भारतीय स्वास्थ्यकर्मियों को हुनरमंद बनाकर विदेश भेजना रोज़गार बढ़ाने का एक तरीक़ा है. अगर भारत अपने स्वास्थ्य कार्यबल की क्षमता बनाने में निवेश करे तो वो अपनी और दुनिया की ज़रूरत को पूरा कर सकता है.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ मालदीव, जो अभी तक महामारी को चकमा देने में कामयाब रहकर पर्यटन के लिए खुला रहा था, पिछले दिनों संकट के दौर में प्रवेश कर गया क्योंकि कोविड के मामले बढ़ने लगे और इस द्वीपीय देश में डॉक्टर और नर्स की कमी हो गई. मालदीव में काम करने वाले लगभग सभी स्वास्थ्यकर्मी भारत के हैं लेकिन भारत ख़ुद ही स्वास्थ्य संकट से गुज़र रहा था जिसकी वजह से वो कोई सहायता मुहैया नहीं करा सका.
भारत में कोविड की दूसरी लहर शुरू होने के बाद हवाई उड़ानों पर पाबंदी लगी होने की वजह से यूएई के सैकड़ों स्वास्थ्यकर्मी भारत में फंस गए. जुलाई की शुरुआत में इन स्वास्थ्यकर्मियों को यूएई जाने की विशेष मंज़ूरी दी गई.
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भी इसी तरह प्रभावित हुआ था. भारत में कोविड की दूसरी लहर शुरू होने के बाद हवाई उड़ानों पर पाबंदी लगी होने की वजह से यूएई के सैकड़ों स्वास्थ्यकर्मी भारत में फंस गए. जुलाई की शुरुआत में इन स्वास्थ्यकर्मियों को यूएई जाने की विशेष मंज़ूरी दी गई. दुनिया के कई और देशों के साथ मालदीव और यूएई- दोनों स्वास्थ्यकर्मियों की आपूर्ति के लिए काफ़ी हद तक भारत पर निर्भर हैं.
रोज़गार बढ़ाने के लिए भारत से स्वास्थ्यकर्मियों का निर्यात
इस साल की शुरुआत में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई), जिस पर कामगारों को हुनरमंद बनाने का ज़िम्मा है, ने हेल्थकेयर सेक्टर की पहचान रोज़गार के बड़े स्रोत के रूप में की. मंत्रालय ने ऐलान किया कि वो 2022 तक अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, जापान, स्वीडन और सिंगापुर जैसे देशों को 3,00,000 हेल्थकेयर कामगार, डॉक्टर, नर्स और उससे जुड़े स्वास्थ्यकर्मी भेजेगा. अलग-अलग प्रकाशनों में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, ये कामगार स्थायी प्रवासी नहीं होंगे बल्कि उन सेक्टर के कर्मचारी होंगे जहां मांग और जनसांख्यिकीय चुनौतियां हैं.
2017 के आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि भारत के 69,000 डॉक्टर यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में काम करते हैं जबकि 56,000 भारतीय नर्स इन चार देशों में काम करते हैं.
स्वास्थ्यकर्मियों की ट्रेनिंग और भारत से उनका निर्यात एमएसडीई की उस पहल का हिस्सा है जिसके तहत भारत के श्रम बाज़ार को दूसरे देशों से जोड़ा जा रहा है. हेल्थकेयर के अलावा ऑटोमोबाइल, कंस्ट्रक्शन, औद्योगिकी मशीनरी के सेक्टर और हॉस्पिटैलिटी जैसे सेक्टर की पहचान की गई है जहां कुशल कामगारों को विदेश विदेश भेजा जाएगा. अगले तीन दशकों में दुनिया भर में उम्रदराज लोगों की आबादी में बढ़ोतरी से स्वास्थ्यकर्मियों की मांग में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. ये स्थिति भारतीय कामगारों के लिए एक मौक़ा पेश करेगा. आबादी के मामले में फ़ायदेमंद स्थिति वाले देश भारत के लिए वैश्विक श्रम आवागमन की तैयारी और उसमें निवेश रोज़गार के संकट का एक समाधान है जो महामारी के साथ और बढ़ गया है.
स्वास्थ्य कामगारों के लिए प्रवासी अनुकूल नीतियां
भारत, जहां दुनिया में सबसे ज़्यादा मेडिकल कॉलेज (541) हैं, विकसित देशों को स्वास्थ्यकर्मियों के निर्यात के मामले में सबसे बड़े देशों में से एक है. यूरोप के देश, खाड़ी क्षेत्र, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, न्यूज़ीलैंड और इसराइल में भारत के स्वास्थ्यकर्मी बड़ी तादाद में काम करते हैं. 2017 के आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि भारत के 69,000 डॉक्टर यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में काम करते हैं जबकि 56,000 भारतीय नर्स इन चार देशों में काम करते हैं.
जिस वक़्त अलग-अलग देश अपनी सीमा को बंद कर रहे हैं और माइग्रेशन पर रोक लगा रहे हैं, उस वक़्त स्वास्थ्यकर्मी इस मामले में अपवाद हैं. ओईसीडी की एक ताज़ा रिपोर्ट में कोविड-19 महामारी के दौरान प्रवासी स्वास्थ्य कामगारों को एक प्रमुख संपत्ति के तौर पर बताया गया है. ऑस्ट्रेलिया और लग्ज़मबर्ग जैसे देशों में विदेशों में पैदा डॉक्टर्स की संख्या 50 प्रतिशत से ज़्यादा थी और स्विटज़रलैंड, ऑस्ट्रेलिया और इसराइल में विदेश में पैदा नर्स की संख्या 30 प्रतिशत से ज़्यादा थी.
यूनाइटेड किंगडम ने अप्रैल में विदेशी स्वास्थ्य कामगारों के लिए एक साल के वीज़ा एक्सटेंशन की अनुमति दी. इस फ़ैसले से सबसे ज़्यादा फ़ायदा भारतीय डॉक्टर्स और नर्स को होगा. ये एक्सटेंशन यूनाइटेड किंगडम में पिछले साल शुरू नये स्वास्थ्य और केयर वीज़ा के तहत दिया गया
रिपोर्ट में कहा गया है कि कई ओईसीडी देशों, जो महामारी से पहले ही प्रवासी स्वास्थ्य कामगारों पर निर्भर थे, ने विदेशी स्वास्थ्यकर्मियों के प्रवेश को आसान बनाने और उनकी प्रोफशनल योग्यता को मान्यता देने के लिए अतिरिक्त नीतिगत उपाय लागू किए. यूनाइटेड किंगडम ने अप्रैल में विदेशी स्वास्थ्य कामगारों के लिए एक साल के वीज़ा एक्सटेंशन की अनुमति दी. इस फ़ैसले से सबसे ज़्यादा फ़ायदा भारतीय डॉक्टर्स और नर्स को होगा. ये एक्सटेंशन यूनाइटेड किंगडम में पिछले साल शुरू नये स्वास्थ्य और केयर वीज़ा के तहत दिया गया जिसका मक़सद दुनिया भर के स्वास्थ्य प्रोफेशनल्स के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) में काम करना और उससे जुड़े सामाजिक देखभाल सेक्टर को “आसान, सस्ता और जल्द फ़ैसला लेने वाला” बनाना था. अमेरिका ने भी इसी तरह स्वास्थ्य कामगारों के लिए पिछले साल वीज़ा में छूट की योजना का ऐलान किया.
महामारी की शुरुआत के समय से भारतीय नर्स- फिलीपींस के बाद दुनिया में भारतीय नर्स सबसे ज़्यादा हैं- को अतिरिक्त वेतन और फ़ायदों की पेशकश की जा रही है. पिछले दिनों छपी एक ख़बर के मुताबिक सऊदी अरब, यूएई, आयरलैंड, माल्टा, जर्मनी, नीदरलैंड्स और बेल्जियम जैसे देशों में भारतीय नर्स की मांग में तेज़ बढ़ोतरी देखी गई है. ये आंकड़ा ओवरसीज़ डेवलपमेंड एंड इम्प्लॉयमेंट प्रमोशन कंसल्टेंट्स (ओडीईपीसी) से इकट्ठा किया गया जिसे केरल सरकार चलाती है और जिसके मुताबिक़ हर महीने औसतन 40 के मुक़ाबले इस साल फरवरी में 253 नर्स को विदेश भेजा गया.
भारत की स्वास्थ्य देखभाल में कमी
जहां स्वास्थ्यकर्मियों को हुनरमंद बनाकर विदेश भेजने में संभावना बहुत ज़्यादा है, वहीं इसकी कठिनाइयां भी हैं. हर साल एमबीबीएस में 80,312 छात्रों के दाखिला लेने की क्षमता के बावजूद स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ़ से साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक़ भारत डॉक्टर्स और नर्स की कमी का सामना कर रहा है. ये स्थिति उस वक़्त है जब पिछले एक दशक के दौरान डॉक्टर्स की संख्या में कुल मिलाकर बढ़ोतरी हुई है- राज्य मेडिकल काउंसिल/मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पास रजिस्टर्ड डॉक्टरों की संख्या 2010 के 8,27,006 से बढ़कर सितंबर 2020 में 12,55,786 हो गई. 2020 का सरकारी डाटा बताता है कि भारत में डॉक्टर-मरीज़ का अनुपात 1:1,404 है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की तरफ़ से निर्धारित 1:1,000 के अनुपात से काफ़ी कम है. इसी तरह भारत में प्रति 1,000 की आबादी पर 1.7 नर्स हैं जो डब्ल्यूएचओ की तरफ़ से निर्धारित 1,000 की आबादी पर 3 नर्स से 43 प्रतिशत कम है. इस कमी की वजह राज्यों और ग्रामीण-शहरी भारत के बीच असमान वितरण को बताया जाता है. ये कमी ब्रेन ड्रेन की पुरानी बहस को बढ़ाता है और स्वास्थ्यकर्मियों के भारत में बने रहने के लिए प्रोत्साहन देने की ज़रूरत के बारे में बताता है, ख़ास तौर से उस वक़्त जब कोविड-19 ने भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को तबाह कर दिया है.
माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में भारत में उन स्थितियों की पहचान की गई है जिसकी वजह से डॉक्टर बाहर जाते हैं जैसे सरकार के द्वारा हेल्थकेयर में निवेश में कमी, नौकरीशाही के दखल की वजह से वरिष्ठ पदों पर डॉक्टर्स की नियुक्ति में देरी और ग्रैजुएट डॉक्टर्स के लिए आगे पढ़ाई के पर्याप्त अवसर का नहीं होना.
भारत से डॉक्टर्स और नर्स का माइग्रेशन ज़्यादा वेतन और बेहतर मौक़े मिलने की वजह से तेज़ होता है. अमेरिका जैसे देशों के द्वारा विकासशील देशों- जहां पहले ही डॉक्टर्स की संख्या कम है- के डॉक्टर्स को प्रलोभन देना एक नैतिक और नीतिगत बहस है. लेकिन माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में भारत में उन स्थितियों की पहचान की गई है जिसकी वजह से डॉक्टर बाहर जाते हैं जैसे सरकार के द्वारा हेल्थकेयर में निवेश में कमी, नौकरीशाही के दखल की वजह से वरिष्ठ पदों पर डॉक्टर्स की नियुक्ति में देरी और ग्रैजुएट डॉक्टर्स के लिए आगे पढ़ाई के पर्याप्त अवसर का नहीं होना.
इन कमियों को पूरा करने के लिए हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर, प्रोफेशनल कॉलेज और तकनीकी शिक्षा में ज़्यादा निवेश करने की ज़रूरत है. इसके अलावा ऐसी नीतियां भी होनी चाहिए जो स्वास्थ्य कामगारों की क्षमता और उनकी गुणवत्ता को बढ़ाएं. नया क़ानून, नेशनल कमीशन फॉर अलाइड एंड हेल्थकेयर प्रोफेशन्स एक्ट 2021 इसी दिशा में उठाया गया क़दम है जिससे कि स्वास्थ्यकर्मियों के लिए शैक्षणिक और सेवा मानकों को बरकरार और रेगुलेट किया जा सके. अगर भारत उन वजहों का समाधान करता है जो माइग्रेशन को बढ़ाते हैं तो न सिर्फ़ देश में स्वास्थ्यकर्मियों की ज़रूरत को पूरा किया जा सकेगा बल्कि दुनिया की मांग को भी पूरा किया जा सकेगा.
भारतीय स्वास्थ्यकर्मियों के लिए वैश्विक हेल्थकेयर सेक्टर में बहुत बड़ा अवसर है और उन्हें देश या विदेश में से किसी एक को चुनने की परिस्थिति नहीं होनी चाहिए. कुशलता से बनाई गई नीतियां इस मामले में बहुत कारगर हो सकती हैं जैसा कि केरल के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ने सुझाव दिया है. उदाहरण के तौर पर सर्कुलर माइग्रेशन पॉलिसी जहां देश महत्वपूर्ण मानव स्वास्थ्य संसाधनों को साझा करने के लिए तैयार हो सकते हैं और बेहद ज़रूरी हालात में प्रवासी स्वास्थ्यकर्मियों को वापस घर भेजने के लिए तैयार हों. हमने भारत के ताज़ा संकट के दौरान इसके सबूत देखे हैं जब विदेशों में बसे भारतीय डॉक्टर्स ने मदद के लिए हाथ बढ़ाए.
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