Author : Manoj Joshi

Published on May 17, 2022 Updated 1 Days ago

जम्मू-कश्मीर में अमनचैन की आधिकारिक पटकथा के बीच ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही तस्वीर पेश करती है.

कश्मीर के मौजूदा हालात: क्या इसे ही (न्यू) नॉर्मल कहा जा रहा है?

इसी महीने ईद के मौक़े पर जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों ने श्रीनगर की जामा मस्जिद और ईदगाह़ में सामूहिक नमाज़ पर रोक से लेकर कई तरह की पाबंदियों का ऐलान कर दिया. केंद्रशासित प्रदेश के अधिकारियों का ये फ़ैसला शायद इस बात की सबसे पुख़्ता मिसाल है कि वहां के हालात सामान्य नहीं हैं. अगस्त 2019 में राज्य से केंद्रशासित प्रदेश में तब्दील होने और भारी तादाद में सुरक्षा बलों की तैनाती से वहां एक बदसूरत स्थायित्व के हालात बन गए हैं. हालांकि, आधिकारिक पटकथा यही है कि अनुच्छेद 370 के ख़ात्मे और राज्य के केंद्रशासित प्रदेश में बदल जाने के बाद वहां के हालात नाटकीय रूप से सुधर रहे हैं. मार्च की शुरुआत में दैनिक अख़बार ग्रेटर कश्मीर को दिए इंटरव्यू में सेना की 15वीं कोर के प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल डी. पी. पांडेय ने कहा था कि “शांति और समृद्धि के तमाम पैमाने अपने बेहतरीन मुक़ाम पर हैं”, और वहां एक “न्यू नॉर्मल” का दौर है जो राज्य के लिए फ़ायदेमंद साबित होगा. 

अगस्त 2019 में राज्य से केंद्रशासित प्रदेश में तब्दील होने और भारी तादाद में सुरक्षा बलों की तैनाती से वहां एक बदसूरत स्थायित्व के हालात बन गए हैं. हालांकि, आधिकारिक पटकथा यही है कि अनुच्छेद 370 के ख़ात्मे और राज्य के केंद्रशासित प्रदेश में बदल जाने के बाद वहां के हालात नाटकीय रूप से सुधर रहे हैं. 

मार्च में जम्मू-कश्मीर के दौरे पर पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आतंकी वारदातों के आंकड़ों के आधार पर केंद्रशासित प्रदेश के सुरक्षा हालात में बेहतरी का दावा किया. उनके मुताबिक 2018 में आतंकी वारदातों की तादाद 417 थी जो 2021 में घटकर 229 रह गई. इसी कालखंड में सुरक्षा जवानों की मौत का आंकड़ा 91 से घटकर 42 पर आ गया. गृहमंत्री का कहना था कि अगले कुछ वर्षों में जम्मू-कश्मीर से केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को पूरी तरह से हटा लिए जाने की तमाम संभावनाएं पैदा हो गई हैं.  

अप्रैल के अंत में प्रधानमंत्री मोदी ने भी जम्मू-कश्मीर का दौरा किया. केंद्रशासित प्रदेश बन चुके जम्मू-कश्मीर की ये उनकी पहली यात्रा थी. प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीरी युवाओं से वादा किया कि “आपको अपने माता-पिता और दादा-दादी द्वारा उठाई गई तकलीफ़ों का सामना नहीं करना होगा”. प्रधानमंत्री ने वहां 20 हज़ार करोड़ के विकास कार्यक्रम का उद्घाटन किया. उन्होंने बिना लाग-लपेट के कहा कि कश्मीरी युवाओं के लिए नए अवसरों के द्वारा खुलने शुरू हो गए हैं और अगले 25 वर्षों में उनके अच्छे दिन सामने दिखाई देने लगेंगे. 

ज़मीनी हक़ीक़त

बहरहाल, आंकड़े तो महज़ आंकड़े हैं. हाल ही में कश्मीर पुलिस के आईजी विजय कुमार ने कहा है कि 2022 के पहले चार महीनों में वहां 62 आतंकवादियों को मार गिराया गया है. ऐसे में सवाल उठना लाज़िमी है कि हालात में ये कैसा “सुधार” है. ये बात ठीक है कि दहशतगर्दों को ठिकाने लगाया जा रहा है और अब उनका पहले जैसा ख़तरा नहीं रह गया है. साथ ही आतंकवादियों और घुसपैठियों की तादाद भी कम हो रही है. हालांकि अब भी कश्मीर घाटी में इनकी बड़े पैमाने पर मौजूदगी बरक़रार है. इसी तरह सुरक्षा बलों की भारी तैनाती और उनकी ओर से रोज़ाना अंजाम दिए जा रहे छापों और कार्रवाइयों के मद्देनज़र घाटी के हालात को सामान्य स्थिति की ओर बढ़ता नहीं बताया जा सकता. 

21 अप्रैल को उत्तरी कश्मीर में बारामूला के मालवाह इलाक़े में हुई मुठभेड़ में लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर युसूफ़ कांतरू अपने दो साथियों के साथ मारा गया था. प्रधानमंत्री के दौरे के कुछ ही दिनों बाद कश्मीर के पुलवामा ज़िले में रात भर चले ऑपरेशन में अल-बद्र समूह से जुड़े 2 आतंकवादियों को मार गिराया गया. 

आईजी विजय कुमार के मुताबिक मारे गए 62 आतंकवादियों में से 15 विदेशी थे. इससे संकेत मिलते हैं कि भले ही सीमा पार से घुसपैठ में कमी आई हो लेकिन ये पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुई है. इसके साथ ही आतंकवाद में स्थानीय लोगों की हिस्सेदारी और समर्थन भी एक अहम कारक बना हुआ है. एक अन्य इंटरव्यू में आईजी ने कहा है कि इस सूची में अब स्थानीय तौर पर भर्ती होने वाले आतंकियों की एक नई श्रेणी भी जुड़ गई है. इन्हें “हाइब्रिड आतंकी” के नाम से जाना जाता है. ये वो लोग हैं जिनके बारे में पुलिस के पास कोई पूर्व रिकॉर्ड मौजूद नहीं होता और वो अपने आकाओं से ऑनलाइन माध्यमों के ज़रिए संपर्क में रहते हैं. 

हालिया उछाल

पिछले महीने प्रधानमंत्री मोदी के जम्मू-कश्मीर दौरे से पहले और उसके बाद एक के बाद एक कई मुठभेड़ों में कम से कम 9 आतंकवादी मारे गए. यहां तक कि प्रधानमंत्री के पहुंचने से कुछ ही घंटों पहले जम्मू के बिश्नाह इलाक़े से धमाके की भी ख़बर आई थी. हालांकि इस ब्लास्ट से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक नहीं की गईं हैं. 22 अप्रैल को उनके दौरे से ऐन पहले सुजवां के मिलिट्री कैंट के पास सीआईएसएफ़ की बस पर आतंकी हमला हुआ था. जवाब में सुरक्षा बलों ने दो संदिग्ध पाकिस्तानी आतंकवादियों को मार गिराया. ग़ौरतलब है कि इस इलाक़े में 2003 और 2018 में भी आतंकी हमले हो चुके हैं. 

बताया जाता है कि मारे गए आतंकवादी आत्मघाती हथियारों से लैस थे. पुलिस का मानना है कि इन आतंकवादियों ने हाल ही में सीमा पार से घुसपैठ की होगी. दरअसल, उनके पास सैटेलाइट फ़ोन, बंदूकें, गोला-बारूद, वायरलेस सेट, खाने-पीने के डिब्बाबंद सामान, एनर्जी ड्रिंक्स और दवाइयों जैसे ज़रूरी साज़ोसामान मौजूद थे. पुलिस के मुताबिक शायद उनका इरादा प्रधानमंत्री की रैली पर हमला करने का नहीं था. मुमकिन है कि वो इस केंद्रशासित प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी के पहले दौरे के मद्देनज़र किसी और ठिकाने पर आत्मघाती हमला कर सुर्ख़ियों में जगह बनाना चाहते थे. 

जम्मू-कश्मीर में 2019 के बाद से अब तक 14 हिंदुओं की हत्या हो चुकी है. इनमें 4 कश्मीरी पंडित थे. मंत्री ने आगे बताया था कि अगस्त 2019 के बाद से प्रधानमंत्री के विकास पैकेज के तहत रोज़गार हासिल करने के मक़सद से 2,105 प्रवासी कश्मीर वापस लौट चुके हैं. हालिया वारदातों से ज़ाहिर है कि घाटी में कश्मीरी पंडितों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है.

इससे ठीक एक दिन पहले, 21 अप्रैल को उत्तरी कश्मीर में बारामूला के मालवाह इलाक़े में हुई मुठभेड़ में लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर युसूफ़ कांतरू अपने दो साथियों के साथ मारा गया था. प्रधानमंत्री के दौरे के कुछ ही दिनों बाद कश्मीर के पुलवामा ज़िले में रात भर चले ऑपरेशन में अल-बद्र समूह से जुड़े 2 आतंकवादियों को मार गिराया गया. उसी दिन जम्मू में हाईवे पर आईईडी बरामद हुई थी, जिसे बाद में नाकाम कर दिया गया. पिछले महीने शहर में गोलीबारी के बाद 2 आतंकवादियों को मार गिराया गया था. ये दोनों श्रीनगर में सीआरपीएफ़ पर हुए हमले में शामिल थे.  

आतंकी हमले

केंद्रीय सुरक्षा बल और ख़ुफ़िया एजेंसियां बड़ी आतंकी वारदातों की रोकथाम करने में कामयाब रही हैं. बहरहाल असल समस्या छिटपुट तरीक़े से आम लोगों पर हो रहे हमलों को लेकर है. ज़ाहिर है इन लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की क़वायद आसान नहीं है. ऐसे हमले बेहद ख़ौफ़नाक़ होते हैं. इससे इन मासूम लोगों के बीच डर का माहौल बन जाता है. आतंकियों का निशाना बनने वाले ऐसे लोगों में ज़्यादातर कश्मीरी पंडित या दूसरे राज्यों से आए कामगार हैं. बीते 12 मई को ही आतंकियों ने बडगाम के चडूरा में तहसील परिसर में घुसकर वहां नौकरी करने वाले कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की गोली मारकर हत्या कर दी. ग़ौरतलब है कि 1990 के बाद से जारी तमाम मुसीबतों के बावजूद कश्मीरी पंडितों का एक छोटा समूह अब भी घाटी में रह रहा है. 

अप्रैल में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि जम्मू-कश्मीर में 2019 के बाद से अब तक 14 हिंदुओं की हत्या हो चुकी है. इनमें 4 कश्मीरी पंडित थे. मंत्री ने आगे बताया था कि अगस्त 2019 के बाद से प्रधानमंत्री के विकास पैकेज के तहत रोज़गार हासिल करने के मक़सद से 2,105 प्रवासी कश्मीर वापस लौट चुके हैं. हालिया वारदातों से ज़ाहिर है कि घाटी में कश्मीरी पंडितों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है. अप्रैल में शोपियां के चोटीगाम में दवा विक्रेता बाल कृष्ण पर उनके स्टोर पर ही गोलियां बरसा दी गई थीं. सुरक्षा की मांग करने वाले पंडितों को सुरक्षा मुहैया करवाई जाती है लेकिन ऐसे हालातों में उनके लिए सामान्य जीवन जीना बेहद मुश्किल होता है. आतंकियों का एक और निशाना ग़ैर-स्थानीय कामगार बनते हैं. अप्रैल में ऐसे ही चार लोगों को गोली मार दी गई थी, हालांकि उनकी जान बच गई थी. 

फ़रवरी 2021 से शुरू हुए संघर्षविराम से इसकी रोकथाम में मदद मिली है. हालांकि, घुसपैठ पर अब भी पूरी तरह से लगाम नहीं लग पाई है और इसी वजह से ऐसे हालात देखने को मिल रहे हैं. विदेशी जिहादियों की तादाद भले ही कम हो, लेकिन उनका काम कश्मीर में अशांति बनाए रखना और स्थानीय आतंकी गतिविधियों को लगातार हवा देते रहना है.

पिछले साल नागरिकों पर हमलों की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है. इनमें कई प्रवासी मज़दूर थे. अक्टूबर 2021 में 2 हफ़्तों के भीतर ऐसे ही 5 मज़दूरों की हत्या कर दी गई थी. उसी महीने श्रीनगर के दवा विक्रेता एमएल बिंद्रू का भी उनकी दुकान पर क़त्ल कर दिया गया था. इस कड़ी में 7 अक्टूबर 2021 को सबसे ख़ौफ़नाक़ तस्वीर सामने आई. उस दिन 2 शिक्षकों सुपिंदर कौर और दीपक चंद की हत्या कर दी गई. फ़रवरी 2021 में श्रीनगर के एक लोकप्रिय रेस्टोरेंट से जुड़े 25 वर्षीय नौजवान आकाश मेहरा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. 

कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाने की ताज़ा कड़ी दिसंबर 2020 में 70 साल के बुज़ुर्ग सतपाल निश्चल की हत्या से शुरू हुई. वो 40 सालों से श्रीनगर में ज्वैलरी स्टोर चला रहे थे. जम्मू-कश्मीर के नए डोमिसाइल क़ानून के तहत जायदाद की ख़रीद को लेकर उन्होंने हाल ही में सर्टिफ़िकेट भी हासिल किया था. “द रेज़िस्टेंस फ़्रंट” नाम के गुमनाम से संगठन ने इनमें से कई हत्याओं की ज़िम्मेदारी का दावा किया है और मारे गए लोगों को कश्मीर पर भारत के क़ब्ज़े से जुड़ा मोहरा क़रार दिया है. 

पाकिस्तानी हाथ

कम से कम काग़ज़ पर पाकिस्तान की भूमिका सीमित दिखाई देती है. नियंत्रण रेखा पर संघर्षविराम के साथ-साथ सीमा पार से घुसपैठ में भी गिरावट आई है. अप्रैल में सरकार ने संसद को बताया था कि 2017 में घुसपैठ की तक़रीबन 136 वारदातों के मुक़ाबले 2020 में केवल 51 और 2021 में महज़ 34 घटनाएं दर्ज की गईं. लंबे अर्से से नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी के ज़रिए घुसपैठियों को सीमा पार कराने और उनकी वापसी की क़वायद को अंजाम दिया जाता रहा है. बहरहाल, फ़रवरी 2021 से शुरू हुए संघर्षविराम से इसकी रोकथाम में मदद मिली है. हालांकि, घुसपैठ पर अब भी पूरी तरह से लगाम नहीं लग पाई है और इसी वजह से ऐसे हालात देखने को मिल रहे हैं. विदेशी जिहादियों की तादाद भले ही कम हो, लेकिन उनका काम कश्मीर में अशांति बनाए रखना और स्थानीय आतंकी गतिविधियों को लगातार हवा देते रहना है. समय-समय पर वो पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के हुक़्म पर चुनिंदा रूप से हमलों को अंजाम देते रहते हैं. 

हमने ऊपर सीमा पार से घुसपैठ कर आए उन 2 आतंकवादियों का ज़िक्र किया है जिन्हें सुजवां के पास 22 अप्रैल को ढेर कर दिया गया था. उसके बाद से पाकिस्तानी सरहद से घुसपैठ की किसी नई वारदात की ख़बर नहीं आई है. बीएसएफ़ ने घुसपैठ में संभावित रूप से इस्तेमाल की जाने वाली गुफ़ाओं की पहचान करने और उन्हें तबाह करने का अभियान छेड़ रखा है. 

पिछले साल घुसपैठ की सबसे संगीन वारदात उरी सेक्टर में 21 सितंबर को सामने आई थी. पाकिस्तानी मूल के 6 आतंकवादियों ने LoC से भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश की थी. बहरहाल, सीमा पर लगे कंटीले बाड़ों के पास उन आतंकवादियों को रोक लिया गया. इनमें से चार घुसपैठिए वापस लौटने में कामयाब रहे. हालांकि, उनका सरगना क़ारी अनस इस कोशिश में मारा गया. वो पाकिस्तान पंजाब के अटक का रहने वाला था. एक और घुसपैठिए अली बाबर को ज़िंदा दबोच लिया गया. 18 साल के इस घुसपैठिए ने भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को वही पुराना जाना माना क़िस्सा सुनाया. ग़रीबी और तंगहाली में घिरे होने और मजहबी उन्माद में बहक जाने की वजह से वो 2019 में अपने शहर ओकारा से निकलकर लश्कर के कुनबे में शामिल हो गया. उसके तमाम उस्तादों में से एक क़ारी अनस ने अप्रैल 2021 में उसे ताज़ा ट्रेनिंग के लिए वापस लौटने को रज़ामंद कर लिया. इसके बाद उससे 4 महीनों तक जी तोड़ मेहनत करवाई गई. इस दौरान उसे टेक्निकल ट्रेनिंग भी दी गई. उसे अल्पाइन क्वेस्ट और मैट्रिक्स शीट्स जैसे जीपीएस ऐप्स का इस्तेमाल भी सिखाया गया. इसका मक़सद नियंत्रण रेखा के आसपास के मुश्किल भौगोलिक हालातों से पार पाते हुए आगे निकलने की क़वायद के लिए उसे तैयार करना था. कुल मिलाकर उसके द्वारा भारतीय अधिकारियों के सामने किए गए ख़ुलासों से ज़ाहिर है कि भारत के साथ छद्म युद्ध के लिए पाकिस्तान का बुनियादी ढांचा अब भी सक्रिय है. 

बहरहाल, कश्मीर में आतंकवाद के सामने एक बड़ी दिक़्क़त नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना द्वारा खड़ी की गई घातक और लगभग अभेद्य सुरक्षा-दीवार है. अब घाटी तक हथियार और गोला-बारूद लाना बेहद मुश्किल हो गया है. ऐसे में आईएसआई ने घाटी में हथियार और गोलाबारूद गिराने के लिए ड्रोन जैसे ग़ैर-परंपरागत साधनों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. सुरक्षा को लेकर परेशान कर देने वाले इन हालातों के अलावा घाटी की राजनीतिक परिस्थितियां भी अनिश्चित बनी हुई हैं. कुल मिलाकर कुछ बदलावों के अलावा हालात में कोई ख़ास सुधार नहीं आया है. ज़ाहिर तौर पर सिर्फ़ गतिशीलता पर आधारित रणनीति के तहत सघन आतंकवाद-निरोधी कार्रवाइयों पर ज़ोर देने और उससे हासिल होने वाले नतीजों की अपनी सीमा है. 

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