तुर्किए के चुनाव में मतदान के दिन तक लोगों की राय बंटी हुई थी और नतीजे बताते हैं कि तुर्किए राजनीतिक तौर पर कैसा महसूस कर रहा था. पहली बार दो चरणों में हुआ चुनाव लोगों से जुड़ी अलग–अलग चिंताओं और शिकायतों की पृष्ठभूमि में हुआ. ज़्यादातर लोगों को लग रहा था कि विपक्ष के उम्मीदवार कमाल कलचदारलू तुर्किए की सत्ता पर रेचेप तैयब अर्दोआन की पकड़ को ख़त्म करने के लिए सही समय पर सही आदमी हैं. लेकिन जैसे–जैसे दूसरे दौर के नतीजे की घड़ी क़रीब आई, वैसे–वैसे अर्दोआन और उनकी जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी की सत्ता में वापसी साफ़ होती गई.
इन चुनावों के कुछ नतीजे हाल के दिनों में वैश्विक राजनीतिक संकेतों से लिए गए हैं. ‘मज़बूत नेता’ की राजनीति की सफलता पूरे महाद्वीप में जारी है और इसका मुक़ाबला करने के लिए एक समान उदारवादी मतदाताओं के समूह का बुलबुला फूट गया है.
इन चुनावों के कुछ नतीजे हाल के दिनों में वैश्विक राजनीतिक संकेतों से लिए गए हैं. ‘मज़बूत नेता’ की राजनीति की सफलता पूरे महाद्वीप में जारी है और इसका मुक़ाबला करने के लिए एक समान उदारवादी मतदाताओं के समूह का बुलबुला फूट गया है.
2023 के चुनाव क़ुदरती त्रासदी, लगातार आर्थिक संकट और तुर्किए एवं उसके आस–पास भू–राजनीतिक चुनौतियों के बीच में कराए गए. इन पैमानों के आधार पर कलचदारलू, जिन्हें कुछ लोगों ने ‘तुर्किए के गांधी’ या ‘गांधी कमाल’ का नाम दिया है, के जीतने की बात कही जा रही थी. माना जा रहा था कि फरवरी में आए भूकंप, जिसने तुर्किए और पड़ोस के देश सीरिया को तबाह कर दिया था, की वजह से अर्दोआन के फिर से चुनाव जीतने के अभियान को गहरा धक्का लगेगा लेकिन दो चरणों के चुनाव ने उन्हें राष्ट्रवाद और धर्म की मनगढ़ंत कहानी का इस्तेमाल करके फिनिशिंग लाइन को पार करने का पर्याप्त मौक़ा मुहैया करा दिया. उन्होंने ये अति राष्ट्रवादी लोगों जैसे कि सिनान ओगान की मदद से किया जो राष्ट्रपति चुनाव के पहले दौर में तीसरे नंबर पर रहे और इस तरह किंग मेकर की भूमिका में आ गए.
तुर्किए चुनाव का परिणाम
इन चुनावों के कुछ नतीजे हाल के दिनों में वैश्विक राजनीतिक संकेतों से लिए गए हैं. ‘मज़बूत नेता’ की राजनीति की सफलता पूरे महाद्वीप में जारी है और इसका मुक़ाबला करने के लिए एक समान उदारवादी मतदाताओं के समूह का बुलबुला फूट गया है. ये न सिर्फ़ तुर्किए में बल्कि दूसरे देशों में भी हुआ है. उदाहरण के तौर पर 2016 में अमेरिका में हिलेरी क्लिंटन और बर्नी सैंडर्स के बीच मतदाताओं का आधार बंट गया. इसका मुक़ाबला करने के लिए कलचदारलू ने आख़िरी समय में इमिग्रेशन विरोधी रवैया अख्तियार करने की भी कोशिश की. इसके नतीजतन उन्हें तुर्किए की अति दक्षिणपंथी विक्ट्री पार्टी और उसके नेता उमित ओज़्डाग का समर्थन भी मिला. लेकिन अंत में विचारधारा उस वास्तविकता का एक उप–उत्पाद (बाइप्रोडक्ट) बन गई जो संख्या बल सुरक्षित करने के लिए ज़रूरी है. कुर्दिश आबादी, जिसके इर्द–गिर्द ज़्यादातर ‘नाराज़गी की राजनीति’ जारी रही, ने कथित तौर पर मुक़ाबले में ‘धर्मनिरपेक्ष’ कलचदारलू के लिए मज़बूती से वोट नहीं किया क्योंकि उन्होंने अर्दोआन को मात देने की आख़िरी कोशिश के तहत दक्षिणपंथियों से हाथ मिला लिया था.
अर्दोआन की वापसी का जश्न उसी दिन मनाया गया जिस दिन कॉन्स्टेंटिनोपल– मौजूदा समय का इस्तांबुल शहर– का पतन हुआ था यानी 29 मई. 29 मई 1453 को ओटोमन साम्राज्य ने बाइज़ेंटाइन साम्राज्य की राजधानी पर कब्ज़ा किया था. इस तरह की सोच का आम तौर पर अर्दोआन के द्वारा ज़िक्र और इस्तेमाल किया गया. अर्दोआन के सबसे वरिष्ठ सहयोगियों में से एक इब्राहिम कलीन ने नतीजों के कुछ ही घंटों के बाद जीत के इस पहलू के बारे में ट्वीट किया. अर्दोआन की राजनीति को अक्सर ‘नव ऑटोमन’ की तरह बताया जाता है (इस बात का विरोध भी किया जाता है) यानी वो आधुनिक समय में इस्लाम की तरफ़ झुकी विचारधारा का इस्तेमाल करके अतीत के साम्राज्य के गौरव को बहाल करने के मक़सद से काम कर रहे हैं. 2020 में अर्दोआन ने कोर्ट के एक फ़ैसले के बाद मशहूर हागिया सोफिया को म्यूजियम की जगह मस्जिद के रूप में घोषित कर दिया. चुनाव की पूर्व संध्या पर अर्दोआन ने इस मस्जिद में नमाज़ का नेतृत्व किया. ये उनके रूढ़िवादी लेकिन तुनकमिज़ाज समर्थकों को अपने पीछे खड़ा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक क्षण था.
2016 में सैन्य बग़ावत की कोशिश के बाद दुनिया के साथ तुर्किए के रिश्ते ज़्यादा तनावपूर्ण हो गए क्योंकि अर्दोआन को लगा कि देश के भीतर और बाहर से उनकी सत्ता को सीधी चुनौती मिल रही है, ख़ास तौर पर उन लोगों से जो उनके वैचारिक विरोधी फतुल्लाह गुलेन के साथ जुड़े हुए हैं. मौलवी फतुल्लाह गुलेन 1999 से अमेरिका में निर्वासित जीवन जी रहे हैं. लेकिन पश्चिमी देशों के नज़रिए से तुर्किए, जो नेटो का एक महत्वपूर्ण सहयोगी है, की परिकल्पना आम तौर पर एक ‘आदर्श और आधुनिक मुस्लिम देश’ के रूप में की गई है जिसका अपने इर्द–गिर्द मिडिल ईस्ट में एक वैचारिक असर हो सकता है. बोस्फोरस स्ट्रेट को तुर्किए को यूरोप और एशिया के बीच बांटने वाले के तौर पर देखा जाता है, ये ऐसे विचारों के लिए दरवाज़े के तौर पर काम करता है.
पश्चिमी देशों की तरफ़ अपनी नीति से आगे अर्दोआन से उम्मीद की जाती है कि वो तुर्किए की पहले की विदेश नीति के रास्ते पर चलते रहेंगे. ये विदेश नीति सहयोगियों को लेकर बाध्यता से भी पहले तुर्किए के राष्ट्रीय हितों को हासिल करने पर आधारित है.
हालांकि अर्दोआन के शासन के दौरान पश्चिमी देशों के साथ तुर्किए के रिश्ते कभी भी बिना शर्त के नहीं रहे हैं. ये स्थिति तब है जब 1952 में नेटो का सदस्य बनने के साथ तुर्किए इस संगठन का पहला मुस्लिम बहुल सदस्य बना था. 2009 में नेटो में शामिल होने वाला देश अल्बानिया दूसरा मुस्लिम बहुल सदस्य है. हाल के समय में पश्चिमी देशों के साथ तनाव बढ़ने के साथ तुर्किए ने आर्थिक और सामरिक कारणों से रूस जैसे देशों के साथ बेहतर संबंध रखने की शुरुआत की. साथ ही तुर्किए ने क्षेत्रीय इस्लामिक ताक़तों जैसे कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ तनावपूर्ण संबंधों में सुधार किया है. यूक्रेन संघर्ष के दौरान तुर्किए ने ख़ुद को बचाने के लिए अपने दांव को और भी बेहतर कर लिया. इस तरह तुर्किए ने ख़ुद को अमेरिका और रूस– दोनों के लिए उपयोगी सहयोगी बना लिया. 2023 के चुनाव अभियान के दौरान कलचदारलू ने रूस पर अर्दोआन के पक्ष में चुनाव के नतीजों को प्रभावित करने के लिए हस्तक्षेप की कोशिश का भी आरोप लगाया. पश्चिमी देशों की तरफ़ अपनी नीति से आगे अर्दोआन से उम्मीद की जाती है कि वो तुर्किए की पहले की विदेश नीति के रास्ते पर चलते रहेंगे. ये विदेश नीति सहयोगियों को लेकर बाध्यता से भी पहले तुर्किए के राष्ट्रीय हितों को हासिल करने पर आधारित है.
निष्कर्ष
अंत में, इस बात को लेकर सवाल थे कि क्या कलचदारलू की जीत से कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के रुख़ के लिए तुर्किए का समर्थन नरम हो गया होता, ख़ास तौर पर तुर्किए में आए भूकंप के बाद भारत ने जिस तरह से पूरी क्षमता के साथ सार्वजनिक तौर पर मदद की. अगर सत्ता में बदलाव होता तो वास्तव में इस तरह के बदलाव का कोई संकेत नहीं था. कश्मीर का मुद्दा क्षेत्रीय और घरेलू स्तर पर ‘पैन–इस्लामिक’ सोच के मक़सद को पूरा करता है, ख़ास तौर पर मतदाताओं के बीच, जिसका कलचदारलू भी अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.