निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तनकारी क़वायद के चलते होने वाले ढांचागत बदलावों से अक्सर सामाजिक-आर्थिक मोर्चे पर गंभीर चुनौतियां पैदा हो सकती हैं. दरअसल अर्थव्यवस्था के कुछ सेक्टर ऐसे होते हैं जिनके तौर-तरीक़े बदलना आसान नहीं होता. ऐसे सेक्टरों में ढांचागत बदलावों से कामगारों का विस्थापन और आय का नुक़सान होता है. साथ ही भौगोलिक इलाक़ों के हाशिए पर चले जाने का भी डर रहता है. बहरहाल, बदलावों भरे इस सफ़र का ज़ोर उत्सर्जन घटाने की क़वायद पर ही बना रहना चाहिए. हालांकि डिकार्बनाइज़ेशन के सामाजिक प्रभावों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती. निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव ना सिर्फ़ सामाजिक मापकों पर असर डालते हैं बल्कि इन परिवर्तनों से गंभीर जोख़िम भी पैदा हो सकते हैं. इनसे कई तरह के आर्थिक बदलाव सामने आते हैं, जिनमें आपूर्ति या कार्रवाई की बाधित श्रृंखलाएं, नागरिक अशांति, घटी हुई उत्पादकता, वित्तीय संस्थाओं में गिरावट और बाज़ार की विषम प्रतिस्पर्धाएं शामिल हैं. लिहाज़ा बदलावों से जुड़ी वित्तीय क़वायदों में न्यायसंगत नज़रिए से आगे बढ़ना लाज़िमी हो जाता है. इसमें जलवायु परिवर्तन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का आकलन शामिल है. इसके साथ ही पूंजी प्रदाताओं द्वारा साथ जुड़े जोख़िमों से पार पाने और बदलाव की चुनौतियों से निपटने के लिए ज़रूरी वातावरण तैयार करना भी आवश्यक है.
निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तनकारी क़वायद के चलते होने वाले ढांचागत बदलावों से अक्सर सामाजिक-आर्थिक मोर्चे पर गंभीर चुनौतियां पैदा हो सकती हैं. दरअसल अर्थव्यवस्था के कुछ सेक्टर ऐसे होते हैं जिनके तौर-तरीक़े बदलना आसान नहीं होता.
इंडोनेशिया की अध्यक्षता में G20 के नेताओं ने “निम्न-ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों और जलवायु के हिसाब से लोचदार अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की ओर व्यवस्थित और सस्ते बदलावों की ओर मदद के लिए परिवर्तनकारी वित्त” मुहैया कराने की अहमियत की पहचान की. इतना ही नहीं, टिकाऊ वित्त पर G20 के कार्यदल के सदस्यों ने परिवर्तनकारी वित्त के लिए ढांचे के विकास की सिफ़ारिश की है. इसी कड़ी में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने SFWG के लिए एक इनपुट पेपर पेश किया. इसका लक्ष्य न्यायसंगत बदलाव हासिल करने में वित्तीय व्यवस्थाओं की भूमिका से जुड़े सवाल का निपटारा करना है.
पूंजी और जोख़िम का रोकथाम करने वाली व्यवस्थाओं के ज़रिए बदलावों में तेज़ी लाने में वित्तीय क्षेत्र एक अहम भूमिका निभा सकता है. हाल के वर्षों में ‘ट्रांज़िशन बॉन्ड्स’ नए यूज़-ऑफ़-प्रोसीड्स टिकाऊ वित्तीय व्यवस्था बनकर उभरे हैं. क्लाइमेट बॉन्ड्स कार्यक्रम के मुताबिक मार्च 2021 तक 18 ट्रांज़िशन बॉन्ड्स जारी किए गए. इनमें अन्य इकाइयों के साथ-साथ ऊर्जा कंपनी Snam, यूरोपियन बैंक ऑफ़ रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट और बैंक ऑफ़ चाइना द्वारा जारी बॉन्ड शामिल हैं. बहरहाल स्पष्ट मानदंडों के अभाव के चलते ट्रांज़िशन बॉन्ड्स को निवेशकों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा बदलाव से जुड़े मौजूदा वित्तीय ढांचों में न्यायसंगत परिवर्तनकारी सिद्धांतों को जोड़ने के लिए ना के बराबर प्रयास किए गए हैं.
क्लाइमेट बॉन्ड्स कार्यक्रम के मुताबिक मार्च 2021 तक 18 ट्रांज़िशन बॉन्ड्स जारी किए गए. इनमें अन्य इकाइयों के साथ-साथ ऊर्जा कंपनी Snam, यूरोपियन बैंक ऑफ़ रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट और बैंक ऑफ़ चाइना द्वारा जारी बॉन्ड शामिल हैं.
वैसे तो जलवायु के हिसाब से बदलाव लाने की क़वायद के सामाजिक प्रभाव की पहचान की दिशा में तमाम प्रयास किए गए हैं, लेकिन टिकाऊ वित्त अब भी काफ़ी हद तक पर्यावरणीय आधार पर ज़ोर देता है. पारस्परिक समझ, मानकीकरण और परिभाषाओं के अभाव के चलते सामाजिक प्रभाव का आकलन करना पूंजी प्रदाताओं के लिए एक मुश्किल क़वायद साबित हो सकती है. मिसाल के तौर पर ESG विश्लेषण में ज़्यादातर परिसंपत्ति प्रबंधक फ़ैसले लेते वक़्त ‘E’ पहलू पर ज़ोर देते हैं. BNP के सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 51 फ़ीसदी प्रतिभागियों ने अपने निवेश विश्लेषणों में आकलन करने और शामिल किए जाने के नज़रिए से ‘समाज’ को सबसे चुनौतीपूर्ण घटक बताया है.
आगे की राह
पूंजीगत प्रवाह न्यायसंगत बदलावों भरे रुख को सहारा देने वाले होने चाहिए. इकोसिस्टम से जुड़े तमाम किरदार ये सुनिश्चित करने के लिहाज़ से अहम हैं. इनमें सरकारें, केंद्रीय बैंक, अंतरराष्ट्रीय संगठन, वित्तीय सेवा प्रदाता, बहुपक्षीय विकास बैंक (MDBs), अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं और निजी वित्तीय संस्थान शामिल हैं. सरकारों द्वारा इसके निपटारे का एक तरीक़ा सॉवरिन बॉन्ड्स (जो सिर्फ़ परिवर्तनकारी दिशानिर्देशों से जुड़े हों) जारी करने से जुड़ा है. ग्रान्थम रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रोफ़ेसर निक रॉबिन्स के मुताबिक सॉवरिन ट्रांज़िशन बॉन्ड्स हरित बॉन्ड्स द्वारा समर्थित जलवायु पहलों को बदलाव के सामाजिक आयाम के साथ एकजुट करने में कारगर रहेंगे.
न्यायसंगत ट्रांज़िशन फ़ंड्स इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में दीर्घकालिक वित्त सुरक्षित करने के दूसरे साधन हैं. मिसाल के तौर पर यूरोपीय संघ ने 2021-27 तक एक न्यायसंगत ट्रांज़िशन फ़ंड शुरू किया है. इस कोष का मुख्य उद्देश्य बदलावों में मदद करना और 2030 तक कम से कम 55 फ़ीसदी उत्सर्जनों को घटाते हुए 2050 तक जलवायु तटस्थता हासिल करना है. इस कोष का लक्ष्य आर्थिक मोर्चे पर विविधतापूर्ण क़वायदों को सहारा देना है. साथ ही इसके दायरे में पर्यावरणीय पुनर्वास के सामाजिक आयाम भी आते हैं. इनमें कामगारों के कौशल को उन्नत करना और उनमें नए-नए हुनर विकसित करना, रोज़गार सहायता मुहैया कराना और समावेशी रोज़गारपरक कार्यक्रम शुरू करना शामिल है. इन क़वायदों से कर्मियों का बचाव सुनिश्चित किया जा सकेगा.
इस सिलसिले में सरकार, केंद्रीय बैंकों और नियामक संस्थाओं की निर्णायक भूमिका है. उन्हें ये सुनिश्चित करना होगा कि सार्वजनिक वित्त में न्यायसंगत बदलाव वाली रणनीतियों का ज़ोर जलवायु परिवर्तन के सामाजिक प्रभाव पर हो. ILO ने अपने इनपुट पेपर में कार्बन प्राइसिंग और कार्बन बाज़ारों की ओर से राजस्व को हटाकर, उन्हें डिकार्बनाइज़ेशन की फ़ंडिंग के उपायों की ओर मोड़ने की सलाह दी है. इससे इस क़वायद के सामाजिक और रोज़गार संबंधी प्रभावों का निपटारा किया जा सकेगा. ऐसे ही दूसरे उपायों में जलवायु के मोर्चे पर बदलावों भरी रणनीतियों के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के लिए पारदर्शिता को बढ़ावा देने में मददगार नियामक वातावरण तैयार करना शामिल है. इसके दायरे में उचित ख़ुलासों को ज़रूरी बनाया जाना और परिवर्तनकालीन रणनीतियों में सामाजिक आयामों को शुमार किए जाने के लिए मानकों और जवाबदेहियों का ढांचा तैयार किया जाना शामिल है.
न्यायसंगत ट्रांज़िशन फ़ंड्स इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में दीर्घकालिक वित्त सुरक्षित करने के दूसरे साधन हैं. मिसाल के तौर पर यूरोपीय संघ ने 2021-27 तक एक न्यायसंगत ट्रांज़िशन फ़ंड शुरू किया है. इस कोष का मुख्य उद्देश्य बदलावों में मदद करना और 2030 तक कम से कम 55 फ़ीसदी उत्सर्जनों को घटाते हुए 2050 तक जलवायु तटस्थता हासिल करना है.
इतना ही नहीं, ट्रांज़िशन बॉन्ड्स जैसे वित्तीय साधनों के प्रदर्शन से जुड़े अहम संकेतकों में सामाजिक आयाम को जोड़ने और उनकी पहचान करने में वित्तीय संस्थाएं मदद कर सकती है. राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (NDCs) में सामाजिक पहलुओं को जोड़ने और न्यायसंगत बदलावों को सहारा देने में विकास सहायता को शिखर पर पहुंचाने के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों की मदद अहम होती है. इस लक्ष्य की ओर बहुपक्षीय विकास बैंक पहले ही साझा MDB न्यायसंगत बदलावों वाले उच्चस्तरीय सिद्धांत जारी कर चुके हैं. इसमें इन संस्थाओं ने स्थान-आधारित योजना को सहारा देने, श्रम बाज़ार और सामाजिक विकास, लघु और मध्यम स्तर के उद्यमों और सामाजिक वित्त, कौशल निर्माण और प्रशिक्षण की संभावनाओं की पहचान की है.
भारत के लिए ये बड़ा ही माकूल वक़्त है. वो इंडोनेशिया की अध्यक्षता मे शुरू किए गए प्रयासों को पूरी शिद्दत से आगे बढ़ा सकता है. इससे न्यायसंगत परिवर्तनों की वित्तीय क़वायदों में सामाजिक आयाम को अच्छी तरह शुमार किया जाना सुनिश्चित हो सकेगा.
न्यायसंगत परिवर्तनों के लिए ढांचे तैयार करने की दिशा में G20 बेहतर स्थिति में है. इससे साझा परिभाषाएं और अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ के लिए बेहतर समझ और सिद्धांत मुहैया कराए जा सकेंगे. सूचनाओं की विषमता से निपटने और तकनीकी सहायता मुहैया कराने के लिए मददगार ज्ञान संजाल की क़वायद में G20 का SFWG अहम भूमिका निभा सकता है. ख़ासतौर से उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में ये मददगार साबित हो सकता है. भारत के लिए ये बड़ा ही माकूल वक़्त है. वो इंडोनेशिया की अध्यक्षता मे शुरू किए गए प्रयासों को पूरी शिद्दत से आगे बढ़ा सकता है. इससे न्यायसंगत परिवर्तनों की वित्तीय क़वायदों में सामाजिक आयाम को अच्छी तरह शुमार किया जाना सुनिश्चित हो सकेगा.
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