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यूरोपीय संघ ने अमेरिका द्वारा अपनी सरहदों से बाहर लगाए जाने प्रतिबंधों को कभी भी खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया है.
अमेरिका के नए प्रशासन द्वारा लिए गए तमाम फ़ैसलों में से एक अहम फ़ैसला था पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से विरासत में मिली पाबंदियों से जुड़ी नीति की समीक्षा करना. सत्ता से बेदख़ल हो चुकी इस टीम की “विषैली” जमापूंजियों में यूरोपीय संघ के साथ अमेरिका के रिश्तों में आई गिरावट भी शामिल हैं. निश्चित तौर पर वॉशिंगटन और ब्रसेल्स के बीच के मतभेद व्हाइट हाउस में ट्रंप के दाख़िल होने के पहले से ही चले आ रहे हैं. यूरोपीय संघ ने अमेरिका द्वारा अपनी सरहदों से बाहर लगाए जाने प्रतिबंधों को कभी भी खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया है. 1996 में ईयू की काउंसिल ने तथाकथित “ब्लॉकिंग स्टैट्यूट” को मंज़ूरी दी थी. इसका मकसद क्यूबा, ईरान और लीबिया पर लागू अमेरिकी पाबंदियों के प्रतिबंधी प्रभावों से यूरोपीय कारोबार की रक्षा करना था. अमेरिका भी लंबे समय तक यूरोपीय संघ के साथ अपने रिश्तों में तल्ख़ी के हालात टालने की कोशिश करता रहा है. हालांकि, पाबंदियों से जुड़े अमेरिकी फ़रमानों के उल्लंघन के चलते यूरोपीय कंपनियों पर भारी-भरकम जुर्माने ज़रूर लगाया जाते रहे हैं.
अमेरिकी प्रशासन की आपत्तियों के चलते यूरोपीय संघ की दर्ज़नों बड़ी कंपनियों को ईरान से रुख़सत होना पड़ा. दरअसल अमेरिकी अधिकारियों ने इन कंपनियों को जुर्माने समेत दूसरे जबरिया उपायों और कार्रवाइयों की धमकी दी थी.
राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में हालात तेज़ी से बदतर होते चले गए. कम से कम तीन घटनाएं ऐसी रहीं जिनके चलते अमेरिका के साथ यूरोपीय संघ के रिश्तों में बर्फ़ जम गई. पहली घटना थी जेसीपीओए यानी “ईरानी परमाणु सौदे” से बाहर निकलने का अमेरिका का एकतरफ़ा फ़ैसला. ट्रंप ने ईरान पर बिल्कुल नए सिरे से पूरी पाबंदियां लागू कर दीं. इतना ही नहीं उन्होंने आगे चलकर उन प्रतिबंधों को और विस्तृत रूप दे दिया. अमेरिकी प्रशासन की आपत्तियों के चलते यूरोपीय संघ की दर्ज़नों बड़ी कंपनियों को ईरान से रुख़सत होना पड़ा. दरअसल अमेरिकी अधिकारियों ने इन कंपनियों को जुर्माने समेत दूसरे जबरिया उपायों और कार्रवाइयों की धमकी दी थी. अमेरिका को जेसीपीओए में वापस लौटने के लिए रज़ामंद कर पाने में ब्रसेल्स ख़ुद को बेहद लाचार महसूस कर रहा था. इतना ही नहीं यूरोपीय संघ के अधिकारी अपने कारोबारियों को अमेरिकी ट्रेज़री विभाग समेत तमाम दूसरे विभागों द्वारा अपनाए जा रहे दंडात्मक उपायों के ख़िलाफ़ रक्षा-कवच का भरोसा दिलाने में भी नाकाम रहे.
यूरोपीय संघ के साथ अमेरिकी रिश्तों में तल्ख़ी बढ़ाने वाली दूसरी घटना थी नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन पर अमेरिका का ज़बरदस्त वार. ट्रंप ने खुले तौर पर इस पाइपलाइन परियोजना का विरोध किया. वैसे तो ओबामा प्रशासन भी इस परियोजना के ख़िलाफ़ था. अमेरिकी कांग्रेस ने रूस की इस पाइपलाइन परियोजना को निशाना बनाते हुए प्रतिबंधों से जुड़े दो कानून पारित किए. अमेरिकी कांग्रेस और वहां के विदेश विभाग ने सीधे तौर पर यूरोपीय कारोबारियों को इस परियोजना में हिस्सा लेने पर सख्त़ पाबंदियों के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी. ईरान और रूस के साथ-साथ अमेरिका-चीन रिश्तों में तनाव गहराने से भी यूरोपीय संघ के माथे पर चिंता की लकीरें आईं.
चीन के ख़िलाफ़ ट्रंप की कार्रवाइयों से ब्रसेल्स ने ख़ुद को अलग कर लिया. “चीनी कम्युनिस्ट फ़ौजी कंपनियों”, टेलीकॉम कंपनियों और चीनी अधिकारियों के ख़िलाफ़ अमेरिका द्वारा लगाई गई पाबंदियों का यूरोपीय संघ पर अबतक बेहद मामूली असर पड़ा है. हालांकि, अमेरिका ने बेहद आक्रामक ढंग से अपने मित्र देशों पर प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुड़ी चीनी कंपनियों को निकाल बाहर करने का दबाव बनाया है. ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में चीन के प्रति अमेरिकी विदेश नीति ब्रसेल्स के लिए मुसीबतों का सबब बन जाएगी.
चीन के ख़िलाफ़ ट्रंप की कार्रवाइयों से ब्रसेल्स ने ख़ुद को अलग कर लिया. “चीनी कम्युनिस्ट फ़ौजी कंपनियों”, टेलीकॉम कंपनियों और चीनी अधिकारियों के ख़िलाफ़ अमेरिका द्वारा लगाई गई पाबंदियों का यूरोपीय संघ पर अबतक बेहद मामूली असर पड़ा है.
इन तमाम घटनाओं के मद्देनज़र यूरोपीय संघ के लिए अमेरिका द्वारा अपनी सरहदों के बाहर लगाई जाने वाली पाबंदियों से अपने हितों की रक्षा करने के उपायों पर विचार करने की ज़रूरत आन पड़ी थी. यूरोपियन एक्सपर्ट सेंटर्स और यूरोपीय आयोग दोनों ने ही इस दिशा में काम किया. फ़िलहाल हम कुछ चुनिंदा रणनीतिक लक्ष्य निर्धारित करने की बात कर सकते हैं. इन लक्ष्यों की प्राप्ति से अपनी सरहदों के बाहर अमेरिका समेत तमाम दूसरे देशों द्वारा लगाई जाने वाली पाबंदियों के संदर्भ में यूरोपीय संघ को अपना स्थायित्व बढ़ाने की काबिलियत मिल जाएगी.
इन लक्ष्यों में नीचे दिए गए ब्यौरे शामिल हैं:
पाबंदियों से जुड़ा ईयू का एजेंडा सिर्फ़ सरहद के बाहर पाबंदियां लगाने की अमेरिकी नीतियों की काट तक ही सीमित नहीं होगा. आख़िरकार अमेरिका तो यूरोपीय संघ का मित्र और हिस्सेदार है.
बहरहाल, पाबंदियों से जुड़ा ईयू का एजेंडा सिर्फ़ सरहद के बाहर पाबंदियां लगाने की अमेरिकी नीतियों की काट तक ही सीमित नहीं होगा. आख़िरकार अमेरिका तो यूरोपीय संघ का मित्र और हिस्सेदार है. इसका मतलब ये है कि संकट भरे किसी भी हालात से बारीकी से निपटने के व्यापक अवसर मौजूद हैं. एजेंसियों के स्तर पर गठजोड़ को भी इसी कड़ी में सिफ़ारिश के तौर पर रेखांकित किया जाता है. इतना ही नहीं ट्रंप की विदाई के बाद हो सकता है कि अमेरिका यूरोपीय संघ की चिंताओं के प्रति पहले से ज़्यादा सजग हो जाए.
बहरहाल, ईयू के लिए अपनी खुद की प्रतिबंध नीति तय करना सबसे बड़ी प्राथमिकता का विषय बना हुआ है. इस दिशा में कई समस्याएं और जोख़िम हैं. फ़ैसले लेने की सुस्त रफ़्तार और पाबंदियों को अमल में लाने के लिए ज़रूरी तालमेल का अभाव इस रास्ते की सबसे बड़ी समस्याओं में से हैं. प्रतिबंधों से जुड़े तंत्र का ब्रसेल्स में केंद्रीकरण भी यूरोपीय आयोग के लिए महत्वपूर्ण कार्य बनता जा रहा है.
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Ivan Timofeev is a Programme Director of the Valdai Discussion Club: Director of Programmes of the Russian International Affairs Council (RIAC): Associate Professor at MGIMO ...
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