Author : Soumya Awasthi

Published on Apr 15, 2024 Updated 0 Hours ago
आज के युग में सोशल मीडिया के डिजिटल परिदृश्य का सामना करने के लिए इसके फायदों को उठाने और ख़तरे में कमी के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन की आवश्यकता है.
‘ISKP बनाम तालिबान का डिजिटल बैटलग्राउंड’

मार्च 2024 में रूस के क्रॉकस हॉल में इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरासान प्रॉविंस (ISKP) का हमला, जिस दौरान बंदूकधारियों ने गोप्रो कैमरों से लैस अपने हथियारों से हमले को रिकॉर्ड किया था जो कॉल ऑफ ड्यूटी वीडियो गेम के फ्रेंचाइज़ की याद दिलाता है, ने एक बार फिर आतंकवाद और सोशल मीडिया को लेकर चर्चाओं को सबसे आगे कर दिया है. 

सोशल मीडिया के उभरने की वजह से 21वीं सदी ने संचार और कनेक्टिविटी में एक अभूतपूर्व क्रांति देखी है. ये कनेक्टिविटी एक तरफ जहां वैश्विक सहयोग और भागीदारी के अवसर पेश करती है, वहीं दूसरी तरफ महत्वपूर्ण चुनौतियां भी लाती है. इन चुनौतियों में दुष्प्रचार का बड़े पैमाने पर फैलना, प्राइवेसी में कमी और सामाजिक ध्रुवीकरण एवं मनोवैज्ञानिक नुकसान की आशंका शामिल हैं. इसलिए आज के युग में सोशल मीडिया के डिजिटल परिदृश्य का सामना करने के लिए इसके फायदों को उठाने और ख़तरे में कमी के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन की आवश्यकता है. 

सोशल मीडिया के उभरने की वजह से 21वीं सदी ने संचार और कनेक्टिविटी में एक अभूतपूर्व क्रांति देखी है. ये कनेक्टिविटी एक तरफ जहां वैश्विक सहयोग और भागीदारी के अवसर पेश करती है, वहीं दूसरी तरफ महत्वपूर्ण चुनौतियां भी लाती है.

सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है आतंकी संगठनों के द्वारा सोशल मीडिया का इस्तेमाल जो दुनिया भर में आतंकवाद के ख़िलाफ़ कोशिशों के लिए मुश्किल चुनौतियां पेश करता है. इन चुनौतियों में भर्ती के लिए दुष्प्रचार फैलाना और हिंसा भड़काना, अभियान से जुड़ा तालमेल, फंड इकट्ठा करना और साइबर सुरक्षा के ख़तरे शामिल हैं. महत्वपूर्ण बात ये है कि सोशल मीडिया संवेदनशील आबादी को कट्टर बनाने में मदद करता है और इस तरह प्रभावी ढंग से आतंकवाद से लड़ने में वैश्विक तालमेल और जवाबी कोशिशों को मुश्किल बनाता है. सारांश ये है कि आतंकवादी संगठनों के द्वारा सोशल मीडिया का इस्तेमाल सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी मामलों में सबसे महत्वपूर्ण मौजूदा ख़तरों में से एक है.  

तालिबान का ख़तरा

तालिबान के फिर से उदय और अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान पर उसके कब्ज़े के समय से इस क्षेत्र में जिहादी संगठनों के आंतरिक मुकाबले का विस्तार हो गया है. ये विस्तार भौतिक और साइबर-दोनों क्षेत्रों में हुआ है. ध्यान देने की बात है कि इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरासान प्रॉविंस (ISKP) और तालिबान ने डिजिटल प्लैटफॉर्म का फायदा उठाने में शानदार हुनर का प्रदर्शन किया है. ख़ास तौर पर ISKP ने तालिबान की वैधता को चुनौती देने और ख़ुद को जिहादी विचारधारा के संरक्षक के तौर पर पेश करने के लिए लिए अपने दुष्प्रचार की कोशिशें तेज़ की हैं. सोशल मीडिया की ताकत को स्वीकार करते हुए ISKP का प्रोपगैंडा फैलाने वाला संगठन “हमारी कलम काफिरों के दिलों में खंजर है” के सिद्धांत के साथ काम करता है. वो दुनिया भर में अपने संदेश को फैलाने के लिए रणनीतिक तौर पर अलग-अलग भाषाओं में कंटेंट फैलाता है. 

वर्तमान समय में इस्लामिक स्टेट एक सैन्य और महत्वपूर्ण मीडिया इकाई के रूप में काम करता है. क्विलियम फाउंडेशन के द्वारा अक्टूबर 2015 में “डॉक्यूमेंटिंग द वर्चुअल कैलिफेट (वर्चुअल खिलाफत का इतिहास)” रिपोर्ट में बताया गया कि ये संगठन हर रोज़ औसतन 38 नई मीडिया सामग्री पेश करता है जिनमें 20 मिनट के वीडियो से लेकर व्यापक डॉक्यूमेंट्री और फोटो लेख से लेकर ऑडियो रिकॉर्डिंग और पैंफलेट शामिल हैं. ये मीडिया सामग्री अलग-अलग भाषाओं में उपलब्ध हैं. इस तरह के व्यापक डिजिटल प्रोपगैंडा ने सफलतापूर्वक 30,000 से ज़्यादा लोगों को अपना परिवार छोड़कर जिहाद के रास्ते पर चलने के लिए तैयार किया है. 

तालिबान के फिर से उदय और अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान पर उसके कब्ज़े के समय से इस क्षेत्र में जिहादी संगठनों के आंतरिक मुकाबले का विस्तार हो गया है. ये विस्तार भौतिक और साइबर-दोनों क्षेत्रों में हुआ है.

ये स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि डिजिटल प्लैटफॉर्म पर ISKP का रणनीतिक ध्यान केवल इराक़ और सीरिया में अपने कब्ज़े वाले क्षेत्र के नुकसान का जवाब नहीं है बल्कि ख़ुद को प्रासंगिक और दुनिया भर में अपनी मौजूदगी बनाए रखने की भी एक कोशिश है. इसने ISKP को व्यापक सोशल मीडिया अभियानों और दुनियाभर में शाखाओं के नेटवर्क के ज़रिए अपनी पहुंच का विस्तार करने में सक्षम बनाया है.  

ये संगठन कुशलता से X (पहले ट्विटर), फेसबुक, यूट्यूब, टेलीग्राम, सिग्नल, वॉट्सऐप और स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म और दूसरे गेमिंग प्लैटफॉर्म का उपयोग करता है. उसके कंटेंट में हिंसा के ग्राफिक चित्रण से लेकर अपने शासन के तहत कथित तौर पर एक ख़ुशहाल ज़िंदगी दिखाना शामिल हैं. इस तरह वो रणनीतिक रूप से कट्टरता के प्रति संवेदनशील लोगों को निशाना बनाता है.

2021 में अपनी शुरुआत के समय से ISKP ने अपनी डिजिटल मौजूदगी को लेकर एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया है जिसकी विशेषता टॉप-डाउन (नियंत्रित) और बॉटम-अप (नीचे से ऊपर जाना) रणनीतियां हैं. 

दूसरे आतंकी संगठनों से अलग ISKP एक सेंट्रलाइज़्ड (केंद्रीकृत) वेबसाइट पर भरोसा नहीं करता है बल्कि अपने संदेशों को फैलाने के लिए अलग-अलग सोशल मीडिया चैनल का इस्तेमाल करता है. ठोस तालिबान विरोधी रवैये के साथ ISKP का ध्यान पूरी दुनिया, क्षेत्र और स्थानीय स्तर पर फैला हुआ है जो मुख्य रूप से दक्षिण और मध्य एशिया के लोगों को अपने निशाने पर रखता है. दुष्प्रचार की सामग्री उर्दू, अंग्रेज़ी, पश्तो, रूसी, फारसी, ताजिक, उज़्बेक, हिंदी, तमिल, मलयालम, अरबी, दारी और बांग्ला समेत कई भाषाओं में तैयार की जाती है. ISKP का मीडिया संगठन लगातार कंटेंट का अनुवाद और उसका प्रसार करता है. इस काम में अपने वैचारिक नैरेटिव को आगे बढ़ाने वाली किताबों के नियमित प्रकाशन के द्वारा मदद की जाती है.  

ISKP के मीडिया प्रयासों में सबसे आगे अल-अज़ैम फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोडक्शंस एंड कम्युनिकेशन है जो इस संगठन के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप को दिखाता है. ISKP अलग-अलग देशों में विभिन्न यूनिट जैसे कि अल-मिल्लत मीडिया और ख़ालिद मीडिया के माध्यम से प्रोपगैंडा फैलाता है. इसका मक़सद अलग-अलग तरह के लोगों को आकर्षित करना है. वॉयस ऑफ खोरासान, खोरासान घाग और यलगार जैसी मैगज़ीन, जो कि क्रमश: अंग्रेज़ी, पश्तो और उर्दू में प्रकाशित होती हैं, ISKP की चरमपंथी विचारधारा को फैलाने में काम आती है. ऑडियो और वीडियो बयान इसमें मदद करते हैं. संगठन अपने हमलों का इन्फोग्राफिक भी प्रकाशित करता है जो अल-नबा में दिखाई देता है. इसके साथ-साथ ऑडियो और वीडियो बयान भी सामने लाता है. 

इसकी दूसरी प्रोपगैंडा यूनिट में अल-मिल्लत मीडिया (जो कि बुकलेट और ISKP के केंद्रीय नेतृत्व के बयानों को प्रकाशित करता है); ख़ालिद मीडिया (वीडियो प्रोडक्शन); अल-अख़बार विलाया खोरासान (ज़्यादा पारंपरिक बयान और रोज़ाना के घटनाक्रम); हक़ीक़त न्यूज़ (अल-अख़बार विलाया खोरासान की तरह); तोर-बरीगोना; अल-मुरसलत मीडिया शामिल हैं. 

ISKP का मीडिया संगठन लगातार कंटेंट का अनुवाद और उसका प्रसार करता है. इस काम में अपने वैचारिक नैरेटिव को आगे बढ़ाने वाली किताबों के नियमित प्रकाशन के द्वारा मदद की जाती है.  

ये यूनिट सामूहिक रूप से ISKP की व्यापक डिजिटल मौजूदगी में योगदान करती हैं और रणनीतिक रूप से अलग-अलग मीडिया फॉर्मेट और प्लैटफॉर्म में कंटेंट का प्रसार करती हैं ताकि उसका संदेश फैल सके और भर्ती की कोशिशें तेज़ हो सकें. 

कनाडा के थिंक टैंक सेकडेव (SecDev) फाउंडेशन के मुताबिक ISKP के मैसेज फैलाने वाले चैनल को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है: 

  1. आधिकारिक चैनल जिसका संचालन और निगरानी ये संगठन ख़ुद करता है.
  2. सीधे तौर पर जुड़ा चैनल जो कि आधिकारिक नहीं है लेकिन फिर भी इस संगठन के साथ नज़दीकी रूप से जुड़ा है. 
  3. परोक्ष चैनल जो स्वतंत्र है लेकिन इस हिंसक चरमपंथी संगठन के कंटेंट को फैलाता है और उसके संदेश को आगे बढ़ाता है. 

टेलीग्राम जैसे मुख्यधारा के प्लैटफॉर्म से आगे ISKP कम नियंत्रित प्लैटफॉर्म जैसे कि ऑडनोक्लासनिकी (Odnoklassniki), डिस्कॉर्ड (Discord) और रॉकेट.चैट (Rocket.Chat) जैसे प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल करता है ताकि निगरानी से बचा जा सके और अपनी ऑनलाइन मौजूदगी का विस्तार किया जा सके.


ISKP का चरमपंथी प्रोपगैंडा

तालिबान, जिसका ध्यान मुख्य रूप से अफ़ग़ानिस्तान पर है, से अलग ISKP का मक़सद दक्षिण और मध्य एशिया के पूरे क्षेत्र को ग्रेटर खोरासान रीजन के तहत मिलाना है. समन्वित हमलों (कोऑर्डिनेटेड अटैक्स) के ज़रिए अलग-अलग देशों के सुरक्षा बलों को निशाना बनाकर, जिसे सोशल मीडिया पर प्रमुखता से शेयर किया जाता है, ISKP अपनी बुनियाद को मज़बूत करना चाहता है और अपने मक़सद के लिए हमदर्दी रखने वाले लोगों को आकर्षित करना चाहता है. इसके अलावा ISKP की डिजिटल पहुंच न सिर्फ़ अफ़ग़ानिस्तान के भीतर बल्कि आस-पड़ोस के देशों में भी सुरक्षा से जुड़ा एक गंभीर ख़तरा पैदा करती है. ISKP की डिजिटल पहुंच अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देशों में आतंकी गतिविधियों को प्रेरित और भड़का सकती है. 

सीमित इलाकों पर अपने कब्ज़े को देखते हुए ISKP योजना बनाने, साजो-सामान, भर्ती और अभियानों से जुड़े तालमेल के लिए सोशल मीडिया समेत इंटरनेट पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. ISKP और उससे सहानुभूति रखने वालों के द्वारा पैदा ख़तरे का मुकाबला करने के लिए डिजिटल प्लैटफॉर्म, चैनल, सब्सक्रिप्शन और अलग-अलग अधिकार क्षेत्रों एवं भाषाओं में बातचीत पर निगरानी और उसमें खलल डालने की आवश्यकता है. इसके विपरीत इस्लामिक स्टेट मीडिया जिहाद की अपील करता है जिसके तहत वो अपने समर्थकों के द्वारा इंटरनेट के सबसे व्यापक पहुंच वाले प्लैटफॉर्म पर खुलकर काम करने की वकालत करता है. वो इस नतीजे पर पहुंचा है कि पब्लिसिटी हासिल करने के फायदे गोपनीयता बनाए रखने की आवश्यकता से ज़्यादा हैं.

तालिबान को लेकर ISKP के दुश्मनी वाले रवैये पर ध्यान देना ज़रूरी है. इस दुश्मनी की वजह ये है कि वो तालिबान के इस्लामिक राज वाले स्वरूप को अपर्याप्त तौर पर पारंपरिक समझता है. 

तालिबान को लेकर ISKP के दुश्मनी वाले रवैये पर ध्यान देना ज़रूरी है. इस दुश्मनी की वजह ये है कि वो तालिबान के इस्लामिक राज वाले स्वरूप को अपर्याप्त तौर पर पारंपरिक समझता है. अपने दुष्प्रचार के प्रयासों के द्वारा ISKP तालिबान और दूसरे क्षेत्रीय एवं वैश्विक किरदारों को बदनाम करना चाहता है. वो तालिबान के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर के लिए रूस की आलोचना करता है, उईगर मुसलमानों से बर्ताव के लिए चीन की आलोचना करता है, पश्चिमी देशों के सैन्य दखल की निंदा करता है और पाकिस्तान पर अपने विरोधियों का साथ देने का आरोप लगाता है. इस बीच  तालिबान अफ़ग़ानिस्तान पर अपने कब्ज़े के समय से तरक्की दिखाने के लिए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल करने पर ध्यान दिए हुए हैं और समय-समय पर क्षेत्रीय साझेदारों के पक्ष में कूटनीतिक बयान देता है. इसके पीछे का मक़सद स्वीकार किया जाना और मान्यता हासिल करना है. इसके अलावा ISKP पढ़ाई-लिखाई के संस्थानों को निशाना बनाता है और स्कूल एवं कॉलेज से भर्ती करने के लिए प्रोपगैंडा मैटेरियल तैयार करता है. इस तरह वो अपने चरमपंथी एजेंडे को बनाए रखता है. 

निष्कर्ष ये है कि डिजिटल क्षेत्र में ISKP के चरमपंथी प्रोपगैंडा का प्रसार और भर्ती की कोशिशें हिंसक चरमपंथ का मुकाबला करने और कट्टरता से संवेदनशील आबादी को सुरक्षित रखने के लिए व्यापक रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देती है. ISKP के प्रोपगैंडा चैनल का एन्क्रिप्शन (इलेक्ट्रॉनिक सूचना को गुप्त कोड में बदलना जिसे सिर्फ एक विशेष उपकरण के ज़रिए समझा जा सकता है) पारंपरिक निगरानी के तरीकों के लिए एक कठिन चुनौती पेश करता है. इसकी वजह से आतंकियों को दुनिया भर में चालाकी से काम करने की इजाज़त मिल जाती है. इसलिए केवल ठोस अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और ऑनलाइन गतिविधियों की निगरानी और उन्हें रोकने के लिए मिली-जुली कोशिशों के माध्यम से ही ISKP और इससे मिलते-जुलते आतंकवादी संगठनों के द्वारा पैदा ख़तरे को डिजिटल युग में प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है. 


सौम्या अवस्थी फ्रीलांस कंसल्टेंट हैं. 

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