Published on Mar 24, 2021 Updated 0 Hours ago

वैक्सीन बनाने को लेकर भारत की क्षमता के आलोक में ये देखना काफी दिलचस्प है कि पुणे स्थित वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रेजेनेका के साथ सहयोग कर कोविशील्ड वैक्सीन का निर्माण करने में लगी है.

G20 ग्रुप में केंद्रीय भूमिका के लिए तैयार है भारत: कोविड-19 महामारी के बाद विश्व व्यवस्था में होगी जिम्मेदारी भूमिका

नवंबर 2020 में G20 के वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर आयोजित 15 वें सम्मेलन ने इस बात की ओर संकेत दिया कि कोविड 19 महामारी ने अप्रत्याशित चुनौतियां हमारे सामने ला खड़ा किया. इसने ना सिर्फ़ राजनीतिक परिवेश को पूरी तरह बदल कर रख दिया बल्कि इसके साथ आर्थिक सुस्ती का दौर भी चला आया. मौज़ूदा परिस्थितियों में दुनिया समेत G20 के कई सदस्य देश भारत की ओर उम्मीदों के साथ देख रहे हैं – एक ऐसी शक्ति के रूप में जो विश्वसनीय और भरोसेमंद है – और जो देश, दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के बाद इस रोग से लड़ने में सामरिक भूमिका अदा कर रहा है.

मौज़ूदा समय में भारत एक ऐसी स्थिति में है जहां से वह G-20 समूह को ज़बर्दस्त नेतृत्व और निर्देश दे सकने की हालत में है, जिससे कोविड 19 महामारी के चलते होने वाले भू-रणनीतिक उठापटक के बीच वैश्विक व्यवस्था के क्षेत्र में स्थिरता और संतुलन की वापसी हो सके. इसमें कोई दो राय नहीं G20 सदस्य देशों ने भारत की महत्वाकांक्षी बहुआयामी रणनीति और बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने की क्षमता को लगातार स्वीकार किया है. यहां पर जो तर्क सामने आता है वह यह कि वैश्विक राजनीतिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना करने की भारत की क्षमता, वो भी सहयोगपूर्ण रूख़ का विस्तार कर पर्यावरण बदलाव, मेडिकल डिप्लोमेसी और तकनीकी नवीनीकरण जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हुए भारत के लिए G20 मंच पर सहयोगी वातावरण का निर्माण करना इस बात का परिचायक है कि भारत G20 में केंद्रीय भूमिका निभाने की हालत में है. मौज़ूदा समय में आशा और उम्मीद दोनों ही इससे जुड़ जाती हैं क्योंकि प्रचलित नियमों, मानकों और बहुआयामी सिद्धान्तों के तहत भारत निरंतर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ काम कर रहा है.

भारत के लिए G20 मंच पर सहयोगी वातावरण का निर्माण करना इस बात का परिचायक है कि भारत G20 में केंद्रीय भूमिका निभाने की हालत में है. मौज़ूदा समय में आशा और उम्मीद दोनों ही इससे जुड़ जाती हैं क्योंकि प्रचलित नियमों, मानकों और बहुआयामी सिद्धान्तों के तहत भारत निरंतर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ काम कर रहा है. 

आपसी सहयोग, आपसी भरोसा को लेकर विश्वसनीयता और कनवर्जेंस  के रुख़ से नई दिल्ली की सुधारपूर्ण बहुआयामी समरसता की कोशिशों ने यह साबित किया है कि कोविड-19 महामारी के बाद ग्लोबल रिकवरी प्रक्रिया के दौरान भारत ने G-20 एजेंडे को बढ़ाने के लिए मज़बूत नेतृत्व देने का प्रयास किया है. वर्तमान में जो हालात बन रहे हैं उसमें एक तरफ बिखरी हुई वैश्विक भू-राजनीतिक व्यवस्था है तो दूसरी तरफ  अमेरिका के कोरोना महामारी की चपेट में आने और इसका सामना करने में जुटे रहने के साथ साथ वहां हाल ही में हुए सत्ता परिवर्तन के दौर के चलते अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक देखने लायक खालीपन पैदा हो गया. इस बीच यूरोपियन यूनियन की प्रमुख शक्तियां लगातार आर्थिक सुस्ती का शिकार हो रही है जबकि चीन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच लगातार अलग-थलग पड़ने की वज़ह से और कोरोना महामारी के विस्तार के संदर्भ में भरोसे की कमी और अपने आक्रामक विस्तारवादी नीतियों के चलते अपनी घरेलू समस्याओ से उलझा हुआ है. ऐसे में मौज़ूदा भूराजनीतिक असंतुलन के बीच भारत को एक ऐसा ज़बर्दस्त अवसर मिला हुआ है जिससे कि वह इस खालीपन को भर सके और
G20 क्लब के बीच प्रमुख रणनीतिक और आर्थिक शक्ति के तौर पर अपनी पहचान क़ायम कर सके.

कोविड 19 महामारी के बाद वैश्विक व्यवस्था को बेहतर तरीके से बहाल करने में भारत की भूमिका को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने संबोधन में स्पष्ट किया था.

“आज जैसा है, कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया एक बड़ी चुनौती का सामना कर रही है. वित्तीय संस्थाओं ने भी माना है कि यह वित्तीय दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है. आज हमें इस चुनौती का सामना मिलकर करना है. हमें ‘सृजनता के लिए सहयोग’ की संकल्प शक्ति के साथ इस चुनौती के ख़िलाफ़ विजयी बन कर उभरना है.”

बहुपक्षीय सहयोग और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता

मौज़ूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य में इंडो पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता, सुरक्षा और सीमावर्ती एकता को सुनिश्चित करने में मल्टीलैट्रल सहयोग बढ़ाने को लेकर भारत की प्रतिबद्धता बेहद साफ है. और ये बातें क्वॉड संगठन – एक ख़ास समूह जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं – में भारत की प्रमुख भूमिका से स्पष्ट हो जाती है. इतना ही नहीं, कनेक्टिविटी, इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, सुरक्षा जिसके तहत काउंटर टेरेरिज्म, साइबर सिक्युरिटी, मैरिटाइम सिक्युरिटी, मानवीय आपदा राहत मेकानिज्म भी शामिल है उसकी पहचान करने के साथ मज़बूत सैन्य सहयोग को विकसित करना भी भारत की प्राथमिकताओं में शामिल है. इसका मक़सद मुक्त, खुला और समन्वयी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र जिसमें सीमावर्ती एकता और साझा समृद्धि को सुनिश्चित करना प्रमुख है. नई दिल्ली ने हाल में ही नवंबर 2020 में होने वाले मालाबार नौसेना युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया  को न्योता भेज कर यह साफ कर दिया कि भारत चीन के आक्रामक तेवरों के ख़िलाफ़ ज़बर्दस्त पलटवार करने को तैयार है, साथ ही इंडो पैसिफिक क्षेत्र में भूसामरिक शक्ति संतुलन को भी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है. इस लिहाज़ से इंडो पैसिफिक ओसन इनिशिएटिव (आईपीओआई) में भारत की सक्रियता को दुनिया भर में एक प्रमुख भू-राजनीतिक हस्तक्षेप और संभावित गेम चेंजर के रूप में नई दिल्ली और ASEAN देशों के बीच देखा जा रहा है. जिसमें राजनीतिक-आर्थिक और समाजिक-सांस्कृतिक आयाम भी शामिल हैं जबकि इंडो पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा, मैरिटाइम सुरक्षा और स्थिरता को सुनिश्चित करना भी इसका एक मक़सद है. इसके अतिरिक्त बहुआयामी मंचों पर भारत को फिर से सक्रिय करने में प्रमुख भूमिका निभाने जैसे जय JAI (जापान-अमेरिका-भारत) त्रिस्तरीय समूह, BIMSTEC, इंडियन ओसन रिम एसोसिएशन (IORA) और BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) में भारत का रोल इस बात का संकेत है कि नई दिल्ली उभरते क्षेत्रीय और ट्रांस कॉन्टिनेन्टल भूराजनीतिक परिस्थितियों में एक मज़बूत भूमिका अदा करने की ओर बढ़ रहा है. भारत की इंडिय़न ओसन रिम एसोसिएशन में भूसामरिक सहयोग को बढ़ावा देने की निरंतर कोशिशों के साथ साथ SAGAR (इस क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) की आधारभूत धारणा इस बात के संकेत हैं कि इंडियन ओसन रीजन में भारत एक ताकतवर शक्ति के रूप में उभरा है जो इस क्षेत्र में सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकता है.

इंडो पैसिफिक ओसन इनिशिएटिव (आईपीओआई) में भारत की सक्रियता को दुनिया भर में एक प्रमुख भू-राजनीतिक हस्तक्षेप और संभावित गेम चेंजर के रूप में नई दिल्ली और ASEAN देशों के बीच देखा जा रहा है. जिसमें राजनीतिक-आर्थिक और समाजिक-सांस्कृतिक आयाम भी शामिल हैं 

कोविड-19 संकट को लेकर नई दिल्ली की ग्लोबल इंडेक्स और G20 वर्चुअल सचिवालय निर्माण करने की वकालत करने का मतलब है कि यह G20 समूह को दृष्टि, दिशा और मज़बूती प्रदान करेगा. जबकि भारत द्वारा रिफॉर्म्ड मल्टीलैट्रिलिज्म़ के नए आयाम को शुरू करने का अर्थ है कि भारत टैलेंट पूल को असरदार तरीके से प्रबंधन कर पाएगा साथ ही समाज के हर वर्ग तक तकनीक और नवीनीकरण की पहुंच को आसान कर सकेगा. यही नहीं, इससे वैश्विक प्रशासन की व्यवस्था में पारदर्शिता बढेगी, पर्यावरण बदलाव के मुद्दे पर चर्चा हो सकेगी साथ ही अभिभावकता के रुख़ के आधार पर पृथ्वी को बचाने की मुहिम जारी रह सकेगी. 15 वें G20 सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई वैश्विक व्यवस्था के तहत रिफॉर्म्ड मल्टीलैट्रेलिज्म़ के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा कि –

“रिसर्च और नवीनीकरण के क्षेत्र में नई और समावेशी तकनीक को बढ़ावा देने के लिए यह सबसे उपयुक्त समय है. हमें इस ओर आपसी सहयोग और समन्वय के साथ कदम बढ़ाना चाहिए. आज हम वैश्विक महामारी के दुष्प्रभाव से खुद के नागरिकों और अर्थव्यवस्था को बचाने में जुटे हुए हैं. इसके साथ ही हमें पर्यावरण बदलाव की चुनौतियों से निपटने के लिए भी तैयार रहने की ज़रूरत है. पर्यावरण बदलाव की चुनौतियों से अकेले नहीं बल्कि साथ मिलकर, सर्वसमावेशी और ऐतिहासिक तरीके से सामना करने की ज़रूरत है.”

भारत कोविड-19 वैक्सीन का मुख्य निर्माता

भारत ने जहां G20 सदस्य देशों के साथ मिलकर वैक्सीन बनाने, रिसर्च और उसके आवंटन को लेकर,सहयोगात्मक रूख़ अपनाया हुआ है वहीं वैश्विक प्रशासन के लिए उच्च स्तर की पारदर्शिता बरतने को लेकर सदस्य देशों से अपील भी समय के मुताबिक़ है. इतना ही नहीं कोविड-19 महामारी के बाद सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भी यह बेहद ज़रूरी है. नई दिल्ली की सही समय पर फार्मास्युटिकल और वैक्सीन विकसित करने की क्षमता ने भारत को G20 की व्यवस्था के बीच प्रमुख भूमिका निभाने वाले देश के तौर पर ला खड़ा किया है. भारत में विश्व में कुल वैक्सीन उत्पादन का 60 फीसदी वैक्सीन बनता है जबकि संयुक्त राष्ट्र से 60 से 80 फीसदी वैक्सीन भारत प्रति वर्ष खरीदता है. ऐसे में बतौर कोविड 19 वैक्सीन उत्पादक देश के रूप में पूरे विश्व में भारत की एक अलग पहचान है. वैक्सीन बनाने को लेकर भारत की अभूतपूर्व क्षमता के आलोक में यह देखना काफी दिलचस्प है कि पुणे में मौज़ूद दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, जो प्रति वर्ष 1.5 बिलियन वैक्सीन बनाने में सक्षम है, ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रेजेनेका के साथ सहयोग कर कोविशील्ड वैक्सीन का निर्माण करने में लगी है. और यह वैक्सीन भारत घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के साथ-साथ निम्न और मध्यम आय वाले देशों को भी मुहैया करा रहा है. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को इस बात का पूरा भरोसा है कि 2021 के मध्य तक 400 मिलियन डोज़ तैयार हो जाएगा. हैदराबाद में मौज़ूद भारत बॉयोटेक ने भारत की स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन का निर्माण किया जिसमें काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का भी सहयोग था. इसके अलावा अहमदाबाद स्थित दवाई कंपनी जायडस कैडिला भी मौज़ूदा वक़्त में कोविड 19 महामारी के ख़िलाफ़ ZyCov-D वैक्सीन बनाने में जुटी हुई है. कंपनी का मक़सद क़रीब 100 मिलियन डोज़ प्रति वर्ष बनाने का है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि क़रीब 60 देशों के विदेश प्रमुखों ने बायोटेक कंपनी का दौरा दिसंबर 2020 में किया था. इस प्रतिनिधिमंडल ने कोविड 19 के ख़िलाफ़ वैक्सीन निर्माण के तहत भारत के रिसर्च और उत्पादन सुविधाओं की सराहना की और इस ख़तरे से निपटने के लिए दुनिया को वैक्सीन मुहैया कराने में अहम भूमिका अदा की. इस बीच भारत में दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान 16 जनवरी 2021 से शुरू किया गया जो भारत की कोविड 19 महामारी के बाद वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रशासन के क्षेत्र में नेतृत्व प्रदान कर सकता है.

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को इस बात का पूरा भरोसा है कि 2021 के मध्य तक 400 मिलियन डोज़ तैयार हो जाएगा. हैदराबाद में मौज़ूद भारत बॉयोटेक ने भारत की स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन का निर्माण किया जिसमें काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का भी सहयोग था. 

कोविड 19 संकट के आलोक में भारत पर्यावरण बदलाव और वातावरण की सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों से निपटने की भी अपनी प्रतिबद्धता दोहराना चाहता है. G20 के 15 वें सम्मेलन के संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी 20 के मंच पर विकास और पर्यावरण के संतुलन को बरक़रार रखने का संकल्प स्पष्ट किया. आख़िर में G20 सदस्य देशों में भारत ही एक ऐसा देश है जो 2015 में पेरिस समझौते के दौरान जो वादा किया था उसे पूरा करने के क़रीब है, जिसमें 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पूरा करना एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. नतीज़तन, भारत-फ्रांस के बीच अंतर्राष्ट्रीय सोलर सहयोग, जिसमें दुनिया भर के 88 देशों ने हस्ताक्षर किया है, एक बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा सकता है. इसे रिन्युएबल एनर्जी के क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट को बढ़ावा देने में अहम पड़ाव भी माना जाता है. इसके साथ ही आत्मनिर्भर भारत अभियान भी अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के आलोक में न्यू इंडिया की अवाधारणा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है. कोविड 19 महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था और ग्लोबल सप्लाई चेन के क्षेत्र में भी भारत महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है. कोलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलियेंट इंफ्रास्ट्रक्चर की व्यवस्था को लेकर नई दिल्ली की निरंतर कोशिश,  जिसमें जी 20 के 9 देश शामिल हैं, वैश्विक विकास प्रक्रिया के नेतृत्व को नया आयाम देते हैं.

अब जबकि नई दिल्ली 2023 में जी 20 की अध्यक्षता हासिल करने जा रहा है तब कोविड 19 महामारी के बाद ग्लोबल रिकवरी प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाने जा रहा है. इसके अलावा चीन के ग़ैर ज़िम्मेदाराना बर्ताव की वज़ह से ज़्यादातर जी 20 सदस्य देश असंतुष्ट हैं लिहाज़ा ज़िम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में वो भारत की तरफ देख रहे हैं. इतना ही नहीं भारत के पक्ष में मज़बूत प्रजातंत्र और शक्तिशाली सैन्य और आर्थिक क्षमता भी काम करता है.

भारत द्वारा जी 20 की अध्यक्षता लेने की ओर अग्रसर होना बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव है क्योंकि इससे स्पष्ट एजेंडे को विस्तार दिया जा सकेगा और साथ में कोविड 19 महामारी के बाद उभरते भूराजनीतिक समीकरणों के चलते पैदा होने वाले वैश्विक चुनौतियों से सामना करने के लिए एक तयशुदा रोडमैप भी खड़ा किया जा सकेगा.

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