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मौजूदा कार्यक्रमों में मज़बूती लाने के अलावा G20 अपने सदस्य राष्ट्रों में डिजिटल स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने के लिए आठ नए उपायों पर विचार कर सकता है.
डिजिटल स्वास्थ्य एक ऐसे परिवर्तनकारी ताक़त के तौर पर उभरा है जो दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा के वितरण में क्रांति ला सकता है. पहले से ही ये व्यवस्था स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता सुधार रही है, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को बढ़ा रही है, और इस पूरे क्षेत्र में कुशलताओं का निर्माण कर रही है. सामूहिक रूप से दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP के 85 प्रतिशत और विश्व की आबादी के दो-तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाला G20 वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य परिदृश्य को आकार देने में अहम भूमिका निभा सकता है. निश्चित रूप से भारत की अध्यक्षता के दौरान हाल ही में संपन्न G20 स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में “स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में मज़बूती लाने में डिजिटल स्वास्थ्य और स्वास्थ्य डेटा के आधुनिकीकरण की अहमियत” दोहराई गई और “डिजिटल स्वास्थ्य के क्षेत्र में परस्पर जुड़े इकोसिस्टम को सहारा देने” का प्रण लिया गया.
हालांकि, तमाम संभावनाओं के बावजूद G20 के भीतर डिजिटल स्वास्थ्य के सामने अनेक चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं. इन चुनौतियों में दृष्टिकोणों और विभिन्न राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य रणनीतियों की उन्नति के स्तरों में मौजूद विषमताएं; डेटा गोपनीयता से जुड़ी चुनौतियां; इंटर-ऑपरेबिलिटी के मसले; और वैश्विक स्वास्थ्य संकट की प्रतिक्रिया के दौरान बेहतर समन्वय की ज़रूरत शामिल हैं.
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन से पता चला था कि G20 के अपेक्षाकृत कम देशों के पास डिजिटल स्वास्थ्य का समग्र ढांचा मौजूद था, और मानकों, बुनियादी ढांचों, और प्रशासकीय तंत्रों में अंतरों से ई-स्वास्थ्य तक पहुंच और सीमाओं के आर-पार सहभागिता के सामने चुनौतियां खड़ी हैं. दूसरा, ना सिर्फ़ G20 के भीतर बल्कि दुनिया भर में स्वास्थ्य से जुड़े डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करना चिंता का सबब बना हुआ है. चूंकि डिजिटल स्वास्थ्य प्रणाली व्यक्तिगत स्वास्थ्य से जुड़े संवेदनशील सूचनाओं को संग्रहित और प्रॉसेस करती है, लिहाज़ा डेटा संरक्षण के ठोस ढांचे आवश्यक हो जाते हैं. डेटा की चोरी और दुरुपयोग का डर हेल्थ-टेक की स्वीकार्यता में बाधाएं खड़ी कर सकता है और मरीज़ का भरोसा कम कर सकता है.
सामूहिक रूप से दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP के 85 प्रतिशत और विश्व की आबादी के दो-तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाला G20 वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य परिदृश्य को आकार देने में अहम भूमिका निभा सकता है.
तीसरा, स्वास्थ्य डेटा के बेरोकटोक आदान-प्रदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड प्रणालियों के बीच इंटर-ऑपरेबिलिटी बेहद अहम है. मिसाल के तौर पर अकेले यूरोपीय संघ में ही ई-इंटरऑपरेबिलिटी के अभाव के चलते सालाना 1.1 अरब यूरो की लागत आने का अनुमान लगाया गया था. इसके अलावा, डेटा संरक्षण के अलग-अलग नियमों की वजह से सीमाओं के आर-पार डेटा प्रवाह में अतिरिक्त जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. और आख़िर में, कोविड-19 महामारी ने डिजिटल स्वास्थ्य के संदर्भ में तमाम देशों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच समन्वित प्रतिक्रियाओं की ज़रूरत रेखांकित कर दी है. इसमें कोई शक़ नहीं है कि बेमेल प्रतिक्रियाओं के चलते कई बार महामारी प्रबंधन से जुड़ी क़वायदों में बाधाकारी प्रभाव सामने आए हैं.
2016 में सतत विकास लक्ष्यों के प्रभाव में आने के बाद से स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने में टेक्नोलॉजी और डिजिटल नवाचार के उपयोग की पड़ताल करना G20 का मुख्य फोकस बन गया है. लक्ष्य 3 ‘सबके लिए स्वस्थ्य जीवन सुनिश्चित करने और कल्याण को बढ़ावा देने’ की ज़रूरत का ब्योरा देता है.
2018 में अर्जेंटीना की अध्यक्षता वाले कालखंड से ऊपर रेखांकित की गई चार चुनौतियों का निपटारा करना G20 की प्राथमिकता के तौर पर उभरा है. भारत के कार्यकाल से पहले की पांच अध्यक्षताओं के दौरान जारी G20 नेताओं की घोषणाओं और स्वास्थ्य मंत्रियों के बयानों में ई-स्वास्थ्य प्रणालियों की संरचना और क्रियान्वयन में निरंतरता और तालमेल (संबंधित बेहतरीन अभ्यासों को साझा करने समेत) को बढ़ावा देने की सामूहिक तौर पर वक़ालत की गई. इसके अलावा स्वास्थ्य डेटा की सुरक्षा के लिए उपायों में मज़बूती लाने; डिजिटल स्वास्थ्य सूचना प्रणालियों की इंटर-ऑपरेबिलिटी सुधारने; और टेक-सक्षम, समन्वित महामारी प्रतिक्रिया प्रणाली उभारने पर ज़ोर दिया गया. जैसे, 2020 में एक नया G20 डिजिटल स्वास्थ्य कार्य बल तैयार किया गया था, और ‘डिजिटल स्वास्थ्य महामारी प्रबंधन’ का विकास करने का दायित्व सौंपा गया था.
अपने तमाम सदस्य राष्ट्रों में डिजिटल स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने के लिए G20 नीचे दिए गए आठ उपायों पर विचार कर सकता है.
भारत में अगस्त 2023 की बैठक के दौरान G20 के स्वास्थ्य मंत्रियों ने देशों के बीच बढ़ी हुई सहभागिता की ज़रूरत स्वीकार की.
G20 के लिए पहले से ज़्यादा ठोस डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियों के उभार के लिए ऊपर सुझाई गई रणनीतिक साझेदारियां और साझा कार्रवाइयां बहुत अहम होंगी. भारत में अगस्त 2023 की बैठक के दौरान G20 के स्वास्थ्य मंत्रियों ने देशों के बीच बढ़ी हुई सहभागिता की ज़रूरत स्वीकार की. उन्होंने बताया कि वैसे तो कई संस्थान स्वास्थ्य प्रणालियों के डिजिटल कायाकल्प की दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन “वो प्राथमिक रूप से टुकड़ों में बंटकर परिचालन कर रहे हैं, जिससे देश के स्तर पर घटे हुए प्रभाव सामने आ रहे हैं.” आगे चलकर मंत्रियों के प्रस्ताव को साकार करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए. इन प्रस्तावों में कहा गया है कि “मौजूदा कार्यक्रमों को नज़दीक से समन्वित किया जाना चाहिए ताकि एक परस्पर जुड़े डिजिटिल स्वास्थ्य इकोसिस्टम को पूरक सहायता देते हुए सहारा दिया जा सके”, हालांकि इस दौरान डिजिटल स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए निरंतर नए-नए क्षेत्रों की पड़ताल जारी रहेगी.
अनिर्बान सरमा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और डिप्टी डायरेक्टर हैं
वरुण कौल डिजिटल हेल्थ प्रोफेशनल हैं जिन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य, नवाचार प्रबंधन, इम्पैक्ट फंडिंग और क्रियान्वयन में विशेषज्ञता हासिल है. वर्तमान में वो PATH साउथ एशिया में डिजिटल हेल्थ टीम के लिए प्रोग्राम ऑफिसर हैं
नोट: ऊपर रेखांकित किए गए विचारों की लेखकों ने विस्तृत ब्योरे के साथ T20 पॉलिसी ब्रीफ, प्रमोटिंग डिजिटल हेल्थ: एनविज़निंग स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप विदिन द G20 में पड़ताल की है.
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Anirban Sarma is Director of the Digital Societies Initiative at the Observer Research Foundation. His research explores issues of technology policy, with a focus on ...
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