अगर हालिया घटनाओं के संदर्भ में भारत-चीन संबंधों की पड़ताल करें, तो 2020 में चीन ने जिस तरह से बिना किसी उकसावे के अपनी आक्रामकता का प्रदर्शन किया और रहस्यमय ढंग से भारत पर वार किया, उसके कारण भारतीयों के मन-मस्तिष्क में गलवान घाटी संघर्ष की यादें हमेशा बनी रहेंगी, ठीक वैसे ही जैसे कि 1941 में पर्ल हार्बर की घटना अमेरिकियों के जेहन में आज भी ताजा है. गलवान संघर्ष में भारत और चीन दोनों देशों से लोग मारे गए और घायल हुए थे. यह संघर्ष दो एशियाई शक्तियों के बीच उनके आपसी संबंधों के लिए एक निर्णायक मोड़ की तरह था, और इसका इन दोनों देशों के संबंधों की गतिशीलता पर गहरा प्रभाव पड़ा है.
भारत बार-बार इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि चीन उसका भरोसा और अपनी साख, दोनों को खो चुका है. सीमा स्थिति पर भारत के रुख का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री दोनों इस मामले को कैसे देखते हैं. मार्च 2023 में, G20 की एक बैठक के दौरान, भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने दोनों देशों के बीच संबंध को “असामान्य” बताया. अप्रैल 2023 में, भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने समकक्ष से कहा कि चीन की हरकतों ने दोनों देशों के बीच “संबंधों की बुनियाद को हिला” दिया है. जबकि 2020 में हुई खूनी झड़पों के बाद भारत-चीन सीमा अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों का हिस्सा बन गई, लेकिन पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने पूर्वी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश में तनाव पैदा करके इस संघर्ष को और व्यापक बनाने की कोशिश की. दिसंबर 2022 में, अरुणाचल के तवांग क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच टकराव के बाद एक बार फिर से दोनों देशों के बीच तनाव की चरम स्थिति बन गई, जिसके बारे में भारत सरकार का कहना था कि यह “यथास्थिति को बदलने की चीन की एकतरफा कोशिश” थी. हालिया वर्षों में, चीन ने सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की अपनी मंशा का कई बार प्रदर्शन किया है. पहली बार जब उसने अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा किया और अब उसके शहरों का नाम बदलकर और वहां रहने वाले लोगों को को स्टेपल वीजा जारी करके वह अपनी मंशा जाहिर कर रहा है.
मार्च 2023 में, G20 की एक बैठक के दौरान, भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने दोनों देशों के बीच संबंध को “असामान्य” बताया.
भले ही पिछले 70 सालों से भी ज्य़ादा समय से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद की स्थिति बनी हुई है और 1962 में एक युद्ध भी लड़ा जा चुका है, लेकिन भारत-चीन की सीमा पहले तुलनात्मक रूप से शांत थी. लेकिन चीन में शी जिनपिंग के उभार और उनकी सत्ता पर मज़बूत पकड़ ने सारे सुरक्षा समीकरणों का बदल कर रखा दिया है. घरेलू राजनीति के मोर्चे पर चीन की प्रचार मशीनरी PLA के एक आधुनिक सैन्य बल के रूप में पुनर्गठन में शी की भूमिका दिखाना चाहती है. पीपल्स डेली में प्रकाशित चीन के केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) के एक आकलन रिपोर्ट के अनुसार, 2012 में शी जिनपिंग के सत्ता संभालने से पहले सेना काफ़ी कमज़ोर थी और उन्हें सेना के पुनर्गठन और भ्रष्ट सैन्य अधिकारियों को हटाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. यहां यह याद किया जाना ज़रूरी है कि शी के सत्ता में आने के तुरंत बाद CMC के वरिष्ठ अधिकारियों को इस आधार पर पद से हटा दिया गया था कि वे सेना में पदोन्नति के बदले रिश्वत लेते थे. वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के पतन से ये बात सामने आई कि किस तरह सेना के भीतर पदों की खरीद हो रही थी, जिसने चीनी सेना की तैयारियों पर सवाल खड़े किए हैं जो दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है. इतना ही नहीं, भारतीय सेना 2017 में डोकलाम में चीन की सड़क निर्माण गतिविधियों को रोकने में कामयाब रही, जिसके कारण दोनों सेनाओं के बीच तनावपूर्ण गतिरोध पैदा हो गया. जबकि दोनों सेनाएं बाद में पीछे हट गईं लेकिन इसके कारण PLA ने “अपमानित” महसूस किया और गलवान में इसका “बदला” लिया.
एक औसत जीवनकाल में, एक व्यक्ति जब उम्र के 70वें दशक में प्रवेश करता है तो सामान्य तौर से वह अपने जीवन के ढलान पर होता है. लेकिन राष्ट्र के मामले में देखें तो वे अपने 70वें दशक में कई सालों के संघर्ष और मुसीबतों को झेलने के बाद काफ़ी मज़बूत हो जाते हैं और उनमें आत्मविश्वास पैदा हो जाता है, और वे चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं. सीमा पर बुनियादी ढांचे के बड़े पैमाने पर विकास से चीन की आक्रामकता को बढ़ावा मिला है. भारत सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण के चीन के प्रयासों के प्रति अनजान नहीं था. 2013 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी ने इन सुविधाओं की तारीफ़ करते हुए इन्हें भारत से बेहतर बताया. पुराने रक्षा योजनाकारों ने जानबूझकर भारत की सीमाओं पर ज़रूरी सुविधाओं का विकास नहीं किया क्योंकि ऐसा माना जाता था कि हमले की स्थिति में इससे चीन को आगे बढ़ने से रोकने में मदद मिलेगी.
भारत की तैयारी
हालांकि, एक उभरती हुई शक्ति होने के नाते, सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास से भारत के रणनीतिकारों में एक नया आत्मविश्वास आया है. अकेले लद्दाख में, 2023 में 54 परियोजनाएं (जिनमें से अधिकांश सड़क एवं पुल निर्माण से जुड़ी परियोजनाएं हैं) सीमा सड़क संगठन द्वारा पूरी की जाएंगी. 2021 और 2022 में, संगठन ने क्षेत्र में ऐसी 45 परियोजनाओं को पूरा किया था. नए आउटरीच कार्यक्रम की बदौलत सीमा क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता दी जा रही है. ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम’ के तहत भारत और चीन की सीमा से लगे लगभग 3000 गांवों में सड़क, बिजली और मोबाइल फ़ोन कनेक्टिविटी जैसी बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाएगा. सीमावर्ती इलाकों को मानव बसावट के लिए अनुकूल बनाने से सरकार को यह उम्मीद है कि इससे रोज़गार की तलाश में शहरों की तरफ़ पलायन को रोका जा सकेगा और इसके कारण भारत की सीमा सुरक्षा को और मज़बूत बनाया जा सकेगा. इसी क्रम में यह फैसला लिया गया है कि लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान अरुणाचल प्रदेश के ग्राम परिषद प्रमुखों को सम्मानित किया जाएगा.
पीपल्स डेली में प्रकाशित चीन के केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) के एक आकलन रिपोर्ट के अनुसार, 2012 में शी जिनपिंग के सत्ता संभालने से पहले सेना काफ़ी कमज़ोर थी और उन्हें सेना के पुनर्गठन और भ्रष्ट सैन्य अधिकारियों को हटाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी.
जब मज़बूत देशों से ख़तरे का सामना करना पड़ता है, तो कई देश एकजुट होकर उसे रोकने का प्रयास करते हैं. भारत अपनी हिचकिचाहट को छोड़कर समान विचारधारा वाले देशों, ऑस्ट्रेलिया, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका (ये देश या तो चीन से ख़तरे के प्रति सशंकित हैं या उसकी आक्रामकता से प्रभावित हैं) के साथ मिलकर क्वाड (चतुर्भुज सुरक्षा संवाद) का गठन किया है. खुद पर आत्मविश्वास होने का मतलब है कि थोड़े बहुत जोख़िम उठाने की क्षमता भी होनी चाहिए. इसलिए चीन की आपत्तियों के बावजूद, भारत ने 2021 में मालाबार नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल किया. इतना ही नहीं, दिसंबर 2022 में, (तवांग में चीन द्वारा तनाव पैदा किए जाने के तुरंत बाद) भारत ने चीनी सीमा से लगे इलाकों में अमेरिकी सेना के साथ युद्धाभ्यास किया. राजनीतिक स्तर पर भी क्वाड देशों के बीच अब काफ़ी बेहतर तालमेल है, जो इस साल के रायसीना संवाद के दौरान देखने मिला जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और अमेरिका के विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया था.
अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन में इस ओर इशारा किया गया कि भारत किस तरह से चीनी चुनौतियों से निपटने की योजना बना रहा है.
अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन में इस ओर इशारा किया गया कि भारत किस तरह से चीनी चुनौतियों से निपटने की योजना बना रहा है. सबसे पहले तो उन्होंने हिंद-प्रशांत में “संघर्ष और टकराव के काले बादलों” को लेकर चेताया. दूसरा, उन्होंने अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी से जुड़े दृष्टिकोण को सामने रखा. “ऐतिहासिल झिझक” को त्यागकर भारत सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन, अंतरिक्ष अनुसंधान और जेट इंजन के निर्माण में अमेरिका के साथ साझेदारी करना चाहता है. इस प्रकार, चीनी चुनौती से निपटने के अपने प्रयास में भारत अमेरिकी विशेषज्ञता के सहयोग से खुद को तकनीकी रूप से मज़बूत बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
निष्कर्ष के तौर पर कहें तो, चूंकि चीन अपनी घरेलू राजनीति के चलते क्षेत्रीय स्तर पर आक्रामकता दिखाने को बाध्य है, वहीं अपनी 76वीं वर्षगांठ पर भारत सीमावर्ती इलाकों के विकास को प्राथमिकता देकर चीनी मंसूबों के खिलाफ़ गहरे आत्मविश्वास का प्रदर्शन कर रहा है. पश्चिम और समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी के माध्यम से भारत ने दिखा दिया है कि वह चीन का सामना करने के लिए दीर्घकालिक योजना बना रहा है.
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