पेट्रोलियम राजस्व को बदलने के दूसरे विकल्पों पर उतना ध्यान नहीं दिया गया है जितना कि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के प्रचार प्रसार को बढ़ावा मिला है.
अगर लो कार्बन एनर्जी स्रोतों में बदलाव की गति को मीडिया कवरेज के संदर्भ में मापा जाए तोइलेक्ट्रिक मोबिलिटीस्पष्ट रूप से पहले स्थान पर होगी. हर दिन, सभी मीडिया प्लेटफॉर्म पर एनर्जी सेक्टर से जुड़ी ख़बरें इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) कीबिक्री में बढ़ोतरी के आंकड़ोंपर हावी रहती हैं, ईवी वैल्यू चेन के हर एक सेगमेंट मेंनए वाहनोंकी लंबी फेहरिस्त की जानकारी हो या फिर भारत के भीतर और बाहर केपारंपरिक वाहन निर्माताओंकी योजनाओं की चर्चा हो, प्रमुखता से ऐसी ख़बरें ही नज़र आती हैं. भारतीय ईवी सेक्टर, देश भर मेंचार्जिंग स्टेशनस्थापित करने वाली कंपनियों की सूची और सबसे महत्वपूर्ण,केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से नीतिगत घोषणाएंजो सब्सिडी, टैक्स ब्रेक और अन्य प्रोत्साहनों के माध्यम से ईवी वाहनों को अपनाने की वकालत करती हैं. इससे जो संदेश दिया जा रहा है वह यह है कि एक बार चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता, ईवी अपनाने वालों में वाहनों की रेंज को लेकर चिंता और ईवी वाहनों की शुरुआती उच्च क़ीमत जैसे मुद्दों का निपटारा कर लिया जाएगा तब भारत में ईवी वाहनों को अपनाने मेंज़बर्दस्त तेजीआएगी.
भारत में इलेक्ट्रिक दो और तिपहिया वाहनों की बिक्री साल 2030 तक कुल ईवी वाहनों की बिक्री का क़रीब 50 और 70 प्रतिशत तक होने की उम्मीद है. ईवाय और इंडस लॉ के साथ साझेदारी में इंडियन प्राइवेट इक्विटी एंड वेंचर कैपिटल एसोसिएशन (आईवीसीए) की एक रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2027 तक ईवी इंडस्ट्री 90 लाख यूनिट प्रति वर्ष के आंकड़े को पार कर सकती है.
डेलॉयट टौच तोहमात्सु के अनुसार, भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्रीवित्त वर्ष 25 में बढ़कर 1,644,000 इकाईतक पहुंचने और 2030 तक 15,331,000 इकाई तक जाने की संभावना है. ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एसीएमए) और मैकिन्से द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत मेंइलेक्ट्रिकदो और तिपहिया वाहनों की बिक्री साल 2030 तक कुल ईवी वाहनों की बिक्री का क़रीब50 और 70 प्रतिशततक होने की उम्मीद है. ईवाय और इंडस लॉ के साथ साझेदारी में इंडियन प्राइवेट इक्विटी एंड वेंचर कैपिटल एसोसिएशन (आईवीसीए) की एक रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2027 तक ईवी इंडस्ट्री 90 लाख यूनिट प्रति वर्ष के आंकड़े को पार कर सकती है.काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर(सीईईडब्ल्यू) ने उम्मीद जताई है कि ईवी यात्री वाहनों में 2030 तक भारत में नए वाहनों की बिक्री का 30 प्रतिशत और 2050 में 75 प्रतिशत शामिल हो सकता है.नीति आयोगने भविष्यवाणी की है कि देश में इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की बिक्री 2021 में 0.23 मिलियन से 2031 तक 22.01 मिलियन तक बढ़ सकती है. नीति आयोग और टेक्नोलॉजी इनफॉर्मेशन, फोरकास्टिंग एंड असेसमेंट काउंसिल (टीआईएफएसी) कीसाझा रिपोर्टमें साल 2026-27 तक भारतीय बाज़ार में इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के 100 प्रतिशत हो जाने का बेहद आशावादी अनुमान लगाया गया है.
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के वीएएचएएन (वाहन) डैशबोर्ड के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले वर्ष में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री मेंसालाना आधार पर 330 प्रतिशतकी वृद्धि दर्ज़ की गई. पेट्रोल और डीजल आधारित वाहनों की संख्या 2018-19 में26 मिलियन वाहनोंकी ब्रिकी से से घटकर2021-22 में 17.5 मिलियनहो गई और इसी दौरान इलेक्ट्रिक वाहनों के पंजीकरण में 130,000 से 230,000 की वृद्धि को इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति लोगों की बढ़ती प्राथमिकता का आधार बताया गया. हालांकि यह देखते हुए कि 2021-22 में सभी वाहन पंजीकरणों में से 70 प्रतिशत से अधिक दोपहिया वाहनों के लिए किए गए थे और ईवी की श्रेणी के भीतर95 प्रतिशतसे अधिक वाहन दो और तीन पहिया वाहनों के लिए पंजीकृत किए गए थे, ऐसे में इस बदलाव को सही नीतियों द्वारा और ग्राहकों की प्राथमिकता में कमी लाकर और अधिक बढ़ाया जा सकता है. एक प्रमुख मुद्दा जो ईवी वाहनों को अपनाने को लेकर आशावादी माहौल में नहीं नज़र आता है वह यह है कि जब इलेक्ट्रिक वाहनों की मोबिलिटी बढ़ेगी तब राज्य और केंद्र सरकारों के लिए पेट्रोलियम टैक्स रेवेन्यू में नुकसान की भरपाई कैसे की जा सकेगी.
पेट्रोलियम टैक्स से राजस्व
सितंबर 2022 में, केंद्रीय करों (मुख्य रूप से उत्पाद शुल्क) का हिस्सा20 प्रतिशत और राज्य करों(मूल्य वर्धित कर या वैट) कापेट्रोल (दिल्ली में) के खुदरा मूल्य का 16 प्रतिशतहिस्सा था. डीजल के लिए केंद्रीय कर लगभग18 प्रतिशत और राज्य करखुदरा मूल्य का लगभग15 प्रतिशतहै. पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य से उत्पाद शुल्क संग्रह केंद्रीय खजाने में सबसे ज्यादा योगदान देता है और पेट्रोलियम क्षेत्र से कुल योगदान में भी इसका हिस्सा बड़ा है. यह योगदान 2014 से लगातार बढ़ रहा है. साल 2014-15 में उत्पाद शुल्क संग्रह नेराजस्व का 57.5 प्रतिशतकेंद्रीय राजकोष में पेट्रोलियम क्षेत्र द्वारा योगदान दिया था. वर्ष 2021-22 में केंद्रीय खजाने में पेट्रोलियम क्षेत्र द्वारा योगदान दिए गए कुल राजस्व मेंउत्पाद शुल्क की हिस्सेदारी 73.7 प्रतिशतथी. इसी तरह, वैट कलेक्शन की राज्य के खजाने में सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी थी जो पेट्रोलियम क्षेत्र के योगदान की बदौलत था. साल 2014-15 में राज्य खजाने में पेट्रोलियम क्षेत्र के कुल योगदान का85 फीसदी हिस्सा वैटसे प्राप्त किया गया था. 2021-22 में राज्य के खजाने में पेट्रोलियम क्षेत्र के कुल योगदान में वैट का हिस्सा90 प्रतिशतथा.
केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किए गए पेट्रोलियम टैक्स, शुल्क और अन्य लेवी 2013-14 में290 प्रतिशतबढ़ा जो लगभग1259 बिलियन रूपएसे बढ़कर2021-22 में 4923 बिलियन रूपए हो गए हैं और केंद्र सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियों में इसकी हिस्सेदारी15 प्रतिशत से बढ़कर 27 प्रतिशतहो गई है. राज्य सरकार द्वारा एकत्रित पेट्रोलियम कर और शुल्क2013-14 में लगभग 1524 बिलियन रुपयेसे बढ़कर2021-22 में लगभग 2821 बिलियन रुपयेहो चुकी है. हालांकि, राज्य सरकारों की कुल राजस्व प्राप्तियों में पेट्रोलियम करों का हिस्सा इसी अवधि में10 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशतहो गया है. जब सड़क परिवहन पूरी तरह से विद्युतीकृत हो जाएगा, तो संघीय और राज्य सरकारें पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन और खपत से होने वाली ऐसे राजस्व प्राप्तियों को खो देंगी. राजस्व बढ़ाने के दूसरे विकल्पों पर अब तक ध्यान नहीं गया है जितना कि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा दिया गया है.
वर्ष 2021-22 में केंद्रीय खजाने में पेट्रोलियम क्षेत्र द्वारा योगदान दिए गए कुल राजस्व में उत्पाद शुल्क की हिस्सेदारी 73.7 प्रतिशत थी. इसी तरह, वैट कलेक्शन की राज्य के खजाने में सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी थी जो पेट्रोलियम क्षेत्र के योगदान की बदौलत था.
पेट्रोलियम राजस्व को बदलना
पेट्रोलियम टैक्स रेवेन्यू को बदलने के लिए उपलब्ध विकल्पकार्बन कर, सड़क मूल्य निर्धारण, कन्जेशन चार्ज और बिजली कर हैं. कई कारणों से भारत के लिए बिजली उत्पादन और खपत पर कर लगाना एक वास्तविक विकल्प नहीं हो सकता है. पेट्रोलियम के रूप में बिजली राज्य के खजाने में शुद्ध राजस्व योगदानकर्ता नहीं हो सकता है. लाइटिंग और कम्युनिकेशन जैसी महत्वपूर्ण ज़रूरतों के लिए बिजली आवश्यक है और बिजली पर कर लगाने से लाइटिंग और कम्युनिकेशन कई लोगों के लिए विलासिता की वस्तु बन जाएगी. बिजली पर कर लगाने से यह तर्क भी कमजोर पड़ जाएगा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर आधारित मोबिलिटी के मुक़ाबले इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का विकल्प ज़्यादा सस्ता है.
एक विस्फोटक बदलाव की भविष्यवाणियों के बावज़ूद, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के पूरे भारत में व्यापक मौज़ूदगी को लेकर अभी वक़्त देना पड़ेगा. इसका मतलब है कि पेट्रोलियम टैक्स रेवेन्यू समय के साथ धीरे-धीरे कम होगा जो एक नई कर नीति के अनुकूल होने का समय भी नीति निर्धारकों को देगा. भारत में पेट्रोलियम टैक्स रेवेन्यू को बदलने के लिए सबसे उपयुक्त विकल्पों में से एकयात्रा की गई दूरीपर कर लगाना हो सकता है. निजी वाहनों के लिए कर अधिक हो सकता है जो यह सुनिश्चित करेगा कि सार्वजनिक परिवहन ग़रीबों के लिए अफोर्डेबल विकल्प बना रहे. ईंधन पर टैक्स से यात्रा की गई दूरी पर टैक्स में बदलाव करने से लंबी अवधि मेंअधिक टिकाऊ और न्यायसंगत कर नीतिबनाई जा सकती है, जिससे पर्यावरण, सामाजिक और गतिशीलता परिणामों में भी बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है.
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Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change.
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