आज जब पूरी दुनिया में ये चर्चा चल रही है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल न किया जाए, तो उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने हाल ही में राजधानी प्योंगयांग में संसद के दो दिनों के सत्र के दौरान परमाणु हथियारों के उत्पादन का महत्वपूर्ण ढंग से विस्तार करने की बात कही. इसके अलावा, उन्होंने अमेरिका के साथ ‘नए शीत युद्ध’ के तहत उसको चुनौती दे रहे देशों के गठबंधन में अपने देश की भूमिका को बढ़ाने की इच्छा भी जताई. यही नहीं, दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि उत्तर कोरिया, अपने विरोधियों को भड़काने के लिए कुछ रणनीतिक और सामरिक क़दम उठाने पर भी विचार कर रहा है. इन क़दमों में एक परमाणु परीक्षण करने की संभावना भी शामिल है. अपने यहां खाद्यान्न के भयंकर संकट, मानव अधिकारों के उल्लंघन, आर्थिक चुनौतियों और तमाम तरह के अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बाद भी उत्तर कोरिया के जासूसों का जाल और परमाणु हथियारों का ज़ख़ीरा लगातार बढ़ाते जाना एक जटिल पहेली की तरह है. एटमी हथियारों की अपनी क्षमताओं को बनाए रखने के साथ साथ उन्हें उन्नत बनाते जाना, उसकी दुनिया को धोखे में रखने की नीति के ज़बरदस्त रूप से कारगर होने का सबूत है. दुनिया कई मौक़ों पर बार बार, उत्तर कोरिया की एटमी महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने में नाकाम रही है. इससे परमाणु हथियार हासिल करने के लिए उत्तर कोरिया द्वारा अपनाई गई छल प्रपंच की नीति की सफलता उजागर होती है.
दुनिया कई मौक़ों पर बार बार, उत्तर कोरिया की एटमी महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने में नाकाम रही है. इससे परमाणु हथियार हासिल करने के लिए उत्तर कोरिया द्वारा अपनाई गई छल प्रपंच की नीति की सफलता उजागर होती है.
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर विपिन नारंग ने देशों द्वारा ख़ुद को परमाणु हथियारों से लैस करने के लिए अपनाई जाने वाली रणनीतियों को चार वर्गों में बांटा है- बचाव की रणनीति, तेज़ी से होड़ लगाना, छुपाकर हथियार बनाना और अन्य देशों के परमाणु हथियारों के सुरक्षा कवच का सहारा लेना. देशों द्वारा परमाणु हथियार हासिल करने के लिए जिन रणनीतियों का इस्तेमाल किया जाता है, उनकी जटिलताओं को समझने के लिए ये वर्गीकरण काफ़ी महत्वपूर्ण हैसियत रखता है. इस सैद्धांतिक रूप-रेखा के तहत, इस विश्लेषण में विपिन नारंग की थ्योरी का इस्तेमाल करते हुए उत्तर कोरिया द्वारा सामरिक स्तर पर परमाणु हथियारों का विकास करके उन्हें मज़बूती देने की कोशिशों की बारीक़ी से समीक्षा की गई है. विपिन नारंग की रूप-रेखा का प्रयोग करते हुए, इस अध्ययन में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के दायरे में उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रमों से जुड़े पेचीदा आयामों पर बेशक़ीमती रौशनी डालने का प्रयास किया गया है.
परमाणु हथियार हासिल करने को लेकर विपिन नारंग के सिद्धांत
विपिन नारंग के वर्गीकरण के मुताबिक़, ‘हेजिंग’ वो रणनीति है जब कोई देश परमाणु हथियार बनाने की तकनीक तो विकसित कर लेता है, मगर उनका उत्पादन करने को टाल देता है. वो देश एटमी हथियार बनाने का विकल्प तो खुला रखता है, लेकिन उनको बनाने का फ़ैसला बदलते सुरक्षा हालात के हिसाब से लेता है. मिसाल के तौर पर जापान के पास उन्नत परमाणु तकनीक तो है. लेकिन, वो परमाणु हथियार बनाने से गुरेज़ करता है. अगर सुरक्षा के हालात बिगड़ते हैं तो, जापान बड़ी तेज़ी से एटमी हथियार बना सकता है. ‘स्प्रिंटिंग’ वो रणनीति है जब कोई देश अपनी सुरक्षा पर ख़तरे को देखते हुए, तेज़ी से परमाणु हथियार बनाता है. हमने इसकी मिसाल पाकिस्तान के रूप में देखी है, जब उसने 1980 के दशक में, क्षेत्रीय सुरक्षा की चुनौतियों की वजह से तेज़ी से परमाणु हथियार विकसित किए थे. ‘हाइडिंग’ वो छुपकर चलने वाली रणनीति है, जब कोई देश चोरी-छुपे परमाणु हथियार विकसित करता है या अंतरराष्ट्रीय निगरानी, प्रतिबंधों या अन्य देशों द्वारा एहतियातन उठाए जाने वाले क़दमों से बचने के लिए उन्हें छुपाकर रखता है. अमेरिका के साथ परमाणु समझौते (JCPOA) से पहले के ईरान का परमाणु कार्यक्रम और इज़राइल की अपारदर्शी परमाणु नीति, दोनों ही इस रणनीति के उदाहरण हैं. आख़िर में ‘शेल्टर्ड परसूट’ वो रणनीति है, जब कोई देश अपने परमाणु हथियार विकसित किए बिना, अपने दुश्मनों को डराने के लिए अपने सहयोगी की परमाणु शक्ति का सहारा लेता है. यूरोप में नाटो देशों के सदस्य जैसे कि जर्मनी और इटली, इसी रणनीति की मदद लेते हैं और NATO के सुरक्षा ढांचे के तहत अमेरिका के परमाणु हथियारों के भरोसे रहते हैं.
अमेरिका के साथ परमाणु समझौते (JCPOA) से पहले के ईरान का परमाणु कार्यक्रम और इज़राइल की अपारदर्शी परमाणु नीति, दोनों ही इस रणनीति के उदाहरण हैं.
हालांकि, विपिन नारंग का विश्लेषण मुख्य रूप से उन रणनीतियों पर केंद्रित है, जिन्हें तमाम देश परमाणु हथियार हासिल करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. लेकिन, इस विश्लेषण में किसी देश के परमाणु शस्त्रीकरण के पूरे सफ़र को व्यापक रूप से समझने का अभाव दिखता है, जिससे उत्तर कोरिया की एटमी रणनीति आंशिक रूप से अनसुलझी रह जाती है.
परमाणु हथियारों से लैस होने के लिए कपट का सहारा
वैसे तो अन्य तत्व, जैसे कि स्वाभाविक मानवीय रुकावटें, और सूचना को लेकर अनअपेक्षित भ्रम से ग़लत धारणा बनाई जा सकती है. लेकिन, इस मक़सद को हासिल करने में धोखे में रखने की नीति एक ताक़तवर और प्रभावी तरीक़ा है. कपट का अंतिम लक्ष्य सिर्फ़ ग़लत धारणा बनाने देने से आगे जाता है; इसका मक़सद, अपने प्रति धारणाओं को तोड़-मरोड़कर और प्रतिद्वंदियों को हैरान करके अपने राष्ट्रीय लक्ष्य और रणनीतियों को आगे बढ़ाना है. इसीलिए, उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु हथियारों समेत तमाम तरीक़ों से दक्षिण कोरिया का ज़बरन अपने साथ विलय करने के अंतिम लक्ष्य ने उसे छल कपट का सहारा लेने के लिए मजबूर किया है, क्योंकि दुनिया को उसका ये लक्ष्य मंज़ूर नहीं है.
यही वजह है कि परमाणु हथियारों के विकास के अलग अलग चरणों के दौरान, उत्तर कोरिया ने अलग अलग रणनीतियां अपनाई हैं, जिससे वो दुनिया को ये यक़ीन दिला सके कि अगर अमेरिका उसके प्रति विरोधी नीतियां त्याग दे, तो उत्तर कोरिया भी अपने परमाणु कार्यक्रम को बंद कर देगा. उत्तर कोरिया की इस मांग ने एक सोचे समझे छल का काम किया है, जिससे उसको अपने हथियारों का विकास करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाए. उत्तर कोरिया ने अपनी असली नीयत पर ये दावा करते हुए भी पर्दा डाले रखा कि वो परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग करेगा, मगर वो परमाणु रिएक्टरों से बिजली बनाने की कोशिशों से बचता रहा. इसके बाद, जब उत्तर कोरिया ने परमाणु हथियार बना लिए, तो उसने आर्थिक फ़ायदों के बदले में इन हथियारों को नष्ट करने के लिए राज़ी होने का भी संकेत दिया था.
उत्तर कोरिया की बदलती रणनीतियां और सामरिक दांव-पेंच
उत्तर कोरिया की एटमी रणनीति, ज़रूरत के मुताबिक़ बदलाव की रही है. इसके लिए उसने छल प्रपंच से लेकर सामरिक दांव-पेंचों तक का सहारा लिया है. प्राथमिक रूप से उत्तर कोरिया के कपट का व्यापक लक्ष्य तो यही रहा है कि वो अतिरिक्त परमाणु हथियार बनाने और मिसाइलों की क्षमता इस हद तक बढ़ाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त हासिल कर सके, जिससे वो अमेरिका को अपने ख़िलाफ़ कोई सैन्य मुहिम छेड़ने से रोक सके. अमेरिका के एक या उससे ज़्यादा शहरों पर पलटवार में परमाणु हमला करने की क्षमता हासिल करके उत्तर कोरिया ने ख़ुद को किसी भी संभावित हमले से सुरक्षित करने की कोशिश की. इसीलिए, उत्तर कोरिया द्वारा सामरिक परमाणु हथियार विकसित करने में उसके कपट भरे अभियान काफ़ी उपयोगी साबित हुए. हालांकि, उत्तर कोरिया ने अपना मक़सद हासिल करने के अलग अलग चरणों के दौरान अलग अलग रणनीतियां अपनाईं.
उत्तर कोरिया ने अलग अलग रणनीतियां अपनाई हैं, जिससे वो दुनिया को ये यक़ीन दिला सके कि अगर अमेरिका उसके प्रति विरोधी नीतियां त्याग दे, तो उत्तर कोरिया भी अपने परमाणु कार्यक्रम को बंद कर देगा.
अपने परमाणु कार्यक्रम के शुरुआती दौर में उत्तर कोरिया ने ‘छुपकर चलने की रणनीति’ अपनाई. उसने अपनी कोशिशों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नज़रों से बचाए रखा. 1994 के छह देशों के बीच बातचीत की असफलता के बाद ‘सहमति की रूप-रेखा’ जैसे धोखे से भरे समझौतों ने उत्तर कोरिया को गुपचुप तरीक़े से अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखने में मदद की, जिसका नतीजा 2013 में उसके परमाणु हथियार बना लेने के रूप में सामने आया. इसके साथ साथ, उत्तर कोरिया के सामरिक विकास में चीन ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. चीन ने उसे अपने ‘परमाणु हथियारों के साये’ का सहारा दिया. चीन द्वारा कूटनीतिक समर्थन देने, छुपकर दी जाने वाली सहायता और उत्तर कोरिया की गतिविधियों को बर्दाश्त करने ने उसको अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचाया, जिससे उत्तर कोरिया की परमाणु हथियार बनाने की महत्वाकांक्षाओं को जीवनदान मिला. बाद में उत्तर कोरिया ने अमेरिका के साथ परमाणु कार्यक्रम बंद करने के लिए बातचीत की आड़ ‘रफ़्तार पकड़ने’ (Sprinting) की रणनीति को अपना लिया. उसकी इस रणनीति का मक़सद अपने ख़िलाफ़ फ़ौरी तौर पर किसी सैन्य अभियान को टालकर इस वक़्त का इस्तेमाल अपनी एटमी ताक़त को बढ़ाना था. बातचीत में शामिल होकर उत्तर कोरिया ने दुनिया का ध्यान अपने एटमी कार्यक्रम से हटा दिया और दुनिया को संकेत दिया कि वो अपने परमाणु हथियार नष्ट करने को तैयार है. जबकि बातचीत की आड़ में वो अपनी परमाणु शक्ति बढ़ाता रहा था. इन अलग अलग रणनीतियों पर अमल करने से उत्तर कोरिया को अपने एटमी मक़सद आगे बढ़ाने में काफ़ी मदद मिली. यही वजह है कि उत्तर कोरिया, विपिन नारंग की सैद्धांतिक रूप-रेखा के खांचे में फिट नहीं बैठता.
उल्लेखनीय है कि उत्तर कोरिया की परमाणु रणनीति एक जटिल वैश्विक माहौल में काम करती है और इसका असल व्यापक वैश्विक सुरक्षा पर भी पड़ता है. उसके परमाणु हथियार बना लेने से इलाक़े में तनाव बढ़ा है, जासूसी एजेंसियां धोखे में रहती हैं और लगातार मिसाइल परीक्षण करके उत्तर कोरिया ने परमाणु अप्रसार के नियमों को भी चुनौती दी है, जिससे कोरियाई प्रायद्वीप विस्फोटक क्षेत्र बन गया है, जिसने उत्तर पूर्वी एशिया को अस्थिर कर दिया है. यही नहीं, अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच दुश्मनी से ये ख़तरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलने का डर पैदा हो गया है.
नीतिगत उलझाव
उत्तर कोरिया का ख़तरा, परमाणु अप्रसार की चुनौतियों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और कूटनीति की ज़रूरत को रेखांकित करता है, क्योंकि, इस व्यापक समीक्षा से उत्तर कोरिया की हरकतों और वैश्विक भू-राजनीतिक मंज़र के बीच का जटिल संबंध उजागर होता है. चूंकि, उत्तर कोरिया की परमाणु क्षमता से क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए अहम चुनौतियां खड़ी होती हैं. ऐसे में अमेरिका और उसके सहयोगियों को चाहिए कि वो यूरोप की तरह उत्तरी पूर्वी एशिया में भी धीरे धीरे परमाणु शक्ति को साझा करने की व्यवस्था लागू करने की संभावनाएं टटोलें. अप्रैल 2023 में वाशिंगटन घोषणा और अगस्त 2023 में कैंप डेविड शिखर सम्मेलन इस दिशा में एक सकारात्मक क़दम का संकेत देते हैं. लेकिन, इनके अलावा इस क्षेत्र विशेष की एटमी चुनौतियों से निपटने के लिए एक परमाणु योजना समूह बनाने जैसे उपाय भी किए जा सकते हैं. अधिक भयंकर स्थिति में अमेरिका अपनी कुछ परमाणु मिसाइलें गुआम या फिर दक्षिण कोरिया में तैनात करके उन्हें उसी तरह अपने दोस्त देशों के साथ साझा कर सकता है, जैसा वो इस समय यूरोप में करता है.
उत्तर कोरिया की परमाणु रणनीति एक जटिल वैश्विक माहौल में काम करती है और इसका असल व्यापक वैश्विक सुरक्षा पर भी पड़ता है. उसके परमाणु हथियार बना लेने से इलाक़े में तनाव बढ़ा है
इसके साथ साथ, इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार विकसित करने में चीन से मिली मदद ने भी अहम भूमिका अदा की है और एक परमाणु शक्ति के तौर पर भी उत्तर कोरिया, चीन पर बहुत अधिक निर्भर है. इसीलिए, धीरे धीरे क़दम उठाने से चीन और रूस पर भी इस बात का दबाव पड़ेगा कि वो उत्तर कोरिया को अपने परमाणु हथियार नष्ट करने के लिए राज़ी करने में सहयोग करें. क्योंकि, चीन और रूस भी उत्तरी पूर्वी एशिया में परमाणु शक्ति साझा करने की एक नई व्यवस्था उभरना पसंद नहीं करेंगे. इसके अतिरिक्त, दक्षिणी कोरिया को भी हिंद प्रशांत के अन्य देशों के साथ बहुपक्षीय और द्विपक्षीय समझौते करके, ख़ुद को एक भरोसेमंद साझीदार के रूप में स्थापित करना चाहिए. क्वाड में शामिल होकर दक्षिणी कोरिया, नैटो और अमेरिका के साथ ख़ुफ़िया सहयोग को मज़बूत कर सकता है. इन सघन प्रयासों से क्षेत्रीय स्थिरता क़ायम करने में मदद मिलेगी और शायद उत्तर कोरिया के साथ भी परमाणु हथियार नष्ट करने की बातचीत का उचित माहौल बनेगा. परमाणु हथियार नष्ट करने की बातचीत, अगर नाकाम भी हो जाती है तो इन पहलों से दक्षिणी कोरिया को सुरक्षा मिलेगी और कोरियाई प्रायद्वीप के ऊपर मंडराने वाला ख़तरा कम हो जाएगा.
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