Author : K. Yhome

Published on Apr 04, 2020 Updated 0 Hours ago

पड़ोसी देशों के प्रति भारत के सक्रिय भूमिका निभाने से अन्य बड़ी ताक़तों को इस क्षेत्र में दख़ल देने का अवसर मिलने की संभावना भी कम हो जाती है. और इस तरह भारत को अपनी क्षेत्रीय कूटनीति और संबंधों की दशा-दिशा तय करने में भी मदद मिलती है.

कोविड 19: वैश्विक संकट के दौर में भारत की सार्क डिप्लोमेसी

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, एक ऐसा संगठन है, जो भौगोलिक रूप से भारत केंद्रित है. ये भौगोलिक परिस्थिति भारत के लिए एक चुनौती भी है और उसे अवसर भी प्रदान करती है. कोरोना वायरस से निपटने को लेकर भारत की कूटनीतिक सक्रियता के पीछे यही भौगोलिक यथार्थवाद और इस क्षेत्र का नेतृत्व करने की ज़िम्मेदारी लेने की भारत की इच्छा है. क्योंकि कोरोना वायरस का प्रकोप एक बड़ा क्षेत्रीय संकट बनता जा रहा है.

भौगोलिक रूप से सार्क देशों के केंद्र में होने और अपने विशाल आकार के कारण भारत को ये अवसर देता है कि वो सार्क देशों में आपसी सहयोग को बढ़ावा दे. पर, इसी के साथ भारत की भौगोलिक स्थितियां इसके लिए हर मोर्चे पर चुनौतियां भी खड़ी करती हैं. ख़ास तौर से तब और जब कोरोना वायरस ऐसी चुनौती है जो राष्ट्रीय सीमाओं का का पालन नहीं करती.

एक ऐसे क्षेत्र में जहां सीमाओं के आर-पार आवाजाही बेहद आसान हैं. और जहां कई सीमावर्ती इलाक़े घनी आबादी वाले हैं. ऐसे क्षेत्र में किसी महामारी का मुक़ाबला करने का एक ही तरीक़ा है- सामूहिक प्रयास. इस ज़मीनी हक़ीक़त को देखते हुए, इस जानलेवा वायरस का सामना करने के लिए पूरे क्षेत्र को सामूहिक नीति बनाने और इस पर अमल करने की ज़रूरत है ताकि इस संक्रामक वायरस को ज़मीनी सीमाओं से फैलने से रोका जा सके. इसी सच्चाई ने भारत को कोरोना वायरस की चुनौती से निपटने के लिए सार्क कूटनीति की शुरुआत करने के लिए बाध्य किया.

सार्क संगठन के दो सदस्य देश (अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान) की ईरान से लगी हुई लंबी सीमाएं हैं. और ईरान इस वक़्त कोरोना वायरस के संकट का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है. जब दिल्ली ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक क्षेत्रीय दृष्टि अपनाने के लिए कूटनीतिक प्रयास आरंभ किए, उस समय चीन और इटली के बाद ईरान में ही कोरोना वायरस से सबसे ज़्यादा मौतें हो रही थीं.

यहां ये बात भी ध्यान देने लायक़ है कि सार्क के चार सदस्य देशों की सीमाएं चीन से लगी हुई हैं, जो कोरोना वायरस के प्रकोप शुरू होने का केंद्र है. हालांकि, तिब्बत स्वायत्त शासित क्षेत्र में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या कम थी. और चीन का यही क्षेत्र है, जिसकी सीमाएं सार्क देशों से लगी हुई हैं. अच्छी बात ये है कि तिब्बत में पाए गए कोरोना वायरस के मरीज़ स्वस्थ हो गए हैं और उन्हें 12 फ़रवरी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी.

हाल के वर्षों में भारत ने क्षेत्रीय स्तर पर मानवीय संकटों पर सबसे पहले अपनी प्रतिक्रिया दी है. और आपात परिस्थितियों के प्रबंधन में भी अपने आपको अगुवा के तौर पर पेश किया है. भारत ऐसा अपनी ‘नेबरहुड फ़र्स्ट’ यानी ‘पड़ोसी देश पहले’ की कूटनीति के तहत करता आया है

जिस वक़्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने कोरोना वायरस के विरुद्ध एक क्षेत्रीय अभियान शुरू करने की घोषणा की थी, उस समय तक म्यांमार में इस वायरस का एक भी मरीज़ नहीं पाया गया था. म्यांमार की लंबी सीमा भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से मिलती है. म्यांमार, एक अन्य क्षेत्रीय सहयोग संगठन, बिम्स्टेक (बे ऑफ़ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टीसेक्टोरल टेक्निकल ऐंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन)का प्रमुख सदस्य देश है. उस समय तक भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में भी कोरोना वायरस का एक भी मरीज़ नहीं पाया गया था. पूर्वोत्तर भारत में कोरोना वायरस का पहला मरीज़ 21 मार्च को असम में सामने आया था. ये बातें भी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए, भारत के सार्क देशों के बीच सहयोग की पहल को बिम्स्टेक के ऊपर प्राथमिकता देने के क़दम की व्याख्या करती हैं.

भौगोलिक कारक के अतिरिक्त, भारत के ये पहल करने के पीछे एक अन्य कारण भी नज़र आता है. वो ये है कि भारत इस क्षेत्र का नेतृत्व अपने हाथ में लेने की इच्छा रखता है. हाल के वर्षों में भारत ने क्षेत्रीय स्तर पर मानवीय संकटों पर सबसे पहले अपनी प्रतिक्रिया दी है. और आपात परिस्थितियों के प्रबंधन में भी अपने आपको अगुवा के तौर पर पेश किया है. भारत ऐसा अपनी ‘नेबरहुड फ़र्स्ट’ यानी ‘पड़ोसी देश पहले’ की कूटनीति के तहत करता आया है.

2015 में भारत के पड़ोसी देश नेपाल में 7.9 तीव्रता का भयंकर तबाही लाने वाला भूकंप आया था. तब भी भारत ने नेपाल को मदद पहुंचाने में पहल की थी और राहत टीमें व मदद नेपाल भेजे थे. भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र के देशों और द्वीपों में पैदा हुए अन्य संकटों के समाधान के लिए भी सबसे पहले हाथ बढ़ाया है. 2017 में भारत ने श्रीलंका और बांग्लादेश में तबाही मचाने वाले चक्रवात मोरे से निपटने के लिए दोनों देशों में मदद भेजी थी.

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, एक ऐसा संगठन है, जो भौगोलिक रूप से भारत केंद्रित है. ये भौगोलिक परिस्थिति भारत के लिए एक चुनौती भी है और उसे अवसर भी प्रदान करती है. कोरोना वायरस से निपटने को लेकर भारत की कूटनीतिक सक्रियता के पीछे यही भौगोलिक यथार्थवाद और इस क्षेत्र का नेतृत्व करने की ज़िम्मेदारी लेने की भारत की इच्छा है. क्योंकि कोरोना वायरस का प्रकोप एक बड़ा क्षेत्रीय संकट बनता जा रहा है.

भौगोलिक रूप से सार्क देशों के केंद्र में होने और अपने विशाल आकार के कारण भारत को ये अवसर देता है कि वो सार्क देशों में आपसी सहयोग को बढ़ावा दे. पर, इसी के साथ भारत की भौगोलिक स्थितियां इसके लिए हर मोर्चे पर चुनौतियां भी खड़ी करती हैं. ख़ास तौर से तब और जब कोरोना वायरस ऐसी चुनौती है जो राष्ट्रीय सीमाओं का का पालन नहीं करती.

एक ऐसे क्षेत्र में जहां सीमाओं के आर-पार आवाजाही बेहद आसान हैं. और जहां कई सीमावर्ती इलाक़े घनी आबादी वाले हैं. ऐसे क्षेत्र में किसी महामारी का मुक़ाबला करने का एक ही तरीक़ा है- सामूहिक प्रयास. इस ज़मीनी हक़ीक़त को देखते हुए, इस जानलेवा वायरस का सामना करने के लिए पूरे क्षेत्र को सामूहिक नीति बनाने और इस पर अमल करने की ज़रूरत है ताकि इस संक्रामक वायरस को ज़मीनी सीमाओं से फैलने से रोका जा सके. इसी सच्चाई ने भारत को कोरोना वायरस की चुनौती से निपटने के लिए सार्क कूटनीति की शुरुआत करने के लिए बाध्य किया.

सार्क संगठन के दो सदस्य देश (अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान) की ईरान से लगी हुई लंबी सीमाएं हैं. और ईरान इस वक़्त कोरोना वायरस के संकट का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है. जब दिल्ली ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक क्षेत्रीय दृष्टि अपनाने के लिए कूटनीतिक प्रयास आरंभ किए, उस समय चीन और इटली के बाद ईरान में ही कोरोना वायरस से सबसे ज़्यादा मौतें हो रही थीं.

यहां ये बात भी ध्यान देने लायक़ है कि सार्क के चार सदस्य देशों की सीमाएं चीन से लगी हुई हैं, जो कोरोना वायरस के प्रकोप शुरू होने का केंद्र है. हालांकि, तिब्बत स्वायत्त शासित क्षेत्र में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या कम थी. और चीन का यही क्षेत्र है, जिसकी सीमाएं सार्क देशों से लगी हुई हैं. अच्छी बात ये है कि तिब्बत में पाए गए कोरोना वायरस के मरीज़ स्वस्थ हो गए हैं और उन्हें 12 फ़रवरी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी.

हाल के वर्षों में भारत ने क्षेत्रीय स्तर पर मानवीय संकटों पर सबसे पहले अपनी प्रतिक्रिया दी है. और आपात परिस्थितियों के प्रबंधन में भी अपने आपको अगुवा के तौर पर पेश किया है. भारत ऐसा अपनी ‘नेबरहुड फ़र्स्ट’ यानी ‘पड़ोसी देश पहले’ की कूटनीति के तहत करता आया है

जिस वक़्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने कोरोना वायरस के विरुद्ध एक क्षेत्रीय अभियान शुरू करने की घोषणा की थी, उस समय तक म्यांमार में इस वायरस का एक भी मरीज़ नहीं पाया गया था. म्यांमार की लंबी सीमा भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से मिलती है. म्यांमार, एक अन्य क्षेत्रीय सहयोग संगठन, बिम्स्टेक (बे ऑफ़ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टीसेक्टोरल टेक्निकल ऐंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन)का प्रमुख सदस्य देश है. उस समय तक भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में भी कोरोना वायरस का एक भी मरीज़ नहीं पाया गया था. पूर्वोत्तर भारत में कोरोना वायरस का पहला मरीज़ 21 मार्च को असम में सामने आया था. ये बातें भी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए, भारत के सार्क देशों के बीच सहयोग की पहल को बिम्स्टेक के ऊपर प्राथमिकता देने के क़दम की व्याख्या करती हैं.

भौगोलिक कारक के अतिरिक्त, भारत के ये पहल करने के पीछे एक अन्य कारण भी नज़र आता है. वो ये है कि भारत इस क्षेत्र का नेतृत्व अपने हाथ में लेने की इच्छा रखता है. हाल के वर्षों में भारत ने क्षेत्रीय स्तर पर मानवीय संकटों पर सबसे पहले अपनी प्रतिक्रिया दी है. और आपात परिस्थितियों के प्रबंधन में भी अपने आपको अगुवा के तौर पर पेश किया है. भारत ऐसा अपनी ‘नेबरहुड फ़र्स्ट’ यानी ‘पड़ोसी देश पहले’ की कूटनीति के तहत करता आया है.

2015 में भारत के पड़ोसी देश नेपाल में 7.9 तीव्रता का भयंकर तबाही लाने वाला भूकंप आया था. तब भी भारत ने नेपाल को मदद पहुंचाने में पहल की थी और राहत टीमें व मदद नेपाल भेजे थे. भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र के देशों और द्वीपों में पैदा हुए अन्य संकटों के समाधान के लिए भी सबसे पहले हाथ बढ़ाया है. 2017 में भारत ने श्रीलंका और बांग्लादेश में तबाही मचाने वाले चक्रवात मोरे से निपटने के लिए दोनों देशों में मदद भेजी थी.

सार्क नेताओं के साथ वीडियो कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक आपातकालीन कोष की स्थापना की घोषणा की थी. और इसमें भारत ने एक करोड़ डॉलर के योगदान के साथ शुरुआत की थी

कोरोना संकट से निपटने के लिए भारत की क्षेत्रीय पहल, अपने आस-पास के देशों का नेतृत्व करने की इसकी इच्छा और तैयारियों को दर्शाता है. ताकि वो अपने पड़ोसी देशों में उत्पन्न मानवीय संकटों का समाधान करने में मदद कर सके. पड़ोसी देशों के प्रति भारत के सक्रिय भूमिका निभाने से अन्य बड़ी ताक़तों को इस क्षेत्र में दख़ल देने का अवसर मिलने की संभावना भी कम हो जाती है. और इस तरह भारत को अपनी क्षेत्रीय कूटनीति और संबंधों की दशा-दिशा तय करने में भी मदद मिलती है.

सार्क नेताओं के साथ वीडियो कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक आपातकालीन कोष की स्थापना की घोषणा की थी. और इसमें भारत ने एक करोड़ डॉलर के योगदान के साथ शुरुआत की थी. इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी ने अन्य सार्क देशों के नेताओं से भी अनुरोध किया था कि वो त्वरित कार्यों और मेडिकल ज़रूरतों के लिए इस कोष की राशि का प्रयोग कर सकते हैं.

ऐसा लगता है कि भारत ने इस कोष को सार्क देशों के अंतर्गत न रख कर इस कोष के अन्य देशों द्वारा इस्तेमाल कर पाने के विकल्प को भी खुला रखा है. ख़ास कर ऐसे देशों के लिए जो सार्क के सदस्य नहीं हैं. क्योंकि, इस तरह से भारत सार्क के बाहर के अपने साझीदारों और मित्र देशों की भी मदद कर सकता है. सूचना है कि भारत ने कोरोना वायरस के प्रकोप से निपटन के लिए सेशेल्स को भी पूरी मदद देने का वादा किया है.

भारत ने कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए सार्क के तहत आने वाले अन्य व्यवस्थाओं का इस्तेमाल करने के भी संकेत दिए हैं. जैसे कि सार्क डिज़ैस्टर मैनेजमेंट सेंटर का प्रयोग. साथ ही साथ भारत ने सार्क के अंतर्गत अन्य व्यवस्थाएं स्थापित करने का भी प्रस्ताव रखा है. जैसे कि साझा रिसर्च मंच, ताकि सार्क क्षेत्र में किसी महामारी पर नियंत्रण स्थापित करने में मदद मिले. साथ ही साथ सार्क के देशों के बीच महामारी का एक प्रोटोकॉल विकसित करने का भी सुझाव दिया है. इन सभी प्रस्तावों के माध्यम से भारत न केवल सार्क संगठन को मज़बूत करने का प्रयास कर रहा  है. बल्कि वो साझा चुनौतियों जैसे महामारियों से निपटने के लिए इसके सदस्य देशों के बीच सहयोग बढ़ाने का भी प्रयास निरंतर कर रहा है.

भारत के इन प्रस्तावों को लेकर सार्क के सदस्य देशों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है. भूटान, नेपाल और मालदीव ने तो कोरोना वायरस से निपटने के आपातकालीन कोष में अपने योगदान भी दिए हैं. ये सार्क के सदस्य देशों की इस महामारी से निपटने में सहयोग के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है. हालांकि, ये बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि आगे चल कर इस दिशा में क्या क़दम उठाए जाते हैं. ख़ास तौर से सभी देशों की अलग-अलग एजेंसियां इस क्षेत्रीय पहल का ज़मीनी स्तर पर कैसे लाभ उठाती हैं, और उन्हें कैसे लागू करती हैं.

भारत के इन प्रयासों ने सार्क में दोबारा नई जान डालने की उम्मीद भी जगाई है. हालांकि ये उम्मीद अभी अनिश्चितता के भंवर में है. लेकिन, कोरोना वायरस से निपटने में आपसी सहयो के अनुभव आगे चल भी आपसी सहयोग की आदत को बढ़ावा देने में मददगार साबित हो सकते हैं. अभी तो, एक बात एकदम साफ़ है. कोरोना वायरस से निपटने में भारत का सामूहिक प्रयास करने का आह्वान और इसे सार्क के अन्य देशों से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया ने इस क्षेत्र को वायरस की महामारी से निपटने के लिए अच्छी तैयारी करने का अवसर प्रदान किया है. क्योंकि इस संकट की मांग यही है कि क्षेत्रीय स्तर पर इससे निपटने के त्वरित प्रयास किए जाएं.

सार्क नेताओं के साथ वीडियो कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक आपातकालीन कोष की स्थापना की घोषणा की थी. और इसमें भारत ने एक करोड़ डॉलर के योगदान के साथ शुरुआत की थी

कोरोना संकट से निपटने के लिए भारत की क्षेत्रीय पहल, अपने आस-पास के देशों का नेतृत्व करने की इसकी इच्छा और तैयारियों को दर्शाता है. ताकि वो अपने पड़ोसी देशों में उत्पन्न मानवीय संकटों का समाधान करने में मदद कर सके. पड़ोसी देशों के प्रति भारत के सक्रिय भूमिका निभाने से अन्य बड़ी ताक़तों को इस क्षेत्र में दख़ल देने का अवसर मिलने की संभावना भी कम हो जाती है. और इस तरह भारत को अपनी क्षेत्रीय कूटनीति और संबंधों की दशा-दिशा तय करने में भी मदद मिलती है.

सार्क नेताओं के साथ वीडियो कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक आपातकालीन कोष की स्थापना की घोषणा की थी. और इसमें भारत ने एक करोड़ डॉलर के योगदान के साथ शुरुआत की थी. इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी ने अन्य सार्क देशों के नेताओं से भी अनुरोध किया था कि वो त्वरित कार्यों और मेडिकल ज़रूरतों के लिए इस कोष की राशि का प्रयोग कर सकते हैं.

ऐसा लगता है कि भारत ने इस कोष को सार्क देशों के अंतर्गत न रख कर इस कोष के अन्य देशों द्वारा इस्तेमाल कर पाने के विकल्प को भी खुला रखा है. ख़ास कर ऐसे देशों के लिए जो सार्क के सदस्य नहीं हैं. क्योंकि, इस तरह से भारत सार्क के बाहर के अपने साझीदारों और मित्र देशों की भी मदद कर सकता है. सूचना है कि भारत ने कोरोना वायरस के प्रकोप से निपटन के लिए सेशेल्स को भी पूरी मदद देने का वादा किया है.

भारत ने कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए सार्क के तहत आने वाले अन्य व्यवस्थाओं का इस्तेमाल करने के भी संकेत दिए हैं. जैसे कि सार्क डिज़ैस्टर मैनेजमेंट सेंटर का प्रयोग. साथ ही साथ भारत ने सार्क के अंतर्गत अन्य व्यवस्थाएं स्थापित करने का भी प्रस्ताव रखा है. जैसे कि साझा रिसर्च मंच, ताकि सार्क क्षेत्र में किसी महामारी पर नियंत्रण स्थापित करने में मदद मिले. साथ ही साथ सार्क के देशों के बीच महामारी का एक प्रोटोकॉल विकसित करने का भी सुझाव दिया है. इन सभी प्रस्तावों के माध्यम से भारत न केवल सार्क संगठन को मज़बूत करने का प्रयास कर रहा  है. बल्कि वो साझा चुनौतियों जैसे महामारियों से निपटने के लिए इसके सदस्य देशों के बीच सहयोग बढ़ाने का भी प्रयास निरंतर कर रहा है.

भारत के इन प्रस्तावों को लेकर सार्क के सदस्य देशों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है. भूटान, नेपाल और मालदीव ने तो कोरोना वायरस से निपटने के आपातकालीन कोष में अपने योगदान भी दिए हैं. ये सार्क के सदस्य देशों की इस महामारी से निपटने में सहयोग के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है. हालांकि, ये बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि आगे चल कर इस दिशा में क्या क़दम उठाए जाते हैं. ख़ास तौर से सभी देशों की अलग-अलग एजेंसियां इस क्षेत्रीय पहल का ज़मीनी स्तर पर कैसे लाभ उठाती हैं, और उन्हें कैसे लागू करती हैं.

भारत के इन प्रयासों ने सार्क में दोबारा नई जान डालने की उम्मीद भी जगाई है. हालांकि ये उम्मीद अभी अनिश्चितता के भंवर में है. लेकिन, कोरोना वायरस से निपटने में आपसी सहयो के अनुभव आगे चल भी आपसी सहयोग की आदत को बढ़ावा देने में मददगार साबित हो सकते हैं. अभी तो, एक बात एकदम साफ़ है. कोरोना वायरस से निपटने में भारत का सामूहिक प्रयास करने का आह्वान और इसे सार्क के अन्य देशों से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया ने इस क्षेत्र को वायरस की महामारी से निपटने के लिए अच्छी तैयारी करने का अवसर प्रदान किया है. क्योंकि इस संकट की मांग यही है कि क्षेत्रीय स्तर पर इससे निपटने के त्वरित प्रयास किए जाएं.

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