Published on Jan 09, 2023 Updated 0 Hours ago

इंटरनेट को ‘वाइल्ड वेस्ट’ मान लेना गलती है. अब वक्त आ गया है कि इंटरनेट प्रशासन में राष्ट्र-राज्यों की रहस्यमयी भूमिका को स्पष्ट करते हुए उसको साफ तौर पर समझा जाए.

Cyber Norms: लोकतांत्रिक इंटरनेट व्यवस्था के लिए साइबर स्पेस के मानक!
Cyber Norms: लोकतांत्रिक इंटरनेट व्यवस्था के लिए साइबर स्पेस के मानक!

वैश्विक दूरसंचार और इंटरनेट (Global Telecommunications and Internet) के प्रशासन या साइबर स्पेस (Cyber Space) में सरकार की मौजूदगी आम तौर पर जनता को व्यापक रूप से दिखाई नहीं देती है. लेकिन जब सरकारी हाथ दिखाई दे ही जाता है, तो सरकार इस बर्ताव के लिए शीत युद्ध (Cold War) के समय से चले आ रहे पुराने विभाजन की विरासत के पीछे छुपने की कोशिश करती है. इसके साथ ही इंटरनेट को ही आधार बनाकर हो रहा तकनीकी मानकों (Cyber Norms) का विकास भी अपारदर्शी है. अक्सर जनता को इसकी जानकारी सुर्खियों के शोर में ही सुनाई देती है. इस शोर के बीच एक जटिल परिदृश्य पर द्विअर्थी उद्देश्य का पर्दा डाल दिया जाता है. यह द्विअर्थी पर्दा असंख्य घटकों, प्रौद्योगिकियों, बाजारों और हितधारकों द्वारा बनाया गया होता है.

लोकतांत्रिक देशों के विदेश नीति एजेंडा, इंटरनेट विकास के उन तकनीकी प्रस्तावों के खिलाफ समन्वय साधने की कोशिश करता है जो चीन, रूस और उनके सहयोगियों की ओर से पेश किए जाते हैं.

लोकतांत्रिक देशों के विदेश नीति एजेंडा, इंटरनेट विकास के उन तकनीकी प्रस्तावों के खिलाफ समन्वय साधने की कोशिश करता है जो चीन, रूस और उनके सहयोगियों की ओर से पेश किए जाते हैं. इसी प्रकार चीन, रूस और उनके सहयोगी इंटरनेट के वैश्विक, बहुहितधारक नेतृत्व की कोशिशों को पश्चिमी योजना का हिस्सा बताते हैं. ऐसी योजना जिसमें विभिन्न देशों की सार्वभौमिकता को गुप्त रूप से नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन वैश्विक संचार को मजबूत, सुरक्षित और खुला बनाने के लिए आवश्यक तकनीकी डिजाइन और समन्वय स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों के बीच सहयोग आवश्यक है. यह सहयोग पाने के लिए हमें एक अलग दृष्टिकोण अपनाना होगा. मानवता को अब तक ज्ञात सबसे उन्नत और मजबूत संचार प्रणाली के रूप में इंटरनेट को देखा जाता है. ऐसे में इंटरनेट के हित में समन्वय के साथ काम करने के लिए एक सार्वभौमिक प्रतिबद्धता आवश्यक है. और इसके लिए राजनीति की जगह साइबर मानदंडों, संधियों को लेनी होगी. 

व्यक्तित्व: राष्ट्र-राज्य प्रतिद्वंद्विता

अभी हाल ही में, सबसे पुराने तकनीकी मानक निकाय और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) एजेंसी अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) की चार साल में एक बार होने वाली बैठक से ठीक पहले, मुख्यधारा के मीडिया ने सेक्रेटरी जनरल चुनाव की कवरेज को लेकर पाठकों को आकर्षित किया था. मुख्यधारा की मीडिया ने इस चुनाव को ‘‘वाशिंगटन और मॉस्को’’ के दो उम्मीदवारों के बीच होने वाला चुनाव चित्रित करते हुए इसे एक डिजिटल शीत युद्ध बता दिया था. 

इंटरनेट में सरकारों की मौजूदगी आमतौर पर सार्वजनिक रूप से जनता को दिखाई नहीं देती. इसका कारण संभवत: यह है कि इंटरनेट प्रशासन अपने आप में गुप्त और रहस्यमय होता है. लेकिन जब सरकार की मौजूदगी दिखाई दे जाती है तो उसका बर्ताव हमारे सामने पुराने विभाजन की नए रूप में पुनरावृत्ति अर्थात पुराने विभाजन के नए अवतार के रूप में पेश कर दिया जाता है. उदाहरण के तौर पर चीन, पिछले 5 -10 वर्षों में आईटीयू तथा आईएसओ (इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर स्टैंडर्डाइजेशन) (मानकीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठन) जैसे अंतर-सरकारी क्षेत्रों में अपनी रणनीतिक उपस्थिति को बढ़ा रहा है वह ऐसा इसलिए कर रहा है ताकि ब्लॉकचेन जैसी सीमांत और अत्याधुनिक तकनीकों में अपने उद्योग के पैर जमाने में उसे सहायता मिल सके. इसके अलावा वह मशीन लर्निग आधारित बायोमेट्रिक सिस्टम जैसे चेहरे की पहचान, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) और स्मार्ट सिटी में भी अपना सिक्का जमाना चाहता है. हाल ही में, चीन ने अपनी इस नीति का विस्तार टरनेट इंजीनियरिंग टास्कफोर्स (IEETF) और इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स संस्थान (IEEEE) जैसे उद्योग संचालित निकायों में भी किया है. यूएस और यूरोपीय देशों के विदेश नीति एजेंडा ने आईटीयू, आईईटीएफ और अन्य संस्थानों पर चीन की ओर से आने वाले तकनीकी प्रस्तावों के खिलाफ सरकार और नागरी समाज दोनों स्तरों पर समन्वय स्थापित करने की कोशिश की है. इस अहम विश्लेषण को ‘‘द वेस्ट्स वेकअप कॉल ऑन डिजिटल टेक स्टैंडर्ड्स’’ अर्थात ‘‘डिजिटल टेक मानकों पर पश्चिम की वेकअप कॉल’’ शीर्षक के तहत प्रस्तुत किया गया था. इसने एक महत्वपूर्ण, लेकिन पहले से ही जटिल परिदृश्य को लेकर एक दोहरा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया. इस जटिल परिदृश्य को पहले ही दोहरा कहा गया है, क्योंकि इसका निर्माण असंख्य घटकों, मानक निर्माताओं, नीति निर्माताओं, प्रौद्योगिकीविदों और बाजार के खिलाड़ियों ने किया है.

इंटरनेट में सरकारों की मौजूदगी आमतौर पर सार्वजनिक रूप से जनता को दिखाई नहीं देती. इसका कारण संभवत: यह है कि इंटरनेट प्रशासन अपने आप में गुप्त और रहस्यमय होता है. लेकिन जब सरकार की मौजूदगी दिखाई दे जाती है तो उसका बर्ताव हमारे सामने पुराने विभाजन की नए रूप में पुनरावृत्ति अर्थात पुराने विभाजन के नए अवतार के रूप में पेश कर दिया जाता है. 

दूसरा उदाहरण रूस की ओर से वैश्विक इंटरनेट प्रशासन पर चर्चा करने के लिए आईटीयू के विस्तार की कोशिशों को कहा जा सकता है. यूएन ने इस प्रस्ताव को केवल दर्ज किया, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी. मोटे तौर पर, इंटरनेट का प्रशासन विकेन्द्रीकृत, अंत:प्रचालनीय यानि इंटरऑपरेबल खुले, बहु-हितधारक मंचों जैसे इंटरनेट आर्किटेक्चर बोर्ड, आईईटीएफ और इंटरनेट कॉर्पोरेशन फॉर असाइन्ड नेम्स एंड नंबर्स की ओर से तय मानक और नीति के आधार पर चलता है. ऐसे में इंटरनेट स्पेस को लेकर जनता की धारणा में एक और अंतर उजागर होता है: उसे यह ‘‘वाइल्ड वेस्ट’’ की एक उदासीन छवि की तरह लगता है. वह छवि, जिसका दुनिया के कुछ कोनों में एक उच्च विनियमित स्थान है और वहां अंतरराष्ट्रीय कानून लागू होता है. इस छवि में सरकार की मौजूदगी को मान्यता दी जाती है. लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता. क्योंकि कुछ जगह पर हितधारकों, को सरकार से बेहतर समझा जाता है.

बेशक, डिजिटल क्षेत्र में की जा रही कार्रवाई को अतीत के उदाहरण देकर समझाया जाना सुविधाजनक भी होता है. क्योंकि समाज और विभिन्न संस्कृतियां, वैश्विक स्तर पर विरोध की नीति के रूप में शीत युद्ध अथवा महाशक्तियों के बीच चल रही प्रतिद्वंद्विता को देख चुकी हैं. अत: वे इस उदाहरण को आसानी से समझ सकती हैं. लेकिन इंटरनेट परिदृश्य में इस तरह के उदाहरण देना और स्थितियों को आसानी से समझाने की कोशिश कर बातों को टालने की कोशिश काम नहीं आती. यह उदाहरण इंटरनेट परिदृश्य से जुड़े जटिल मुद्दे और इसके विनियमन यानि फ्रेमवर्कस् में सरकार की बुनियादी मौजूदगी की आवश्यकता को समझने की कोशिशों पर पर्दा ही डालते हैं. जब बात इंटरनेट के मानकों पर निर्णय लेने की आती है तो ये उदाहरण हकीकत में लोकतांत्रिक, बहु-हितधारक दृष्टिकोण को रोकते हुए वैश्विक विभाजन की खाई को गहरा कर देते है. डिजिटल क्षेत्र में, पुराने जमाने में देशों के बीच की दूरी अथवा प्रतिद्वंद्विता के उदाहरण देना समझदारी नहीं है. इन उदाहरणों की वजह से दबंग देश बातचीत की टेबल पर आकर साझा रूप से काम करने को तैयार नहीं होते. इतना ही नहीं, इस रवैये की वजह से अनजाने में ही शरारती गतिविधियों और उत्पात मचाने वाले लोगों को अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने का अवसर भी मिल जाता है.

प्रक्रिया: मापंदड और साइबर मानक

यूक्रेन को रूस के आक्रमण से बचाने के लिए व्हाइट हाउस ने कड़ा रवैया अपनाते हुए रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की घोषणा की. लेकिन इसके कुछ ही देर बाद एक बयान जारी करते हुए उसने यह साफ कर दिया कि इन प्रतिबंधों से इंटरनेट कनेक्टीविटी प्रभावित नहीं होनी चाहिएइसी वक्त यूरोपियन यूनियन ने पत्रकारिता और मीडिया संस्थान आरटी एवं स्पूतनिक पर पाबंदी लगाने का कदम उठाया. उसके इस कदम को अनेक लोगों ने विवादास्पद और गैर लोकतांत्रिक भी बताया. इंटरनेट कनेक्टिविटी का ऐसा राजनीतिकरण अक्सर नहीं होता है. यही कारण है कि, जब वास्तविक युद्ध चल रहा होता है, तो सेवा प्रदाता और नेटवर्क ऑपरेटर इसमें सहयोग देने के लिए तत्पर होते हैं. उसी दौरान सरकार अनजाने में ही इंटरनेट की भूमिका को लेकर होने वाले सबसे बड़े नुकसान की अनदेखी कर देती है. दरअसल मीडिया, संचार, स्वास्थ्य और वित्तीय सेवा अब एक चुस्त, तेज और निरंतर इंटरनेट कनेक्टीविटी के आधार पर काम करती है. लेकिन इंटरनेट कनेक्टीविटी प्रभावित होने से इन सभी पर अनजाने में ही प्रभाव पड़ता है और इस तरह के प्रतिबंध लगाने से लाभ कम मिलता है जबकि हानि ज्यादा होती है.

जब बात इंटरनेट के मानकों पर निर्णय लेने की आती है तो ये उदाहरण हकीकत में लोकतांत्रिक, बहु-हितधारक दृष्टिकोण को रोकते हुए वैश्विक विभाजन की खाई को गहरा कर देते है. डिजिटल क्षेत्र में, पुराने जमाने में देशों के बीच की दूरी अथवा प्रतिद्वंद्विता के उदाहरण देना समझदारी नहीं है. 

अक्सर हम राजनीतिक रूप से बहुचर्चित बातचीत को लेकर आ रही खबरों को ही देखते हैं. जबकि इसके शोर में साइबर सुरक्षा दांव पर लगी होती है. जब इन दोनों का घाल-मेल होता है तो आम तौर पर राजनीतिक रूप से हंगामा खड़ा करने वाली बात की ओर खिसकने की प्रवृत्ति दिखाई देती है. जबकि सशक्त मापंदंड, सुरक्षित नेटवर्क को बढ़ावा देने वाली नीतियां, इसकी कमजोरियों को दूर कर मैलवेयर से निपटने, सरकारी हैकिंग पर अंकुश लगाने और साइबर क्षमताओं में तेजी से विस्तार लाने, पारदर्शी खुलासे करने और तकनीकी समुदाय के साथ ज्यादा संवाद साधे जाने की आवश्यकता है. ग्लोबल पार्टनर्स डिजिटल के शीतल कुमार ने कहा है, ‘‘ऐसा होने पर नागरिकों के साथ साथ  ही बाकी सब भी भ्रमित हो जाते हैं कि आखिर समस्या क्या है. इस वजह से सरकार स्वीकृत सीमाओं को बढ़ाती चली जाती है. यही वजह है जिससे तनाव बढ़ता है और बदले में अधिक उग्र सैन्य जवाब देने के लिए निवेश को बढ़ाने का प्रोत्साहन मिल जाता है.’’

साइबर मानकों को लेकर समझ और जागृति बढ़ रही है, लेकिन नीति-निर्माताओं, उद्योग और नागरी समाज के बीच यह काफी कम ही दिखाई देती हैं.  इंटरनेट को ‘वाइल्ड वेस्ट’ कह देना एक गलती होगी. अफगानिस्तान से जिम्बाब्वे तक साइबर क्षेत्र में जिम्मेदारी पूर्ण बर्ताव करने के लिए पहले से ही तय समझौते, संधियां और वैश्विक मानक मौजूद हैं. इसमें से कुछ को विस्तारित करने की आवश्यकता है, जबकि सभी पर सही और पारदर्शी अंदाज में अमल करने की जरूरत हैं.

यह भी सच है कि कूटनीति और मानक तय करने के क्षेत्रों में चल रही जबरदस्त प्रतिद्वंद्विता का परिणाम दिखाई देगा. अब पूरी दुनिया में सरकारें, ‘साइबर आक्रमण क्षमताओं’ और हैकिंग ऑपरेशन्स में निवेश करते हुए जासूसी में संलग्न हैं. एक बात सच है: हम यह नहीं जानते कि वास्तव में ‘साइबर आक्रमण क्षमताओं’ का क्या मतलब होता है. पारदर्शिता में कमी की वजह से हम केवल यह अनुमान लगा सकते हैं कि शक्तिशाली संस्थान इसके बाजार में निवेश कर रहे हैं. यह बाजार -वैध और अवैध- हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और इनके दोहरे उपयोग की सेवाओं (नागरिक और सैन्य) का है. इसमें निवेश करते हुए यह संस्थान इसकी अतिसंवेदनशीलता और लोकिप्रियता अपने फायदे के लिए उपयोग कर रहे हैं. अनिश्चितता को लेकर यह निश्चितता इसलिए हैं, क्योंकि अपारदर्शिता सभी के लिए फायदेमंद है. और फिर सरकारें भी इसी एक बात पर आसानी से सहमत हो जाती है. 

साइबर प्रबंधन में सरकारों की भूमिका 

‘‘शीत युद्ध बयानबाजी’’ के आधार पर होने वाले विरोध के कारण साइबर सुरक्षा संधि के प्रस्तावों को केवल इस आधार पर नकार दिया जाता है कि यह प्रस्ताव बनाया किसने है. इसमें इस बात की उपेक्षा हो जाती है कि आखिर किस बात को ध्यान में रखकर यह प्रस्ताव बनाया गया. इसकी उपयोगिता क्या है. यह आवश्यक क्यों है. इसलिए, अब वक्त आ गया है कि सच को कल्पना से अलग कर दिया जाए. विशेष रूप से 2004 से चल रही आधी अधूरी कोशिशों से उपर उठकर सरकारों के स्तर पर साइबर खतरे को काबू में करने के लिए इससे निपटने के उपाय करना जरूरी हो गया है. 

अब पूरी दुनिया में सरकारें, ‘साइबर आक्रमण क्षमताओं’ और हैकिंग ऑपरेशन्स में निवेश करते हुए जासूसी में संलग्न हैं. एक बात सच है: हम यह नहीं जानते कि वास्तव में ‘साइबर आक्रमण क्षमताओं’ का क्या मतलब होता है. पारदर्शिता में कमी की वजह से हम केवल यह अनुमान लगा सकते हैं कि शक्तिशाली संस्थान इसके बाजार में निवेश कर रहे हैं.

इसमें कोई शक नहीं है कि इंटरनेट जैसे विकसित और प्रशासित हो रहा है, इसके प्रबंधन में सरकार की भूमिका जरूरी है. फिर भले ही इसका प्रबंधन खुले मंच अथवा वैश्विक स्तर पर बहुप्रक्रियाओं के माध्यम से तय किए गए मानकों के आधार पर ही क्यों न किया जा रहा हो. इसके अलावा, डिजिटल युग में मानव अधिकारों के लिए वैश्विक प्रतिबद्धताओं या राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे में अत्याधुनिक मानकों के कार्यान्वयन में सरकारों के पास अधिक शक्ति और जिम्मेदारियां हैं. साइबर मानदंडों में भी सरकार के पास यही शक्ति और जिम्मेदारियां दिखनी चाहिए.

हमें बस बुनियादी सुरक्षा चाहिए. एक स्वस्थ इंटरनेट समाज के लिए पहला कदम यह सुनिश्चित करना है कि हम यह समझे कि जिस तरह से हम अब तक असुरक्षित थे, वैसे असुरक्षित नई सुरक्षा व्यवस्था में नहीं रहेंगे. तारा व्हीलर ने अपने लेख, ‘‘इन साइबरवेयर, देयर आर नो रुल्स’’ यानि ‘‘साइबरवेयर में, कोई नियम नहीं हैं’’ में, लिखा हैं, ‘‘साइबर सुरक्षा एक नियमित टीकाकरण के समान होनी चाहिए. यह बुनियादी ढांचे के बजट में राजमार्ग के रखरखाव की व्यवस्था के लिए लिखी गई एक लाइन जैसी होनी चाहिए.’’

पारदर्शिता होना बेहद आवश्यक है. एक दूसरे पर साइबर हमले या साइबर सुरक्षा उपायों में प्रतिस्पर्धा का आरोप लगाने वाली सरकारों को रोकने के लिए नीति प्रस्तावों, नीति प्रक्रिया और कार्यान्वयन योजनाओं में पारदर्शिता की मांग काम आ सकती हैं. वैसे भी गैर-पारदर्शी सरकारों के दिल में वैश्विक सार्वजनिक हित की कोई जगह नहीं है. 

निर्यात नियंत्रण की सहायता से नई प्रौद्योगिकियों के डिजाइन और परिनियोजन के दौरान घरेलू उद्योग को नियंत्रित किया जा सकता है. इस कारण सरकारों पर यह दायित्व सौंपा जा सकता हैं कि वे शेष दुनिया की भलाई के लिए जो कुछ करना चाहे वह कर सकते हैं. वैश्विक व्यापार में निर्यात नियंत्रण अनिवार्य रूप से दी गई एक छूट है. यह छूट उस वक्त काम आती है जब कोई सरकार इस बात की ठीक से पुष्टि नहीं कर सकती है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाली दोहरे उपयोग की प्रौद्योगिकियां किसी अन्य देश के हाथ तो नहीं लग गई है. वैश्विक मानक अपनाने के सामने सबसे बड़ी समस्या इन मानकों की देखरेख यानि मॉनिटरिंग करना है. इसके लिए सबसे पहले, मानदंडों की निगरानी के लिए, हमें खतरों और समाधानों के साक्ष्य-आधारित आकलन पर निर्भर रहने की आदत डालनी होगी. सुरक्षा कंपनियों की ओर से मचाए जाने वाले शोर और मार्केटिंग की चकाचौंध हमें सबूतों से दूर ले जाती हैं.

वैश्विक मानक अपनाने के सामने सबसे बड़ी समस्या इन मानकों की देखरेख यानि मॉनिटरिंग करना है. इसके लिए सबसे पहले, मानदंडों की निगरानी के लिए, हमें खतरों और समाधानों के साक्ष्य-आधारित आकलन पर निर्भर रहने की आदत डालनी होगी. सुरक्षा कंपनियों की ओर से मचाए जाने वाले शोर और मार्केटिंग की चकाचौंध हमें सबूतों से दूर ले जाती हैं.

डिजिटल युग में मानवाधिकारों का सम्मान करने वाले इंटरनेट का प्रबंधन करने के लिए सरकारों को आवश्यक कदम उठाने की राह में प्रौद्योगिकी की जटिलता बाधा नहीं बननी चाहिए. दुर्भावना से काम करने वाली सरकारों को तकनीकी रहस्यवाद का उपयोग करते हुए नीति निर्माताओं को स्पष्ट और सक्षम संधियां करने से रोकने का अवसर नहीं दिया जाना चाहिए. भ्रम की स्थिति होने पर ही स्थितियां खराब होती हैं. हमें इन क्षेत्रों को और स्पष्ट करने के लिए अधिक मात्रा में तकनीक विशेषज्ञों की आवश्यकता है. तकनीकी रूप से मजबूत नीति विशेषज्ञों को इस काम में ज्यादा स्थान देना होगा. ऐसा होने पर ही हम इस दावे को खारिज कर पाएंगे कि इंटरनेट एक ऐसा जटिल क्षेत्र है, जिसका विनियमन करना बेहद मुश्किल हैं. ऐसा होने पर ही हमें इस क्षेत्र को राजनीतिक एजेंडे का अखाड़ा बनने से भी रोकने में सहायता मिलेगी. इसी तरह इंटरनेट प्रबंधन समूह के महत्व को समझकर हमें तकनीकी रूप से सक्षम मानकों को तय करने वाले निकायों को उचित अधिकार प्रदान करने होंगे.

शीत युद्ध की बयानबाजी के बजाय, इन सिद्धांतों को अपनाने से लोकतांत्रिक आदर्शों को साइबर स्पेस को नियोजित करने का मौका मिलेगा. ‘फ्लैशबम’’, हंगामा और बयानबाजी से केवल अस्तव्यस्त व्यवस्था उपजेगी, जिसका लाभ केवल दुर्भावना से काम करने वाले लोग बखूबी उठा सकते हैं. सैद्धांतिक दृष्टिकोण अपनाए जाने पर यह भी स्पष्ट हो जाता है कि दुर्भावना से काम करने वाले लोगों से निपटने की जिम्मेदारी केवल यूएन के ही पास नहीं है. 

मजबूत एवं स्पष्ट लोकतांत्रित प्रकियाएं (जो तकनीकी समुदाय में मौजूद हैं) तथा सिद्धांत (जो मानवाधिकार ढांचे पर आश्रित हैं वैसे सिद्धांत) से ही इंटरनेट का सुचारु और बेहतरीन संचालन जारी रहेगा. उसके लिए, हमें इंटरनेट प्रशासन के सर्वोत्तम हिस्सों को मॉडल बनाने की आवश्यकता है: बुनियादी सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता, वह सुरक्षा जो साक्ष्य-आधारित निगरानी से शक्तिशाली बनने वाली हो, पारदर्शिता और जवाबदेही पर निर्मित बहु-हितधारक सहयोग; और राजनायिक क्षेत्रों में तकनीकी विशेषज्ञों का अधिक समावेश. संक्षेप में, हमें नाटक कम और वास्तविकता की अधिक आवश्यकता है.

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