-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
हाल ही में हुए भारत और मध्य एशिया संवाद ने आपसी सहयोग के क्षेत्रों के बीच इज़ाफ़ा होते देखा गया है.
भारत और मध्य एशिया के रिश्ते: #Convergence के क्षेत्र में बढ़ते तालमेल ने सामरिक रिश्तों को दी नई ऊंचाई
भारत और मध्य एशिया के बीच लंबे समय से ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक रिश्ते रहे हैं. बदलते हुए समय के साथ ये रिश्ते बढ़ती आपसी समझदारी के चलते स्थिर और बदलाव लाने वाली साझेदारी में तब्दील हो चुके हैं. मध्य एशिया के पांच देशों- कज़ाख़िस्तान, किर्गीज़िस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के लिए चिंता के जो विषय हैं, वो भारत लिए भी चिंता पैदा करते हैं. दोनों पक्षों पर असर डालने वाले इन मसलों पर बढ़ती वैचारिक एकरूपता का असर दोनों पक्षों के बीच सहयोग बढ़ने के रूप में नज़र आता है. फिर चाहे कोविड-19 महामारी के चलते उभरती हुई भू-सामरिक चुनौतियां हों या फिर बदलती हुई विश्व व्यस्था. इसके साथ-साथ भारत और मध्य एशियाई गणराज्यों ने व्यापार और कनेक्टिविटी, आर्थिक विकास, विकास संबंधी साझेदारी, ऊर्जा सुरक्षा, साझा हितों वाले क्षेत्रीय मसलों पर भी सहयोग और विचार-विमर्श बढ़ाया है. दोनों पक्षों ने अफ़ग़ानिस्तान में उभरती चुनौतियों के चलते एक दूसरे की जियोपॉलिटिकल चिंताओं को लेकर भी आपस में बातचीत बढ़ाई है.
भारत और मध्य एशियाई देशों के रिश्तों को नई ताक़ उस वक़्त आई थी, जब जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांचों मध्य एशियाई गणराज्यों का ऐतिहासिक दौरा किया था.
19 दिसंबर 2021 को दिल्ली में भारत और मध्य एशिया के बीच संवाद की तीसरी कड़ी का आयोजन हुआ. इस दौरान दोनों ही पक्षों ने उभरती हुई वैश्विक चिंताओं से निपटने के लिए मज़बूत साझेदारी विकसित करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. इसके साथ-साथ दोनों पक्षों ने भारत और मध्य एशिया केजियोपॉलिटिकल ढांचे में सुरक्षा, स्थिरता और आर्थिक समृद्धि का दूरगामी लक्ष्य हासिल करने के लिए सहयोग की सख़्त ज़रूरत पर बल दिया. भारत और मध्य एशियाई देशों के रिश्तों को नई ताक़ उस वक़्त आई थी, जब जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांचों मध्य एशियाई गणराज्यों का ऐतिहासिक दौरा किया था. 1990 के दशक में इन देशों की आज़ादी के बाद से ये पहला मौक़ा था, जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने एक ही बार में पांचों देशों का दौरा किया था. प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे ने दोनों पक्षों के सामाजिक- राजनीतिक और आर्थिक रिश्तों में नई जान फूंक दी थी. हाल के वर्षों में भारत और मध्य एशिया के गलियारे के बीच ख़ास तौर से दिखाई दे रही सक्रियता को देखते हुए ये कहा जा सकता है, भारत द्वारा मध्य एशिया के देशों के साथ सामरिक मसलों पर एकरूपता लाने और इस मामले में अगुवाई करने से भारत के व्यापक पड़ोसी क्षेत्र में एक संतुलन आएगा, जिसकी इस वक़्त सख़्त आवश्यकता भी है. उम्मीद यही है कि इससे किसी भी पक्ष की तरफ़ से आक्रामक रवैया अख़्तियार करने की आशंका पर क़ाबू पाया जा सकेगा और इसके साथ साथ सुधरे हुए बहुपक्षीयवाद और वैश्विक प्रशासन की कार्यकुशलता और इसमें पारदर्शिता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी.
हाल ही में हुआ भारत और मध्य एशिया का तीसरा संवाद निश्चित रूप से रिश्तों पर गहरा असर डालेगा. क्योंकि तेज़ी से बदल रही वैश्विक और क्षेत्रीय जियोपॉलिटिकल स्थितियों को लेकर दोनों ही पक्षों की राय एक है. इसके अलावा भारत और मध्य एशिया ने इस साल दोनों पक्षों के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित होने की तीसवीं सालगिरह का मिलकर जश्न मनाने की शुरुआत की है. वहीं अफ़ग़ानिस्तान में उभरती चुनौतियों को लेकर भी दोनों पक्षों की राय एक है, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान भौगोलिक रूप से दोनों पक्षों के क़रीब है. इसके अलावा कोविड-19 महामारी जिस तरह रंग रूप बदल रही है, उससे निपटने को लेकर भी भारत और मध्य एशिया की राय एक है. इस बैठक के दौरान साझा हितों और ज़रूरतों के आधार पर सहयोग के नए क्षेत्र तलाशने पर भी चर्चा की. दोनों पक्षों ने माना कि 4Cs- यानी कॉमर्स, कैपेसिटी बिल्डिंग, कनेक्टिविटी और कॉन्टैक्ट के क्षेत्र में सामरिक संपर्क बढ़ाने की ज़रूरत है- क्योंकि इसके दायरे में सुरक्षा और आतंकवाद, व्यापार और अर्थव्यवस्था, विकास संबंधी साझेदारी, ऊर्जा सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और जलवायु परिवर्तन जैसे सभी अहम मसले आ जाते हैं. यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी ज़ोर देकर कहा कि भारत, मध्य एशियाई देशों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने को बहुत अहमयित देता है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि भारत, अपने ‘व्यापक पड़ोसी क्षेत्र’ के साथ राजनीतिक आर्थिक एकीकरण को बढ़ाने पर भी ज़ोर दे रहा है.
भारत द्वारा मध्य एशियाई देशों को कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए रियायती दरों पर दिए गए एक अरब डॉलर के क़र्ज़ से जुड़े मसलों पर भी खुलकर दोस्ताना माहौल में बात हुई.
भारत और मध्य एशिया के तीसरे डायलॉग के दौरान सामरिक संपर्क के अहम क्षेत्रों की भी पहचान की गई, जिससे रक्षा और सुरक्षा संबंधों, आर्थिक और कनेक्टिविटी बढ़ाने की कोशिशों और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाया जा सके. इस बातचीत में भारत द्वारा मध्य एशियाई देशों को कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए रियायती दरों पर दिए गए एक अरब डॉलर के क़र्ज़ से जुड़े मसलों पर भी खुलकर दोस्ताना माहौल में बात हुई. भारत ने ये मदद इसलिए दी है, ताकि ईरान के चाबहार बंदरगाह के रास्ते से दोनों पक्षों के बीच व्यापार को बढ़ावा दिया जा सके और तुर्कमेनिस्तान- अफ़ग़ानिस्तान- पाकिस्तान और भारत के बीच पाइपलाइन (TAPI) के प्रोजेक्ट को अमली जामा पहनाया जा सके. दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत हुए कि वो परिवहन और आवाजाही की नई संभावनाएं तलाशते रहेंगे, जिससे कि विकास के क्षेत्र में नई मिसाल क़ायम करने वाले लॉजिस्टिक के नेटवर्क का विकास किया जा सके. इसके अलावा, इस संवाद के दौरान, अश्गाबाद अंतरराष्ट्रीय परिवहन और आवाजाही के गलियारे से जुड़े समझौते (ITTC) की रौशनी में इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ कॉरिडोर (INSTC) के अधिकतम इस्तेमाल के विषय पर भी बातचीत हुई. इसका मक़सद भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है.
जहां तक सुरक्षा के मसले की बात है, तो भारत और मध्य एशियाई देश दोनों ही ये मानते हैं कि एक शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध अफ़ग़ानिस्तान सामरिक लिहाज़ से बहुत अहम है. क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान भौगोलिक रूप से न केवल भारत के बहुत क़रीब है, बल्कि इसकी सीमाएं तीन मध्य एशियाई देशों- ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान से भी मिलती हैं. अगर अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादी गतिविधियां बढ़ती हैं, तो इसकी चपेट में मध्य एशियाई गणराज्य भी आ सकते हैं. इसी वजह से भारत और मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों के साझा बयान में ज़ोर देकर कहा गया कि:
“अफ़ग़ानिस्तान में सभी पक्षों की वास्तविक नुमाइंदगी वाली सरकार का गठन, आतंकवाद और ड्रग तस्करी का सामना करना, संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका, अफ़ग़ान जनता को तुरंत मानवता के आधार पर मदद और महिलाओं, बच्चों और अन्य जातीय समूहों के अधिकारों का संरक्षण ज़रूरी है.”
इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 (2021) की सामरिक अहमियत को भी दोनों पक्षों ने एक सुर से दोहराया, “इस प्रस्ताव में मांग की गई है कि अफ़ग़ानिस्तान की सरज़मीं का इस्तेमाल, आतंकियों को पनाह देने, आतंकवादी गतिविधियों जैसे कि प्रशिक्षण, और साज़िश रचने के लिए नहीं होने दिया जाएगा और अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय सभी आतंकवादी संगठनों के खिलाफ़ सघन अभियान चलाया जाएगा”. भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच आपसी तालमेल का ये एक और अहम पहलू है, जो अफ़ग़ानिस्तान के हालात पर आने वाले समय में दोनों पक्षों के क़दमों की दशा-दिशा तय करेगा. वैश्विक आतंकवाद से निपटने की ज़रूरत पर बल देते हुए, इस बैठक में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांग की गई कि वो सकारात्मक रुख़ अपनाते हुए संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में वैश्विक आतंकवाद निरोधक सहयोग को मज़बूत बनाए. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उन प्रस्तावों को भी पूरी तरह लागू करने की मांग की गई, जो वैश्विक आतंकवाद निरोधक रणनीति और FATF के मानकों को लागू करने की बात करते हैं. कुल मिलाकर कहें तो इस बैठक से भारत और मध्य एशियाई देशों ने बिल्कुल साफ़ शब्दों में अपनी बात कही है. इससे पता चलता है कि व्यापक पड़ोसी क्षेत्र में एक शक्ति संतुलन बनाना सुनिश्चित करने के लिए भारत और मध्य एशिया के देश आपसी तालमेल से काम कर रहे हैं.
इस बैठक से भारत और मध्य एशियाई देशों ने बिल्कुल साफ़ शब्दों में अपनी बात कही है. इससे पता चलता है कि व्यापक पड़ोसी क्षेत्र में एक शक्ति संतुलन बनाना सुनिश्चित करने के लिए भारत और मध्य एशिया के देश आपसी तालमेल से काम कर रहे हैं.
ऊर्जा सुरक्षा के मोर्चे पर भारत और मध्य एशिया के डायलॉग में दोनों पक्षों की तरफ़ से क्षमता के निर्माण और कनेक्टिविटी को बढ़ाने के वादे को पूरा करने की प्रतिबद्धता को दोहराया गया. भारत को मध्य एशिया में ऊर्जा से जुड़े प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुर मात्रा का अंदाज़ा है. क्योंकि, मध्य एशियाई देशों में कोयले, गैस, खनिज संसाधनों और कच्चे तेल के बड़े भंडार मौजूद हैं और भारत इनकी अहमियत को समझता भी है. इसीलिए, इस बैठक में ऊर्जा संसाधनों को लेकर दोनों पक्षों के बीच व्यापारिक सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत को लेकर भी बड़े पैमाने पर चर्चा हुई. नवीनीकरण योग्य ऊर्जा और सूचना तकनीक के क्षेत्र में संबंधित देशों के राष्ट्रीय संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाने पर सहमति, ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग की दिशा में उठा एक स्वागतयोग्य क़दम है.
कोविड-19 से निपटने के मामले में जहां मध्य एशियाई देशों ने महामारी के शुरुआती दौर में भारत से ज़रूरी दवाओं और वैक्सीन की आपूर्ति की तारीफ़ की. वहीं भारत ने पिछले साल अप्रैल मई के दौरान अपने यहां आई महामारी की दूसरी लहर के दौरान कज़ाख़िस्तान और उज़्बेकिस्तान से मिली मेडिकल मदद और तुर्कमेनिस्तान से मदद के प्रस्ताव के लिए शुक्रिया अदा किया. इसके अलावा दोनों पक्षों ने वैक्सीन की ख़ुराक साझा करने, तकनीक के लेन-देन, स्थानीय स्तर पर उत्पादन की क्षमता बढ़ाने, मेडिकल सामानों की आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने और क़ीमतों के मामलों में पारदर्शिता लाने के मोर्चे पर सहयोग बढ़ाया है, जिसका काफ़ी असर पड़ा है.
इसी तरह व्यापार और आर्थिक सहयोग का विस्तार, अहम क्षेत्रों जैसे कि दवाओं, सूचना तकनीक, कृषि, ऊर्जा, कपड़ा, रत्नों और ज़ेवरात और अन्य क्षेत्रों में सहयोग की अधिकतम संभावनाओं का इस्तेमाल करने की इच्छाशक्ति को दिखाता है. साझेदारी वाले या दोहरे संबंधों के माध्यम से, भारत के राज्यों और मध्य एशिया के अलग अलग क्षेत्रों के बीच सीधा संपर्क स्थापित करने का क़दम व्यापार के आयाम को कई गुना बढ़ाने वाला क़दम साबित हो सकता है.
हाल के वर्षों में भारत और मध्य एशियाई देशों के रिश्तों में क्रांतिकारी और अभूतपूर्व ढंग से बदलाव देखने को मिल रहा है. दोनों देशों के बीच तमाम मसलों पर एक जैसी राय रखने से हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले समय में व्यापक पड़ोसी क्षेत्र के साथ हमारे सामरिक रिश्तों में बहुत बड़ा बदालव आ सकता है.
कुल मिलाकर कहें तो, हाल के वर्षों में भारत और मध्य एशियाई देशों के रिश्तों में क्रांतिकारी और अभूतपूर्व ढंग से बदलाव देखने को मिल रहा है. दोनों देशों के बीच तमाम मसलों पर एक जैसी राय रखने से हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले समय में व्यापक पड़ोसी क्षेत्र के साथ हमारे सामरिक रिश्तों में बहुत बड़ा बदालव आ सकता है. जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐतिहासिक दौरे से मध्य एशिया के साथ भारत के रिश्तों में जो बड़ा बदलाव आया है, उसने दोनों पक्षों के बीच बार बार उच्च स्तरीय दौरों को बढ़ाने का काम किया है. इन सब बातों से भारत और मध्य एशिया के सामरिक संबंधों में नया उछाल देखने को मिल रहा है. हम इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट के ख़तरे के बावजूद, पांच मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्री, तीसरे भारत और मध्य एशिया संवाद के लिए दिल्ली आए. इन नेताओं ने इसी दौरान इस्लामाबाद में इस्लामिक देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक को भी दरकिनार कर दिया. इसी से पता चलता है कि मध्य एशियाई गणराज्य, भारत के साथ अपने रिश्तों को कितनी अहमियत देते हैं.
ओआरएफ हिन्दी के साथ अब आप Facebook, Twitter के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं. नए अपडेट के लिए ट्विटर और फेसबुक पर हमें फॉलो करें और हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें. हमारी आधिकारिक मेल आईडी [email protected] के माध्यम से आप संपर्क कर सकते हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Debasis Bhattacharya is currently working as Professor at Amity Business School Amity University Gurugram. He is also Managing Editor of the Centre for BRICS Studies ...
Read More +