Author : Ivan Timofeev

Published on Jul 23, 2021 Updated 0 Hours ago

यूरोपीय संघ ने अमेरिका द्वारा अपनी सरहदों से बाहर लगाए जाने प्रतिबंधों को कभी भी खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया है.

सरहदों के बाहर लगाये गये प्रतिबंधों से निपटने के लिये कैसी है यूरोपीय संघ की तैयारी!

अमेरिका के नए प्रशासन द्वारा लिए गए तमाम फ़ैसलों में से एक अहम फ़ैसला था पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से विरासत में मिली पाबंदियों से जुड़ी नीति की समीक्षा करना. सत्ता से बेदख़ल हो चुकी इस टीम की “विषैली” जमापूंजियों में यूरोपीय संघ के साथ अमेरिका के रिश्तों में आई गिरावट भी शामिल हैं. निश्चित तौर पर वॉशिंगटन और ब्रसेल्स के बीच के मतभेद व्हाइट हाउस में ट्रंप के दाख़िल होने के पहले से ही चले आ रहे हैं. यूरोपीय संघ ने अमेरिका द्वारा अपनी सरहदों से बाहर लगाए जाने प्रतिबंधों को कभी भी खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया है. 1996 में ईयू की काउंसिल ने तथाकथित “ब्लॉकिंग स्टैट्यूट” को मंज़ूरी दी थी. इसका मकसद क्यूबा, ईरान और लीबिया पर लागू अमेरिकी पाबंदियों के प्रतिबंधी प्रभावों से यूरोपीय कारोबार की रक्षा करना था. अमेरिका भी लंबे समय तक यूरोपीय संघ के साथ अपने रिश्तों में तल्ख़ी के हालात टालने की कोशिश करता रहा है. हालांकि, पाबंदियों से जुड़े अमेरिकी फ़रमानों के उल्लंघन के चलते यूरोपीय कंपनियों पर भारी-भरकम जुर्माने ज़रूर लगाया जाते रहे हैं. 

अमेरिकी प्रशासन की आपत्तियों के चलते यूरोपीय संघ की दर्ज़नों बड़ी कंपनियों को ईरान से रुख़सत होना पड़ा. दरअसल अमेरिकी अधिकारियों ने इन कंपनियों को जुर्माने समेत दूसरे जबरिया उपायों और कार्रवाइयों की धमकी दी थी.

राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में हालात तेज़ी से बदतर होते चले गए. कम से कम तीन घटनाएं ऐसी रहीं जिनके चलते अमेरिका के साथ यूरोपीय संघ के रिश्तों में बर्फ़ जम गई. पहली घटना थी जेसीपीओए यानी “ईरानी परमाणु सौदे” से बाहर निकलने का अमेरिका का एकतरफ़ा फ़ैसला. ट्रंप ने ईरान पर बिल्कुल नए सिरे से पूरी पाबंदियां लागू कर दीं. इतना ही नहीं उन्होंने आगे चलकर उन प्रतिबंधों को और विस्तृत रूप दे दिया. अमेरिकी प्रशासन की आपत्तियों के चलते यूरोपीय संघ की दर्ज़नों बड़ी कंपनियों को ईरान से रुख़सत होना पड़ा. दरअसल अमेरिकी अधिकारियों ने इन कंपनियों को जुर्माने समेत दूसरे जबरिया उपायों और कार्रवाइयों की धमकी दी थी. अमेरिका को जेसीपीओए में वापस लौटने के लिए रज़ामंद कर पाने में ब्रसेल्स ख़ुद को बेहद लाचार महसूस कर रहा था. इतना ही नहीं यूरोपीय  संघ के अधिकारी अपने कारोबारियों को अमेरिकी ट्रेज़री विभाग समेत तमाम दूसरे विभागों द्वारा अपनाए जा रहे दंडात्मक उपायों के ख़िलाफ़ रक्षा-कवच का भरोसा दिलाने में भी नाकाम रहे.  

यूरोपीय संघ के साथ अमेरिकी रिश्तों में तल्ख़ी बढ़ाने वाली दूसरी घटना थी नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन पर अमेरिका का ज़बरदस्त वार. ट्रंप ने खुले तौर पर इस पाइपलाइन परियोजना का विरोध किया. वैसे तो ओबामा प्रशासन भी इस परियोजना के ख़िलाफ़ था. अमेरिकी कांग्रेस ने रूस की इस पाइपलाइन परियोजना को निशाना बनाते हुए प्रतिबंधों से जुड़े दो कानून पारित किए. अमेरिकी कांग्रेस और वहां के विदेश विभाग ने सीधे तौर पर यूरोपीय कारोबारियों को इस परियोजना में हिस्सा लेने पर सख्त़ पाबंदियों के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी. ईरान और रूस के साथ-साथ अमेरिका-चीन रिश्तों में तनाव गहराने से भी यूरोपीय संघ के माथे पर चिंता की लकीरें आईं. 

चीन के ख़िलाफ़ ट्रंप की कार्रवाइयों से ब्रसेल्स ने ख़ुद को अलग कर लिया. “चीनी कम्युनिस्ट फ़ौजी कंपनियों”, टेलीकॉम कंपनियों और चीनी अधिकारियों के ख़िलाफ़ अमेरिका द्वारा लगाई गई पाबंदियों का यूरोपीय संघ पर अबतक बेहद मामूली असर पड़ा है. हालांकि, अमेरिका ने बेहद आक्रामक ढंग से अपने मित्र देशों पर प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुड़ी चीनी कंपनियों को निकाल बाहर करने का दबाव बनाया है. ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में चीन के प्रति अमेरिकी विदेश नीति ब्रसेल्स के लिए मुसीबतों का सबब बन जाएगी. 

चीन के ख़िलाफ़ ट्रंप की कार्रवाइयों से ब्रसेल्स ने ख़ुद को अलग कर लिया. “चीनी कम्युनिस्ट फ़ौजी कंपनियों”, टेलीकॉम कंपनियों और चीनी अधिकारियों के ख़िलाफ़ अमेरिका द्वारा लगाई गई पाबंदियों का यूरोपीय संघ पर अबतक बेहद मामूली असर पड़ा है.

यूरोपीय संघ का रणनीतिक लक्ष्य

इन तमाम घटनाओं के मद्देनज़र यूरोपीय संघ के लिए अमेरिका द्वारा अपनी सरहदों के बाहर लगाई जाने वाली पाबंदियों से अपने हितों की रक्षा करने के उपायों पर विचार करने की ज़रूरत आन पड़ी थी. यूरोपियन एक्सपर्ट सेंटर्स और यूरोपीय आयोग दोनों ने ही इस दिशा में काम किया. फ़िलहाल हम कुछ चुनिंदा रणनीतिक लक्ष्य निर्धारित करने की बात कर सकते हैं.  इन लक्ष्यों की प्राप्ति से अपनी सरहदों के बाहर अमेरिका समेत तमाम दूसरे देशों द्वारा लगाई जाने वाली पाबंदियों के संदर्भ में  यूरोपीय संघ को अपना स्थायित्व बढ़ाने की काबिलियत मिल जाएगी. 

इन लक्ष्यों में नीचे दिए गए ब्यौरे शामिल हैं:

  • अंतरराष्ट्रीय अदायगी या भुगतानों में यूरोपीय संघ की मुद्रा यूरो की भूमिका को मज़बूत करना. वैसे तो पहले से ही अंतरराष्ट्रीय भुगतानों और रिज़र्व करेंसी के मामले में डॉलर के  बाद यूरो का ही नंबर आता है. हालांकि, अमेरिका के उलट यूरोपीय संघ इस बात का अपने राजनीतिक हितों और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल नहीं करता. यूरोपीय कारोबारों और उनके विदेशी भागीदारों के बीच कई लेन-देन अमेरिकी डॉलर में संपन्न होते  हैं. इसके चलते उनकी स्थिति नाज़ुक बनी रहती है. उनके लिए भविष्य  में अमेरिका द्वारा की जाने वाली किसी भी जबरिया कार्रवाई का ख़तरा बढ़ जाता है. यूरोपीय संघ के कई  साझीदार ऐसे हैं जिनपर भले ही अमेरिका या दूसरे देशों ने पाबंदियां लगा रखी हों  लेकिन उनपर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद या यूरोपीय संघ की ओर से ऐसे कोई प्रतिबंध नहीं होते. अगर ऐसे साझीदारों के साथ अपने कारोबार में यूरोपीय संघ अपनी मुद्रा यूरो में हिसाब-किताब करना शुरू कर दे तो लेनदेन के जोखिम कम हो  जाएंगे. इस मामले में  ईयू के अधिकारियों ने गंभीरतापूर्वक तैयारियां की हैं. लिहाज़ा उनके द्वारा इस लक्ष्य को  हासिल कर लेने की बेहतर संभावनाएं हैं. 
  • भुगतान या पेमेंट से जुड़ी ऐसी व्यवस्था का निर्माण जिसे बाहर से रोका न जा सके. ईरान के साथ मानवतावादी सौदों के लिए बने पेमेंट चैनल इंस्टेक्स (INSTEX) को अक्सर ऐसी व्यवस्था का उदाहरण बताया जाता है. 2020 में इसके ज़रिए पहली बार लेन-देन किया गया था. हालांकि, इस क्षेत्र में हासिल कामयाबियों पर कई सवाल भी खड़े होते हैं. इंस्टेक्स को यूरोपीय संघ के राजनेताओं ने काफ़ी ज़ोर-शोर से प्रचारित किया था. शुरुआती दौर में इसको लेकर उम्मीदें आसमान छू रही थीं. हालांकि, अब-तक ये व्यवस्था मानवतावादी मकसदों में भी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी है. अगर अमेरिका के ट्रेज़री विभाग को ये लगता है कि ईरान के ख़िलाफ़ लगे अमेरिकी प्रतिबंधों  को जानबूझकर तोड़ने के लिए इंस्टेक्स तंत्र का इस्तेमाल किया जा रहा है तो वो किसी भी समय इंस्टेक्स के ख़िलाफ़ रुकावटें खड़ी करने वाली पाबंदियां लगा सकता है. ईरान से मानवतावादी सौदों के लिए इस्तेमाल में आने वाला स्विट़्ज़रलैंड का एसएचटीए तंत्र ज़्यादा प्रभावी लगता है. इसका निर्माण अमेरिका के साथ साझा तौर पर किया  गया  था,  लिहाजा इसके क्रियाकलापों में किसी तरह की दिक्कत नहीं आनी चाहिए. बहरहाल यूरोपीय संघ के भीतर भुगतान व्यवस्थाओं में सिर्फ़ मानवतावादी लेन-देन ही शामिल नहीं हैं. इसके साथ ही ऊर्जा या कच्चे मालों के कारोबारों में सुरक्षित लेनदेन की व्यवस्था बनाने की योजना से जुड़ा मुद्दा भी शामिल है. इसलिये, एक बड़ा प्रश्न ये है कि इन योजनाओं को अमल में लाने की असल में कितनी संभावनाएं मौजूद हैं.

 

  • विदेशों में अमेरिकी पाबंदियों की ज़द में आने के बाद यूरोपीय संघ में व्यक्तियों और कानूनी इकाइयों के लिए बिना किसी अड़चन के अदायगियों और दूसरी सेवाओं तक पहुंच की संभावना सुनिश्चित करना. दूसरे शब्दों में, हम ये कह रहे हैं कि अमेरिकी ट्रेज़री विभाग की रुकावटी पाबंदियों की चपेट में आया यूरोपीय संघ का कोई नागरिक या कंपनी ईयू के भीतर बिना किसी बाधा के अदायगियां कर सके. फ़िलहाल तो यूरोप के  बैंक इस तरह के लेन-देन से साफ़ मना कर सकते हैं. इतना ही नहीं अदालतों के भी उनके पक्ष में ही खड़े होने की  संभावना है. हक़ीक़त ये है कि यूरोपीय संघ ठीक वैसा ही बुनियादी ढांचा खड़ा करना चाहता है जैसा रूस समेत कई देशों में  पहले  ही खड़ा हो चुका है. अमेरिका द्वारा 2014 में  बड़े पैमाने पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई किए जाने के पहले से ही रूस एक राष्ट्रीय पेमेंट सिस्टम खड़ा करने पर विचार कर रहा था. वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में रूस की सीमित हैसियत के बावजूद उसके पास अपना स्वतंत्र पेमेंट सिस्टम है. इससे रूस के नागरिकों को अपने देश में लेन-देन करने की सुविधा मिली है.
  • 1996 के ब्लॉकिंग कानून को आज की ज़रूरतों के हिसाब से बदलना. इस सिलसिले में हम ख़ासतौर से एक ऐसा तंत्र बनाने की वक़ालत कर रहे हैं जिसके ज़रिए अमेरिका की सरहद पार वाली पाबंदियों से नुकसान झेल  रही कंपनियों की भरपाई और हर्जाने की व्यवस्था हो सके.
  • अमेरिकी पाबंदियों  का ख़तरा झेल रही यूरोपीय कंपनियों की सहूलियत के लिए  सूचनाओं का दस्तावेज़ तैयार करना. इसके साथ ही विदेशी प्रतिबंधों की ज़द में आ चुकी कंपनियों के लिए व्यवस्थित तरीके से कानूनी मदद का प्रावधान करना. ख़ासतौर से हम अमेरिकी अदालतों में अपने हितों की रक्षा करने में यूरोपीय कंपनियों और यूरोपीय देशों के नागरिकों की सहायता करने की बात कर रहे हैं. इतना ही नहीं डब्ल्यूटीओ जैसी संस्थाओं में भी अन्य कानूनी मसलों पर मदद पहुंचाने की व्यवस्था होनी चाहिए.
  • अगर ज़रूरी हो तो अपनी सरहद के बाहर पाबंदियां लगाने की अमेरिकी या किसी दूसरे देश की प्रवृत्ति की काट ढूंढना ताकि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में  संतुलन कायम हो सके. ज़रूरत पड़ने पर जवाबी प्रतिबंधी उपाय भी किए  जाने चाहिए.
  • पाबंदियों से  जुड़ा ईयू का एजेंडा सिर्फ़ सरहद के बाहर पाबंदियां लगाने की अमेरिकी नीतियों की काट तक ही सीमित नहीं होगा. आख़िरकार अमेरिका तो यूरोपीय संघ का मित्र और हिस्सेदार  है.

बहरहाल,  पाबंदियों से  जुड़ा ईयू का एजेंडा सिर्फ़ सरहद के बाहर पाबंदियां लगाने की अमेरिकी नीतियों की काट तक ही सीमित नहीं होगा. आख़िरकार अमेरिका तो यूरोपीय संघ का मित्र और हिस्सेदार  है. इसका मतलब ये है कि संकट भरे किसी भी हालात से बारीकी से निपटने के व्यापक अवसर मौजूद हैं. एजेंसियों के स्तर पर गठजोड़ को भी इसी कड़ी में सिफ़ारिश के तौर पर रेखांकित किया जाता है. इतना ही नहीं ट्रंप की विदाई के बाद हो सकता है कि अमेरिका यूरोपीय संघ की चिंताओं के प्रति पहले से ज़्यादा सजग हो जाए. 

बहरहाल, ईयू के लिए अपनी खुद की प्रतिबंध नीति तय करना सबसे बड़ी प्राथमिकता का विषय बना हुआ है.  इस दिशा में कई समस्याएं और जोख़िम हैं. फ़ैसले  लेने  की सुस्त  रफ़्तार और पाबंदियों को अमल में लाने के लिए ज़रूरी तालमेल का अभाव इस रास्ते की सबसे बड़ी समस्याओं में से हैं.  प्रतिबंधों से जुड़े तंत्र का ब्रसेल्स में केंद्रीकरण भी यूरोपीय आयोग के लिए महत्वपूर्ण कार्य बनता जा रहा है.  

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