‘एक देश, दो सिस्टम’ का मूल उद्देश्य है ताइवान
‘एक देश, दो सिस्टम’ के फॉर्मूले का मूल उद्देश्य ताइवान को ये संदेश देना था कि चीन मेनलैंड से अलग एक राजनीतिक और आर्थिक प्रणाली का संरक्षण कर सकता है. हॉन्गकॉन्ग और मकाऊ जैसे ब्रिटेन के पूर्व उपनिवेशों का मतलब था कि ताइवान के लोगों को ये व्यवस्था दिखाकर उन्हें अपने पाले में लाने के लिए तैयार किया जा सके. 2020 में ताइवान के राष्ट्रीय चेंगची विश्वविद्यालय के एक सर्वे में पता चला कि यहां के 64 प्रतिशत निवासी ख़ुद को पूरी तरह ‘ताइवान का नागरिक’ समझते हैं. वहीं 2020 में ताइवान के सिर्फ़ 3 प्रतिशत लोगों ने ख़ुद को चीनी बताया. 1990 के दशक में क़रीब 26 प्रतिशत लोगों ने ख़ुद को चीनी बताया था. ख़ुद की ‘चीनी’ पहचान बताने वाले लोगों की संख्या में कमी ताइवान में लोकतंत्र की मज़बूती के अनुरूप है. 1990 के दशक के मध्य से ताइवान में राष्ट्रपति का सीधा चुनाव हो रहा है. हॉन्गकॉन्ग के लोगों के दमन का गवाह बनने के बाद क्या ताइवान के लोग अपनी इच्छा से एकीकरण पर विचार करने के लिए जिन्न को फिर से बोतल में रखेंगे?
31 मई को एक भाषण में शी चीन की एक सम्मानजनक छवि बनाने की ज़रूरत पर बोले लेकिन ‘एक देश, दो सिस्टम’ के तहत जिस नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई थी, उसको वापस लेने का मतलब है कि अविश्वास सीसीपी की 100वीं सालगिरह के रंग में भंग करेगा.
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