Author : Pratnashree Basu

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 17, 2023 Updated 4 Days ago

अपनी समुद्री भौगोलिक स्थिति, भू-राजनैतिक क्षमताओं और विदेश नीति की दिशा के कारण, भारत और दक्षिण कोरिया, हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुख्य देश है.

दक्षिण कोरिया और भारत को G20 की गतिविधियों का इस्तेमाल हिंद प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए क्यों करना चाहिए?

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हिंद प्रशांत क्षेत्र की ओर दुनिया की दौड़ और इस इलाक़े की ‘बड़ी शक्तियों’  पर ध्यान केंद्रित करते वक़्त, यूँ तो नीतिगत चर्चाओं और दस्तावेज़ों में दक्षिण कोरिया का संक्षेप में ज़िक्र होता है. मगर, अक्सर उसकी महत्ता को कम करके आंका जाता है. लेकिन, अब जबकि अमेरिका और चीन अधिक टकराव की ओर बढ़ रहे हैं, तो उत्तरी पूर्वी एशिया के समुद्री भूगोल में दक्षिण कोरिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है. सत्ता संभालने के बाद से ही राष्ट्रपति यून सुक-इयोल की सरकार ने अपनी विदेश नीति में मुख्य रूप से ज़ोर ये ऐलान  रहा था कि दक्षिण कोरिया को एक ‘वैश्विक धुरी देश’ और ‘नई समुद्री ताक़त’ के रूप में विकसित किया जाएगा. एक साल से भी कम समय में, राष्ट्रपति सुक-इयोल ने अपना ये इरादा राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और मूलभूत ढांचे के मोर्चे पर जताया है और ऐसे संरचनात्मक और क्रियात्मक परिवर्तन लाने शुरू किए है, जो दक्षिण कोरिया के समुद्री उद्योग और उसकी समुद्री कूटनीति का दायरा बढ़ाने वाले है.

दक्षिण कोरिया की हिंद प्रशांत रणनीति के आग़ाज़ के साथ ही, ये साफ़ है कि वो इस क्षेत्र से अर्थपूर्ण तरीक़े से संवाद और भागीदारी करेगा. भारत, जिसे पहले ही हिंद प्रशांत क्षेत्र का भरोसेमंद साझेदार कहा जा रहा है, उसके लिए ये एक अच्छा मौक़ा है कि वो दक्षिण कोरिया के साथ अपने द्विपक्षीय संवाद के दायरे और क्षितिज को अधिक विस्तार दे. अपनी समुद्री भौगोलिक स्थिति, भू-राजनीतिक क्षमताओं और विदेश नीति की दिशा के कारण, भारत और दक्षिण कोरिया, हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुख्य देश है.

दक्षिण कोरिया की हिंद प्रशांत रणनीति के आग़ाज़ के साथ ही, ये साफ़ है कि वो इस क्षेत्र से अर्थपूर्ण तरीक़े से संवाद और भागीदारी करेगा. भारत, जिसे पहले ही हिंद प्रशांत क्षेत्र का भरोसेमंद साझेदार कहा जा रहा है, उसके लिए ये एक अच्छा मौक़ा है.

पिछली सरकार अपने कार्यकाल के दौरान उत्तरी कोरिया के साथ संबंध सुधारने पर ज़्यादा ध्यान देती रही थी. उसने अमेरिका और अपने दूसरे पड़ोसी देशों और अमेरिका के साथ संबंध बेहतर बनाने पर अधिक ध्यान नहीं दिया था. लेकिन, नए राष्ट्रपति यून का दृष्टिकोण न केवल, दक्षिण कोरिया की घरेलू और विदेश नीति की राह दुरुस्त करने के लिए आवश्यक था, बल्कि उत्तरी पूर्वी एशिया में देश की सामरिक बढ़त को भी पेश करने के लिए ज़रूरी था. दक्षिण कोरिया को इस बदलाव की ज़रूरत उत्तरी कोरिया के प्रति अपनी नीति में परिवर्तन लाने के लिए भी थी. राष्ट्रपति यून ने संकेत दिया है कि वो जापान के साथ संबंध सुधारकर उसके साथ सुरक्षा भागीदारी को मज़बूत बनाना चाहते है.

यून के नेतृत्व में ऐसा लग रहा है कि दक्षिण कोरिया तेज़ी से ये सुनिश्चित करने की दिशा में बढ़ रहा है कि वो इस क्षेत्र में अमेरिका का अहम सुरक्षा साझीदार है और ये क़दम हिंद प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक और एक समान सामरिक नज़रिए वाले देशों के साथ क़दमताल करने, और दक्षिण कोरिया द्वारा अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल, क्षेत्रीय चिंताओं और मांगों को पूरा करने के लिए भी आवश्यक है. हालांकि, यहां ये याद रखना ज़रूरी है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में दक्षिण कोरिया और अन्य देशों के लिए अक्सर, धीरे धीरे मगर सोच-समझकर उठाए गए क़दम, उन बड़ी बड़ी घोषणाओं और गतिविधियों से अधिक बुलंद है, जो अमेरिका इस क्षेत्र में उठा सकता है. ये तरीक़ा सभ्यता के गुणों वाला भी है, और क्षेत्र के देशों के लिए मौजूदा भू-राजनीतिक आवश्यकता भी है.

इसके बाद भी, ऊपरी तौर पर ख़ामोश दिखते हुए हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों ने पिछले पांच वर्षों के दौरान, विशेष रूप से चीन के प्रति अधिक मज़बूत और सुस्पष्ट रुख़ अपनाया है, जिसने क्षेत्र के भीतर अधिक सहयोग की राह खुली है.

सम्मेलन के साझीदार

वैसे तो भारत और दक्षिण कोरिया के बीच द्विपक्षीय स्तर पर ‘विशेष सामरिक साझेदारी’ अपनी गति से आगे बढ़ रही है. क्योंकि भारत की एक्ट ईस्ट नीति (AEP) और दक्षिण कोरिया की नई दक्षिणी नीति (NSP) में काफ़ी मेल है. लेकिन, हिंद प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में सहयोग को और मज़बूती देने का लम्हा अब आया है. दक्षिण कोरिया की हिंद प्रशांत रणनीति में भारत को एक महत्वपूर्ण देश का दर्जा दिया गया है. क्योंकि दक्षिणी एशिया में अपना संपर्क बढ़ाने के लिए दक्षिण कोरिया के लिए भारत सबसे अच्छा विकल्प है. अगर भारत की AEP और दक्षिण कोरिया की NSP इसकी शुरुआत थे, तो दोनों देशों की हिंद प्रशांत नीतियां अधिक व्यापक और अर्थपूर्ण सहयोग बढ़ाने में तालमेल का सटीक अवसर प्रदान करती है. जैसा कि पूर्व राष्ट्रपति मून ने 2018 में अपने भारत दौरे में कहा था कि भारत और दक्षिण कोरिया ‘3P दृष्टिकोण के साथ भविष्य पर केंद्रित सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार हैं जो कोरिया की नई दक्षिण नीति से भी आगे जाकर जनता, समृद्धि और शांति पर केंद्रित है.’ इत्तिफ़ाक़ से 2023 में भारत और दक्षिण कोरिया के कूटनीतिक रिश्तों के पचास साल पूरे हो रहे है.

हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड के तहत, कोरिया शिपयार्ड की मदद से नौसैनिक जहाज़ बनाने की परियोजनाओं के आधुनिकीकरण का काम पहले ही शुरू हो चुका है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया की  STX ऑफशोर ऐंड शिपबिल्डिंग कंपनी मदद और गेल इंडिया लिमिटेड के आपसी सहयोग से LNG जहाज़ निर्माण की तकनीक के क्षेत्र में भी सहयोग हो रहा है.

दक्षिण कोरिया और भारत दोनों आसियान, इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन और क्वाड जैसे क्षेत्रीय सहयोग के संगठन के साथ मुद्दों पर आधारित संबंध रखने के लिए उत्सुक भी हैं और इस स्थिति में भी है, और शायद दोनों देश औपचारिक एवं कार्यकारी और ख़ास क्षेत्रों में सीमित बहुपक्षीय सहयोग के लिए भी राज़ी है. दक्षिण कोरिया, महामारी के दौरान क्वाड से सहयोग बढ़ाने को उत्सुक था और वो क्वाड प्लस व्यवस्था का सक्रिय भाग बना रहेगा, जो आगे जाकर संभवत: पूर्ण सदस्यता में तब्दील होगी. वहीं, सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं, टिकाऊ मूलभूत ढांचे और कनेक्टिविटी जैसे सेक्टर शामिल है. हिंद प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में ये सारे मामले समुद्री सुरक्षा सहयोग विकसित करने पर निर्भर है.

दक्षिण कोरिया की समुद्री क्षमता में बदलाव लाने की यून की योजना में देश के निर्यातों और आयातों के समर्थन के लिए आवश्यक डिजिटल मूलभूत ढांचे, स्वचालित बंदरगाह और पर्यावरण के लिए उपयुक्त स्वचालित जहाज़ की मदद से एक स्थिर आपूर्ति श्रृंखला की स्थापना करना शामिल है. इसके साथ दक्षिण कोरिया के झंडे वाले जहाज़ों के माध्यम से परिवहन की क्षमता का विस्तार करके एक स्थिर वितरण नेटवर्क की स्थापना करना और बंदरगाह एवं वितरण केंद्रों जैसे विदेशी वितरण केंद्रों को सुरक्षित करना शामिल है. अपने दृष्टिकोण को हक़ीक़त बनाने के लिए सरकार, समुद्री आर्थिक एवं तकनीकी विकास में काफ़ी निवेश करने वाली है. जहाज़ बनाने के समझौते पहले ही किए जा चुके हैं, जिसे आम तौर पर भारत के समुद्री क्षेत्र का हाथ से निकला मौक़ा कहा जाता है. फिर चाहे वो रक्षा के लिए हो या कारोबार के लिए. इस मामले में दक्षिण कोरिया के पास आवश्यक तकनीकी क्षमता है. हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड के तहत, कोरिया शिपयार्ड की मदद से नौसैनिक जहाज़ बनाने की परियोजनाओं के आधुनिकीकरण का काम पहले ही शुरू हो चुका है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया की  STX ऑफशोर ऐंड शिपबिल्डिंग कंपनी मदद और गेल इंडिया लिमिटेड के आपसी सहयोग से LNG जहाज़ निर्माण की तकनीक के क्षेत्र में भी सहयोग हो रहा है. कार्यकारी सहयोग और क्षमता के विस्तार के अलावा, समुद्री क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के अन्य संभावित क्षेत्रों में खोज और बचाव, समुद्री क्षेत्र की जागरूकता, समुद्री प्रदूषण, मानवीय मदद और आपदा राहत, आतंकवाद निरोध और तस्करी की रोकथाम, समुद्री प्रदूषण की रोकथाम और समुद्री डकैती रोकने जैसे क्षेत्र शामिल है.

G20 की पहली अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे के कार्यकारी समूह की बैठक में दक्षिण कोरिया के प्रतिनिधिमंडल ने ज़ोर देकर कहा था कि भारत, अपनी विशाल अर्थव्यवस्था और आबादी के चलते न केवल एक शक्तिशाली देश है, बल्कि उसकी सॉफ्ट पावर भी अधिक है.

G20, भारत और दक्षिण कोरिया

इस मक़सद के लिए G20 में भारत की अध्यक्षता क्यों एक सही अवसर प्रदान करता है? क्योंकि आज जब दुनिया का रुख़ हिंद प्रशांत की ओर मुड़ रहा है, तो विश्व इस क्षेत्र के भरोसेमंद साझीदार के तौर पर भारत का रुख़ भी कर रही है, जो पहले की तुलना में अधिक दृढ़ इच्छा वाला और निश्चित रूप से पहले से अधिक सक्षम है. दक्षिण कोरिया के लिए, अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंद्विता के चलते अमेरिका, जापान, रूस और चीन के नज़दीकी दायरे से बाहर निकलकर दूसरे क्षेत्रीय साझीदार तलाशना महत्वपूर्ण हो गया है. जब दक्षिण कोरिया ने अपने यहां अमेरिका के टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस मिसाइल डिफेंस सिस्टम को तैनात करने की इजाज़ दी थी, तो चीन ने उसके ख़िलाफ़ आर्थिक पलटवार का अभियान छेड़ दिया था. उस कटु अनुभव के कारण भी दक्षिण कोरिया को नए साझेदारों की तलाश है. डिजिटल अर्थव्यवस्था और विकास में अपनी प्रगति के अतिरिक्त एक लोकतांत्रिक, आर्थिक रूप से सक्षम और राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण भारत, दक्षिण कोरिया के लिए एक क़ुदरती विकल्प है. G20 की पहली अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे के कार्यकारी समूह की बैठक में दक्षिण कोरिया के प्रतिनिधिमंडल ने ज़ोर देकर कहा था कि भारत, अपनी विशाल अर्थव्यवस्था और आबादी के चलते न केवल एक शक्तिशाली देश है, बल्कि उसकी सॉफ्ट पावर भी अधिक है.

1 और 2 मार्च को दिल्ली में हुई G20 के विदेश मंत्रियों की बैठक में ‘घरेलू व्यस्तता’ के कारण दक्षिण कोरिया के विदेश मंत्री की ग़ैरमौजूदगी पर जानकारों ने दोनों देशों के तेज़ी से विकसित हो रहे संबंधों में खलल पड़ना कहा था और इस बात की अटकलें भी जताई गई थी कि दक्षिण कोरिया इस बैठक को कितनी अहमियत देता है और क्या रूस और यूक्रेन के युद्ध की पेचीदगियों का भी इससे कोई संबंध है. लेकिन, ऐसी अटकलें ग़ैर ज़रूरी है. क्योंकि, वैश्विक मजबूरियों की जटिलताएं बहुत अधिक है. लेकिन इनका हिंद प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग की मांग पर उल्टा असर नहीं पड़ने वाला है. जहां तक राजनयिक बयानबाज़ी की बात है तो इसे संदर्भों के अनुरूप मापा जाना चाहिए. लेकिन असल में तो सच्चा और ठोस सहयोग ही है जो अर्थपूर्ण और टिकाऊ बदलाव लाने वाला होगा. इस मामले में अगर संबंध गहरे बनाने की ज़मीन पिछले मून प्रशासन के कार्यकाल में रखी गई थी, और दक्षिण कोरिया ने स्वतंत्र एवं खुले हिंद प्रशांत की विचारधारा को अपनाया है. ऐसे में, ये लगता है कि यून के शासनकाल में भारत और दक्षिण कोरिया की मध्यम दर्जे की ताक़तों के बीच सहयोग की रफ़्तार बढ़ी ही है.

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