Published on Nov 01, 2023 Updated 27 Days ago

मौजूदा कार्यक्रमों में मज़बूती लाने के अलावा G20 अपने सदस्य राष्ट्रों में डिजिटल स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने के लिए आठ नए उपायों पर विचार कर सकता है.

G20 में मज़बूत डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियों का निर्माण कैसे किया जाये?

डिजिटल स्वास्थ्य एक ऐसे परिवर्तनकारी ताक़त के तौर पर उभरा है जो दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा के वितरण में क्रांति ला सकता है. पहले से ही ये व्यवस्था स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता सुधार रही है, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को बढ़ा रही है, और इस पूरे क्षेत्र में कुशलताओं का निर्माण कर रही है. सामूहिक रूप से दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP के 85 प्रतिशत और विश्व की आबादी के दो-तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाला G20 वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य परिदृश्य को आकार देने में अहम भूमिका निभा सकता है. निश्चित रूप से भारत की अध्यक्षता के दौरान हाल ही में संपन्न G20 स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में “स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में मज़बूती लाने में डिजिटल स्वास्थ्य और स्वास्थ्य डेटा के आधुनिकीकरण की अहमियत” दोहराई गई और “डिजिटल स्वास्थ्य के क्षेत्र में परस्पर जुड़े इकोसिस्टम को सहारा देने” का प्रण लिया गया.    

डिजिटल स्वास्थ्य के सामने प्रमुख चुनौतियां

हालांकि, तमाम संभावनाओं के बावजूद G20 के भीतर डिजिटल स्वास्थ्य के सामने अनेक चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं. इन चुनौतियों में दृष्टिकोणों और विभिन्न राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य रणनीतियों की उन्नति के स्तरों में मौजूद विषमताएं; डेटा गोपनीयता से जुड़ी चुनौतियां; इंटर-ऑपरेबिलिटी के मसले; और वैश्विक स्वास्थ्य संकट की प्रतिक्रिया के दौरान बेहतर समन्वय की ज़रूरत शामिल हैं.  

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन से पता चला था कि G20 के अपेक्षाकृत कम देशों के पास डिजिटल स्वास्थ्य का समग्र ढांचा मौजूद था, और मानकों, बुनियादी ढांचों, और प्रशासकीय तंत्रों में अंतरों से ई-स्वास्थ्य तक पहुंच और सीमाओं के आर-पार सहभागिता के सामने चुनौतियां खड़ी हैं. दूसरा, ना सिर्फ़ G20 के भीतर बल्कि दुनिया भर में स्वास्थ्य से जुड़े डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करना चिंता का सबब बना हुआ है. चूंकि डिजिटल स्वास्थ्य प्रणाली व्यक्तिगत स्वास्थ्य से जुड़े संवेदनशील सूचनाओं को संग्रहित और प्रॉसेस करती है, लिहाज़ा डेटा संरक्षण के ठोस ढांचे आवश्यक हो जाते हैं. डेटा की चोरी और दुरुपयोग का डर हेल्थ-टेक की स्वीकार्यता में बाधाएं खड़ी कर सकता है और मरीज़ का भरोसा कम कर सकता है.  

सामूहिक रूप से दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP के 85 प्रतिशत और विश्व की आबादी के दो-तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाला G20 वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य परिदृश्य को आकार देने में अहम भूमिका निभा सकता है.

तीसरा, स्वास्थ्य डेटा के बेरोकटोक आदान-प्रदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड प्रणालियों के बीच इंटर-ऑपरेबिलिटी बेहद अहम है. मिसाल के तौर पर अकेले यूरोपीय संघ में ही ई-इंटरऑपरेबिलिटी के अभाव के चलते सालाना 1.1 अरब यूरो की लागत आने का अनुमान लगाया गया था. इसके अलावा, डेटा संरक्षण के अलग-अलग नियमों की वजह से सीमाओं के आर-पार डेटा प्रवाह में अतिरिक्त जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. और आख़िर में, कोविड-19 महामारी ने डिजिटल स्वास्थ्य के संदर्भ में तमाम देशों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच समन्वित प्रतिक्रियाओं की ज़रूरत रेखांकित कर दी है. इसमें कोई शक़ नहीं है कि बेमेल प्रतिक्रियाओं के चलते कई बार महामारी प्रबंधन से जुड़ी क़वायदों में बाधाकारी प्रभाव सामने आए हैं.

G20 का दृष्टिकोण

2016 में सतत विकास लक्ष्यों के प्रभाव में आने के बाद से स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने में टेक्नोलॉजी और डिजिटल नवाचार के उपयोग की पड़ताल करना G20 का मुख्य फोकस बन गया है. लक्ष्य 3 ‘सबके लिए स्वस्थ्य जीवन सुनिश्चित करने और कल्याण को बढ़ावा देने’ की ज़रूरत का ब्योरा देता है.  

2018 में अर्जेंटीना की अध्यक्षता वाले कालखंड से ऊपर रेखांकित की गई चार चुनौतियों का निपटारा करना G20 की प्राथमिकता के तौर पर उभरा है. भारत के कार्यकाल से पहले की पांच अध्यक्षताओं के दौरान जारी G20 नेताओं की घोषणाओं और स्वास्थ्य मंत्रियों के बयानों में ई-स्वास्थ्य प्रणालियों की संरचना और क्रियान्वयन में निरंतरता और तालमेल (संबंधित बेहतरीन अभ्यासों को साझा करने समेत) को बढ़ावा देने की सामूहिक तौर पर वक़ालत की गई. इसके अलावा स्वास्थ्य डेटा की सुरक्षा के लिए उपायों में मज़बूती लाने; डिजिटल स्वास्थ्य सूचना प्रणालियों की इंटर-ऑपरेबिलिटी सुधारने; और टेक-सक्षम, समन्वित महामारी प्रतिक्रिया प्रणाली उभारने पर ज़ोर दिया गया. जैसे, 2020 में एक नया G20 डिजिटल स्वास्थ्य कार्य बल तैयार किया गया था, और ‘डिजिटल स्वास्थ्य महामारी प्रबंधन’ का विकास करने का दायित्व सौंपा गया था.

डिजिटल स्वास्थ्य में मज़बूती लाने के लिए संभावित क़दम

अपने तमाम सदस्य राष्ट्रों में डिजिटल स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने के लिए G20 नीचे दिए गए आठ उपायों पर विचार कर सकता है.

  • स्वास्थ्य डेटा की सुरक्षा के लिए साझा न्यूनतम ढांचा (CMF) तैयार करना: कार्रवाई के चार स्तरों वाली क़वायद का आह्वान करने वाला साझा न्यूनतम ढांचा स्थापित करके G20 स्वास्थ्य डेटा की रक्षा में मदद कर सकता है. पहला, सदस्य राष्ट्रों को डेटा संरक्षण के अपने मौजूदा प्रावधानों का खाका तैयार करना चाहिए, इस बात की जांच करनी चाहिए कि क्या वो स्वास्थ्य डेटा की ख़ास ज़रूरतों पर लागू होते हैं, और अगर नहीं, तो उन्हें उसके मुताबिक संशोधित या तैयार करना चाहिए. दूसरा, डेटा के प्रवाह और प्रॉसेसिंग पर नियंत्रण करने वाली एजेंसियों की भूमिकाओं की समीक्षा की जानी चाहिए. तीसरा, स्वास्थ्य डेटा प्रणालियों की सुरक्षा और मज़बूती को आगे बढ़ाया जाना चाहिए. चौथा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थानों और अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों को स्वास्थ्य डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा की अहमियत के बारे में स्टेकहोल्डर्स को जागरूक करने के उपाय करने चाहिए. 
  • स्वास्थ्य डेटा के सीमा-पार सुरक्षित आदान-प्रदान को बढ़ावा देना: G20 के भीतर डेटा के सीमा-पार प्रवाहों के मसले को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं, लेकिन इस बात की स्वीकार्यता भी बढ़ रही है कि स्वास्थ्य डेटा के चुनिंदा आदान-प्रदान से शोध, नवाचार और नीति-निर्माण में काफ़ी मदद मिल सकती है. वैश्विक स्तर पर इस प्रकार की कुछ कामयाब पहलें रही हैं. इनमें नॉर्डिक कार्यक्रम शामिल है जिसके तहत नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड और आइसलैंड ने अपने स्वास्थ्य डेटा और बायोबैंक्स का एक स्थान पर संग्रह किया है. G20 स्वास्थ्य कार्य समूह इन मॉडलों का अध्ययन करके देशों के समूहों के लिए दिशानिर्देश विकसित कर सकता है, ताकि वो लक्षित अनुसंधान के लिए चुनिंदा प्रकार के डेटा शेयर कर सकें.  
  • स्वास्थ्य के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्टर (DPI) को प्राथमिकता देना: G20 को स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए विशिष्ट DPIs पर फोकस करने के लिए भारत की अध्यक्षता के दौरान शुरू किए गए DPI पर अपना ध्यान लगाना चाहिए. स्वास्थ्य से संबंधित DPIs, डिजिटल पहचान, नक़द हस्तांतरण और स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स के समेकित भंडारण जैसी सेवाएं मुहैया कराने के लिहाज़ से अहम साबित हो सकते हैं. स्वास्थ्य क्षेत्र के DPIs के संदर्भ में G20 ज्ञान-साझा करने, नवाचार और सार्वजनिक-निजी साझेदारियों की क़वायदों को प्रोत्साहित कर सकता है. इस संबंध में एक वैश्विक DPI भंडार तैयार करने के भारत के प्रस्ताव को G20 ने उत्साह से स्वीकार किया है. ये DPI के इर्द-गिर्द वैश्विक ज्ञान केंद्र तैयार करने की क़वायद की शुरुआत का मौक़ा देता है. डिजिटल स्वास्थ्य को शुरुआत से ही इस प्रयास का एक मुख्य फोकस बनाया जाना चाहिए, जिसमें टिकाऊपन और समावेश को बुनियादी सिद्धांतों के तौर पर अपनाने की ज़रूरत है.   
  • AI और उभरती टेक्नोलॉजी में उत्कृष्टता केंद्रों (CoEs) की स्थापना: स्वास्थ्य सेवा के लिए AI और उभरती टेक्नोलॉजी पर आधारित समाधान में अपार संभावनाएं छिपी हैं, लेकिन इसके लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाने और सहभागिता की दरकार है. हेल्थ-टेक समाधानों के क्षेत्र में अनुसंधान करने, शुरुआत करने और क्रियान्वयन में विशेषज्ञता प्राप्त उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना की क़वायद आगे की राह बन सकती है. G20 के सदस्य राष्ट्र संयुक्त रूप से ऐसे केंद्रों का विकास कर सकते हैं ताकि नैतिकतापूर्ण और समावेशी हेल्थ-टेक के विकास, नवाचार को प्रोत्साहन, ज्ञान साझा करने, क्षमता निर्माण और तकनीकी मार्गदर्शन मुहैया कराने जैसे कार्य सुनिश्चित हो सकें. यूनाइटेड किंगडम (यूके) के एलन ट्युरिंग इंस्टिट्यूट और UKRI आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेंटर्स फॉर डॉक्टोरल ट्रेनिंग, और सिंगापुर के SG जैसे मौजूदा संस्थान G20 के बहुपक्षीय स्वास्थ्य-टेक-केंद्रित उत्कृष्टता केंद्रों के लिए मॉडल के रूप में काम कर सकते हैं. 
  • टेलीमेडिसिन टास्क फोर्स की स्थापना: टेलीमेडिसिन को बढ़ावा देने के लिए G20 एक समर्पित कार्य बल का गठन कर सकता है. इसके लक्ष्यों में बेहतरीन अभ्यासों की पहचान करना, ज्ञान साझा करना, टेलीमेडिसिन के नैतिक उपयोग के लिए दिशानिर्देश तैयार करना और सहभागिता और निवेश (ख़ासतौर से निम्न संसाधन वाले क्षेत्रों में) के लिए अवसरों की पड़ताल करना शामिल होगा. कार्य बल इन हस्तक्षेपों के ज़रिए महामारी के दौरान दूर बैठकर देखभाल की व्यवस्था की बढ़ी हुई स्वीकार्यता को आगे बढ़ा सकेगा. साथ ही पूरे G20 में टेलीमेडिसिन अपनाने की क़वायद में रफ़्तार लाने में मदद कर सकेगा, जिससे आख़िरकार स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच और परिणामों में सुधार आएंगे.  
  • डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार की फाइनेंसिंग: अगले पांच वर्षों में निम्न- और मध्यम-आय वाले देशों (LMICs) में स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के डिजिटल कायाकल्प के लिए अनुमानित रूप से 12.5 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की दरकार है. इस प्रक्रिया को सहारा देने, और इसके लिए ज़रूरी रकम के समन्वय की प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए G20 15 करोड़ अमेरिकी डॉलर का कोष तैयार करने पर विचार कर सकता है, जिसे संभावित रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के भीतर स्थापित किया जा सकता है. इस कोष के ज़रिए वैश्विक प्रभाव वाले डिजिटल स्वास्थ्य स्टार्टअप्स को सहारा दिया जा सकता है. इनमें ख़ासतौर से वैसे स्टार्ट अप शामिल होंगे जो हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए डिजिटल लिंग अंतर के निपटारे और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं. डिजिटल स्वास्थ्य नवाचारों को रकम उपलब्ध कराने के लिए G20, विश्व बैंक की डिजिटल विकास साझेदारी (DDP) जैसे मौजूदा प्रणालियों से सबक़ ले सकता है. 
  • विशाल पैमाने वाले स्वास्थ्य संकटों के लिए साझा प्रतिक्रियाओं का समर्थन: वैश्विक स्वास्थ्य संकटों में समन्वित प्रतिक्रिया को सक्षम बनाने के लिए G20 अंतरराष्ट्रीय हेल्थ-टेक-केंद्रित थिंक टैंक स्थापित करने पर विचार कर सकता है, जिसे G20 की सरकारों से रकम प्राप्त होती हो. इस थिंक टैंक की अगुवाई WHO कर सकता है और इसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य, डिजिटल स्वास्थ्य, और कंप्यूटर मॉडलिंग के क्षेत्र से विशेषज्ञों को शामिल किया जा सकता है. ये टेक-सक्षम महामारी प्रतिक्रिया रणनीतियां विकसित करने, G20 के भीतर डिजिटल स्वास्थ्य क्षमता अंतरालों के निपटारे, और कोविड-19 टूल्स (ACT) एक्सीलरेटर जैसे वैश्विक प्रयासों को सहारा देने का लक्ष्य रख सकता है. 
  • डिजिटल स्वास्थ्य भंडार तैयार करना: अर्जेंटीना की अध्यक्षता (2018) के दौरान स्थापित G20 रिपॉज़िटरी ऑफ डिजिटल पॉलिसीज़ के सामान्य दृष्टिकोण का पालन करते हुए एक समर्पित खुले-पहुंच वाले G20 डिजिटल स्वास्थ्य नीति भंडार (DHPR) का निर्माण किया जा सकता है, जिससे वैश्विक स्तर पर ज्ञान और डिजिटल स्वास्थ्य में बेहतरीन अभ्यासों का आदान-प्रदान किया जा सकेगा. DHPR सदस्य राष्ट्रों के डिजिटल स्वास्थ्य क़ानूनों, नीतियों, और रणनीतियों के साथ-साथ स्वास्थ्य मिशनों और स्वास्थ्य पहचान कार्यक्रमों से संबंधित डेटा संरक्षण नियमनों की मेज़बानी करेगा.

भारत में अगस्त 2023 की बैठक के दौरान G20 के स्वास्थ्य मंत्रियों ने देशों के बीच बढ़ी हुई सहभागिता की ज़रूरत स्वीकार की.


G20 के लिए पहले से ज़्यादा ठोस डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियों के उभार के लिए ऊपर सुझाई गई रणनीतिक साझेदारियां और साझा कार्रवाइयां बहुत अहम होंगी. भारत में अगस्त 2023 की बैठक के दौरान G20 के स्वास्थ्य मंत्रियों ने देशों के बीच बढ़ी हुई सहभागिता की ज़रूरत स्वीकार की. उन्होंने बताया कि वैसे तो कई संस्थान स्वास्थ्य प्रणालियों के डिजिटल कायाकल्प की दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन “वो प्राथमिक रूप से टुकड़ों में बंटकर परिचालन कर रहे हैं, जिससे देश के स्तर पर घटे हुए प्रभाव सामने आ रहे हैं.” आगे चलकर मंत्रियों के प्रस्ताव को साकार करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए. इन प्रस्तावों में कहा गया है कि “मौजूदा कार्यक्रमों को नज़दीक से समन्वित किया जाना चाहिए ताकि एक परस्पर जुड़े डिजिटिल स्वास्थ्य इकोसिस्टम को पूरक सहायता देते हुए सहारा दिया जा सके”, हालांकि इस दौरान डिजिटल स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए निरंतर नए-नए क्षेत्रों की पड़ताल जारी रहेगी. 


अनिर्बान सरमा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और डिप्टी डायरेक्टर हैं

वरुण कौल डिजिटल हेल्थ प्रोफेशनल हैं जिन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य, नवाचार प्रबंधन, इम्पैक्ट फंडिंग और क्रियान्वयन में विशेषज्ञता हासिल है. वर्तमान में वो PATH साउथ एशिया में डिजिटल हेल्थ टीम के लिए प्रोग्राम ऑफिसर हैं

नोट: ऊपर रेखांकित किए गए विचारों की लेखकों ने विस्तृत ब्योरे के साथ T20 पॉलिसी ब्रीफ, प्रमोटिंग डिजिटल हेल्थ: एनविज़निंग स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप विदिन द G20 में पड़ताल की है.

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