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2025 का महा कुंभ मेला, ग्रहों के दुर्लभ योग की वजह से 144 वर्षों में एक बार आयोजित होने वाला एक अनूठा त्यौहार है. यह भारत की डिजिटल क्रांति में भी एक मील का पत्थर साबित हो रहा है. इसे पहला “डिजिटल महाकुंभ” बनाने की आकांक्षाओं के तहत दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक एवं आस्था के इस आयोजन की निगरानी करने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पावर्ड कैमरे, ड्रोन, टिथर्ड ड्रोन एवं एंटी ड्रोन सिस्टम्स का उपयोग किया जा रहा है. इंटिग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर यानी एकीकृत निगरानी एवं नियंत्रण केंद्र को रियल-टाइम में रिपोर्ट ट्रांसमिट यानी प्रेषित करने के लिए पहली बार अंडरवाटर ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है. इसकी वजह से संगम स्नान के दौरान 24/7 सर्विलांस करना संभव होगा. असीमित दूरी तक काम करने की क्षमता वाले इन ड्रोन से जल के नीचे किसी भी प्रकार की संदिग्ध गतिविधि का सटीक तरीके से पता लगाकर उसका जवाब दिया जाएगा. सोनार सिस्टम के साथ इंटरसेप्टर ड्रोन और एंटी-ड्रोन सिस्टम्स का उन्नत एवं विस्तृत सर्विलांस नेटवर्क तैयार किया गया है. अब भारत लेटेस्ट डिजिटल तकनीक का एकीकरण करते हुए अपनी अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिए समाधान ख़ोजकर उन्हें लाभ पहुंचाने का सक्रिय प्रयास कर रहा है. इसमें कृषि, उत्खनन, बुनियादी सुविधा, आपात रिस्पांस यानी प्रतिक्रिया तथा परिवहन जैसे अहम नागरी क्षेत्रों को काफ़ी फ़ायदा हो रहा है.
अब भारत लेटेस्ट डिजिटल तकनीक का एकीकरण करते हुए अपनी अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिए समाधान ख़ोजकर उन्हें लाभ पहुंचाने का सक्रिय प्रयास कर रहा है.
विकास के लिए ड्रोन : भारत की कहानी
4.0 औद्योगिक क्रांति की अगुवाई करने की आकांक्षा रखने वाले भारत ने 2030 तक ड्रोन का वैश्विक हब बनने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. उसका प्रयास है कि ऐसा करते हुए वह आने वाले वर्षों में अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1 से 1.5 प्रतिशत की और वृद्धि हासिल करते हुए कम से कम 500,000 नौकरियां उपलब्ध कराएगा. ड्रोन इंडस्ट्री इनसाइट्स (DII) की ग्लोबल स्टेट ऑफ ड्रोंस 2024 की रिपोर्ट के अनुसार कमर्शियल ड्रोन इंडस्ट्री यानी वाणिज्यिक ड्रोन उद्योग को आकार देने वाले शीर्ष 10 देशों में भारत का स्थान दूसरा है. पहले स्थान पर यूनाइटेड स्टेट्स (US) है. भारत में ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग यानी उत्पादन क्षेत्र में तेजी से वृद्धि होने का अनुमान है. इस अनुमान के अनुसार 2020-21 में औसतन 600 मिलियन INR का वार्षिक बिक्री कारोबार 2024-25 में बढ़कर 9 बिलियन INR हो जाएगा. इस आकांक्षा को हकीकत में बदलने के लिए भारत ने पहले ही अनेक महत्वपूर्ण कदम उठा लिए हैं :
एक सुव्यवस्थित नीति : 2021 के ड्रोन विनियमन में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखा गया है ताकि भारत में ड्रोन उद्योग को भरोसे, सेल्फ-सर्टिफिकेशन एवं हस्तक्षेप रहित निगरानी के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा सके. इनके तहत अनेक एप्रुवल्स यानी अनुमतियों को हासिल करने की प्रक्रिया का सरलीकरण किया गया है. इसके चलते अनुमति संबंधी आवेदनों की संख्या 25 से घटकर पांच पर आ गई है. इसके अलावा शुल्क को ड्रोन के आकार से अलग करते हुए न्यूनतम कर दिया गया है. एक यूजर-फ्रेंडली डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म के माध्यम से अधिकांश अनुमतियां सेल्फ-जनरेटेड हो जाएंगी. इसमें एयरस्पेस का इंटरएक्टिव नक्शा मुहैया करवाया गया है. इस नक्शे में येलो जोंस को घटाकर ग्रीन जोंस में विस्तार किया गया है ताकि ड्रोन संचालन को आसान बनाया जा सके. इसके अलावा कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए है. इसके तहत गैर-वाणिज्यिक उपयोग वाले मैक्रो ड्रोंस के लिए रिमोट पायलट लाइसेंस की ज़रूरत को समाप्त कर दिया गया है, जबकि अनुसंधान इकाइयों एवं निर्यात केंद्रित निर्माताओं को सर्टिफिकेशन से छूट दी गई है.
भारत के आत्मनिर्भर बनने की दृष्टि के साथ मेल खाते हुए सरकार ने 14 अहम क्षेत्रों, जिसमें ड्रोन एवं ड्रोन कंपोनेंट्स यानी ड्रोन पुर्जे शामिल हैं, के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना घोषित की है.
घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन : भारत के आत्मनिर्भर बनने की दृष्टि के साथ मेल खाते हुए सरकार ने 14 अहम क्षेत्रों, जिसमें ड्रोन एवं ड्रोन कंपोनेंट्स यानी ड्रोन पुर्जे शामिल हैं, के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना घोषित की है. 1.97 ट्रिलियन की इस संयुक्त योजना का उद्देश्य उत्पादन एवं निर्यात को बढ़ावा देना है. इस पहल के चलते माइक्रो, स्माल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) यानी सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के पारिस्थितिकी तंत्र पर व्यापक असर पड़ेगा. इसका कारण यह है कि प्रत्येक क्षेत्र में स्थापित एंकर यूनिट्स को एक मजबूत आपूर्तिकर्ता आधार की आवश्यकता होती है, जो प्रमुखता से MSMEs समर्थित होता है. इसके साथ ही 2021 में ड्रोन के लिए घोषित आरंभिक PLI योजना की घोषणा करते हुए सरकार ने र्स्टाटअप्स एवं MSMEs के समक्ष पेश आने वाली चुनौतियों का ध्यान रखा था. अब सरकार इस क्षेत्र के लिए एक नई और अधिक कुशल PLI योजना तैयार कर रही है. आगामी योजना में प्रक्रियाओं को सुचारू किया जाएगा ताकि इस पर अमल में सुधार किया जा सके. इसके अलावा डॉक्यूमेंटेशन को आसान बनाकर ड्रोन उद्योग के विकास को बेहतर तरीके से समर्थन देने के लिए ज़्यादा निधि उपलब्ध करवाई जायेगी.
ड्रोन आयात पर रोक : 9 फरवरी 2022 तक भारत ने एक ऐसी ड्रोन आयात नीति अपनाई है, जिसके तहत कम्प्लीटली बिल्ट-अप, सेमी-नॉक्ड डाउन और कम्प्लीटली नॉक्ड-डाउन फार्मेट्स के विदेशी ड्रोन के आयात पर रोक लगा दी गई है. हालांकि इसमें कुछ विशेष आवश्यकताओं के लिए छूट का प्रावधान भी किया गया है. लेकिन घरेलू उत्पादकों की सुविधाओं को देखते हुए ड्रोन के पुर्जों के आयात को मुक़्त रखा गया है.
ड्रोन स्कूल्स की स्थापना : डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) यानी नागरी उड्डयन महानिदेशालय ने अब तक कुल 63 रिमोट पायलट ट्रेनिंग ऑर्गेनाइजेशन (RPTO) को मंजूरी प्रदान की है, ताकि ड्रोन ट्रेनिंग एवं स्कीलिंग यानी कौशल कार्यक्रमों को उपलब्ध करवाया जा सके. इन प्रशिक्षण स्कूलों ने अब तक संयुक्त रूप से 5,500 रिमोट पायलट सर्टिफिकेट जारी किए हैं.
ये सारी पहले भारत की ओर से अपने यहां घरेलू ड्रोन उत्पादन क्षमताओं में इज़ाफ़ा करने और “आत्मनिर्भर भारत” में शामिल एक अहम पहलू अर्थात आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के समर्पित प्रयासों को उजागर करती है. ये सारी पहले 2030 तक देश की वैश्विक ड्रोन हब बनने की महत्वाकांक्षा को हासिल करने के प्रयासों को मजबूती प्रदान करेंगी.
इन पहलों के चलते भारत में सिविलियन ड्रोन एप्लीकेशन यानी नागरी ड्रोन उपयोग में सकारात्मक परिणाम दिखाई देने लगे हैं. ड्रोन तकनीक की वजह से बुनियादी सुविधा, आपात प्रतिक्रिया तथा कृषि जैसे अहम क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है. बुनियादी परियोजनाओं में हाई-रिजोल्यूशन कैमरे एवं सेंसर्स के सहयोग से योजना के लिए सटीक डाटा यानी जानकारी हासिल करने में आसानी हो रही है. इसकी वजह से इन परियोजनाओं के डिजाइन एवं एग्जीक्यूशन यानी अमल में आसानी हो रही है. इसके साथ ही निर्णय प्रक्रिया में सुधार होता है और संसाधनों का बेहतर उपयोग करते हुए ख़तरों को कम करने में आसानी होती है. ये ड्रोन निर्माण कार्य पर पैनी नज़र रखने में एरियल इंस्पेक्शंस यानी हवाई पर्यवेक्षण करते हुए योजना से अलग काम की शिनाख़्त करने और सुरक्षा संबंधी मसलों को उजागर करने में उपयोगी साबित होते हैं. इसके चलते निर्माण कार्य में देरी को टाला जा सकता है और इससे काम की कुशलता में भी इज़ाफ़ा होता है. आपात प्रतिक्रिया में भी थर्मल इमेजिंग तथा सेंसर युक्त ड्रोन के सहयोग से दुर्गम इलाकों में फंसे पीड़ितों का पता लगाकर उनके बचाव कार्य को अंजाम देकर मदद पहुंचाने में आसानी होती है.
कृषि में ड्रोन को एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी है. इसकी सहायता से कृषि में सटीकता को बढ़ाया जा सकता है. ड्रोन के माध्यम से फ़सल की स्थिति पर नज़र रखकर इस पर लगने वाले कीड़ों से समय रहते निपटा जा सकता है. इसी प्रकार सिंचाई, कीटनाशक औषधियों एवं खाद का अनुकूलन किया जा सकता है. ऐसा होने से न केवल प्रति हेक्टेयर अधिक फ़सल ली जा सकेगी, बल्कि पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को भी सीमित किया जा सकेगा. अधिकतम क्षेत्र पर नज़र रखने की ड्रोन की क्षमता के चलते न केवल किसानों बल्कि परियोजना प्रबंधकों को भी समान रूप से सहायता मिलेगी और परिणामस्वरूप प्रीसिशन फर्मिंग यानी सटीक खेती को लागू करते हुए टिकाऊ कृषि प्रक्रियाओं को अपनाया जा सकेगा. इसके अलावा इस तरह के प्रयासों को “नमो-ड्रोन दीदी” जैसी लक्षित पहलों के माध्यम से भी सहायता उपलब्ध कराई जाएगी. नमो-ड्रोन दीदी के माध्यम से महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) के सदस्यों को ड्रोन तकनीक का प्रशिक्षण देकर कृषि कार्यों के लिए तैयार किया जा रहा है. महिला सशक्तिकरण की इस पहल के साथ ड्रोन की कीमत को कम करने के लिए सब्सिडी देने और कर्ज़ मुहैया करवाने जैसे कदम भी उठाए जा रहे हैं. इसके चलते संभावित रूप से प्रत्येक SHG को सालाना 100,000 रुपए की अतिरिक्त आय अर्जित करने का अवसर मिलेगा और इसके चलते आर्थिक मजबूतीकरण तथा स्थायी आजीविका उपलब्ध होगी. इसी प्रकार “किसान ड्रोन/ड्रोन” योजना के रूप में एक और पहल लागू की जा रही है. इसमें क्रॉप यानी कृषि उपज तथा मिट्टी के स्वास्थ्य की रियल-टाइम निगरानी के लिए घरेलू ड्रोन-आधारित सिस्टम को सैटेलाइट तकनीक के साथ एकीकृत किया जा रहा है. इसके चलते भूमि आकलन, नुकसान की शिनाख़्त करने के साथ-साथ पोस्ट-इवेंट यानी आपदा पश्चात प्रबंधन में कुशलता हासिल की जाती है. इसके साथ ही “किसान ड्रोन/ड्रोंस” के माध्यम से फ़सल मूल्यांकन, भूमि दस्तावेज़ डिजिटलाइजेशन जैसी कृषि प्रक्रियाओं में सुधार किया जा रहा है. इसके अलावा कीटनाशक एवं पोषक तत्वों के छिड़काव में भी ये पहल उपयोगी साबित हो रही है.
नमो-ड्रोन दीदी के माध्यम से महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) के सदस्यों को ड्रोन तकनीक का प्रशिक्षण देकर कृषि कार्यों के लिए तैयार किया जा रहा है. महिला सशक्तिकरण की इस पहल के साथ ड्रोन की कीमत को कम करने के लिए सब्सिडी देने और कर्ज़ मुहैया करवाने जैसे कदम भी उठाए जा रहे हैं
भारत के ड्रोन उद्योग के समक्ष चुनौतियां
सरकार की ओर से की जा रही इन पहलों का स्वागत ही किया जाना चाहिए, क्योंकि इसकी वजह से ड्रोन उद्योग में एक मजबूत तथा टिकाऊ उत्पादन क्षेत्र विकसित करने को बढ़ावा मिल रहा है. लेकिन इस वृद्धि को टिकाए रखने के लिए घरेलू स्तर पर उच्च मांग वाला मजबूत बाज़ार होना भी बेहद ज़रूरी है. अगर भारत को 2030 तक वैश्विक स्तर पर ड्रोन का हब बनने के सपने रो पूरा करना है तो ऐसा बाज़ार बेहद अहम है. इतना ही नहीं ड्रोन र्स्टाटअप्स को भी आगे बढ़ने और अपनी क्षमता में विस्तार करने के लिए सहायता दी जानी चाहिए. ऐसा होने पर ही ये कंपनियां भविष्य में भारतीय ड्रोन बाज़ार को नेतृत्व प्रदान कर सकेंगी. इसके अलावा कुछ और चुनिंदा चुनौतियों पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है.
नियामक अड़ंगों को दूर करना : हाल में किए गए उदारीकरण के बावजूद ड्रोन रुल्स यानी विनियमन 2021 की नियामक प्रक्रियाएं ड्रोन निर्माताओं एवं संचालनकर्ताओं के लिए काफ़ी जटिल साबित होती हैं. इनका पालन करने के लिए आवश्यक कदम उठाते-उठाते ड्रोन के विकास एवं उपयोग में देरी हो जाती है. कमर्शियल स्केलेबिलिटी यानी वाणिज्यिक मापनीयता के लिए बियॉन्ड विज्युअल लाइन ऑफ साइट (BVLOS) ड्रोन ऑपरेशंस अहम है. लेकिन कड़े विनियमनों एवं सीमित परीक्षण अनुमतियों की वजह से इन्हें अपनाने में वक़्त लगता है. और अंत में ड्रोन के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख़्त पंजीयन तथा ऑपरेशन मापदंड आवश्यक हैं. लेकिन इन्हें अपनाने से उद्योगों के समक्ष बाधाएं खड़ी हो सकती हैं.
प्रतिभा को प्रोत्साहन : एक समर्पित परीक्षण सुविधा की स्थापना और संचालन के लिए कुशल कार्यबल का विकास बेहद अहम है. वर्तमान में भारत के पास निजी इन्नोवेटर यानी अन्वेषकों के लिए ड्रोन इंवेंशन यानी अन्वेषण निर्माण एवं परीक्षण करने के लिए समर्पित टेस्टिंग एवं इनक्यूबेशन सुविधाओं की कमी है. हालांकि प्रशिक्षण के RPTOs उपलब्ध है, लेकिन ये आर्थिक रूप से कमज़ोर आबादी के लिए काफ़ी महंगे साबित हो रहे हैं.
राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के बीच ड्रोन नीतियां समान बने : हालांकि कुछ राज्यों ने ड्रोन उत्पादन व्यवस्था विकसित करने के लिए नीतियां बनाई हैं, लेकिन ये नीतियां संपूर्ण भारत में एक समान नहीं हैं. नीतियों में अंतर की वजह से देश में ड्रोन हब तथा पारिस्थितिकी तंत्र में असमान विकास होने की संभावना है. इसके अलावा विभिन्न राज्यों की ड्रोन नीतियों में अंतर के कारण कारोबारियों के लिए संचालन संबंधी संदिग्धता या अस्पष्टता पैदा होगी. ऐसे में मार्गदर्शक तत्वों, विनियमनों तथा नीतियों को एक समान बनाने की दिशा में प्रयास होने चाहिए.
ऊंची उड़ान की ओर
सरकारी दबदबे वाले क्षेत्रों के माध्यम से वाणिज्यिक मांग को बढ़ावा देकर सरकार को आरंभ में व्यवहार्य ड्रोन बाज़ार स्थापित करने में सहायता करनी चाहिए. इस बाज़ार के कारण ही देश में ड्रोन उत्पादन क्षमता का पूर्ण रूप से दोहन यानी उपयोग किया जा सकेगा. विभिन्न केंद्रीय एवं राज्य मंत्रालयों को ड्रोन ख़रीदने के लिए अलग से पैसों की व्यवस्था करनी चाहिए. इन ड्रोन को बाद में ये मंत्रालय विभिन्न उपयोगों के लिए किराए अथवा लीज पर उपलब्ध करा सकते हैं. ऐसा होने पर देश में एक ड्रोन अर्थव्यवस्था खड़ी करने में सहायता होगी. लेकिन प्राकृतिक रूप से आगे बढ़ने के लिए निजी क्षेत्र संचालित ड्रोन उत्पादन एवं ख़पत बाज़ार की दिशा में बढ़ना बेहतर होगा, क्योंकि निजी क्षेत्र ही लगातार नवाचार करते हुए आत्म-निर्भर होता है. इसके अलावा सरकार को एक टार्गेटेड इन्क्यूबेशन एंड स्केलिंग पहल को लागू करने पर विचार करना चाहिए. ऐसा होने पर इन्नोवेटर्स यानी नवअन्वेषकों को उनके विचारों को विस्तार देकर भारत तथा वैश्विक ड्रोन बाज़ार में अपने दम पर खड़े होने का मौका मिलेगा.
विभिन्न केंद्रीय एवं राज्य मंत्रालयों को ड्रोन ख़रीदने के लिए अलग से पैसों की व्यवस्था करनी चाहिए. इन ड्रोन को बाद में ये मंत्रालय विभिन्न उपयोगों के लिए किराए अथवा लीज पर उपलब्ध करा सकते हैं. ऐसा होने पर देश में एक ड्रोन अर्थव्यवस्था खड़ी करने में सहायता होगी.
इसके साथ ही भारत सरकार को देश के मौजूदा तकनीकी संस्थानों में प्रशिक्षण शाला एवं नवाचार केंद्र स्थापित करने चाहिए. इन स्थानों पर सब्सिडाइज्ड दरों पर ड्रोन पायलटों को प्रशिक्षण दिया जा सकेगा. ऐसे में भविष्य के ड्रोन पायलटों के समक्ष मौजूद प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी को कम करने में सहायता मिल सकेगी और ये केंद्र ड्रोन इनोवेशन के लिए व्यवहार्य इन्क्यूबेशन हब का काम भी करेंगे. इसके अलावा भारत सरकार को ड्रोन उत्पादन पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिए न्यूनतम मापदंड एवं आवश्यकताओं की जानकारी देने वाला एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिए. इस श्वेत पत्र का उपयोग करते हुए राज्य सरकारें अपनी आवश्यकताओं एवं महत्वकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए स्थानीय बाज़ार की ज़रूरतों के हिसाब से ड्रोन उत्पादन पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ेंगी. इन कदमों पर आगे बढ़ते हुए राज्यों को ड्रोन हब एवं मार्केट विकसित करने के लिए अपने पॉलिसी पेपर्स जारी करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. इसके अलावा राज्य सरकारों से वार्षिक “स्टेट ऑफ द सेक्टर” यानी क्षेत्र की वार्षिक दशा संबंधी प्रदर्शन रिपोर्ट जारी करने को कहा जाए, जिसमें स्थापित हब एवं इसके लिए की गई गतिविधियों की जानकारी शामिल रहे.
देबज्योति चक्रवर्ती, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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