Author : Sauradeep Bag

Published on Feb 08, 2024 Updated 0 Hours ago
आने वाले कल के संरक्षक: कैसे एआई सशस्त्र बलों के भविष्य को आकार देती है?

कृत्रिम बुद्धिमत्ता को अपनाने का सैन्य इतिहास एक आकर्षक कहानी है जो तकनीकी विकास, भू-राजनीतिक बदलावों और सैन्य वर्चस्व की निरंतर खोज की पृष्ठभूमि में सामने आ रही है. यह यात्रा 20वीं सदी के मध्य में शुरू हुई, जब जटिल गणनाओं और डाटा विश्लेषण को स्वचालित करने के प्रयासों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बीज बोए गए थे.

जैसे ही शीत युद्ध शुरू हुआ, ख़ुफ़िया एजेंसियों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के लिए विदेशी ख़ुफ़िया सूचनाएं संभालने वाली केंद्रीय ख़ुफ़िया एजेंसी (सीआईए) ने अपनी समकक्ष, राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए)  के साथ एआई के प्राथमिक रूपों को अपनाया. इस अवधि के दौरान, विदेशी भाषा दस्तावेज़ों के मशीन अनुवाद के माध्यम से समकालीन प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) तकनीकों की नींव रखी गई थी. 1950 के दशक के अंत में मनुष्य जैसी समस्या-समाधान क्षमताओं का अनुकरण करने के लिए डिज़ाइन किए गए सामान्य समस्या समाधानकर्ता (जीपीएस) जैसी प्रारंभिक एआई प्रणालियों का आगमन हुआ. इसके साथ ही, अमेरिकी रक्षा विभाग ने डारपा (डिफ़ेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी) जैसी परियोजनाओं की शुरुआत की, जो सैन्य अनुप्रयोगों में एआई के गहराई से पैठने के लिए थी, जिसने आने वाले दशकों में अधिक महत्वाकांक्षी विकास का मार्ग प्रशस्त किया.

एआई-सक्षम युद्ध की अवधारणा का महत्व तेज़ी के साथ बढ़ा है. इसमें स्वायत्त प्रणालियों, ड्रोनों के झुंड और भविष्यसूचक विश्लेषण के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिदम सहित कई तकनीकें शामिल हैं.

21वीं सदी की शुरुआत में मशीन लर्निंग और डाटा एनालिटिक्स में प्रगति से प्रेरित होकर एक महत्वपूर्ण बदलाव आया. मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी), जिन्हें आमतौर पर ड्रोन कहा जाता है, निगरानी और सैन्य सर्वेक्षण के लिए आवश्यक उपकरण बन गए हैं और अब उन्नत एआई क्षमताओं से लैस हैं. सूचना के विश्लेषण, पैटर्न की पहचान और उल्लेखनीय रूप से युद्ध के मैदान में स्थितिजन्य जागरूकता को बढ़ाने में व्यापक डाटा सेट से सशक्त एआई एल्गोरिदम ने केंद्रीय भूमिका अख़्तियार कर ली है. सैन्य अनुप्रयोगों में एआई का समावेश समकालीन युद्ध के एक व्यापक, अधिक परिष्कृत और अभिन्न पहलू के रूप में विकसित हुआ है. 

एआई-सक्षम युद्ध की अवधारणा का महत्व तेज़ी के साथ बढ़ा है. इसमें स्वायत्त प्रणालियों, ड्रोनों के झुंड और भविष्यसूचक विश्लेषण के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिदम सहित कई तकनीकें शामिल हैं. स्वायत्त कार्यों के लिए एआई से लैस ज़मीनी वाहनों को विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण वातावरण में रसद ले जाने से लेकर टोह लेने तक के कार्यों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. वैश्विक स्तर पर राष्ट्र अपने शस्त्रागार में नवीनतम उभरती तकनीकों को विकसित और शामिल करने की प्रतिस्पर्धात्मक खोज में लगे हुए हैं. भारत इस प्रवृत्ति से अवगत प्रतीत होता है और अब न केवल इस वैश्विक दौड़ में भाग लेने के लिए, बल्कि संभावित रूप से इसके नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए सक्रिय रूप से ठोस प्रयास कर रहा है. 

भारत की एआई महत्वाकांक्षाएं

भारतीय सशस्त्र बल एआई-संचालित यूएवी के साथ ख़तरे के आकलन, रसद अनुकूलन, साइबर सुरक्षा और निगरानी में क्रांति लाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में एआई का लाभ उठाने के लिए तैयार हैं. अर्थव्यवस्था पर एआई के विघटनकारी प्रभाव के समान, ये सैन्य प्रगतियां निकट भविष्य में परिदृश्य को फिर से परिभाषित करने के लिए तैयार हैं.

कई महत्वपूर्ण विकासों में से एक उन्नत सहयोगी स्वायत्त रोवर प्रणाली (ईसीएआरएस- ईकार्स) मानव रहित ज़मीनी वाहन (यूजीपी) का निर्माण है, जो बहु-भूभागीय गतिविधियों के लिए एआई द्वारा संचालित एक बहुमुखी मॉड्यूलर प्लेटफॉर्म है.

रक्षा मंत्रालय ने अगले पांच वर्षों के लिए रक्षा कृत्रिम बुद्धिमत्ता परियोजना एजेंसी (डीएआईपीए) को प्रतिवर्ष 100 करोड़ रुपये (12 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का बजट आवंटित किया है. यह फंडिंग एआई परियोजनाओं, बुनियादी ढांचे के विकास, डाटा  तैयार करने और क्षमता निर्माण के लिए काम करेगी. हाल ही में जारी एक दस्तावेज़ में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि भारतीय रक्षा उद्योग तेज़ी से प्रगति कर रहा है, जो सशस्त्र बलों को दुनिया के सबसे उन्नत बलों में से एक बनाकर खड़ा कर रहा है. इस सहयोगात्मक प्रयास में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, अनुसंधान संगठन, शैक्षणिक संस्थान, स्टार्ट-अप और अन्वेषक शामिल हैं, जो अत्याधुनिक एआई नवाचार का एक नया युग शुरू कर रहे हैं. डाटा, रसद, निगरानी और हथियारों जैसे क्षेत्रों में विशिष्ट उत्पाद सामने आए हैं. कई महत्वपूर्ण विकासों में से एक उन्नत सहयोगी स्वायत्त रोवर प्रणाली (ईसीएआरएस- ईकार्स) मानव रहित ज़मीनी वाहन (यूजीपी) का निर्माण है, जो बहु-भूभागीय गतिविधियों के लिए एआई द्वारा संचालित एक बहुमुखी मॉड्यूलर प्लेटफॉर्म है. इसके संवेदन और दिशासूचन मॉड्यूल पूर्ण मानव रहित नियंत्रण को सक्षम बनाते हैं, महत्वपूर्ण मिशनों में परिचालन क्षमताओं को बढ़ाते हैं और जोखिमों को कम करते हैं, अंततः हमारे बलों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं. 

एक अन्य अभूतपूर्व प्रगति संज्ञानात्मक राडार के विकास के साथ सामने आई है, जो गतिशील वातावरण में एक मज़बूत पहचान तंत्र सुनिश्चित करने में वर्तमान राडार के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करती है. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) युवा वैज्ञानिक प्रयोगशाला, जो संज्ञानात्मक तकनीकों में विशेषज्ञता रखती है, डीप न्यूरल नेटवर्क और सुदृढ़ीकरण अध्ययन पद्धतियों के अनुप्रयोग के माध्यम से इन चुनौतियों का सामना करती है. अत्याधुनिक तकनीकों का यह एकीकरण नवाचार और राडार अनुप्रयोगों में निपुणता की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए एक बड़ी छलांग को दर्शाता है. 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता की परिवर्तनकारी क्षमता 

उभरती प्रौद्योगिकियों का प्रभाव वाणिज्यिक नौकरियों से आगे बढ़कर सैन्य प्रथाओं पर एक महत्वपूर्ण छाप छोड़ता है. कई तकनीकी क्रांतियों का जन्म अक्सर सैन्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए होता है. डाटा की संपत्ति और एआई मॉडल का विकास सशस्त्र बलों के भीतर विभिन्न क्षेत्रों में निर्णय लेने को बढ़ाने की ज़बरदस्त क्षमता रखते हैं. उदाहरण के लिए, ए2एडी (एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल) के रूप में जाना जाने वाला रणनीतिक दृष्टिकोण काफ़ी हद तक इन प्रगतियों से लाभ उठाता है. ए2एडी विशिष्ट क्षेत्रों तक प्रतिद्वंद्वी की पहुंच को प्रतिबंधित करने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों और सामरिक युद्धाभ्यासों के एक परिष्कृत मिश्रण का उपयोग करता है, जिससे परिभाषित क्षेत्रों के भीतर प्रतिद्वंद्वी की परिचालन क्षमता के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां खड़ी होती हैं. यह अवधारणा आधुनिक युद्ध और रक्षा रणनीतियों पर चर्चा से जटिल रूप से जुड़ी हुई है, जो उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे एआई के उदय से प्रभावित होने के लिए तैयार हैं.

सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के लिए वैश्विक स्तर पर असाधारण कड़ी प्रतिस्पर्धा चल रही है. अमेरिका और चीन दोनों ही अपने सशस्त्र बलों को तेज़ी से अधिकाधिक संसाधन प्रदान कर रहे हैं, सैन्य अभ्यासों में एआई के विकास और एकीकरण में निवेश पर विशेष रूप से ज़ोर दे रहे हैं. इस गतिशील परिदृश्य में, भारत, जो महत्वाकांक्षाओं, तेज़ी से विकास और वैश्विक दक्षिण में अग्रणी के रूप में अपनी उभरती भूमिका से प्रेरित है, पिछड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता. उदाहरण के रूप में, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने एआई प्रौद्योगिकियों में पर्याप्त निवेश किया है, जिससे रक्षा क्षमताओं में एआई को शामिल करने के लिए उसकी समर्पित प्रतिबद्धता का पता चलता है. भारत के लिए अपनी स्थिति बनाए रखने और सार्थक योगदान देने के लिए, एआई दौड़ में सक्रिय भागीदारी अनिवार्य है, जो संभावित रूप से खुद को विश्व स्तर पर सैन्य प्रौद्योगिकियों के भविष्य को आकार देने में एक अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत के लिए अपनी राष्ट्रीय रक्षा को सुरक्षित करना महत्वपूर्ण है, ख़ासकर पड़ोसी क्षेत्रों से बढ़ते खतरों के बीच.

इसके अतिरिक्त, साइबर युद्ध में एआई में हाल ही में एक महत्वपूर्ण विकास हुआ है. एआई-संचालित उपकरण और एल्गोरिदम साइबर ख़तरों का पता लगाने और उनका जवाब देने, सैन्य नेटवर्क को मजबूत करने और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वास्तविक समय में व्यापक डाटा का विश्लेषण करने की एआई की क्षमता साइबर ख़तरों के लगातार बदलते परिदृश्य के ख़िलाफ़ सेना की प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाने का काम करती है.

नवाचार के अभूतपूर्व पैमाने और प्रभाव को देखते हुए, एआई विकास का भविष्य अस्पष्ट है, जिसने विनियमन को चुनौतीपूर्ण बना दिया है. ऐसे में परिवर्तन को अपनाना स्पष्ट और अनिवार्य प्रतीत होता है, ख़ासकर सशस्त्र बलों के लिए.

सैन्य क्षेत्र में एआई का इतिहास एक जटिल कहानी है, जिसमें प्रारंभिक गणना से लेकर आज की मशीन लर्निंग और स्वायत्त प्रणालियों तक शामिल हैं. एआई ने विश्व स्तर पर सैन्य अभियानों को महत्वपूर्ण रूप से बदल दिया है, जिसमें देश तकनीकी रूप से उन्नत बने रहने के लिए अनुसंधान में भारी निवेश कर रहे हैं. भविष्य की नौकरियों को प्रभावित करने वाले एआई के लिए नैतिक मानकों पर चर्चा व्यापक है, लेकिन सैन्य एआई विकास में सहयोग पर स्थिति अस्पष्ट है. हालाँकि, यह गतिरोध का संकेत नहीं देता है. अमेरिका ने एक घोषणापत्र जारी किया है जिसमें ग़ैर-क़ानूनी रूप से बाध्यकारी दिशानिर्देशों को शामिल किया गया है जो एआई के ज़िम्मेदार सैन्य उपयोग के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को सामने रखते हैं. ये सिद्धांत महत्वपूर्ण पहलुओं को रेखांकित करते हैं जैसे कि सैन्य एआई प्रणालियों का ऑडिट, उपयोग के स्पष्ट और अच्छी तरह से परिभाषित मामले, उनके पूरे जीवनचक्र में कठोर परीक्षण और मूल्यांकन, अनपेक्षित व्यवहारों का पता लगाने और रोकने की क्षमता और उच्च-परिणाम वाले अनुप्रयोगों के लिए उच्च-स्तर की समीक्षा. नवाचार के अभूतपूर्व पैमाने और प्रभाव को देखते हुए, एआई विकास का भविष्य अस्पष्ट है, जिसने विनियमन को चुनौतीपूर्ण बना दिया है. ऐसे में परिवर्तन को अपनाना स्पष्ट और अनिवार्य प्रतीत होता है, ख़ासकर सशस्त्र बलों के लिए.

पीछे मुड़कर देखें तो यह स्पष्ट है कि व्यापक रूप से सूचना तक पहुंच प्रदान करके इंटरनेट ने सशस्त्र बलों में क्रांति ला दी है. एआई को भी इसी तरह का समान प्रभाव डालने वाले के रूप में देखा जा सकता है. इंटरनेट ने बड़ी मात्रा में डाटा तक पहुंच प्रदान की, और अब, एआई के साथ, इस डाटा को उल्लेखनीय गति से संसाधित कर अंतर्दृष्टि में बदला जा सकता है. सैन्य क्षेत्र में एआई की यह चल रही कहानी नवाचार को बढ़ावा देने और सैन्य वर्चस्व हासिल करने के बीच संतुलन खोजने के बारे में है.


(सौरदीप बेग ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में सहायक अध्येता हैं)

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