हाल के दिनों में हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के बढ़ते संवादों की एक ख़ास बात ये रही है कि वो इस क्षेत्र में अपनी सामरिक साझेदारियों को मजबूत कर रहा है. इस क्षेत्र में भारत के सामने जिस तरह की समुद्री सुरक्षा संबंधी चुनौतियां खड़ी हैं, उन्हें देखते हुए भारत के लिए इस क्षेत्र की अन्य प्रमुख ताक़तों के साथ व्यापक और समझदारी भरी साझेदारियां करना ज़रूरी हो गया है. इनमें बहुपक्षीय और द्विपक्षीय स्तर पर मज़बूती से संवाद करना शामिल है. जो लोग भारत के समुद्री संपर्कों पर नज़र रखते हैं, वो इन दिनों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के साथ भारत के क्वाड्रीलैटेरल सिक्योरिटी डायलॉग (QUAD) पर अपना ध्यान ज़्यादा केंद्रित कर रहे हैं. मगर, भारत अपने सामरिक दांव-पेंच के तहत हिंद महासागर क्षेत्र में कई ऐसी साझेदारियां कर रहा है, जिन्हें तवज्जो दिए जाने की ज़रूरत है. भारत का एक ऐसा ही सामरिक साझीदार फ्रांस है. भारत लंबे समय से हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) का एक अहम खिलाड़ी रहा है और वो हिंद प्रशांत क्षेत्र की राह में पड़ने वाले इस अहम महासागरीय क्षेत्र की भू-राजनीति में नज़दीकी से शामिल रहा है. इसी तरह, फ्रांस ने भी हिंद प्रशांत क्षेत्र में उभर रही सामरिक हक़ीक़तों को समझने की दिशा में काफ़ी प्रगति की है.
भारत लंबे समय से हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) का एक अहम खिलाड़ी रहा है और वो हिंद प्रशांत क्षेत्र की राह में पड़ने वाले इस अहम महासागरीय क्षेत्र की भू-राजनीति में नज़दीकी से शामिल रहा है. इसी तरह, फ्रांस ने भी हिंद प्रशांत क्षेत्र में उभर रही सामरिक हक़ीक़तों को समझने की दिशा में काफ़ी प्रगति की है.
हाल के वर्षों में भारत, सागर (SAGAR) के नाम से अपनी सामरिक रूप-रेखा के तहत हिंद महासागर क्षेत्र में जिन कई द्विपक्षीय, छोटे बहुपक्षीय और बहुपक्षीय समुद्री एवं नौसैनिक पहलुओं पर काम कर रहा है, उनमें से फ्रांस के साथ संपर्क बढ़ाना कई मायनों में काफ़ी अहम है. पहले तो हिंद महासागर में भारत के नौसैनिक संपर्कों के विश्लेषण से ये पता चलता है कि इनमें से ज़्यादातर क़दम उन देशों के साथ संवाद बढ़ाने के लिए उठाए गए हैं, जो भारत के समुद्री क्षेत्र के केंद्र में हैं या उसके दायरे में आते हैं. जैसे कि मालदीव, सेशेल्स और श्रीलंका, जिनके साथ भारत ने कोलंबो सिक्योरिटी कॉनक्लेव के ज़रिए समुद्री तालमेल बढ़ाया है. दूसरा, हिंद प्रशांत क्षेत्र की बढ़ती सामरिक अहमियत के चलते मालाबार नौसैनिक अभ्यास के ज़रिए भारत ने क्वॉड के साझीदार सदस्यों के साथ नौसैनिक तालमेल को नई रफ़्तार दी है. इसके अलावा, जो एक अन्य देश भारत की समुद्री सुरक्षा के ढांचे में बेहद अहम साझीदार के तौर पर उभरा है वो फ्रांस ही है.
भारत और फ्रांस दोनों ही हिंद महासागर क्षेत्र के बड़े सामरिक खिलाड़ी के तौर पर उभरे हैं. हाल के वर्षों में हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपने साझा हितों को देखते हुए, भारत और फ्रांस ने अपनी सामरिक साझेदारी बढ़ाने में लंबी छलांग लगाई है. हालांकि, उनके सामरिक संवाद और ख़ास तौर से समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग का केंद्र हिंद महासागर ही रहा है. भारत और फ्रांस के बीच सामरिक साझेदारी को नया आयाम देने में हिंद महासागर क्षेत्र की अहमियत वर्ष 2018 में उस वक़्त उजागर हो गई थी, जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों भारत के दौरे पर आए थे. तब दोनों ही देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने अपने रिश्तों को मज़बूत बनाने के लिए ‘हिंद महासागर क्षेत्र में भारत और फ्रांस के सहयोग के साझा सामरिक दृष्टिकोण’ को माध्यम बनाने का स्वागत किया था. जब दोनों देशों ने खुले और स्वतंत्र हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर अपने साझा नज़रिए सामने रखे, तो भारत और फ्रांस के बीच सामरिक साझेदारी बढ़ाने के लिए समुद्री सुरक्षा के सहयोग के मोर्चे पर सबसे ज़्यादा काम किए जाने की अहमियत ज़ाहिर हो गई.
भारत और फ्रांस दोनों ही हिंद महासागर क्षेत्र के बड़े सामरिक खिलाड़ी के तौर पर उभरे हैं. हाल के वर्षों में हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपने साझा हितों को देखते हुए, भारत और फ्रांस ने अपनी सामरिक साझेदारी बढ़ाने में लंबी छलांग लगाई है.
द्विपक्षीय स्तर पर भारत और फ्रांस के बीच बढ़ते सामरिक तालमेल का केंद्र, दोनों देशों की नौसेनाओं का साझा युद्धाभ्यास वरुण रहा है. 2022 में भारत और फ्रांस के बीच वरुण युद्धाभ्यास का 20 बीसवां संस्करण हुआ, जिससे दोनों देशों के बीच संपर्क का दायरा और भी बढ़ा. इस नौसैनिक अभ्यास के मुख्य लक्ष्य आपस में मिलकर काम करना और इस तरह दोनों देशों की नौसेनाओं का एक दूसरे के पूरक बनना रहा है. हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की सामरिक गतिविधियां बढ़ने के कारण, वरुण जैसे नौसैनिक अभ्यासों के ज़रिए समुद्री साझेदारी बढ़ाना, भारत और फ्रांस दोनों के हित में है. वैसे तो चीन के भारत का पड़ोसी होते और हिंद महासागर में भारत की समुद्री सीमा के इर्द गिर्द चीन की बढ़ती सामरिक मौजूदगी, भारत के लिए चिंता की बात है. वहीं, फ्रांस भी इस क्षेत्र में अपने द्वीपों के ज़रिए हिंद महासागर के देश की अपनी पहचान को ज्यादा उत्साह से स्वीकार कर रहा है. फ्रांस, रियूनियन द्वीपों को केंद्र में रखकर हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति को लगातार बढ़ा रहा है. वैसे तो फ्रांस को लंबे समय से यूरोप की शक्ति कहा जाता रहा है. लेकिन, फ्रांस ने हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) 2 में भी अपनी दावेदारी को लगातार मज़बूती से पेश किया है. क्योंकि फ्रांस की नज़र में, हिंद महासागर की एक स्थायी शक्ति के साथ संवाद बढ़ाना, उसके लिए अपनी हिंद महासागर के देश की पहचान को मज़बूत बनाने का मौक़ा है.
हिंद महासागर में फ्रांस की हिस्सेदारी पर एक नज़र
हिंद महासागर में फ्रांस के क़ब्ज़े वाले द्वीप |
1. रियूनियन द्वीप
2. मेयोट
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हिंद महासागर वो क्षेत्रीय संगठन जिनका सदस्य है फ्रांस |
1. इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन
2. इंडियन ओशन कमीशन
3. इंडियन ओशन नेवल सिम्पोजियम
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विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) |
1. हिंद महासागर में फ्रांस का विशेष आर्थिक क्षेत्र पूरे समुद्री क्षेत्र का दस प्रतिशत है.
2. फ्रांस के कुल विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र का 20 प्रतिशत हिस्सा हिंद महासागर में पड़ता है
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2021 में भारत ने पहली बार, फ्रांस के अहम नौसैनिक अभ्यास ला पेरॉस में भागीदारी की थी. इस अभ्यास में भारत के अलावा क्वॉड के तीन अन्य देशों- ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका की नौसेनाओं ने भी शिरकत की थी. जिसके बाद QUAD प्लस गठबंधन की चर्चाओं ने ज़ोर पकड़ा था. जिस तरह से QUAD के चार सदस्य देशों ने इसके ढांचे के तहत अपने संपर्क बढ़ाए हैं, वो इस बात की मिसाल हैं कि ये सभी देश हिंद प्रशांत क्षेत्र को खुला और स्वतंत्र समुद्री इलाक़ा बनाए रखने के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं. इस नज़रिए से देखें तो, ला पेरॉस अभ्यास में फ्रांस के साथ मिलकर काम करने से इस गठबंधन के भविष्य को नई ताक़त मिली है. इससे फ्रांस को क्या फ़ायदा होगा, इसका अंदाज़ा हम इस बात से लगा सकते हैं कि वो हिंद प्रशांत क्षेत्र में सहयोग के अगुवा देशों के साथ मिलकर काम करने में कितना सक्षम है और हिंद महासागर में उसके द्वीप होने के चलते, हिंद प्रशांत क्षेत्र में उसके अपने सामरिक हित भी सधते हैं.
ऑकस के समकक्ष नया गठबंधन
हिंद महासागर और व्यापक हिंद प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस की बढ़ती दिलचस्पी से मेल खाते हुए, राष्ट्रपति मैक्रों ने फ्रांस, भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक नए गठबंधन प्रस्ताव रखा था, जिससे हिंद प्रशांत क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देश मिलकर एक साझा नज़रिया पेश कर सकें. दिलचस्प बात ये है कि मैक्रों ने ये प्रस्ताव 2018 में ऑस्ट्रेलिया के गार्डेन में एक कार्यक्रम के दौरान पेश किया था. इस दौरान मैक्रों ने इस बात पर भी ज़ोर दिया था कि जिस तरह चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत अपने हितों का विस्तार कर रहा है, उससे हिंद प्रशांत क्षेत्र के भागीदारों को सतर्क रहना चाहिए. हिंद महासागर में ऑस्ट्रेलिया, भारत और फ्रांस की मौजूदगी अनूठी है, जो पूरे समुद्री क्षेत्र में फैली हुई है. जहां ऑस्ट्रेलिया हिंद महासागर के एक कोने पर स्थित है, वहीं भारत इसके केंद्र में है, तो रियूनियन द्वीपों के रूप में फ्रांस इस महासागर के दूसरे छोर पर स्थित है. ऐसे में इस क्षेत्र की उभरती भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए, अगर कोई ऐसा सामरिक ध्रुवीकरण बनता है, जिसमें ये तीनों देश शामिल होते हैं, तो उसमें काफ़ी संभावनाएं होंगी .
जिस तरह चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत अपने हितों का विस्तार कर रहा है, उससे हिंद प्रशांत क्षेत्र के भागीदारों को सतर्क रहना चाहिए. हिंद महासागर में ऑस्ट्रेलिया, भारत और फ्रांस की मौजूदगी अनूठी है, जो पूरे समुद्री क्षेत्र में फैली हुई है.
ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन के बीच ऑकस (AUKUS) गठबंधन बनने के चलते, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहले से हुआ एक रक्षा समझौता रद्द हो गया था और इससे दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट भी आ गई थी. इसके बावजूद भारत और फ्रांस के संबंध मज़बूत बने रहे हैं. सच तो ये है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर अपने साझा नज़रिए और हितों के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों ने हिंद प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र और खुला बनाए रखने के लिए ‘नए नए तरीक़े’ अपनाने पर ज़ोर दिया था. इसे नरेंद्र मोदी और इमैन्युअल मैक्रों के बीच मज़बूत दोस्ती की मिसाल के तौर पर देखा गया था.
भारत और फ्रांस दोनों ने ही ख़ास तौर से नौसैनिक संपर्कों के ज़रिए अपनी समुद्री साझेदारी को आगे बढ़ाने पर काफ़ी ध्यान दिया है. हाल ही में भारत ने इंडियन ओशन नेवल सिम्पोज़ियम मेरीटाईम एक्सरसाइज (IMEX-22) को गोवा के पास अरब सागर में आयोजित किया था. इसमें इंडियन ओशन नेवल सिम्पोजियम (IONS) के 23 में से 15 सदस्य देश शामिल हुए थे. ख़ास बात ये रही कि इस युद्धाभ्यास को भारत और फ्रांस के नौसेना प्रमुखों ने देखा था. इसे हम हिंद महासागार के बहुपक्षीय मंचों के प्रति फ्रांस की बढ़ती दिलचस्पी के तौर पर देख सकते हैं. 2020 में फ्रांस के इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) का औपचारिक रूप से सदस्य बनने के बाद से फ्रांस ने इस क्षेत्र में अपने बहुपक्षीय संवाद को काफ़ी बढ़ाया है. IMEX-22 में पर्यवेक्षक बनने के साथ-साथ फ्रांस ने IORA को अपने शांतिपूर्ण और समृद्ध हिंद महासागर के नज़रिए को साकार करने के लिए क्षमता के निर्माण और आपसी तालमेल बढ़ाने में भी फंड के ज़रिए मदद की है. चूंकि, भारत इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन के प्रमुख प्रस्तावकों में से एक रहा है, ऐसे में इस संगठन के साथ फ्रांस के व्यापक संवाद से दोनों देशों को निश्चित रूप से हिंद महासागर में आपसी रिश्ता और मज़बूत बनाने में मदद मिलेगी.
भारत-फ्रांस के मज़बूत रिश्ते
वैसे तो भारत और फ्रांस के रिश्तों में ऐतिहासिक रूप से रक्षा संबंध ख़ासे अहम रहे हैं. लेकिन धीरे-धीरे दोनों देशों के आपसी संबंधों में समुद्री क्षेत्र में तालमेल को भी काफ़ी तवज्जो दी जा रही है. इसमें कोई शक नहीं कि दोनों देशों के रक्षा बाज़ार एक दूसरे के पूरक हैं और इन्होंने भारत और फ्रांस के बीच मज़बूत समुद्री सहयोग बनाने में बुनियाद का काम किया है. लेकिन आज ये समुद्री सहयोग दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी को नया स्वरूप दे रहा है. हिंद महासागार निश्चित रूप से एक ऐसा वैश्विक केंद्र बन गया है, जहां नई समुद्री साझेदारियां विकसित की जा रही है. इस संदर्भ में फ्रांस द्वारा अपनी वैश्विक और क्षेत्रीय नीति को बदलने और हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बढ़ाकर ख़ुद को यूरोपीय शक्ति से आगे बढ़ाकर हिंद महासागर क्षेत्र के एक देश के रूप में पेश करने को समय की मांग के हिसाब से ढालने के तौर पर देखा जाना चाहिए. ऐसा करके न सिर्फ़ फ्रांस ने दुनिया के बदलते समीकरणों के हिसाब से ख़ुद को ढाला है, बल्कि उसने पूरे यूरोप को भी इस क्षेत्र पर ध्यान देने के लिए प्रभावित किया है.
इसमें कोई शक नहीं कि दोनों देशों के रक्षा बाज़ार एक दूसरे के पूरक हैं और इन्होंने भारत और फ्रांस के बीच मज़बूत समुद्री सहयोग बनाने में बुनियाद का काम किया है. लेकिन आज ये समुद्री सहयोग दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी को नया स्वरूप दे रहा है.
दोनों देशों के आपसी संबंध इसलिए भी अनूठे बन जाते हैं क्योंकि फ्रांस के साथ साझेदारी करके भारत को अन्य यूरोपीय देशों के साथ भी ऐसी ही भागीदारी विकसित करने का मौक़ा मिल रहा है. आज ब्रिटेन, जर्मनी और यूरोपीय संघ द्वारा हिंद महासागर की नई सामरिक सच्चाइयों में भारत की अहमियत को स्वीकार करने को इसी का सबूत कहा जा सकता है. हिंद महासागर में भारत के सामने चुनौतियां बढ़ रही हैं और उसके पड़ोस में भी उठा-पटक लगातार बढ़ रही है. ऐसे तेज़ी से परिवर्तित हो रहे भू-राजनीतिक माहौल में, ऐसी सामरिक भागीदारी और गठबंधन, भारत की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी करने में दूरगामी योगदान देंगे.
इस संदर्भ में ये कहा जा सकता है कि जिस तरह भारत और फ्रांस, हिंद महासागर में अपने सामरिक हित साधने के लिए प्रयास कर रहे हैं, उसे देखते हुए दोनों ही देशों के पास समुद्री क्षेत्र में भी अपनी भागीदारी के विस्तार का अच्छा मौक़ा है. इसके अलावा, चूंकि फ्रांस का यूरोप के अंतरराष्ट्रीय नीति गढ़ने पर काफ़ी असर रहता है, तो इससे वो हिंद महासागर और व्यापक हिंद प्रशांत क्षेत्र में उभरती हुई भू-राजनीतिक परिस्थितियों में ख़ुद को एक बड़ी ताक़त के रूप में पेश कर सकता है, और भारत को समान विचारधारा वाले दूसरे यूरोपीय देशों के साथ संबंध मज़बूत बनाने में भी मदद कर सकता है. अब जबकि इमैनुएल मैक्रों, दोबारा फ्रांस के राष्ट्रपति चुने गए हैं, तो हिंद महासागार और व्यापक हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत और फ्रांस द्वारा अपने साझा हित हासिल करने की राह में कोई रोड़े आने का डर नहीं है. इसलिए, निश्चित रूप से भारत और फ्रांस ने हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सामरिक संपर्क के ज़रिए अपने संबंधों को नई ऊंचाई पर पहुंचाया है.
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