Author : Abhijit Singh

Published on Jun 07, 2023 Updated 0 Hours ago
ऑस्ट्रेलिया और भारत की समुद्री साझेदारी को नई ऊंचाई प्रदान करना

यह लेख भारत-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी: रक्षा आयाम श्रृंखला का हिस्सा है.


हाल-फिलहाल में ऑस्ट्रेलिया और भारत के संबंधों में मज़बूती आई है. जून 2020 से व्यापक रणनीतिक भागीदारों के रूप में नई दिल्ली और कैनबरा ने ख़ास तौर पर साझेदारी के प्रमुख स्तंभ के रूप में समुद्री क्षेत्र में द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को स्थापित किया है. लेकिन भारत को अब विभिन्न प्रकार की समुद्री कार्रवाइयों और गतिविधियों में ज़्यादा एवं निरंतर जुड़ाव की तरफ बढ़ने की आवश्यकता है

पिछले महीने, ऑस्ट्रेलिया डिफेंस स्ट्रेटजी रिव्यू (DSR) ने भारत के साथ संबंधों के विस्तार का आह्वान किया था. इस साल की शुरुआत में सामने आई कैनबरा की घोषणा के मुताबिक़ आगामी मालाबार नौसैनिक अभ्यास पहली बार ऑस्ट्रेलिया से दूर आयोजित किया जाएगा. ऑस्ट्रेलिया का यह ऐलान उसके क्वाड भागीदार देशों के साथ क़रीब आने का संकेत देता है. इंडियन नेवी इस नौसैनिक अभ्यास के लिए युद्धपोत और लंबी दूरी के समुद्री गश्ती विमान P-8 I भेजेगी.

कई लोगों का यह कहना है कि ऑस्ट्रेलिया के समुद्र में मालाबार नौसैनिक अभ्यास का आयोजन एक स्वाभाविक सी प्रगति है. ऐसे अभ्यासों को अक्टूबर 2020 के बाद से भारत और जापान के तट पर आयोजित किया चुका है, तब कई वर्षों बाद ऑस्ट्रेलिया इन अभ्यासों में दोबारा शामिल हुआ था. भारतीय पर्यवेक्षकों के अनुसार यह भारत के साथ एक अधिक सक्रिय समुद्री भागीदार बनने के लिए काफ़ी हद तक कैनबरा के एक दृढ़ संकल्प का नतीज़ा है.

नई दिल्ली के लिए यह बेहद उत्साहजनक है कि रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नेवी (RAN) हिंद महासागर में बड़े पैमाने पर अपनी नौसैनिक दस्तों को भेज रही है. हालांकि देखा जाए तो इस इलाक़े में RAN की संलग्नता पूर्वोत्तर भाग तक ही सीमित लगती है, लेकिन मार्च में AUKUS का ऐलान और डिफेंस स्ट्रेटजी रिव्यू ने ऑस्ट्रेलिया की योजनाओं को बदलने का काम किया है. जहां तक भारत की बात है, तो यह चीन को रोकने के लिए एंग्लो अलांयस की ओर से एक बड़े इरादे को ज़ाहिर करता.

भारत-आस्ट्रेलिया सैन्य सहयोग

मार्च के महीने में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ की भारत यात्रा से भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच और नज़दीकी के संकेत मिलते हैं. भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर ऑस्ट्रेलियाई पीएम अल्बनीज़ ने भारत का उल्लेख ऑस्ट्रेलिया के लिए "शीर्ष स्तर के सुरक्षा भागीदार" के रूप में किया, जो कि नई दिल्ली के साथ गहरे रक्षा संबंधों की उनकी इच्छा को स्पष्ट करता है.

इसके बावज़ूद, भारत-ऑस्ट्रेलिया सैन्य सहयोग का जो मौज़ूदा ढांचा है, वो उतना मज़बूत नहीं है. हालांकि हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच नौसैनिक ऑपरेशन्स में सुधार हुआ है, इसके बाद भी भारतीय नौसेना और रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी के बीच सहयोग अभी तक एक महत्त्वपूर्ण सीमा को पार नहीं कर पाया है. AUSINDEX द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास, पिच-ब्लैक एयर कॉम्बैट अभ्यास और ऑस्ट्रा-हिंद इन्फैंट्री अभ्यास समेत दोनों देशों के बीच कई तरह की संलग्नताओं के बावज़ूद, भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई सेनाओं ने अभी तक उन तरीक़ों से पारस्परिक सहयोग नहीं किया है, जो दोनों देशों को एक समान रूप से प्रभावित करने वाले क्षेत्रों में चीन के विस्तारवाद को विफल कर सके.

एक बात यह भी है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया अपने वर्ष 2020 के लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट को लेकर और भी बहुत कुछ कर सकते हैं. ज़ाहिर है कि यह समझौता एक दूसरे के सैन्य अड्डों पर युद्धपोतों एवं सैन्य विमानों में ईंधन भरने की सुविधा के लिए है. देखा जाए तो इस समझौते का बहुत कम इस्तेमाल किया गया है. जबकि भारतीय नौसेना ने पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के डार्विन में एक स्टील्थ फ्रिगेट यानी विशेष युद्धपोत, जिसे दूसरे देशों की नौसेना के युद्धपोतों से छुपाया जाता है और एक समुद्री गश्ती विमान तैनात किया था. वहीं रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फोर्स (RAAF) ने पारस्परिक तैनाती के अंतर्गत गोवा में एक P-8A एयरक्राफ्ट भेजा था. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय नौसैनिक दौरे बहुत कम हुए हैं, इसलिए यह दावा नहीं किया जा सकता है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया द्वारा लॉजिस्टिक सपोर्ट समझौते का बेहतर तरीक़े से उपयोग किया जा रहा है.

इस बीच, ऑस्ट्रेलिया की पड़ोसियों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने की नीति, जो कि स्पष्ट रूप से साउथ पैसिफिक आईलैंड के देशों को लक्षित करती है और उसकी सर्वोच्च विदेश नीति प्राथमिकताओं में से एक है, की वजह से कुछ हद तक ऑस्ट्रेलिया ने हिंद महासागर की तरफ अपना ध्यान केंद्रित किया है. जबकि ऑस्ट्रेलियाई नीति निर्माता पूर्वोत्तर हिंद महासागर में भारत के साथ गहरे सहयोग के महत्व को पहचानते हैं और DSR में भी इस तथ्य पर ज़ोर दिया गया है. उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में इस पारस्परिक ज़िम्मेदारी का बंटवारा ठोस और वास्तविक तरीक़ों से नहीं हुआ है.

दोनों देशों के बीच सहयोग का दूसरा क्षेत्र सूचना साझा करना है. भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक व्हाइट शिपिंग एग्रीमेंट है और एक ऑस्ट्रेलियाई संपर्क अधिकारी को हिंद महासागर क्षेत्र के लिए भारत के इंटरनेशनल फ्यूज़न सेंटर में तैनात किया गया है. लेकिन इस क्षेत्र को लेकर और ज़्यादा गोपनीय एवं संवेदनशील जानकारी को साझा करने की ज़रूरत है. अतीत में, नई दिल्ली द्वारा कैनबरा के साथ संवेदनशील जानकारी साझा करने में सावधानी बरती जाती थी, क्योंकि भारत समझता था कि ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी गठबंधन का हिस्सा था. इस वजह से भारत के राजनीतिक गलियारों और सरकारी महकमों द्वारा काफ़ी एहतियात बरती जाती थी. भारतीय नेतृत्व को तब यह लगता था कि फाइव आईज देशों यानी अमेरिका, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे जानबूझकर या अनजाने में भारत द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी का उपयोग अपने हितों के लिए ग़लत तरीक़े से कर सकते हैं.

हालांकि, अब यह धारणा बदल गई है. हाल में जो घटनाएं हुई हैं, उनसे यह साफ पता चलता है कि चीन का मुक़ाबला करने के लिए नई दिल्ली AUKUS  यानी ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस की योजनाओं का समर्थन करने को तैयार है. ऐसा लगता है कि भारत AUKUS के सदस्यों के साथ और अधिक नज़दीकी के साथ काम करना चाहता है, विशेष रूप से उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में. अगर AUKUS से संबंधित प्रौद्योगिकी साझेदारी में शामिल होने के लिए कहा जाए, तो नई दिल्ली ग्रे और डार्क शिपिंग पर अधिक जानकारी साझा करने के लिए तैयार हो सकती है. यह एक आपसी आदान-प्रदान के समझौते की तरह होगा, या फिर ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंधों के एवज में अपनी तरफ से अधिक देने की भारत की वास्तविक इच्छा होगी, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है.

प्रौद्योगिकी-साझाकरण समझौते में भागीदार बनने के लिए भारत को आमंत्रित करने से निश्चित रूप से नई दिल्ली को कैनबरा के साथ सहयोग बढ़ाने के बारे में लीक से हटकर कुछ सोचने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. भारतीय नीति निर्माता बेहतर प्रभाव के लिए भारत-इंडोनेशिया-ऑस्ट्रेलिया ट्राई लेटरल जैसे लघु पक्षीय समूहों का उपयोग करने पर विचार कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर पूर्वी हिंद महासागर में संवेदनशील चोकपॉइंट्स के क़रीब में त्रिपक्षीय संयुक्त नौसैनिक अभ्यास का प्रस्ताव.

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच संभावित सहयोग का एक अन्य क्षेत्र अंडरवाटर डोमेन जागरूकता है. भारत की मुख्य चिंता अपने आसपास के समुद्र में चीनी पनडुब्बियों की मौज़ूदगी है. यदि ऑस्ट्रेलिया भारतीय P-8 I के समन्वय में अपने P-8 A समुद्री निगरानी विमान को तैनात करता है, तो भारतीय नौसेना को हिंद महासागर में पानी के नीचे के ख़तरों की सटीक जानकारी मिल सकेगी. इस उद्देश्य के लिए भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एवं ऑस्ट्रेलिया के डार्विन फ्रेमंटल में स्थित सैन्य अड्डों का बेहतर तरीक़े से इस्तेमाल किए जाने की ज़रूरत है. DSR के माध्यम से कोकोस (कीलिंग) द्वीप में मौजूद सैन्य अड्डों को अपग्रेड करने का वादा किया गया है, जहां सुविधाओं का पहले से ही आधुनिकीकरण किया जा रहा है. इससे भारतीय P-8 I संचालन को लॉजिस्टिक्स सहायता के लिए एक अतिरिक्त ठिकाना मिल सकता है. यहां तक कि कभी-कभार भारतीय समुद्री गश्ती विमान में ईंधन भरने से भी पूर्वी हिंद महासागर में बेहतर निगरानी ऑपरेशन्स में मदद मिलेगी.

आगे की राह

यह समुद्री क्षेत्र में ज़्यादा गतिशील सहयोग की ज़रूरत से किसी भी लिहाज़ से अलग नहीं है. ऐसे में ज़रूरत इसकी भी है कि समुद्री साझेदारी के क्षेत्र में भारत और ऑस्ट्रेलिया को अपने पूर्व नियोजित अभ्यासों एवं छिटपुट संलग्नता से परे जाकर अपने जुड़ाव के स्तर को बढ़ाना चाहिए. दोनों देशों के बीच मैरीटाइम लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट, अब तक बगैर किसी अड़चन के बेहतर ढंग से लागू किया गया है और आगे इसके ज़रिए लॉजिस्टिक्स सहायता नियमित तौर पर होनी चाहिए, ताकि मिलिट्री, नौसेना और वायु सेना यानी तीनों तरह के सैन्य अभ्यास की केवल एक-दूसरे के ठिकानों पर, बल्कि इनके संयुक्त ऑपरेशन की भी सुविधा मिल सके.

इसके अतिरिक्त, भारत और ऑस्ट्रेलिया पारस्परिक ऑपरेशन्स में सुधार के लिए एक साथ मिलकर और भी बहुत कुछ कर सकते हैं. दोनों पक्षों को यह स्वीकार करना चाहिए कि समुद्र में कभी-कभी होने वाले अभ्यास प्रगति के भ्रम से ज़्यादा और कुछ भी हासिल नहीं करते हैं. यह अभ्यास नौसेनाओं एवं तट रक्षकों (भारतीय तट रक्षक और ऑस्ट्रेलियाई बॉर्डर फोर्स) के बीच एक उच्च-स्तरीय एवं नियमित तौर पर होने वाला संपर्क है, जो दोनों देशों द्वारा समुद्र में सामना की जाने वाली चुनौतियों का स्थाई और ठोस जवाब देने में सक्षम होगा.


यह लेख ऑस्ट्रेलियाई रक्षा विभाग के समर्थन से चलाए गए ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टीट्यूट के रक्षा कार्यक्रम के एक हिस्से के तौर पर लिखा गया था. इस लेख में व्यक्त सभी विचार केवल लेखक के हैं.


अभिजीत सिंह ऑबज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में मैरीटाइम पॉलिसी इनीशिएटिव के प्रमुख हैं.

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