Expert Speak Raisina Debates
Published on Dec 21, 2022 Updated 0 Hours ago

नियम-आधारित ऑर्डर और ऑटोनॉमी का पालन करने के प्रति न्यू दिल्ली की प्रतिबद्धता की वजह से, चीन की तुलना में अपने पथ को निर्देशित करने के लिये कंबोडिया उसके लिये एक बेहतर जंक्शन है.

ASEAN सम्मेलन से हटकर भारत और कंबोडिया अपने द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार करने में लगे हैं

हमेशा से विकासशील रही, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की भू-राजनीति में, साउथ-ईस्ट एशियन नेशन्स (आसियान) के साथ प्रगाढ़ होते भारत के संबंध, काफी महत्वपूर्ण प्रतीत होते रहे हैं. यह वर्ष, आसियान-भारत संबंध की 30वीं सालगिरह मना रहा है. और जहां एक तरफ भारत प्रभावशाली एशियाई देशों के साथ के अपने सहयोग को और मज़बूती देना चाह रहा है, वहीं इस वर्ष को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा "आसियान-भारत मैत्री वर्ष" नामित किया गया है.    

इस यात्रा के दौरान चार समझौता ज्ञापन  (MOU) पर हस्ताक्षर किये गये. पहला समझौता स्वास्थ्य और औषधि संबंधी है. दूसरे ज्ञापन पर हस्ताक्षर कंबोडिया के जंगलों में बाघ के पुनर्वास से संबंधित थी, जो कि अनाधिकृत/अवैध शिकार एवं प्राकृतिक वास के नुकसान की वजह से दुर्लभ हो चुके हैं. 

हालिया घटे कुछ ताज़ा घटनाक्रम ने इस रिश्ते की प्रगति को एक नई दिशा दी है. इंडोनेशिया और वियतनाम संग रणनीतिक सैन्य एवं नौसैनिक संलिप्तता और साथ ही, फिलीपींस को बेचे जाने वाली ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल की हो रही तैयारी ने इन राष्ट्रों के साथ के अपने संबंधों को प्रगाढ़ बनाने की भारत के उद्देश्य को और ज़्यादा प्रोत्साहित किया है.    

विदेशमंत्री, डॉ. एस. जयशंकर के साथ साथ भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ की अगुवाई में, भारतीय डेलीगेशन, कंबोडिया में 11 से 13 नवंबर 2022 को हुए आसियान-भारत स्मारक शिखर सम्मेलन और 17वीं पूर्वी एशिया सम्मेलन में भाग लेने के लिए के त्रीदिवसीय यात्रा पर रवाना हुआ था. इस सम्मेलन से इतर, जब वे अपने द्विपक्षीय संबंधों की 70वीं सालगिरह मना रहे हैं, उस वक्त भारत कंबोडिया के साथ अपने संबंधों को और प्रगाढ़ रूप देने के लिये सजग एवं तैयार है.    

इस उद्देश्य को केंद्र में रखते हुए भारतीय उपराष्ट्रपति ने, प्रधानमंत्री ह्वैन सेन से मुलाकात की और द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति के मद्देनज़र विभिन्न मुद्दों पर वार्ता की. इस यात्रा में भारतीय सरकार के साथ माइन मुक्ति सहयोग के मुद्दों पर विशेष ज़ोर दिया गया. जून 2022 में भारत ने, कोह काँग प्रांत में माइन मुक्त गाँव को वित्तीय सहयोग प्रदान करने संबंधी एक समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किया था, जिसका मक़सद वहां रह रहे 8,000 विस्थापित लोगों को बसाना है. माइन दुर्घटनाओं में प्रभावित लोगों को कृत्रिम अंग आदि प्रदान करके पीड़ित सहायता प्रदान की गई. इस संदर्भ में, आने वाले भविष्य में, “जयपुर फुट” के अंतर्गत दो हेल्थ सेंटर द्वारा कृत्रिम अंगों के प्रोग्राम को भी वहां स्थापित करने योजना है.    

संयोग से, इस यात्रा के दौरान चार समझौता ज्ञापन  (MOU) पर हस्ताक्षर किये गये. पहला समझौता स्वास्थ्य और औषधि संबंधी है. दूसरे ज्ञापन पर हस्ताक्षर कंबोडिया के जंगलों में बाघ के पुनर्वास से संबंधित थी, जो कि अनाधिकृत/अवैध शिकार एवं प्राकृतिक वास के नुकसान की वजह से दुर्लभ हो चुके हैं. इस बाबत, वहाँ पर बाघों के लिए एक बेहतर इको-सिस्टम का निर्माण करने और बाघों को हस्तांतरित करने की योजना है. तीसरे ज्ञापन पर हस्ताक्षर, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, जोधपुर, और इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कंबोडिया के बीच शिक्षा और सांस्कृतिक धरोहर के डिजिटल संरक्षण में सहयोग बढ़ाने की दिशा में की गई. अंतिम समझौता या एमओयू जिसपर हस्ताक्षर किया गया वो कंबोडिया के सीएम रीप में वाट राजा बो पगोड़ा स्थित रामायण भित्तिचित्रों के संरक्षण के लिये वित्तीय समझौते से जुड़ा था.  

द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाना 

कंबोडिया संग भारत के कूटनीतिक संबंधों की स्थापना सन 1952 में की गई थी. नरसंहार राज के नाम से कुख्य़ात खमेर रूज सरकार के (1.7 से 2 लाख कम्बोडियाई लोगों की इस नेता ने हत्या कर दी थी) 1975 में सत्ता पर काबिज़ होने के बाद से ही इन दोनों राष्ट्रों के बीच के संबंधों में खटास आ गई थी. हालांकि, 1979 में खमेर रूज शासन के पतन के पश्चात, कंबोडिया को स्वीकार करने वाला सबसे पहला देश नई दिल्ली ही था. फ़्नोम पेन्ह स्थित दूतावास की पुनः 1981 में स्थापना की गई. 1991 में पेरिस शांति समझौता पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में भारत भी एक प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता रहा है, जिसने कंबोडिया युद्ध को उसकी अंतिम चरण यानी उसकी समाप्ति में प्रभावी रहा था.   

तबसे कंबोडिया स्थित प्रसिद्ध अंगकोर वाट जैसे मंदिरों की मरम्मत में भारत की उल्लेखनीय भूमिका रही है, जिसकी प्रशंसा कम्बोडियाई नागरिकों एवं वहाँ की सरकारों ने भी की है. टा प्रोहं स्थित एक अन्य मंदिर प्रांगण का मरम्मती कार्य, वर्तमान में जारी एक प्रमुख प्रोजेक्ट है. भारत ने इस मरम्मत कार्य के दो चरण पूरे कर लिए हैं और तीसरा चरण, जिसकी शुरुआत 2016 में हुई थी, 2026 तक पूरा हो जाने की संभावना हैं. टा प्रोहं का एक हिस्सा, जिसे नर्तकों का हॉल कहा गया है, उसका अनावरण श्री धनखर ने अपनी यात्रा के दौरान किया. 

संस्कृत और खमेर भाषा के बीच की कड़ी को उजागर करने लिए, भारतीय दूतावास ने अगस्त 22 को संस्कृत दिवस का आयोजन किया जिसमें कंबोडिया के संस्कृत भाषा के शिक्षाविद के साथ साथ भारतीय एवं कम्बोडियाई कलाकारों ने भाग लिया.

फ़्नोम पेन्ह को इंडियन टेक्निकल और इकोनॉमिक कोऑपरेशन (आईटीईसी) और मेकॉनग गंगा कोऑपरेशन (एमजीसी) जैसे कार्यक्रमों की मदद से समुचित विकास सहयोग प्रदान किया गया है. भारत, राष्ट्र के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से क्विक इम्पैक्ट प्रोजेक्ट्स को भी अपना केंद्रीय सहयोग प्रदान कर रहा है. 

भारत और कंबोडिया के मध्य के द्विपक्षीय संबंधों के 70वीं वर्षगांठ मनाने के मौके पर, इस साल जून माह में कंबोडिया के उप-प्रधानमंत्री प्राक सोख़ोन, अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं विदेश मंत्री, और भारत सरकार में विदेश राज्य मंत्री डॉक्टर राजकुमार रंजन सिंह, की उपस्थिति में एक चिन्ह का अनावरण किया गया. जून 2022 में, 8वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भी मनाया गया जिसमें विशिष्ट जनों के अतिरिक्त 500 से भी ज्य़ादा लोगों ने भाग लिया था. संस्कृत और खमेर भाषा के बीच की कड़ी को उजागर करने लिए, भारतीय दूतावास ने अगस्त 22 को संस्कृत दिवस का आयोजन किया जिसमें कंबोडिया के संस्कृत भाषा के शिक्षाविद के साथ साथ भारतीय एवं कम्बोडियाई कलाकारों ने भाग लिया.  

इसके अलावा, दिसंबर 2022 में कंबोडिया में भारतीय चेम्बर ऑफ कॉमर्स, फ़्नोम पेन्ह में, व्यापार – और दोनों देशों के बीच व्यापार एवं वाणिज्य को बढ़ाने हेतु, आर्थिक निवेश जनित गतिविधियों बिजनेस एक्सीलेन्स अवॉर्ड 2022 का आयोजन करेगी. दोनों देशों से निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों के 200 से भी ज्य़ादा कंपनियों, के इस कार्यक्रम में भाग लेने की संभावना है.  

हालांकि, भारत और कंबोडिया के बीच के व्यापार अब भी अपर्याप्त हैं. वर्ष 2021 के रिपोर्ट के अनुसार, कंबोडिया एवं भारत बीच के व्यापार का ट्रेड वॉल्यूम अमेरिकी डॉलर 311 लाख रहा है. कंबोडिया में भारत 10 शीर्ष निवेशकों में से एक है और आसियान समूह में 2019-20 के दौरान द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिकी $86.9 बिलियन के साथ चौथी सबसे बड़ी विनिमय सहयोगी है. कंबोडिया भारत के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) स्थापित करने का विचार कर रहा है. उसके पास पहले से चीन, साउथ कोरिया और जापान के साथ एफटीए हो रखा है. विश्लेषक ऐसा मानते हैं कि चूंकि भारतीय अर्थव्यवस्था काफी संपन्न है, इससे कंबोडिया को काफी फायदा प्राप्त होगा.   

क्वॉड वैक्सीन की पहल के अंतर्गत मुहैया कराये गये कोविड-19 वैक्सीन में भारत की भूमिका की भी कंबोडिया ने सराहना की है. 

भौतिकी जुड़ाव से संबंधित, भारत-थाईलैंड-म्यांमार त्रिपक्षीय हाइवे,जो कि कंबोडिया, लाओस और वियतनाम से जुड़ा है, से भारत और कंबोडिया को मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी को और बेहतर करने का अवसर प्राप्त होगा. साथ ही कोलकाता और उड़ीसा स्थित पारादीप पोर्ट के बीच अंतर-बंदरगाह कनेक्टिविटी से म्यांमार स्थित सितवे बंदरगाह और उसके उपरांत कंबोडिया और अन्य दक्षिणपूर्वी एशियाई राष्ट्रों तक पहुँच पाने में मदद मिलेगी.   

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए, सीधी फ्लाइट सेवा पर विचार किया जा रहा है. 2022 में कंबोडिया की यात्रा करने वाले टूरिस्ट, 2018 के 1.1 प्रतिशत की तुलना में अब सिर्फ 0.9 प्रतिशत रह गए हैं. लोगों से लोगों तक संबंध स्थापित करने के लिए सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना काफी फलदायी सिद्ध हो सकता है चूंकि दोनों ही राष्ट्र समान संस्कृति और ऐतिहासिक जड़ें साझा करते हैं. 

रणनीतिक अभिसरण की पहचान 

विश्लेषकों के अनुसार, भारत के साथ के रिश्तों की मज़बूती, कंबोडिया को इस प्रांत के अंदर के अपने सहयोगियों में विविधता लाने के बेहतर मौके प्रदान करेंगे और चीन के प्रति उनकी निर्भरता को कम करेंगे. शुरुआत से ही चीन इस राष्ट्र का एक आंतरिक भाग रहा है. बीजिंग कंबोडिया का एक प्रमुख ट्रेडिंग पार्टनर और विदेशी निवेशक रहा है और उसने कंबोडिया में कम से कम 70 प्रतिशत महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश किया है.   

कंबोडिया कई मसलों के कारण अंतरराष्ट्रीय जांच के दायरे में आ चुका है. इसमें चीन पहुँचने के बाद वहां कैद किये गए उईगर शरणार्थियों की जबरन वापसी का मामलो हो, या दक्षिण चीनी समुद्र के ऊपर चीन के प्रादेशिक दावों को दिया गया उसका समर्थन हो, या फिर उसके अपने देश में कोविड19 के सख़्त क्रूर नियमों का मुद्दा हो, मानव अधिकारों की गिरती स्थिति हो, राजनैतिक कैदियों या आंदोलनकारियों पर चल रहा मास ट्रायल, अपहरण, गिरफ़्तारी, मौतें आदि जैसे अनगिनत मसलों के साथ चीन का बढ़ता सैन्य प्रभुत्व हो. इन सभी मुद्दों की वजह से कंबोडिया ने अंतरराष्ट्रीय जगत में अपनी साख गिरायी है, और मौजूदा समय में आसियान की अध्यक्षता वो मौका है जो उसे अपनी पहचान बचाने का एक मौका देता है.  

 

ऐसी स्थिति में, भू-राजनीतिक एवं रणनैतिक जरूरतों के आधार पर, भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने की दिशा में बढ़ना कंबोडिया का काफी सही कदम प्रतीत होता है. नई दिल्ली की नियम आधारित सूचि और ऑटोनॉमी/संप्रभुता के प्रति प्रतिबद्धता, चीन की तुलना में अपने पथ को निर्देशित करने की दिशा में कंबोडिया को एक बेहतर स्थिति में रखता है. साथ ही ये आसियान और एक्ट ईस्ट विज़न के परिप्रेक्ष्य में भारत के हितों की रक्षा करता है, चूंकि वो इस क्षेत्र के भीतर खुद को एक महत्वपूर्ण रणनैतिक साझेदार के तौर पर स्थापित करना चाहता है. 

चूंकि, भारत और कंबोडिया दोनों ही इस वर्तमान के इंडो-पैसिफिक आख्यान में प्रमुख भूमिका अदा करने की चाहत रखते हैं, इसलिए, ये दोनों ही देशों के लिए जीत की स्थिति उत्पन्न करती है. इसलिए, सम्मिलन और सांस्कृतिक बढ़त की तलाश, व भौतिकी और आर्थिक साझेदारी की मदद से दोनों देश अपने संबंधों को एक नई ऊंचाई दे सकते हैं. 

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