़र्च वाली इस फ़ेरी सेवा की मदद से तमिलनाडु पहुंचने के बाद वहां से बोधगया, सारनाथ और तमाम अन्य धार्मिक केंद्रों की यात्राएं कर सकेंगे. इतना ही नहीं वो नेपाल जाकर महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी के दर्शन भी कर पाएंगे.
इसी प्रकार श्रीलंकाई तीर्थयात्रियों के लिए भी वेलंकन्नी चर्च, नागोर दरगाह, तिरुनल्लर शनिश्वर मंदिर तक पहुंचना आसान हो जाएगा. तमिलनाडु के कावेरी डेल्टा ज़िलों में धार्मिक महत्व वाले दूसरे स्थानों तक आना-जाना भी सुगम हो जाएगा. इन तमाम इलाक़ों में अनेक हिंदू मंदिर स्थित है. इस तरह मदुरई मीनाक्षी अम्मन मंदिर और पलानी मुरुगन मंदिर तक का रास्ता आसान हो जाएगा. श्रीलंका के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के तीर्थयात्री कम ख़र्च वाली इस फ़ेरी सेवा की मदद से तमिलनाडु पहुंचने के बाद वहां से बोधगया, सारनाथ और तमाम अन्य धार्मिक केंद्रों की यात्राएं कर सकेंगे. इतना ही नहीं वो नेपाल जाकर महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी के दर्शन भी कर पाएंगे.
संयोगवश श्रीलंका के सिंहला-बौद्ध धर्म के अनुयायी लोग तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर के भी परम भक्त हैं. यहां याद दिलाना ज़रूरी है कि श्रीलंका के बौद्ध मंदिरों में भगवान गणेश और भगवान विष्णु भी अलग-अलग स्थानों पर विराजमान हैं. इन तमाम क़वायदों से बोट मेल को पुनर्जीवित करने में मदद मिल सकती है. भारतीय रेल इसे बोधगया और सारनाथ तक विस्तार देने पर विचार कर रहा है. रास्ते में अन्य बौद्ध तीर्थ स्थलों और सैलानियों को लुभाने वाले दूसरे स्थानों को जोड़े जाने पर भी मंथन जारी है.
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