1 दिसंबर 2018 को चीन की कंपनी Huawei के मुख्य वित्तीय अधिकारी यानी सीएफओ मेंग वानझाऊ को कनाडा के वैंकूवर से गिरफ़्तार कर लिया गया था. कनाडा की सरकार ने Huawei के सीएफओ को अमेरिकी अधिकारियों के कहने पर गिरफ़्तार किया था. कनाडा के अधिकारियों के मुताबिक़, मेंग वांगझाऊ पर आरोप है कि उन्होंने ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के उल्लंघन को ये कह कर छुपाने की कोशिश की कि ईरान में काम कर रही कंपनी Huawei की सहयोगी कंपनी भले ही है, पर अलग है. बाद में मेंग वांगझाऊ को 10 लाख डॉलर की रक़म पर ज़मानत मिल गई थी. लेकिन, मेंग पर अमेरिका को प्रत्यर्पित किए जाने का ख़तरा मंडरा रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने 15 मई 2019 को जारी एक राष्ट्रीय सुरक्षा आदेश से कमोबेश Huawei पर अमेरिका में पाबंदी लगा दी है. अगर ऐसे ही हालात बने रहे, तो अमेरिकी तकनीकी कंपनियां जैसे गूगल और फ़ेसबुक को Huawei से अपने संबंध तोड़ने पड़ेंगे. इसके बाद गूगल प्ले स्टोर और फ़ेसबुक ऐप, Huawei के फ़ोन पर उपलब्ध नहीं होंगे.
अगर ऐसे ही हालात बने रहे, तो अमेरिकी तकनीकी कंपनियां जैसे गूगल और फ़ेसबुक को Huawei से अपने संबंध तोड़ने पड़ेंगे. इसके बाद Google Play Store और फ़ेसबुक ऐप, Huawei के फ़ोन पर उपलब्ध नहीं होंगे.
मेंग वांगझाऊ, कंपनी के सीईओ और संस्थापक रेन झेंगफेई की बेटी भी हैं. मेंग के ख़िलाफ़ अमेरिकी कार्रवाई को चीन से उसके व्यापार युद्ध का एक हिस्सा माना जा रहा है. हालांकि, अमेरिकी सांसद, Huawei को देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा मानते हैं. हुआवेई पर गंभीर आरोप लग रहे हैं. इस बात की आशंका जताई जा रही है कि Huawei और चीन की दूसरी कंपनियों ने अमेरिका में अपने विस्तार के दौरान हार्डवेयर में ऐसी छेड़छाड़ की है, जिससे अमेरिका की साइबर सुरक्षा को ख़तरा पैदा हो गया है.
जैसा कि चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका के हालिया कारोबारी फ़ैसलों के साथ हुआ है, (इन में से ज़्यादातर चीन की कंपनियों के ख़िलाफ़ गए हैं), विश्व व्यापार संगठन के जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ़ ऐंड ट्रेड की धारा 21 के मुताबिक़, इस मामले में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के अपवाद’ का नियम लागू होता है. विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ के विवाद निदान पैनल के आदेश के मुताबिक़, अमेरिका ने अपना पक्ष रखते हुए साफ़ कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा किस बात से है, इसका फ़ैसला हर देश ख़ुद ही करेगा. ऐसे मामले डब्ल्यूटीओ के पास कोई अपवाद तय करने के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं. इससे साफ़ है कि अमेरिका इस वक़्त व्यापार युद्ध को लेकर कितना संजीदा और आक्रामक है.
इस मौक़े पर हमें जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड ऐंड टैरिफ़ यानी GATT के चार्टर की धारा 21 का बुनियादी ड्राफ़्ट तैयार करने वाले शख़्स की बात याद करनी चाहिए. उन्होंने कहा था कि, “हमें मुक्त व्यापार के कुछ अपवाद भी रखने चाहिए. हम इसे बहुत सख़्त नहीं बना सकते. क्योंकि हम उन क़दमों को उठाने से नहीं रोक सकते, जो किसी देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद ज़रूरी है. दूसरी तरफ़ हम इसे इतना खुला भी नहीं बना सकते कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर तमाम देश कारोबारी हित साधने के लिए पाबंदियां लगाएं.”
इस बीच, Huawei के सीईओ रेन झेंगफ़ेई ने इस आरोप का सख़्ती से खंडन किया है कि उनकी कंपनी, चीन की सरकार के लिए जासूसी करती है. रेन ने कहा कि, “Huawei इतनी बड़ी कंपनी नहीं है. आख़िर तिल के बीज जैसी कोई छोटी सी चीज़ दुनिया के दो ताक़तवर देशों, अमेरिका और चीन के बीच जंग पर असर डाल सकती है? हुआवेई महज़ एक छोटा सा तिल है. इसका इस विवाद में कोई रोल नहीं है.” अब जबकि Huawei को लेकर आरोप-प्रत्यारोप के दौर चल रहे हैं, तो हर कोई इस मामले में अपना-अपना तीर चला रहा है.
आख़िर Huawei ही क्यों?
Huawei चीन की संचार उपकरण बनाने वाली कंपनी है. इसका और चीन की दूसरी कंपनी ज़ेडटीई का बहुत तेज़ी से विस्तार हुआ. पिछले एक दशक में दोनों कंपनियों ने जितनी तरक़्क़ी की है, उसकी चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है. Huawei की तरक़्क़ी तो और भी ज़ाहिर होती है. क्योंकि इसने नोकिया और एरिक्सन जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों को पीछे छोड़ दिया. आज की तारीख़ में संचार उपकरण के मामले में ये दुनिया की नंबर 1 कंपनी है.
भले ही Huawei के सीईओ अपनी कंपनी को तिल बराबर बता रहे हों, लेकिन ये चीन की उस महत्वाकांक्षा का प्रतीक है, जिसके तहत चीन दुनिया की तकनीकी सुपरपावर बनना चाहता है.
Huawei ने स्वीडन की एरिक्सन कंपनी को पछाड़कर दुनिया की नंबर एक संचार उपकरण सप्लायर कंपनी का तमगा हासिल कर लिया है. और कंपनी ने ये मुकाम तब हासिल कर लिया, जब अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने Huawei के उपकरणों के आधिकारिक काम में इस्तेमाल पर रोक लगा रखी है. Huawei के उत्पादों पर पाबंदी कोई नई बात नहीं है. अमेरिका ने 2012 में ही अपनी सभी दूरसंचार कंपनियों के Huawei और जेडटीई की मशीनें ख़रीदने पर रोक लगा दी थी. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया ने भी 2013 में ऐसी ही पाबंदी लगा दी थी, जब ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने Huawei पर अपने देश के हाई स्पीड ब्रॉडबैंड नेटवर्क के विस्तार के 38 अरब डॉलर के ठेकेदारों को Huawei से उपकरण ख़रीदने से रोक दिया था
लेकिन, Huawei की क़ामयाबी की कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. 2018 की तीसरी तिमाही तक Huawei स्मार्टफ़ोन बनाने वाली दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी थी. स्मार्टफ़ोन के मामले में Huawei, अमेरिकी कंपनी एप्पल से भी आगे निकल गई थी. अब वो केवल सैमसंग से पीछे थी. यानी, आज की तारीख़ में चीन की विश्व की तकनीकी सुपरपावर बनने की महत्वाकांक्षा पूरी करने में Huawei की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, भले ही इसके सीईओ, कंपनी को तिल बराबर बता रहे हों.
5G तकनीक के विस्तार को झटका?
इंटरनेट सेवाओं की 5G तकनीक तेज़ बैंडविद, और डिजिटल कंटेंट के एक जगह से दूसरे जगह जाने में कम समय, कम बिजली की खपत और बेहतर नेटवर्क की सुविधा लोगों को देगी. 5G तकनीक मोबाइल फ़ोन की तकनीक में काफ़ी सुधार लाएगी. इसके अलावा इसकी वजह से तकनीकी तरक़्क़ी में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलेंगे. जैसे कि ख़ुद से चलने वाली कारें, वर्चुअल रियलिटी, टैक्टाइल इंटरनेट (वो तकनीक जिसमें मशीनें छू और महसूस कर सकेंगी), स्मार्ट सिटी और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (आईओटी) हक़ीक़त बनेंगी.
Huawei पूरी दुनिया में 5G तकनीक विकसित करने की अगुवा कंपनी है. पूरी दुनिया में सुपरफ़ास्ट वायरलेस इंटरनेट सुविधा के विस्तार में चीन अपना अहम रोल देखता है. और इस रोल को पूरा करने में Huawei की भूमिका बेहद अहम है. 5G तकनीक से पर्दा उठने से आने वाले समय में तकनीक की दुनिया में बहुत बड़ा इंक़लाब आने वाला है. और ऐसे में जो भी देश सबसे ज़्यादा बाज़ार पर क़ब्ज़ा करेगा, वही आगे चलकर तकनीक पर निर्भर दुनिया पर राज करेगा. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जैसी क्षेत्र में उसका दबदबा होगा. इसीलिए चीन की तकनीक की दुनिया में अपना दबदबा स्थापित करने की महत्वाकांक्षा है. और ये बहुत कुछ Huawei पर निर्भर करता है. भविष्य में 5G तकनीक इस्तेमाल करने वालों की संभावित संख्या इस तरफ़ साफ़ इशारा कर रही है.
लेकिन, 5G तकनीक के बाज़ार का बड़ा हिस्सा अपने क़ब्ज़े में लेकर, दुनिया में तकनीक के माध्यम से दबदबा क़ायम करने के चीन और Huawei के सपने पर अमेरिका ग्रहण लगा सकता है. अमेरिका ने Huawei पर पाबंदी लगाकर चीन को एक बड़ा झटका पहले ही दे दिया है. Google Android और फ़ेसबुक से तकनीकी सहयोग ख़त्म होने के बाद Huawei के फ़ोन के उत्पादन और विश्व स्मार्टफ़ोन बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी को काफ़ी नुक़सान होने की आशंका है. स्मार्टफ़ोन के बाज़ार की हिस्सेदारी में अस्थायी नुक़सान के अलावा कंपनी के 5G तकनीक के विस्तार की योजना को तगड़ा झटका लग सकता है. असल में 5G तकनीक के एक अहम तकनीकी पहलू Huawei यानी सेमी-कंडक्टर माइक्रोचिप के लिए Huawei अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों पर निर्भर है. इसीलिए इन देशों की तरफ़ से ऐसी तकनीक के निर्यात पर पाबंदी का मतलब होगा Huawei के कई उपकरणों और मशीनों के उत्पादन का ठप हो जाना. इससे Huawei दूसरे देशों में 5G तकनीक के विस्तार के अपने प्रोजेक्ट को लागू करने में देर करेगी.
Huawei को लेकर यूरोप के देश बंटे हुए हैं. फिलहाल स्पेन, स्लोवाकिया और हंगरी को Huawei से कोई ख़तरा नहीं दिखता. लेकिन, यूरोप के तीन बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस Huawei पर पाबंदी लगाने को लेकर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. इसके अलावा नीदरलैंड, इटली, ऑस्ट्रिया, पोलैंड, लैटविया और लिथुवानिया जैसे देशों में Huawei को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है. इन देशों की सरकारें ये नहीं तय कर पा रही हैं कि वो Huawei पर प्रतिबंध लगाएं या नहीं. इन देशों का आख़िरी फ़ैसला ही यूरोप महाद्वीप में Huawei का भविष्य तय करेगा. अगर, इन देशों की सरकारें Huawei के ख़िलाफ़ फ़ैसला लेती हैं, तो Huawei की कमाई पर और भी गहरी चोट होगी. फिर, इन देशों में 5G तकनीक के विस्तार पर भी ग्रहण लगेगा और उसमें देर होनी तय है.
Huawei पर अमेरिका की पाबंदी का असर यूरोप से ज़्यादा अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में देखने को मिलेगा. इन महाद्वीपों को तकनीकी उपकरणों की सप्लाई की Huawei की योजनाओं पर अमेरिकी पाबंदी का विपरीत असर सबसे ज़्यादा होगा. चीन, अफ्रीकी महाद्वीप का सबसे बड़ा क़र्ज़दाता और कारोबारी साझीदार ह
अफ्रीका के टेलीकॉम बाज़ार में Huawei का ही दबदबा है. इसी कंपनी ने अफ्रीकी महाद्वीप में दूरसंचार के बुनियादी ढांचे का विस्तार किया है. अफ्रीका में 5G तकनीक की सुविधाओं की शुरुआत में भी Huawei का रोल बहुत अहम रहने वाला है. अफ्रीकी महाद्वीप की ज़्यादातर मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में कामकाज की निगरानी के लिए भविष्य में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल होगा. इसमें Huawei का अहम रोल होगा. लेकिन, अमेरिकी पाबंदी की वजह से Huawei के उपकरणों के उत्पादन पर असर पड़ेगा. इससे 5G तकनीक के विस्तार पर बुरा असर पड़ेगा. नतीजा ये होगा कि अफ्रीका के औद्योगीकरण की रफ़्तार धीमी होगी. यानी अगर पश्चिमी देश Huawei पर व्यापक प्रतिबंध लगाते हैं, तो इसका सबसे बुरा असर अफ्रीकी देशों पर पड़ने वाला है.
कमोबेश ऐसे ही हालात लैटिन अमेरिका के हैं. यहां के बाज़ार में भी Huawei की अच्छी ख़ासी हिस्सेदारी है. ख़ास तौर से लैटिन अमेरिका के पश्चिमी तटीय देशों जैसे वेनेज़ुएला, कोलंबिया, पेरू और चिली में. हालांकि लैटिन अमेरिका के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों ब्राज़ील, मेक्सिको और अर्जेंटीना का रुख़ Huawei के समर्थन का है. लेकिन, अगर पश्चिमी देशों की पाबंदी से Huawei को उपकरणों की सप्लाई पर असर पड़ा, तो इन देशों में भी 5G तकनीक की सेवाओं की शुरुआत में देर होगी.
हाल ही में मीडिया से बातचीत में Huawei के सीईओ रेन झेंगफ़ेई ने कहा था कि, “हमें इस बात का बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि अमेरिका हमारी कंपनी पर इतनी बेदर्दी से हमला करेगा. हमें ये उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि अमेरिका हमारी सप्लाई चेन को इतने बड़े पैमाने पर निशाना बनाएगा. वो न केवल हमारी सप्लाई रोक देगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय संगठनों में हमारी साझीदारी का भी विरोध करेगा, इसकी हमें कतई आशंका नहीं थी.” Huawei के सीईओ ने माना है कि अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से Huawei की आमदनी को अगले दो वर्षों में 30 अरब डॉलर से ज़्यादा का झटका लगेगा. इसका नतीजा ये होगा कि कंपनी के विस्तार की योजनाओं पर बुरा असर पड़ेगा. इन दो वर्षों में Huawei की आमदनी केवल 100 अरब डॉलर पर अटक जाएगी. हालांकि कहा ये जा रहा है कि Huawei ने मुश्किल हालात के लिए आपातकालीन फंड जुटाने के लिए बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ख़रीदारी की थी. लेकिन, ये तय है कि विश्व के टेलीकॉम बाज़ार पर Huawei के दबदबे को तगड़ा झटका लगने जा रहा है. ख़ास तौर से तब ऐसा और होगा, जब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं Huawei के साथ कारोबार करना बंद कर देंगी. अगर हम लंबे समय की बात करें, तो Huawei के अस्तित्व पर भी संकट आ सकता है.
हाल ही में जापान के ओसाका में हुए जी20 देशों के शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने Huaweiको लेकर अपने रुख में नरमी के संकेत दिए थे. उन्होंने अमेरिकी कंपनियों को चीन की कंपनियो को सामान बेचने की इजाज़त दे दी थी. जबकि इससे पहले ट्रंप की सरकार ने चीन की कई कंपनियों को अपने राष्ट्रीय सुरक्षा आदेश के तहत प्रतिबंधित कंपनियों की लिस्ट में डाल दिया था. साफ़ है कि ट्रंप ने Huawei को चीन के साथ चल रहे व्यापार युद्ध में समझौते के लिए मोहरे की तरह इस्तेमाल किया. लेकिन, अमेरिकी सरकार के कट्टरपंथी, अपने राष्ट्रपति के इस नरम रुख़ से नाख़ुस हैं. वो Huawei पर पाबंदी लगाने के लिए दूसरे रास्ते अख़्तियार कर सकते हैं. हालांकि, इस पूरे विवाद के दौरान चीन की सरकार ने इस मुद्दे पर संयमित रूप से ख़ामोशी बना रखी है. चीन व्यापार को लेकर अमेरिका से चल रही बातचीत में इस मुद्दे पर प्रगति को लेकर बिल्कुल ही चुप है.
आने वाले दिनों में हम Huawei की इस महागाधा में कई दिलचस्प पेंच-ओ-ख़म देख सकते हैं. हालांकि इसकी मूल कहानी अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध है, जो आने वाले दिनों में और भी गंभीर हो सकता है.
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