Published on Jan 05, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत का यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) का एक सशक्त उदाहरण है, जिसकी संरचना, वित्तपोषण और संचालन आधारित है इंटर ऑपरेबिलिटी यानी अंतर-संचालन की योग्यता, मॉड्यूलर डिज़ाइन और सामान्य प्रोटोकॉल के सिद्धांतों पर.

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का वित्तपोषण: भारत की कहानी
डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का वित्तपोषण: भारत की कहानी

कार्य करने के लिए समाज द्वारा जिन तंत्रों और प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाता है, वो ही इसके बुनियादी ढांचे का सृजन करते हैं. सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर एक लिहाज़ से ऐसा होता है कि अगर कोई उचित और न्यायसंगत वजह नहीं हो तो किसी को भी इसके उपयोग से रोका नहीं जा सकता है. कुछ  इंफ्रास्ट्रक्चर ऐसे होते है कि उनमें कोई आपसी प्रतिस्पर्धा या प्रतिद्वंदिता नहीं होती है, यानी एक व्यक्ति द्वारा उसका उपयोग करने से दूसरे व्यक्ति की उसे इस्तेमाल करने की क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

कई डिजिटल सेवाओं, जैसे कि संचार, मनोरंजन और ई-कॉमर्स से जुड़ी डिजिटल सेवाओं की पहुंच इतनी व्यापक हो गई है कि वे आवश्यक बुनियादी ढांचे के अंतर्गत आने वाली चीज़ों को नए सिरे से परिभाषित करने लगी हैं. हालांकि, इस तरह की सेवाएं ज़्यादातर निजी संस्थाओं द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं और तमाम तरह के नियमों व शर्तों से बंधी होती हैं, इसलिए उन्हें प्रदान करने वाली कंपनियों के कार्य करने की स्वतंत्रता के मद्देनज़र उन्हें डीपीआई से बाहर रखा जा सकता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि इन सेवाओं को प्रदान करने वाली संस्थाएं यह निर्धारित कर सकती हैं कि इनका उपयोग कौन करता है. इससे भले ही ऐसा लग सकता है कि इनमें से कई सेवाएं आवश्यक हैं, लेकिन उन्हें किसी भी लिहाज़ से डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता है.

राष्ट्रीय पहचान प्रणाली, इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणीकरण एवं सत्यापन सेवाएं, डिजिटल पेमेंट सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक ख़रीद सेवाएं, जैसी कई सेवाएं हैं जिनका सभी लोग बिना किसी भेदभाव और प्रतिस्पर्धा के उपभोग कर सकते हैं. यह सेवाएं डिजिटल पब्लिक  इंफ्रास्ट्रक्चर के दायरे में आती हैं और यह लेख इसी विषय पर आधारित है.

अन्य प्रकार की डिजिटल सेवाएं, जिनका उपयोग हर वर्ग, हर तबके के लोग समान रूप से कर सकते हैं, यानी उनके दायरे में सभी लोग आते हैं और उनमें कोई प्रतिस्पर्धा भी नहीं होती है. कहा जा सकता है कि ये सेवाएं गैर-बहिष्कृत और गैर-प्रतिद्वंद्वी दोनों प्रकृति की हैं. राष्ट्रीय पहचान प्रणाली,  इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणीकरण एवं सत्यापन सेवाएं, डिजिटल पेमेंट सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक ख़रीद सेवाएं, जैसी कई सेवाएं हैं जिनका सभी लोग बिना किसी भेदभाव और प्रतिस्पर्धा के उपभोग कर सकते हैं. यह सेवाएं डिजिटल पब्लिक  इंफ्रास्ट्रक्चर के दायरे में आती हैं और यह लेख इसी विषय पर आधारित है.

हाल-फिलहाल में दुनिया भर में डीपीआई बनाने और उसका उपयोग करने में वृद्धि हुई है. कोविड-19 महामारी इन प्रणालियों के उपयोग में तेज़ी लाई है, क्योंकि इसकी वजह से लोग आइसोलेट हो गए थे और अलग-थलग होने के कारण लोगों के पास इन डिजिटल विकल्पों पर भरोसा करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. OECD के मुताबिक डीपीआई का उपयोग करने वाली सरकारें और नागरिक अब इनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों को लेकर आश्वस्त हैं, इसके अलावा कई और क्षेत्रों में भी डीपीआई के इस्तेमाल को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

इस संदर्भ में तमाम तरह के अहम सवाल सामने आते हैं कि आख़िर इन प्रयासों को किस प्रकार व्यवस्थित किया जाए और किस प्रकार से आगे बढ़ाया जाए. यह लेख दो सवालों के उत्तर देने का प्रयास करेगा: पहला, डीपीआई का निर्माण किसे करना चाहिए और दूसरा, इसका वित्तपोषण कैसे किया जाना चाहिए.

डिज़ाइन के सिद्धांत

देखा जाए तो डीपीआई को उस समस्या के मुताबिक़ विकसित किया गया है, जिसका समाधान उन्हें करना है. फिर भी इन्हें कुछ व्यापक डिज़ाइन सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए. इन सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए उन प्रोत्साहनों और योजनाओं को समझने में मदद मिलेगी, जिन्हें लागू करने की ज़रूरत है. इसके साथ ही उन मूलभूत सिद्धांतों को विकसित करने में भी मदद मिलेगी, जिन पर डीपीआई के लिए विचार करने की आवश्यकता है.

जो डीपीआई में दिलचस्पी रखते हैं और इसके विकास में अपना योगदान दे सकते हैं. इस तरह की संस्थाओं को तीन व्यापक श्रेणियों में रखा जा सकता है: पब्लिक सेक्टर, प्राइवेट सेक्टर और गैर-लाभकारी संस्थाएं. सार्वजनिक क्षेत्र या पब्लिक सेक्टर की संस्थाएं मुख्य रूप से पूरी तरह से सरकार द्वारा वित्त पोषित होती हैं और सरकारी नियंत्रण के अधीन होती हैं. 

सभी डीपीआई के डिज़ाइन में तीन प्रमुख विशेषताएं होनी चाहिए:

  • इंटरऑपरेबल: उपयोगकर्ताओं को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने के लिए डीपीआई को मौलिक रूप से इंटरऑपरेबल यानी अंत: क्रियाशील होना चाहिए. इससे यह सुनिश्चित होगा कि उपयोगकर्ता महज डेटा साइलोज यानी आंकड़ों के जाल फंसकर नहीं रह जाए. अगर ऐसा होगा तो फिर इसका उपयोग सभी लोग नहीं कर पाएंगे, बल्कि कुछ हितधारक ही इसका लाभ उठा पाएंगे. डीपीआई केआपस में कार्य करने की योग्यता की कमी ग्राहकों को प्रतिस्पर्धी बाज़ारों से होने वाले लाभों, जैसे कि बेहतर सेवाओं और अधिक नवाचार से भी वंचित करती है.
  • मॉड्यूलर: डीपीआई भी डिज़ाइन के लिहाज़ से मॉड्यूलर होना चाहिए. एक तरह की डिज़ाइन विकसित करने के बजाय, हमें इसे उन घटकों के समूह के रूप में सोचना चाहिए, जिन्हें विभिन्न हिस्सों में एकत्र किया जा सकता है. कुछ घटक मूलभूत होंगे, जैसे कि वे घटक, जो इकोसिस्टम में विशिष्ट रूप से नेटवर्क प्रतिभागियों की पहचान करते हैं और वे घटक, जो रजिस्ट्रियों के रूप में कार्य करते हैं. अन्य घटक, जैसे कि भुगतान से संबंधित कंपोनेंट्स, या फिर डेटा स्थानांतरण अनुरोध फ्रेमवर्क चालू तो होंगे, लेकिन वे सिर्फ़ सेवा से जुड़े कुछ पहलुओं के संबंध में ही लागू होंगे.
  • प्रोटोकॉल: इस डिज़ाइन की सोच के केंद्र में सामान्य प्रोटोकॉल का सेट यानी समूह है, जिसका सभी घटकों द्वारा पालन किया जाना चाहिए. यह उन घटकों को कार्य करने की अनुमति देगा, जो विभिन्न संस्थाओं द्वारा एक दूसरे के साथ संवाद करने के लिए विकसित किए गए हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए ध्यान रखा जाना चाहिए कि विभिन्न नेटवर्क प्रतिभागियों के लाभ उचित रूप से संरेखित हों.  इंफ्रास्ट्रक्चर के विभिन्न घटकों पर नियंत्रण रखने की उनकी योग्यता उनके लाभ को प्रभावित करेगी.

 

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण

ऐसे कई किरदार हैं, जो डीपीआई में दिलचस्पी रखते हैं और इसके विकास में अपना योगदान दे सकते हैं. इस तरह की संस्थाओं को तीन व्यापक श्रेणियों में रखा जा सकता है: पब्लिक सेक्टर, प्राइवेट सेक्टर और गैर-लाभकारी संस्थाएं. सार्वजनिक क्षेत्र या पब्लिक सेक्टर की संस्थाएं मुख्य रूप से पूरी तरह से सरकार द्वारा वित्त पोषित होती हैं और सरकारी नियंत्रण के अधीन होती हैं. निजी क्षेत्र की संस्थाएं अपना वित्त पोषण पूरी तरह से निजी स्रोतों से प्राप्त करती हैं और इनका प्रबंधन भी निजी तौर पर किया जाता है. जबकि गैर-लाभकारी संस्थाएं धन के स्रोत की परवाह किए बिना,अपने चार्टर यानी अपने नियमों के मुताबिक़ चलती है, जो उन्हें लाभकारी गतिविधियों में संलग्न होने से रोकते हैं.

कहा जाता है कि निजी संस्थाएं नफ़ा-नुक़सान के नतीज़ों से प्रेरित हैं और ये हमेशा शेयरधारक लाभ को ज़्यादा से ज़्यादा करेंगी. समाधान के लिए अक्सर मूल्यों की ज़रूरत होती है (जैसे इक्विटी और पहुंच, जो निजी क्षेत्र के लक्ष्यों के मुताबिक़ पर्याप्त नहीं हैं), ख़ासकर जब डिजिटल गुड्स को नए या अस्तित्वहीन बाज़ारों में बनाया जा रहा हो. जैसा कि इस लेख में बाद में भीम एप्लीकेशन चर्चा की गई है.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि डीपीआई के डिज़ाइन, विकास और संचालन को किस प्रकार से वित्त पोषित किया जाना चाहिए. सार्वजनिक, निजी और गैर-लाभकारी संस्थाओं को जितना योगदान देना है, उनमें से हर एक की अपनी कुछ कमियां और दोष हैं. इन संस्थाओं की भागीदारी उनकी कमियों में फंसे बिना, उनके द्वारा प्रस्तुत की गईं सभी चीज़ों का लाभ उठाती है, यह सुनिश्चित करने के लिए ध्यान रखना ज़रूरी है. लेख का यह हिस्सा डीपीआई इकोसिस्टम में प्रत्येक हितधारक के संबंध में इन अवधारणाओं पर संक्षेप में चर्चा करता है.

  • सार्वजनिक संस्थाएं: सार्वजनिक उद्यमों के पास इनोवेटिव डिजिटल प्लेटफॉर्मों को डिज़ाइन करने और उन्हें कार्यान्वित करने के लिए ज़रूरी अनुभव की कमी है. उनकी सोच पारंपरिक होती है और वे कुछ नया करने का ज़ोख़िम नहीं उठाती हैं. अगर सब कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के लिए छोड़ दिया जाए, तो डीपीआई केवल मौजूदा ऑफलाइन प्रक्रियाओं को डिजिटाइज करेंगे.

यह देखते हुए कि सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं को बनाए रखने के लिए राजस्व की कोई आवश्यकता नहीं है, उनकी दक्षता का प्रभावी ढंग से आकलन नहीं किया जा सकता है. नतीजतन, देरी हो सकती है और अक्षम व अप्रभावी संसाधन का आवंटन हो सकता है. सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं में राजनीतिकरणऔरसॉफ्ट-बजट जैसी बाधाओंका ज़ोख़िम भी होता है.

कहा जाता है कि पब्लिक सेक्टर व्यापक स्तर पर काम करता है और उसके पास बड़ी  इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को लागू करने के लिए अनुभव, संस्थागत क्षमता और संसाधन मौजूद हैं. जैसा कि नए बाज़ारों के वित्तपोषण से जुड़ी अस्थिरिता और ज़ोख़िमों को देखते हुए माज़ुकाटो द्वारा चर्चा की गई है कि पब्लिक सेक्टर में नवाचार के लिए दीर्घकालिक अनुसंधान और विकास के लिए उच्च ज़ोख़िम वाली पूंजी प्रदान करने की क्षमता है. ज़ाहिर है कि सार्वजनिक क्षेत्र को निजी वित्त पोषण की तुलना में परीक्षण और त्रुटि की आवश्यकता होती है, जो अल्पकालिक लक्ष्यों पर केंद्रित होता है.

इसके अनुसार, सार्वजनिक सेक्टर को डीपीआई के पूंजी प्रधान तत्वों को लागू करना चाहिए और समग्र रूप से समाधान के लिए मदद करनी चाहिए. वे उन तत्वों के संचालन के लिए भी ज़िम्मेदार हो सकते हैं (उदाहरण के लिए, आधार जैसे पंजीकरण, जो प्रतिभागियों के बीच भूमिकाएं और ज़िम्मेदारियों का आवंटन करते हैं और उन्हें  इंफ्रास्ट्रक्चर को संचालित करने की ताक़त देते हैं), जिसके लिए उस तरह की निष्पक्षता की ज़रूरत होती है, जो केवल सरकारी संस्थाएं प्रदान कर सकती हैं. इस संदर्भ में, मॉड्यूलर समाधान उन मूलभूत तत्वों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तपोषण को सक्षम करेगा, जिनके लिए इस सिस्टम पर निजी सेक्टर के निर्माण के साथ इसे बढ़ाने के लिए, दीर्घकालिक दृष्टिकोण, नवाचार के ज़ोख़िम और पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है.

  • निजी संस्थाएं: निजी संस्थाएं प्रकृति से उद्यमशील और नवोन्मेषी होती हैं. कहा जा सकता है कि ऐसे गुणों से संपन्न होती है, जिन्हें डीपीआई के डिज़ाइन में अच्छे उपयोग में इस्तेमाल किया जाना चाहिए. कहा जाता है कि निजी संस्थाएं नफ़ा-नुक़सान के नतीज़ों से प्रेरित हैं और ये हमेशा शेयरधारक लाभ को ज़्यादा से ज़्यादा करेंगी. समाधान के लिए अक्सर मूल्यों की ज़रूरत होती है (जैसे इक्विटी और पहुंच, जो निजी क्षेत्र के लक्ष्यों के मुताबिक़ पर्याप्त नहीं हैं), ख़ासकर जब डिजिटल गुड्स को नए या अस्तित्वहीन बाज़ारों में बनाया जा रहा हो. जैसा कि इस लेख में बाद में भीम एप्लीकेशन चर्चा की गई है. सरकार के BHIM एप्लिकेशन ने निजी क्षेत्र की संस्थाओं को डिजिटल भुगतान क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए अपने स्वयं के प्लेटफॉर्म बनाने का मार्गप्रशस्त किया.

निजी क्षेत्र के नवाचारों के साथ एक और ज़ोखि़म जुड़ा हुआ है. निजी क्षेत्र डीपीआई को अपने हितों के मुताबिक़ डिज़ाइन कर सकते हैं. ज़ाहिर है कि ऐसे ज़ोख़िमों को कम करने के लिए प्रोटोकॉल लागू करने के लिए सरकार और गैर-लाभकारी भागीदारी की ज़रूरत है. डीपीआई को निजी क्षेत्र के नवाचार को अधिक से अधिक करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए. हालांकि, साथ में यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका डिजिटल पब्लिक  इंफ्रास्ट्रक्चर पर इतना नियंत्रण नहीं हो कि वे अपने प्रतिस्पर्धियों को गलत तरीक़े से नुकसान पहुंचा पाएं.

  • गैर-लाभकारी संस्थाएं: डीपीआई के निर्माण में गैर-लाभकारी संस्थाओं की भी भूमिका होती है. जहां निजी संस्थाओं के लिए डीपीआई के आवश्यक घटकों में निवेश करने से होने वाला लाभ अपर्याप्त है, ऐसे में लोक कल्याण की पूंजी, जिसमें आमतौर पर लाभ कमाने को लेकर ज़्यादा लालसा नहीं होती है, उसके द्वारा भी इसमें निवेश किया जा सकता है. गैर-लाभकारी वित्तपोषण का एक प्रमुख क्षेत्र डिजिटल पब्लिक गुड्स का अनुसंधान और अवधारणा है. इसके लिए दीर्घकालिक रिसर्च की ज़रूरत होती है, ज़ाहिर है कि सरकार के पास इसके लिए निवेश करने के लिए अक्सर संसाधन नहीं होते हैं, विशेष रूप से यह देखते हुए कि राजनीतिक एजेंडा और बजट हर चुनाव के साथ बदलते रहते हैं. प्राइवेट सेक्टर को भी इस तरह के निवेश से कोई लाभ नज़र नहीं आता है. उदाहरण के लिए, सभी क्षेत्रों और हितधारकों के बीच बड़े स्तर पर पारस्परिक संचालन की ज़रूरत के मद्देनजर संसाधनों के दीर्घकालिक निवेश की आवश्यकता हो सकती है, वो भी यह जानते हुए कि इसमें तत्काल कमाई की कोई संभावना नहीं है. एक गैर-लाभकारी थिंक-टैंक iSPIRT, इंडिया स्टैक और हाल ही में इसकी कंसेन्ट लेयर (डेटा एम्पावरमेंट प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर) के विकास और उन्नति में शामिल रहा है.

इसी प्रकार से परोपकारी पूंजी के निवेश से  इंफ्रास्ट्रक्चर के डिज़ाइन और प्रारंभिक शुरुआत का प्रबंधन करने से एक निष्पक्षता का भी आभास होता है, जो इस प्रारंभिक चरण में निजी संस्थाओं के शामिल होने के बाद संभव नहीं हो सकता है. आख़िर में इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि परोपकार और जन कल्याण से संबंधित संस्थाएं बुनियादी ढांचे को लगातार विकसित रखने के लिए आवश्यक तकनीकी मानकों को अपडेट करने और उन्हें बरक़रार रखने में सहायता कर सकती हैं.

हालांकि, गैर-लाभकारी फंडिंग को भी निगरानी और निरीक्षण की आवश्यकता होती है, यह देखते हुए कि गैर-लाभकारी संस्थाओं का दानदाताओं द्वारा संचालित अपना एक एजेंडा होता, जिनकी कोई सार्वजनिक जवाबदेही नहीं है और प्रतिस्पर्धा को लेकर चिंताएं भी कम हैं.

ऐसे में यह कहना उचित होगा कि पब्लिक, प्राइवेट और परोपकारी पूंजी को मिलाजुलाकर उपयोग करके डीपीआई का निर्माण किया जाना चाहिए. हितधारकों के बीच वित्त पोषण के वितरण से जहां डीपीआई की लागत में कमी आ सकती है, वहीं इनके निर्माण में लगने वाला समय कम हो सकता है, साथ ही नवाचार और विचार में बढ़ोतरी हो सकती है. कौन सा घटक किस प्रकार की संस्था की ज़िम्मेदारी है, इसके लिए ज़िम्मेदारियों का निर्धारण करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. इसके साथ ही तय उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में उनका अधिकतम योगदान पाने के लिए उनके लाभ को भी ध्यान में रखना चाहिए.

यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस

भारत का यूनीफाइड पेमेंट इंटरफ़ेस (UPI) डीपीआई का एक सटीक उदाहरण है, जिसका डिज़ाइन, वित्तपोषण और संचालन इस लेख में पहले बताए जा चुके कई सिद्धांतों को दर्शाता है. लेख का यह हिस्सा यूपीआई के डिज़ाइन की पड़ताल करता है, ताकि यह दिखाया जा सके कि विभिन्न हितधारकों ने इसके डिज़ाइन और वित्तपोषण में किस प्रकार से हिस्सेदारी निभाई है.

भारत का यूनीफाइड पेमेंट इंटरफ़ेस (UPI) डीपीआई का एक सटीक उदाहरण है, जिसका डिज़ाइन, वित्तपोषण और संचालन इस लेख में पहले बताए जा चुके कई सिद्धांतों को दर्शाता है. लेख का यह हिस्सा यूपीआई के डिज़ाइन की पड़ताल करता है, ताकि यह दिखाया जा सके कि विभिन्न हितधारकों ने इसके डिज़ाइन और वित्तपोषण में किस प्रकार से हिस्सेदारी निभाई है.

UPI किसी को भी मोबाइल डिवाइस का उपयोग करके रियल टाइम में डिजिटल भुगतान करने की सुविधा प्रदान करता है. UPI एक पेमेंट सिस्टम है, जो भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा संचालित एक केंद्रीय सर्वर पर चलता है, जो कि एक गैर-लाभकारी संगठन है और इसके प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार है. सभी लाइसेंस प्राप्त बैंक NPCI के सर्वर के ज़रिए भुगतान का संदेश भेजते हैं और प्राप्त करते हैं. बैंक उपयोगकर्ता का फंड रखते हैं और सिस्टम के माध्यम से प्राप्तियों और भुगतानों को दर्शाने के लिए शेष राशि को अपडेट करने के लिए ज़िम्मेदार हैं. हालांकि, बैंक कस्टमर इंटरफ़ेस नहीं हैं. यह पेमेंट ऐप द्वारा प्रदान किया जाता है, जो निजी क्षेत्र के भुगतान सेवा प्रदाताओं द्वारा निर्मित और संचालित होते हैं.

  • अंतर-संचालन योग्य आर्किटेक्चर: UPI को सामान्य प्रोटोकॉल के एक समूह का उपयोग करके बनाया गया है. मतलब यह कि प्रत्येक बैंक और भुगतान सेवा प्रदाता सिस्टम पर हर दूसरी इकाई से जुड़ने के लिए एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस के समान सेट का उपयोग करते हैं. ग्राहक मौजूदा तमाम भुगतान ऐप में से किसी एक का उपयोग कर सकते हैं, जो उन्हें पसंद है और गुणवत्तापूर्ण सेवा उपलब्ध करा सकता है. यह बदले में सेवा प्रदाताओं को ग्राहकों को बनाए रखने और अपनी बाज़ार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए निरंतर इनोवेशन करने के लिए मज़बूर करता है.
  • मॉड्यूलर डिज़ाइन: UPI आर्किटेक्चर पूरी तरह से मॉड्यूलर है. इसके आधार में NPCI है, जो बैंकों और भुगतान सेवा प्रदाताओं से और उन तक भुगतान संदेशों को भेजने में सक्षम बनाता है. इस प्रक्रिया की केंद्रीयता को देखते हुए, यह एक गैर-लाभकारी संगठन द्वारा संचालित होता है, जिसके पास इकोसिस्टम पर आंशिक तौर पर नियामक अधिकार होता है.  इंफ्रास्ट्रक्चर में बीच कि लेयर में मौजूद बैंक यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके सिस्टम यूपीआई प्रोटोकॉल के अनुरूप हों, ताकि उनकी देखरेख में ग्राहक को खातों से भुगतान किया जा सके. इन सबसे अलग पूरे  इंफ्रास्ट्रक्चर के एक किनारे पर मौजूद निजी संस्थाएं डिजिटल पेमेंट एप्लिकेशन विकसित करती हैं. ग्राहक भुगतान करने और प्राप्त करने के लिए इस एप्लीकेशन का इस्तेमाल करते हैं.
  • विशिष्टता का डिज़ाइन: UPI विशिष्टताओं का मुख्य डिज़ाइन iSPIRT द्वारा संचालित किया गया था. इसने सुनिश्चित किया कि किसी भी प्राइवेट सेक्टर की संस्था को अनुचित लाभ नहीं मिल पाए, क्योंकि उन्होंने इसकी विशिष्टताओं का निर्धारण किया था. इसके साथ ही, ऐसी डिजिटल प्रणाली के निर्माण के लिए आवश्यक विशेषज्ञता के बिना डिजिटल  इंफ्रास्ट्रक्चर का डिज़ाइन सरकारी संस्थाओं पर नहीं छोड़ा गया था.
  • नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए कांसेप्टकंसेप्ट का प्रमाण: जब UPI को पहली बार शुरू किया गया था, तब NPCI ने पहला भुगतान ऐप BHIM बनाया और वित्त पोषित किया. UPI पर डिजिटल भुगतान कैसे किया जा सकता है, यह प्रदर्शित करने के लिए यह ऐप अवधारणा का एक ज़रूरी प्रमाण था.  BHIM ऐप एक ऐसा वातावरण बनाने में सक्षम था, जहां अन्य निजी फिनटेक कंपनियों को अपने स्वयं के भुगतान ऐप बनाने के लिए नए नवेले डिजिटल भुगतान मार्केट में पर्याप्त क्षमता दिखाई दीं. इसने भारत में डिजिटल भुगतान क्रांति को आगे बढ़ाने का काम किया.

आज, BHIM ऐप का मार्केट में दबदबा रखने वाले Google Pay और PhonePe जैसे ऐप्स की तुलना में एक छोटा हिस्सा है. BHIM के उलट, ये अन्य संस्थाएं शेयरधारक लाभ को अधिकतम करने के लिए प्रेरित हैं. नतीजतन, वे यह सुनिश्चित करने के लिए लगातार इनोवेशन कर रही हैं कि उनके एप्लीकेशन्स की बाज़ार में हिस्सेदारी बढ़े. रिपोर्टों के मुताबिक़ इस प्रतिस्पर्धा से ना सिर्फ इनके ऐप्स की गुणवत्ता सुधारी है, बल्कि नई-नई सुविधाएं मिलने से ग्राहकों का अनुभव भी बेहतर हुआ है.

निष्कर्ष

परिभाषा के मुताबिक़ डीपीआई ऐसे होने चाहिए कि उनका उपयोग हर वर्ग, हर तबके के लोग समान रूप से कर सकें. डीपीआई अन्य डिजिटल  इंफ्रास्ट्रक्चर से अलग हैं. इन्हें बनाने वाली प्रौद्योगिकी कंपनियों ने इन्हें इस प्रकार बनाया है कि वे सभी को समान सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम हैं. फिर भी यह सुनिश्चित करने के लिए ध्यान रखा जाना चाहिए कि  इंफ्रास्ट्रक्चर का डिज़ाइन, कार्यान्वयन, वित्तपोषण और प्रबंधन इन परिणामों की दिशा में हो और इनके अनुरूप हो.

यह लेख एक फ्रेमवर्क का वर्णन करता है, जिसके भीतर इन सभी मुद्दों पर विचार किया जा सकता है. हालांकि यह लेख ना तो सभी प्रासंगिक मुद्दों की एक संपूर्ण एवं व्यापक अभिव्यक्ति है और ना ही यह सभी योग्य एवं उचित समाधानों को प्रस्तुत करता है. दरअसल, यह लेख मूलभूत मान्यताओं का एक ऐसा सेट प्रदान करता है, जिसका उपयोग डीपीआई के डिज़ाइन को तैयार करने के लिए किया जा सकता है.

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