Published on Jun 23, 2020 Updated 0 Hours ago

चीन जहां मुख्य रूप से अफ़्रीकी देशों में स्वयं का राजनीतिक प्रभाव स्थापित करने एवं अफ़्रीकी देशों के संरचनात्मक विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा, वहीं भारत अफ़्रीकी नागरिकों की स्थानीय क्षमताओं एवं अफ्रीकी लोगों के साथ एक समान साझेदारी बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है.

कोविड-19 के दौरान अफ्रीकी देशों में भारत की मानवीय एवं चिकित्सीय सहायता

वर्तमान समय में वैश्विक महामारी COVID-19 के प्रकोप और प्रसार ने संपूर्ण विश्व के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. पाश्चात्य देशों की तुलना में अफ्रीकी देश भाग्यशाली रहें है क्योंकि यह महामारी अन्य देशों की अपेक्षा में इस महाद्वीप में अपेक्षाकृत देर से आयी है. उप-सहारा अफ्रीका महाद्वीप में पहला मामला फरवरी के अंत तक लगभग संज्ञान में आया था. लेकिन आज के समय में अफ्रीका महाद्वीप में 1 लाख 30,000 के करीब केस है, वहीं लगभग 3800 के करीब लोगों की इस महामारी के चलते मृत्यु हो चुकी है. साथ ही 53,500 के करीब लोगों की स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक आयोग का मानना है की इस वैश्विक आपदा के चलते अफ्रीका में करोड़ों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है . इन सबके लिए अफ्रीकी देशों की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था भी एक प्रमुख कारण है जो की विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा में बहुत ही दोयम दर्जे की है. यहां पर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बहुत ही नाजुक और कमजोर है, अफ्रीका महाद्वीप में 41 देशों में केवल 200 वेंटिलेटर हैं. यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका, जहां अफ्रीका की सबसे अच्छी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली है, वहां पर भी लगभग 1,000 आईसीयू बेड हैं, जिनमें से 160 के करीब निजी क्षेत्र में हैं. इस महामारी ने सपूर्ण अफ़्रीकी देशों के समक्ष एक विकट आर्थिक संकट भी उत्पन्न कर दिया है. COVID-19 महामारी को देखते हुए UNECA की रिपोर्ट में पूरे अफ्रीका में गंभीर आर्थिक संकट की चेतावनी भी दी है, UNECA का मानना है कि इस महामारी ने अनुमानित 27 लाख के करीब अफ़्रीकी देशों के नागरिकों को अत्यधिक ग़रीबी में धकेल दिया गया है.

अफ्रीका एक ऐसा क्षेत्र है जहां वैश्विक स्तर पर चिकित्सा सुविधाएं कम से कम विकसित हैं. कोविद-19 के अलावा, हैजा, टीबी, मलेरिया, इबोला जैसी कई अन्य बीमारियाँ भी इस महाद्वीप पर व्यापक रूप से प्रभाव डालती हैं.

भारत और अफ्रीकी चिकित्सीय संबंधों में विस्तार

भारत और अफ्रीका के संबंधों को देखें तो आभास होता है की दोनों के बीच के संबंध साझा इतिहास , मूल्यों और सिद्धांतों में निहित है जिसके परिणामस्वरूप ही हमको दोनों क्षेत्रों के बीच में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग दिखाई पड़ता हैं. इस वैश्विक संकट के दौर में भी एक सक्षम अंतरराष्ट्रीय भागीदार के रूप में भारत की छवि को अफ्रीका समेत विश्व के अन्य देशों के समक्ष प्रस्तुत किया है. इसका ही परिणाम है की इस वैश्विक संकट के समय में, अफ्रीकी महाद्वीप तक पहुंचने के लिए भारत के सक्रिय दृष्टिकोण की सराहना कई अफ्रीकी देशों द्वारा की गई है एवं इस महामारी से उत्पन्न चुनौतियों ने भारत-अफ्रीका संबंध को और अधिक मजबूत बना दिया है. अफ्रीका एक ऐसा क्षेत्र है जहां वैश्विक स्तर पर चिकित्सा सुविधाएं कम से कम विकसित हैं. कोविद-19 के अलावा, हैजा, टीबी, मलेरिया, इबोला जैसी कई अन्य बीमारियाँ भी इस महाद्वीप पर व्यापक रूप से प्रभाव डालती हैं.

मिशन सागर: अफ्रीकी देशों में भारत की मदद

भारतीय विदेश मंत्रालय (एमईए) के अनुसार इस वैश्विक आपदा के दौर में जहां भारत स्वयं संघर्ष कर रहा है फिर भी भारत ने अफ्रीका के लगभग 25 से अधिक देशों में जीवनरक्षक दवाएं एवं अन्य ज़रुरी सामान पहुंचने का कार्य किया है, जिनमें हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू), पैरासिटामोल, इबुप्रोफेन के अलावा एंटीबायोटिक, एंटी-डायबिटिक, एंटी-कैंसर, एंटी-अस्थमा और हृदय संबंधी दवाओं के साथ-साथ में इस सूची में इंजेक्शन और थर्मामीटर जैसे अन्य चिकित्सा उपकरण भी शामिल हैं. इसके अलावा, भारत ने अफ़्रीकी देशों में इस संकट को कम करने के लिए अफ्रीका के स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों को संलग्न करने और प्रशिक्षित करने के लिए स्थानीय अफ्रीकी संस्थानों के साथ शीर्ष भारतीय संस्थानों के साथ साझेदारी करके कार्य भी किया है. इस कठिन समय में भारत ने मिशन ‘SAGAR’ के तहत मेडागास्कर, सेशेल्स और कोमोरोस को आवश्यक आपूर्ति की है. ऐसा नहीं है की भारत ने अफ्रीका के प्रति यह चिकित्सा कूटनीति COVID -19 को ध्यान में रखकर प्रारभं कि है अपितु यह सहयोग भारत और अफ्रीका के बीच साझा की गई ऐतिहासिक सद्भावना पर आधारित है . 2008 के बाद से ही, भारत ने इस चिकित्सा कूटनीतिक सहयोग को राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग के अलावा प्रारभं किया था. उसी का ही परिणाम है कि आज भारत पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीकी देशों में जेनेरिक दवाओं के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक है, जिसमें पेट्रोलियम उत्पादों के साथ इसके कुल निर्यात का 40 प्रतिशत योगदान है. इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य क्षेत्र में अफ्रीकियों को प्रशिक्षित करने के लिए भारत सरकार ने टेलीमेडिसिन और आईटीईसी कार्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षण तो दिया ही है साथ ही स्थानीय अफ्रीकी संस्थानों के साथ शीर्ष भारतीय संस्थान, एम्स रायपुर में भागीदारी करके अफ़्रीकी देशों की स्वास्थ्य व्यवस्था को विकसित करने का कार्य भी किया है.

ऐसा नहीं है की भारत ने अफ्रीका के प्रति यह चिकित्सा कूटनीति COVID -19 को ध्यान में रखकर प्रारभं कि है अपितु यह सहयोग भारत और अफ्रीका के बीच साझा की गई ऐतिहासिक सद्भावना पर आधारित है

भारत ने इन क्षेत्रों में मानवीय सहयोग को बढ़ाने के लिए भारतीय प्रवासियों के माध्यम से अपनी पहुंच को और मजबूत बनाई है, साथ ही उनको महामारी द्वारा उत्पन्न सीमाओं के भीतर हर संभव मदद का आश्वासन भी दिया गया है. इसी कड़ी के अनुरूप कुछ सप्ताह पूर्व , प्रधानमंत्री मोदी एवं विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने अफ़्रीकी देशों को इस महामारी से निपटने के लिए आश्वासन दिया एवं अफ़्रीकी देशों कई राष्ट्-अध्यक्षों व्यक्तिगत स्तर पर वार्ता करके सभी तरह से सहयोग का आश्वासन दिया है. इस तथ्य के बावजूद कि हमारा अपना देश स्वयं इस महामारी से प्रभावित है और कठिन समय से गुजर रहा है, हमने फिर भी अफ्रीका के प्रति एक जिम्मेदार हितधारक के रूप में काम किया है; जो की कुछ हद तक चीन एवं अन्य देशों को बताने के किये कुछ हदतक काफी है कि अफ्रीकी देशों के साथ में भारत के संबंध रणनीतिक पहुंच एवं आर्थिक हित से परे है, एक यह भावनात्मक जुड़ाव से निर्मित है जो की दोनों ही क्षेत्र अपने साझा इतिहास, सभ्यता, सांस्कृतिक जुड़ाव से बंधे है. इसी के परिणामस्वरूप भारत इस वैश्विक आपदा के काल में भी चिकित्सीय कूटनीति के माध्यम से अफ़्रीकी देशों में ऐतिहासिक सदभाव एवं उपस्थिति को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है .

महामारी के समय चीन की अफ्रीकानीति

चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार होने के नाते, इस महामारी के दौर में अफ़्रीकी देशों में चिकित्सा सुरक्षा उपकरण, परीक्षण किट, वेंटिलेटर और मेडिकल मास्क आदि कि सहायता प्रदान कर रहा है. चीन के इस सहयोग का मुख्य उद्देश्य वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में मानवीय सहायता और “सार्वजनिक वस्तुओं” के अग्रणी प्रदाता के रूप में बीजिंग की छवि को वैश्विक स्तर पर बढ़ाना है.

प्रो. हर्ष पंत एवं अभिषेक मिश्रा के अनुसार चीन की इस “दान कूटनीति” (Donation Diplomacy) का उद्देश्य मुख्यतः तीन तात्कालिक उद्देश्यों को प्राप्त करना है,. सर्वप्रथम वुहान में कोरोना वायरस की उत्पत्ति के बाद से चीन को लेकर वैश्विक दृष्टिकोण है उसमे परिवर्तन लाना , दूसरा विदेशों में सद्भावना का निर्माण करना और वैश्विक स्तर पर चीन की जो छवि खराब हुई है उसको पुनः सुधारना. हम देखते है की कुछ हद तक चीन अफ्रीकी देशों में कूटनीतिक तौर पर इसको स्थापित करने में सफल भी रहा है लेकिन चीन के ग्वांगझू शहर में अफ्रीकी नागरिकों के साथ इस महामारी के काल में जो नस्लीय दुर्व्यवहार हुआ है उसने कहीं न कहीं चीन की नीति को नुक्सान पहुंचाया है . कुल मिलाकर, देखें तो COVID-19 के दौरान अफ्रीका के प्रति चीन की दान-कूटनीति को मिश्रित प्रतिक्रिया मिली है, लेकिन फिर भी इसके माध्यम से चीन अपना आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभाव अफ़्रीकी देशों समेत सपूर्ण विश्व में स्थापित करने में कुछ हद तक सफल रहा है

इस प्रकार हम देखते है की भारत और चीन, दोनों अपने-अपने स्वास्थ्य और दान-कूटनीति के माध्यम से, ऐतिहासिक रूप से अफ्रीकी देशों के उनके जो द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय संबंध रहे है उनको मजबूत कर रहे है . लेकिन भारत एवं चीन के इस दृष्टिकोणों में अंतर देखने को मिलता है, चीन जहां मुख्य रूप से अफ़्रीकी देशों में स्वयं का राजनीतिक प्रभाव स्थापित करने एवं अफ़्रीकी देशों के संरचनात्मक विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा, वहीं भारत अफ़्रीकी नागरिकों की स्थानीय क्षमताओं एवं अफ्रीकी लोगों के साथ एक समान साझेदारी बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है. जो की कहीं न कहीं भारत की वैश्विक बंधुत्व के विचार एवं नीति को अफ़्रीकी जनमानस के मध्य में स्थापित कर रहा है . जो की इस वैश्विक आपदा की समाप्ति के बाद भविष्य में  अफ़्रीकी देशों के साथ भारत के ऐतिहासिक ,सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों रहें है, उनको नया आयाम प्रदान करेगा .


Note: असिस्टेंट प्रोफेसर लोकेश कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय में भारत-अफ्रीका संबंधों पर शोध कार्य कर रहे हैं.

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