Author : Anirban Sarma

Published on Sep 14, 2023 Updated 0 Hours ago
असम पर बारिश के देवता का अभिशाप: जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां

हर साल की तरह इस साल भी जून में असम में भारी बारिश की कई चेतावनियां जारी की गईं. जून महीने के तीसरे हफ़्ते में तो मानसून ने पूरी ताक़त से असम पर हमला किया. इसके जो भयानक नतीजे निकले, उनको सुनने के हम आदी हो चुके हैं.

जब मौसम विभाग, असम में भारी बारिश का रेड एलर्ट और ऑरेंज एलर्ट जारी कर रहा था, तब धुआंधार बारिश ने ब्रह्मपुत्र और इसकी सहायक नदियों का जलस्तर बहुत बढ़ा दिया. इसके कारण असम के कई ज़िले तबाही वाली बाढ़ की चपेट में आ गए. बाढ़ के कारण बड़े पैमाने पर मिट्टी का कटान शुरू हो गया और लोगों की मदद के लिए आपातकालीन राहत शिविर स्थापित करने पड़े. जब जुलाई का स्याह और भारी बारिश वाला महीना आया, तो असम में बाढ़ के हालात और भी बिगड़ चुके थे. बाढ़ के कारण, राज्य के 34 हज़ार से ज़्यादा लोग बेघर हो चुके थे.

बाढ़ के कारण बड़े पैमाने पर मिट्टी का कटान शुरू हो गया और लोगों की मदद के लिए आपातकालीन राहत शिविर स्थापित करने पड़े. जब जुलाई का स्याह और भारी बारिश वाला महीना आया, तो असम में बाढ़ के हालात और भी बिगड़ चुके थे.

असम की जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौती

जलवायु परिवर्तन के जोखिम के सूचकांक (2021) में असम भारत का सबसे कमज़ोर स्थिति वाला राज्य है. असम की इस बेहद नाज़ुक स्थिति के लिए वैसे तो कई कारण ज़िम्मेदार हैं. लेकिन, इनमें से सबसे अहम विशाल ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के बेसिन हैं. इसके अलावा, असम के तेज़ी से ख़त्म हो रहे जंगलों और पूरे पूर्वोत्तर भारत की नाज़ुक भौगोलिक स्थिति भी इसके लिए ज़िम्मेदार है.  असम में जलवायु परिवर्तन की भयावह स्थिति यहां सालाना और मौसमी बारिश के पैटर्न में भारी उतार-चढ़ाव और, औसत तापमान में बढ़ोत्तरी के रूप में देखने को मिल रही है. इन दोनों कारणों से असम में अक्सर भारी और तूफ़ानी बारिश होने लगी है, जिससे असम के तीन जलवायु संबंधी जोखिमों– भयंकर बाढ़, भू-स्खलन और मिट्टी के कटान में इज़ाफ़ा हो रहा है.

असम का लगभग 40 प्रतिशत इलाक़ा बाढ़ के जोखिम वाला है; इसके अलावा, असम में मानसून  की बारिश के पैटर्न में भी बहुत उठा-पटक और अनिश्चितता देखने को मिल रही है. राज्य में होने वाली ज़्यादातर बारिश का हिस्सा कुछ हफ़्तों के भीतर ही बरसता है. मिसाल के तौर पर, 2022 में जून के पहले तीन हफ़्तों में ही महीने की कुल औसत बारिश से दोगुना अधिक बरसात हो गई थी. तूफ़ानी और एक ही जगह पर तेज़ बारिश, राज्य में भूस्खलन की बड़ी घटनाओं की वजह बनती है; 2016 से 2022 के छह वर्षों के दौरान असम में भूस्खलन की 1000 से अधिक घटनाएं हुईं, जिनमें 100 से अधिक लोगों की जान चली गई. अध्ययनों से पता चलता है कि लैंडस्लाइड की घटनाएं बढ़ रही हैं, और आने वाले दिनों में असम ही नहीं, पूरे पूर्वोत्तर भारत में इनमें इज़ाफ़ा होने का डर है. आख़िर में असम में जितने बड़े पैमाने पर मिट्टी की कटान होती है, वो किसी भी अन्य राज्य की तुलना में बहुत अधिक है. तट में कटान की वजह से ब्रह्मपुत्र का पाट काफ़ी चौड़ा हो जाता है. इससे अक्सर तटबंध टूट जाते हैं. इस वजह से नदी के किनारे खेती वाले इलाक़ों के सिमटते जाने से असम की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है.

वैसे तो पूरे असम में स्थानीय स्तर पर क्षमता निर्माण के लिए ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बनाए गए हैं. लेकिन, इसके अगले स्तर के तौर पर पंचायतों को प्रोत्साहन या मदद दी जानी चाहिए, ताकि वो जलवायु परिवर्तन से निपटने की योजनाएं बना सकें

असम में जलवायु परिवर्तन और तबाही से कैसे निपटें?

असम के स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज 2015-20 (SAPCC) और इसके स्टेट डिज़ैस्टर मैनेजमेंट प्लान 2014-22 (SDMP) और उनको लागू करने के प्रयासों के हिसाब से वहां जलवायु परिवर्तन और तबाही से निपटने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं.

  • जोखिम के आकलन की प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण

जलवायु परिवर्तन और ख़तरे का आकलन करने की प्रक्रिया जितने स्थानीय स्तर पर लागू हो सकती है, की जानी चाहिए. वैसे तो पूरे असम में स्थानीय स्तर पर क्षमता निर्माण के लिए ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बनाए गए हैं. लेकिन, इसके अगले स्तर के तौर पर पंचायतों को प्रोत्साहन या मदद दी जानी चाहिए, ताकि वो जलवायु परिवर्तन से निपटने की योजनाएं बना सकें (जैसा कि उत्तर प्रदेश और केरल में किया जा रहा है). इससे सामुदायिक स्तर पर क़दम उठाए जा सकेंगे और ख़तरे के दायरे में आने वाले समुदायों को ज़िम्मेदार बनाया जा सकेगा.

  • समुदायों को क्षमता निर्माण की प्रक्रिया में शामिल करना

असम का SAPCC और SDMP मुख्य रूप से सरकारी अधिकारियों के क्षमता निर्माण पर ज़ोर देते हैं. हालांकि, कई बार अधिकारियों को दी जाने वाली ट्रेनिंग में स्वयंसेवकों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को भी शामिल कर लिया जाता है. समुदायों को प्रशिक्षण देने का काम अधिक संस्थागत तरीक़े से किया जाना चाहिए और इसे सहजता से एक्शन प्लान का भी हिस्सा बनाया जाना चाहिए, जिसे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ज़मीनी स्तर पर जुड़ाव हो सके.

  • जलवायु परिवर्तन और तबाही के बीच का संबंध समझना

SDMP अक्सर जोखिमों की सूची पर ही ज़ोर देता है, पर जलवायु परिवर्तन से उनके संबंध पर शायद ही कभी ध्यान देता हो. इसकी वजह से प्रशासन (असम या कहीं और भी) के भीतर जलवायु परिवर्तन को लेकर उचित समझ पैदा नहीं हो पाती है. इससे पता चलता है कि अक्सर प्रशासनिक अधिकारियों का ज़ोर घटनाओं पर अधिक होता है, न कि उसकी वजह और असर पर. इस मामले में असम ने हाल ही में जलवायु परिवर्तन का एक नया विभाग बनाया है. ये विभाग जलवायु परिवर्तन के ख़तरों, उनसे निपटने के उपायों और जोखिम कम करने पर ध्यान देगा. ये कोशिश तारीफ़ के क़ाबिल है. इससे आख़िरकार जलवायु परिवर्तन के जोखिमों को समझने, अलग अलग मंत्रालयों के एजेंडे के बीच तालमेल बिठाने और एकीकृत योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी.

  • जलवायु प्रबंधन और आपदा नियंत्रण के लिए पूंजी जुटाने के नए नए तरीक़ों की तलाश करना

मौजूदा स्थिति में असम के SAPCC और SDMP में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सरकारी बजट से पूंजी जुटाने का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन, इनमें आगाह किया गया है कि अगर जोखिम से निपटने के उपाय संस्थागत तरीक़े से नहीं किए गए, और बजट नहीं बनाया गया, तो उनकी लागत बहुत बढ़ सकती है. इसीलिए ज़रूरी है कि, जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ढालने की लागत को विभागों की वार्षिक योजना प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए जोखिम कम करने के मामले में हाल ही में एक रणनीति को मंज़ूरी दी गई है. इसके तहत हर विभाग के बजट का तीन प्रतिशत हिस्सा, असम के राजस्व और आपदा प्रबंधन विभाग के पास होगा, ताकि जोखिम कम करने के लिए पूंजी जुटाई जा सके. इस तरह के और उपाय करने की ज़रूरत है.

  • निजी क्षेत्र के साथ सहयोग

न तो SAPCC और न ही 2014-222 के SDMP में ही ऐसी किसी रणनीति का ज़िक्र नहीं है, जिससे निजी क्षेत्र की पूंजी का लाभ उठाया जा सके. हालांकि, असम के नए प्रस्तावित SDMP 2022-30 में इस मोर्चे पर बदलाव देखने को मिला है. इस योजना में निजी क्षेत्र से पूंजी हासिल करने की कई संभावनाओं का ज़िक्र किया गया है. इसमें बीमा और जोखिम के लिए होने वाले ख़र्च को जुटाना शामिल है; राज्य सरकारों द्वारा आपदा के बाद के मंज़र में केंद्र सरकार की मंज़ूरी से पुनर्निर्माण के बॉन्ड जारी करना; और आपदा राहत और उससे उबरने के लिए क्राउड फ़ंडिंग का भी ज़िक्र किया गया है. ये सभी विकल्प उपयोगी हो सकते हैं और इनको नमूने के तौर पर लागू किया जाना चाहिए.

महत्वपूर्ण बात ये है कि प्रस्तावित राज्य आपदा प्रबंधन योजना 2022-30 में कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) के फंड को भी सक्रियता से इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है. असम के कारोबारियों को इस बात को समझाना चाहिए कि उनके योगदान से जलवायु परिवर्तन से निपटने में किस तरह मदद मिल सकती है. इसके लिए नॉर्थ ईस्ट CSR कॉर्पस फंड बनाने की संभावना भी तलाशी जानी चाहिए, जिससे इस क्षेत्र की कंपनियों के संसाधन एकजुट किए जाएं और फिर उनका राज्यों की ज़रूरत के अनुपात में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इस्तेमाल किया जाए.

  • सामुदायिक स्तर पर बदलाव की पहल को बढ़ावा दिया जाए और पारंपरिक ज्ञान की व्यवस्थाओं का लाभ उठाया जाए

असम के SAPCC और SDMP ने आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के अनुसार ढालने के लिए ज़मीनी स्तर से कोशिशों की अहमियत की तरफ़ ध्यान खींचा है. पेड़ लगाने और पानी निकलने की व्यवस्था सुधारने के लिए वाटर चैनल बनाने जैसे सामुदायिक प्रयासों को जारी रखा जाना चाहिए. स्थानीय समुदायों द्वारा ख़ुद को जलवायु परिवर्तन के अनुसार ढालने की कोशिशों, जैसे कि बाढ़ प्रभावित पूर्वी असम में मिसिंग आदिवासी समुदाय द्वारा बांस के आधार पर ‘पोर्टेबल’ घर बनाने जैसी कोशिशों को दूसरों को भी बताना चाहिए और उन्हें दूसरे समुदायों द्वारा अपनाने को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

उम्मीद की किरण नहीं दिखती?

जैसे जैसे नया महीना बीत, वैसे वैसे ऐसा लगा कि असम के लोगों को बहुत कम राहत मिल रही है. अगस्त महीने में जोरहाट ज़िले में औसत से ज़्यादा बारिश और बाढ़ का एलर्ट जारी किया गया था. आशंका जताई गई थी कि ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर सिर्फ़ एक दिन में 10 से 25 सेंटीमीटर तक बढ़ जाएगा. इस वजह से सीधे तौर पर बाढ़ से प्रभावित और विस्थापित लोगों की तादाद बढ़कर 64 हज़ार से अधिक हो गई है. खेती लायक़ ज़मीन का बड़ा हिस्सा पानी में डूबा हुआ है क्योंकि बाढ़ का पानी उतर नहीं रहा है. बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए बड़े पैमाने पर राहत और बचाव के अभियान चलाने पड़े. अगस्त में भी असम को तेज़ बारिश और बाढ़ से कोई राहत नहीं मिली.

असम के नए प्रस्तावित SDMP 2022-30 में इस मोर्चे पर बदलाव देखने को मिला है. इस योजना में निजी क्षेत्र से पूंजी हासिल करने की कई संभावनाओं का ज़िक्र किया गया है. इसमें बीमा और जोखिम के लिए होने वाले ख़र्च को जुटाना शामिल है

असम में जलवायु परिवर्तन और आपदा के ख़तरों से असरदार तरीक़े से निपटने और स्थायी बदलाव निर्मित करने की प्रक्रिया लंबी और मुश्किल होने वाली है. जैसा कि हमने इस लेख में बताया है कि इसके लिए कई स्तरों पर संस्थागत बदलाव करने होंगे; जोखिम के आकलन की कोशिशों का विकेंद्रीकरण करना होगा, समुदायों को नए तरीक़े से इस प्रक्रिया में जोड़ना होगा और प्रशासनिक अधिकारियों और दूसरे भागीदारों को शिक्षित करना होगा. जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन के लिए पूंजी जुटाने के नए उपाय करने होंगे, निजी क्षेत्र को साझीदार बनाना होगा और पारंपरिक ज्ञान की व्यवस्थाओं को भी अपनाना होगा. अगर इन सभी मोर्चों पर फ़ौरी क़दम नहीं उठाए जाते हैं, तो आने वाले वर्षों में असम में लोगों की ज़िंदगियों, ज़मीनों और रोज़ी-रोज़गार को होने वाला नुक़सान और बढ़ता ही जाएगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Author

Anirban Sarma

Anirban Sarma

Anirban Sarma is Director of the Digital Societies Initiative at Observer Research Foundation (ORF). He is presently a Lead Co-Chair of the Think20 Brazil Task ...

Read More +

Related Search Terms