Author : Maya Mirchandani

Published on Oct 09, 2017 Updated 0 Hours ago

ऑनलाइन कट्टरवाद के कारण उग्रवाद का मुकाबला करने की बजाए उसको जड़े जमाने से रोकने की चुनौती है।

हिंसक उग्रवाद से मुकाबला: भारत के लिए सबक

परिचय

2016 के अंत में, भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी को एक गंभीर परिस्थिति का सामना करना पड़ा। केरल के एक मुस्लिम युवक के परिवार ने एजेंसी को सूचना दी कि उनका पुत्र, अशफाक मजीद उनके लिए “मरे के समान है।” इंडियन एक्सप्रेस में 2 दिसम्बर, 2016 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, अशफाक के पिता अब्दुल मजीद ने एनआईए को बताया कि अशफाक ने परिवार के एक सदस्य को व्हाट्स एप्प वॉयस मैसेज भेजकर अपने अफगानिस्तान पहुंचने और वहीं रहने की इत्तिला दी। उसके बाद अशफाक ने अपनी मां से फोन पर बहुत संक्षिप्त बात की और अपने परिवार से “इस्लाम की धरती” पर चले आने का अनुरोध किया। उसके बाद अब्दुल मजीद ने अपनी पत्नी से कहा कि जिस फोन नम्बर से अशफाक ने बात की थी, उससे आए किसी भी संदेश या फोन कॉल को वह न सुनें और उन्होंने इसकी जानकारी एनआईए को दी। [1]

आज, मजीद के मामले को भारतीय खुफिया अधिकारी संदिग्ध आतंकवादियों की शिनाख्त करने में समुदाय के प्रभावशाली ढंग से शामिल होने की मिसाल के रूप में प्रस्तुत करते हैं। हालांकि, शुरूआती जांच के दौरान इस मामले ने उन चुनौतियों को उजागर किया जिनका सामना, भारतीय खुफिया बिरादरी को आतंकवाद, विशेषकर  जम्मू-कश्मीर के बाहर मौजूद “आंतरिक इलाके के जिहादी आतंकवाद” के खतरे से निपटते समय नियमित तौर पर करना पड़ता है। आखिरकार अशफाक के घर, दोस्तों और परिवार या उसके समुदाय को इस बात की भनक क्यों नहीं लगी कि वह कट्टरपंथी बन रहा है? उससे हुई  पूछताछ के बारे में मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, मजीद को शुरूआत में इंटरनेट के माध्यम से कट्टरपंथी बनाया गया। ऑनलाइन कट्टरवाद — चाहे ‘डार्क नेट’  पर गुप्त और खतरनाक हिंसक साइट्स के माध्यम से हो या फिर यूट्यूब,फेसबुक, व्हॉट्सएप्प और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म पर व्यापक पैमाने पर उग्रवादी सामग्री की उपलब्धता के माध्यम से हो, भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए वह कितनी बड़ी चुनौती है ?  आतंक और हिंसा के वास्तविक खतरे से निपटने के लिए क्या अब विशुद्ध रणनीतिक, कानूनी प्रवर्तन पर आधारित दृष्टिकोणों के दायरे से आगे जाने की जरूरत है? दुनियाभर में इन सवालों के आसान जवाब उपलब्ध नहीं हैं, भारत में तो ये जवाब और भी कम हैं, जहां वैचारिक उग्रवाद तथा धर्म-आधारित हिंसा दिनोंदिन नए आयाम ले रही है।

पश्चिम से सबक

9/11 के बाद से इस्लामिक आतंकवाद और हाल ही में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) द्वारा इंटरनेट पर कट्टरपंथ की ओर धकेले जा रहे तथाकथित ‘लोन-वुल्फ’  हमलावरों के खतरे के खिलाफ अपने संघर्ष में पश्चिमी जगत आतंकवाद से निपटने के अपने तरीकों पर नए सिरे से विचार करने के लिए विवश हुआ है। खुफिया तौर पर जुटाई गई जानकारी और कानून प्रवर्तन की निश्चित तौर पर भूमिका रही है, लेकिन ‘स्थानीय स्तर पर उपजे आतंकवाद’ से निपटने के लिए 2011 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन ने सामुदायिक नेटवर्क और सरकारी-गैर-सरकारी सहयोग के माध्यम से बहु-आयामी, बहु-हितधारी दृष्टिकोण अपनाने के लिए संशोधित रणनीति अपनाई, जो ‘हिंसक उग्रवाद से निपटने’ (यानी सीवीई) में भूमिका निभा सकती थी। “अमेरिका में हिंसक उग्रवाद पर अंकुश लगाने के लिए स्थानीय साझेदारों को सशक्त बनाना” शीर्षक वाले नीतिगत पत्र में प्रशासन ने हिंसक विचारधाराओं के प्रसार में कमी लाने के लिए लक्षित कदमों के वास्ते सीवीई शब्द का इस्तेमाल किया। अमेरिका में सीवीई कार्यक्रम का मूल उद्देश्य कट्टरपंथी (इस्लामिक) उग्रवाद को समुदायों में जड़े जमाने तथा युवा मुसलमानों को आतंकवादी गुटों, विशेषकर अल-कायदा और आईएसआईएस में भर्ती होने से रोकने के तरीके तलाशना था और यह उद्देश्य आज भी बरकरार है।

अमेरिका की 2006 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पहले ही “वैचारिक जंग” के द्वारा आतंकवाद के खिलाफ दीर्घकालिक सफलता पाने की जरूरत को रेखांकित कर चुकी थी। अमेरिकी सरकार ने सीवीई को “विचारधाराओं पर आधारित हर प्रकार की उग्रवादी हिंसा पर काबू पाने, आतंकवादी गुटों में भर्ती पर रोक लगाने संबंधी केंद्रित प्रयासो के रूप में परिभाषित किया है। यह आतंकवादी घटनाओं को रोकने पर केंद्रित उन विध्वंसकारी कार्रवाइयों से अलग है, जिन्हें उन लोगों द्वारा अंजाम दिया जाता था, जो पहले से ही हिंसा से सहमत थे।”। [2]

आतंकवाद से निपटने संबंधी कदमों की पारिभाषिक शब्दावली को स्वीकार करने और उसका दायरा बढ़ाने के फैसले ने इस अहसास की ओर संकेत किया है कि यह दूर-दराज के जंग के मैदानों के लिए कुछ हद तक कारगर सैन्य-दृष्टिकोण, अंतर्निहित विचारधाराओं, रोजाना देश और विदेश में नए रंगरूटों को भर्ती होने के लिए प्रेरित करने वाली तकलीफों और प्रेरणाओं से निपटने के लिए सरासर नाकाफी है। यह कार्यक्रम आतंकवाद से निपटने से संबंधी अमेरिका के आंतरिक सुरक्षा विभाग के ढांचे और न्याय विभाग के तहत काम करता है।हालांकि, अनेक सरकारी विभागों और सहायता एजेंसियों तक फैले इसके विशाल और जटिल प्रभुत्व ने इसके प्रबंधन और निगरानी को मुश्किल बना दिया हैा। इसे और ज्यादा सुचारू बनाने के लिए 2015 में गठित ऑफिस ऑफ कम्युनिटी पार्टनरशिप(ओसीपी) [3] ने फेडरल इमरजेंसी मैनेजमेंट एजेंसी और ऑफिस फॉर सिविल राइट्स एंड सिविल लिबर्टीज जैसी अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया । अमेरिकी पहल का लक्ष्य घरेलू, स्थानीय स्तर पर उपजे उग्रवाद और विदेशी इस्लामिक कट्टरपंथ को सामुदायिक भागीदारी और कानून प्रवर्तन की संवेदनशीलता के जरिए निशाना बनाना है। यह कार्य उसके कार्यक्रमों के द्वारा किया गया है, जिनमें निवेश और/या विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आर्थिक सहायता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा उग्रवाद और उसके खतरों निपटने के लिए स्थानीय नेताओं-इमामों, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, वकीलों और कला क्षेत्र के प्रखर स्वरों द्वारा युवाओं को साथ जोड़ा जाना  शामिल है।

अंतर्राष्ट्रीय तौर पर, अमेरिका सरकार द्वारा पश्चिम एशिया और एशिया भर के देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में विभिन्न विकास परियोजनाओं को प्रदान की जा रही वित्तीय सहायता अक्सर सीवीई के अंतर्गत आती है। हालांकि इनमें से कुछ सफल रही हैं, जबकि कुछ को बहुत ज्यादा संदेह की नजर से देखा गया है। अटलांटिक काउंसिल द्वारा मई 2017 में प्रकाशित की गई अमेरिकी कार्य बल की “इराक का भविष्य” रिपोर्ट में इस बात की पहचान की गई है कि हिंसक उग्रवाद “ऐसे समाजों में फलता-फूलता है, जहां सरकारी संस्थाओं को दमनकारी, भ्रष्ट, निकम्मी और अवैध के तौर पर देखा जाता है। इराक में हिंसक उग्रवाद की दीर्घकालिक हार के लिए जरूरी है कि इराकी जनता का विश्वास और समर्थन पाने के लिए इराकी सरकार की नाकामी पर काबू पाया जाए। इसका अर्थ यह नहीं है कि इसके लिए विशाल राष्ट्र निर्माण प्रयासों की जरूरत है, बल्कि प्रमुख वैधानिक कार्यक्रमों और सुधार से जुड़े कदमों के संबंध में इराक की प्रगति को उसके यहां हिंसक उग्रवाद को हराने के समग्र प्रयास के महत्वपूर्ण अंग के रूप में देखा जाना चाहिए।” [4]

अफगानिस्तान और पाकिस्तान, [5]जो सीवीई के अंतर्गत अमेरिका की सबसे ज्यादा वित्तीय और विकास संबंधी सहायता प्राप्त कर रहे हैं [6],  उन्हें बड़ी तादाद में नागरिकों की जान लेने वाले आतंकवाद के वास्तविक और रोजमर्रा के खतरे के बावजूद, पश्चिम के संदेह के  सवाल पर [7] बहुत बड़ी आतंरित चुनौतियों से निपटना पड़ता है। [8][9] अमेरिकी सुरक्षा और रक्षा के बारे में सिटीजन्स गाइस — सिक्योरिटी असिस्टेंस मॉनिटर — वैबसाइट के अनुसार, अमेरिका ने 2014 से 2016 के बीच सीवीई सहायता के रूप में अफगानिस्तान को  122 मिलियन डॉलर, पाकिस्तान को 44 मिलियन डॉलर से ज्यादा और नाइजीरिया को 11 मिलियन डॉलर और सोमालिया को 8 मिलियन डॉलर से कुछ अधिक राशि उपलब्ध कराई। [10]

ऑनलाइन कट्टरवाद के बढ़ते खतरे के कारण आज दुनिया के समक्ष एक यही चुनौती है — उग्रवाद का मुकाबला करने की बजाए उसको जड़े जमाने से रोका जाए। इसके परिणामस्वरूप, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र (यूएन)और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में “हिंसक उग्रवाद को रोकना” (पीवीई) शब्द ने ध्यान खींचा, जिनमें से अनेक ने अपने सामाजिक ताने-बाने के मुताबिक विशिष्ट कार्यक्रम तैयार किए।

मिसाल के तौर पर, विशेषज्ञ भले ही पीवीई को पहले से सक्रियता दिखाने वाला और सीवीई बाद में प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाला मानकर उनमें अंतर की बात कहते हों — वे दरअसल काफी हद तक समान हैं, क्योंकि दोनों में ऐहतियाती उपाय शामिल हैं, जिनका लक्ष्य उन बुनियादी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तकलीफों को मिटाना है, जिनकी वजह से कट्टरपंथ पनपता है।

ब्रिटेन की ‘रोकने’ की रणनीति 9/11 के बाद आतंकवाद से निपटने की उसकी रणनीति-कांटेस्ट का हिस्सा है। कांटेस्ट के अंतर्गत ब्रिटिश सुरक्षा और खुफिया प्रतिष्ठान हमलों के लिए जनता को ‘तैयार’ करते हैं, हमलावरों का ‘पीछा करते’ हैं और कट्टरवाद को फैलने से ‘रोकते’ हैं। 2005 के लंदन बम विस्फोटों के मद्देनजर,  इस कार्यक्रम के अंतर्गत 1000 से अधिक योजनाओं पर 80 मिलियन पाउंड्स (105 मिलियन डॉलर से अधिक) खर्च किए गए। यह राशि हमलों के बाद 6 वर्ष की अवधि में खर्च की गई। रोकने से संबंधित फ्रेमवर्क में तीन महत्वपूर्ण उद्देश्यों पर बल दिया गया:

  • वैचारिक चुनौतियों से निपटना,
  • लोगों को आतंकवाद का रुख करने से रोकना, और
  • संस्थाओं और प्रमुख क्षेत्रों के साथ काम करना

आलोचनाएं और संशोधन

मैनचेस्टर एरियना में हाल के आत्मघाती बम विस्फोट के बाद, ब्रिटिश मुस्लिम आत्मघाती हमलावर सलमान अबेदी के कट्टरवाद का पता न लगा पाने तथा बेहद ‘नरम’ रवैया अपनाने के कारण ‘रोकने’ (प्रीवेंट) संबंधी रणनीति की कड़ी आलोचना हुई। इस विस्फोट में 22 लोग मारे गए थे। अमेरिका में सिविल लिबर्टीज समूहों की दलील है कि अमेरिका का सीवीई कार्यक्रम कट्टरपंथ के प्रसार के लिए राजनीतिक रूप से उपयुक्त आवरण बन चुका है और वह ‘झूठे प्रस्ताव’  पर आधारित है। एक रिपोर्ट में न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी लॉ स्कूल के ब्रेनन सेंटर फॉर जस्टिस की दलील है कि विचारधारा हमेशा आतंकवाद की पूर्व सूचना नहीं दे सकती। [11] हालांकि ब्रिटेन और अमेरिका के अनुभवों में फर्क दिखाई देता है। जहां एक ओर, ट्रम्प प्रशासन अपनी सीवीई नीति की पूरी तरह समीक्षा कर रहा है, वहीं ब्रिटेन के शीर्ष सरकारी और सुरक्षा अधिकारियों ने पूर्व नीति पर कायम रहने की मंशा दोहराई है। 21 अगस्त 2017 को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अफगानिस्तान के लिए अपनी नीति रेखांकित की, जिसमें एक बार फिर से निरंतर सैन्य हस्तक्षेप पर बल दिया गया और भारत से इस युद्धग्रस्त देश के लिए ज्यादा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने का आह्वान किया गया। ट्रम्प ने अमेरिका की मांग दोहराते हुए कहा कि पाकिस्तान आतंकवादी गुटों पर कार्रवाई करे। उन्होंने उसे सहायता में कटौती करने की चेतावनी दी, हालांकि सैन्य सहायता में कटौती की बात नहीं की। [12]

जैसे कि ब्रिटेन का कानून प्रवर्तन विभाग खामियों की समीक्षा कर रहा था, ऐसे में मेट्रोपोलिटन पुलिस की क्रेसिडा डिक ने खुले आम कहा कि किसी भी संदिग्ध के दिखते ही या उसके बारे में सूचना मिलते ही उसकी जानकारी आतंकवाद विरोधी हॉटलाइन पर देने वाले ब्रिटिश मुस्लिमों की तादाद बढ़ रही है तथा मार्च और जुलाई 2017 के बीच ऐसे लोगों की मदद से कम से कम पांच हमले सफलतापूर्वक रोके जा सके हैं। [13] ब्रिटिश गृह मंत्री अम्बर रड ने इस कार्यक्रम के अच्छे कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसे “बढ़ाया” जाएगा। ब्रिटेन के टेलीग्राफ अखबार ने उनके हवाले से कहा कि इस कार्यक्रम की बदौलत अकेले 2016 में ही 50 बच्चों सहित 150 लोगों को सीरिया में लड़ने के लिए ब्रिटेन छोड़कर जाने से रोका जा सका। [14]

आस्ट्रेलिया, की जिहादी उग्रवाद से संबंधित अपनी समस्याएं हैं और उसने यह स्वीकार करते हुए कि कट्टरवाद के रास्ते अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग तरह के हो सकते हैं, प्रत्येक मामले पर अलग से गौर करने पर आधारित (केस बाई केस बेसिस पर) अपना सीवीई कार्यक्रम तैयार किया है। आस्ट्रेलियाई सरकार का दावा है कि आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप उसने 2000 के बाद से चार बड़ी आतंकवादी साजिशे नाकाम की हैं और 22 लोगों को दोषी ठहराया है, जिनमें से ज्यादातर आस्ट्रेलिया में जन्मे हैं। आस्ट्रेलिया की सीवीई रणनीति स्थानीय कट्टरवाद के साथ ही साथ दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र के खतरों के प्रति लक्षित है, [15] विशेषकर इंडोनेशिया से उपजने वाले खतरों के प्रति [16]। आस्ट्रेलियाई सरकार का “लिविंग सेफ टुगेदर ग्रांट्स प्रोग्राम” [17] — “कुछ छोड़ने का दबाव बनाने वाले कारकों (यानी पुश फैक्टर्स)” मसलन वास्तविक या महसूस की गई शिकायतों, जातीय/कट्टर तनावों या सरकारी/सैन्य कार्रवाइयों साथ ही साथ “लोगों को अपनी अपनी ओर आकर्षित करने वाले कारकों (यानी पुल फैक्टर्स)” से संबंधित है, जिनकी प्रकृति ज्यादा मनोवैज्ञानिक और वैचारिक है और जो लोगों को हिंसक उग्रवाद की ओर आकर्षित करते हैं ।

हिंसक उग्रवाद का मुकाबला: धर्मपरायणता बनाम कट्टरवाद

इंटरनेट पर विषयवस्तु के प्रसार को देखते हुए, धार्मिक धर्मपरायणता को उग्रवाद से अलग करना प्रत्येक देश के सीवीई प्रयासों के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। ब्रिटेन की रोकने संबंधी नीति (यानी प्रीवेंट) की शुरूआती आलोचना में कहा गया था कि इसने विवादास्पद रूप से धार्मिक रूढ़िवाद को हिंसा के साथ जोड़कर उग्रवादियों के साथ साथ अहिंसक गुटों पर भी अंकुश लगाने की प्रवृत्ति दर्शायी है। मेनचेस्टर हमले के मद्देनजर, ग्रेटर मेनचेस्टर एरिया के मेयर ने कहा कि ब्रिटेन के विशाल मुस्लिम समुदाय के अनेक सदस्यों की ‘उन्हें पकड़े जाने’ संबंधी शिकायते दूर करने के लिए प्रीवेंट की समीक्षा किए जाने की जरूरत है। [18] हालांकि मेनचेस्टर बम विस्फोट के बाद हुई जांच में सामने आया कि प्रीवेंट द्वारा लोगों को अलग-थलग किए जाने और मुस्लिमों के सूचना साझा करने से हतोत्साहित होने जैसी चिंताएं व्यक्त किए जाने के बावजूद सामुदायिक नेताओं ने अबेदी  के बारे में जानकारी दो साल पहले आतंकवाद-विरोधी हॉटलाइन पर दी थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि वह आतंकी गतिविधियों में शामिल है।

सीवीई के पीछे का विचार न केवल ओबामा के कार्यकाल से पहले से मौजूद था, बल्कि इसने पश्चिमी जगत से बाहर आकार लिया था। पश्चिम एशियाई देशों में सऊदी अरब पहला ऐसा देश है, जिसने 9/11 हमलों के दो साल बाद 2003 में बड़े पैमाने पर आतंकवाद से निपटने का अभियान शुरू किया था। मुस्लिम जगत में नेतृत्वकारी भूमिका और अमेरिका के साथ निकटता के मद्देनजर सऊदी अरब पर इस्लाम के शांति के मूल्यों को “विकृत” करने वालों के खिलाफ दृढ़ता प्रदर्शित करने का दबाव रहा है। [19]

उस समय, सऊदी सरकार ने, एक संयुक्त कार्यबल के जरिए अमेरिका के साथ सहयोग से हजारों अलकायदा संदिग्धों को गिरफ्तार किया था और उनसे पूछताछ की थी, उनके नेताओं को पकड़ा और मार गिराया था और हथियारों के बड़े जखीरे जब्त किए थे। मई 2003 में रियाद में बम विस्फोट हालांकि घरेलू स्तर पर आतंकवाद-विरोधी नीति पर बल देने की दिशा में क्रांतिकारी मोड़ था।

इस सकीना अभियान के केंद्र में परम्परागत “कड़ी” आतंकवाद विरोधी रणनीतियों का नए सिरे से निर्माण करना  था, ताकि लगातार हिंसक उग्रवाद जन्मस्थल बन चुकी कट्टरपंथी विचारधाराओं को निशाना बनाने वाले गैर परम्परागत, “नरम” उपायों के इस्तेमाल को शामिल किया जा सके।  सऊदी सरकार के अनुसार इसका उद्देश्य “इस्लाम की भ्रष्ट और विकृत व्याख्याओं” पर आधारित विचारधारा से निपटना था। शिक्षा मंत्रालय एक स्कूल प्रोग्राम का संचालत करता है, जो बहुत कम आयु में शुरू हो जाता है, इसमें छात्रों को उग्रवाद के खतरों के खिलाफ सतर्क किया जाता है। हालांकि सऊदी अरब की पीआरएसी (रोकथाम, पुनर्वास और बाद की देखरख) से संबंधित नीति जिम्मेदारी के दायरे को विस्तृत बनाते हुए उसे सरकार से आगे आम नागरिकों तक पहुंचाने और इसमें स्थानीय परम्पराओं और धार्मिक संस्कृति पर आधारित परामर्श कार्यक्रम शामिल करने के लिए प्रयासरत है, ताकि अपराधियों के पुनर्वास और जेलों में धार्मिक हस्तियों के इस्तेमाल के महत्व को रेखांकित किया जा सके। सऊदी अनुभव इस ओर संकेत करते हैं कि दोबारा गिरफ्तारी की दर बहुत कम: एक से दो प्रतिशत है। [20]  इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि परामर्श और बाद की देखरेख का प्रभाव पड़ता है।

सऊदी अरब के परिणाम अन्य देशों को तुलनात्मक कार्यक्रम अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन, यमन, इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर सभी पुनर्वास और सहभागिता के कार्यक्रम स्थापित कर चुके हैं। सिंगापुर का सीवीई कार्यक्रम उसकी सरकार द्वारा संचालित किया जाता है, वह न सिर्फ पुनर्वास और विचारधारा का विरोध करने पर केंद्रित है, बल्कि उसमें बंदियों का मनोवैज्ञानिक पुनर्वास तथा निरंतर आकलन भी शामिल है। सऊदी अरब की तरह, बंदियों के लिए उसके कार्यक्रमों में धार्मिक नेताओं द्वारा परामर्श, व्यवसायिक प्रशिक्षण और तो और परिवारों को वित्तीय सहायता तक शामिल है।

वैश्विक मंशा, विशिष्ट कार्यक्रम

संयुक्त राष्ट्र ने जुलाई 2016 में अपनी वैश्विक आतंकवाद-निरोधी रणनीति की पांचवीं द्विवार्षिक समीक्षा के दौरान,राष्ट्रों को अपने-अपने स्तर पर समग्र पीवीई रणनीति की सहायता के लिए स्थानीय, उप-क्षेत्रीय और क्षेत्रीय योजनाओं का दायरा बढ़ाने और विकसित करने तथा स्थानीय स्तर पर समुदायों को साथ जोड़ने तथा अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए सामाजिक संगठनों और गैर सरकारी संगठनों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित किया। [21] वैश्विक आतंकवाद निरोधी मंच (जीसीटीएफ), [22] जिसमें 29 संस्थापक सदस्य और यूरोपीय संघ शामिल हैं, ने सीवीई उपायों का प्रमुख फोकस धर्मपरायणता को कट्टरवाद से अलग करने की जरूरत पर केंद्रित किया।

जब सितम्बर, 2016 में उसकी बैठक हुई, तो भारत ने भी धर्म को आतंकवाद से अलग किए जाने तथा उससे निपटने की नई रणनीतियां अपनाने की जरूरत पर हस्ताक्षर किए और सहमति प्रकट की। भारत की 1.3 बिलियन आबादी में से 12 प्रतिशत से ज्यादा सूफीवाद और सहनशीलता की परम्परा का निर्वहन करते हैं तथा भारतीय — इस्लामिक संयुक्त संस्कृति — भारतीय मुस्लिमों के समुदाय का इतिहास कुल मिलाकर शांतिपूर्ण और मेल-जोल वाला रहा है। इसलिए, जहां तक हिंसक उग्रवाद का मुकाबला करने का सवाल है, भारत की वास्तविकताएं अलग हैं और  भारत के भीतर मौजूद विशाल मुस्लिम समुदाय के सामाजिक और सांस्कृतिक नियमों की प्रकृति, साथ ही साथ उपमहाद्वीप में हिदु और मुस्लिम समुदायों के बीच मौजूद धर्म और पहचान के मतभेद, जो अक्सर हिंसक होते हैं, पर आवश्यक तौर पर विचार किया जाना चाहिए।

जीसीटीएफ में, भारत ने विशेष तौर पर उग्रवादियों के ऑनलाइन दुष्प्रचार को नियंत्रित करने और कट्टरवाद पर उसके प्रभाव की ओर संकेत किया। अपने हस्तक्षेप के दौरान, भारत ने कहा, “विडम्बना तो है कि व्यापार और आर्थिक विकास को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन देने वाले इंटरनेट और आधुनिक संचार के उपकरण और सुविधाओं का आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने में दुरूपयोग हो रहा है।”

बदलती प्रक्रियाएं: सामाजिक संदर्भ और ऑनलाइन कट्टरवाद की चुनौती

जहां एक ओर पश्चिमी जगत में खिलाफत के प्रति वफादारी का संकल्प ले चुके लोन-वुल्फ अटैक्स (अकेले व्यक्ति द्वारा किए जा रहे हमले) सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा चुनौती बन चुके हैं, वहीं भारत में उसके विपरीत अब तक आईएसआईएस के सदस्यों की हिरासत और गिरफ्तारी वर्तमान में देश के कुल आतंकवादी संदिग्धों का केवल 0.0002 प्रतिशत अंश रही है। प्राप्त सूचना के अनुसार, जनवरी 2014 से जून 2017 तक आईएसआईएस से संबंधित 90 लोगों की गिरफ्तारी हुई। समझा जाता है कि कुल 88 भारतीय या भारतवंशियों के सदस्य इराक और सीरिया में आईएसआईएस के साथ शामिल हो गए हैं, अब तक 80 अन्य लोगों को एजेंसियों द्वारा पारिवारिक हस्तक्षेप सहित विभिन्न तरीके अपनाकर इस गुट में शामिल होने से रोका जा सका है।

ये आंकड़े दो वास्तविकताओं की ओर संकेत करते हैं:

  • भारतीय मुसलमानों की आबादी का बहुत कम प्रतिशत उग्रवाद, हिंसक वैचारिक इस्लाम का समर्थन या हिमायत करता है और
  • भारतीय सीवीई प्रयासों में समुदाय महत्वपूर्ण साझेदारी कर सकता है।

इनके प्रतिशत को देखते हुए, भारत के लिए बिना कोई विलम्ब किए औपचारिक सीवीई रणनीति अपनाना महत्वपूर्ण होगा। उनकी संख्या कम है, लेकिन इंटरनेट पर उनकी पहुंच तेजी से फैल रही है। पिछले तीन वर्षों में आईएसआईएस से संबंधित गिरफ्तारियां, इससे कहीं ज्यादा लम्बी अवधि के दौरान हुई इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) और स्टुडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्यों की गिरफ्तारियों के बराबर रही है। 2008 से 2014 तक की अवधि में भारतीय खुफिया एजेंसियों ने आईएम के 58 सदस्यों को गिरफ्तार किया। 2014 और जून 2017 के दौरान आईएसआईएस से संबंधित गिरफ्तारियां बढ़ने के मद्देनजर, यह संख्या घटकर दो सदस्य रह गई। 1995 से 2017 तक सिमी के 30 प्रमुख सदस्य गिरफ्तार किए गए। इनके अलावा उससे “अलग हुए छोटे-छोटे धड़ों” के लगभग 100 लोग गिरफ्तार किए गए [23]। गिरफ्तार किए गए कुल लोगों में से लगभग पांच प्रतिशत ने मदरसों और धार्मिक स्कूलों से शिक्षा प्राप्त की थी और 1990 से 2017 तक की 27 साल से ज्यादा लम्बी अवधि में महज 10 मौलवी या धार्मिक नेताओं को मस्जिदों से कट्टरवाद को शह देने के लिए गिरफ्तार किया गया। इसकी एक वजह यह बतायी गई कि भारतीय रंगरूटों के लिए आईएसआईएस द्वारा प्रचारित ‘अखिल-इस्लामिक’ उद्देश्य के साथ खुद को जोड़ना, आईएम और सिमी जैसे गुटों को समर्थन देने वाले पाकिस्तान समर्थित गुटों के बनिस्पत ज्यादा सरल है, जिनका प्राथमिक लक्ष्य पाकिस्तान के इशारों पर काम करना है। जैश ए मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा आईएम और सिमी को उनकी स्थापना के बाद से ही वैचारिक, कुशल और लॉजिस्टिकल सहायता उपलब्ध कराते आए हैं।

इस बात पर गौर करना दिलचस्प है कि आईएसआईएस के रंगरूट, आईएम या सिमी से जुड़ने वाले अपने अनेक पूर्ववर्तियों के विपरीत, काफी पढ़े-लिखे और शहरी हैं, [24] जिनके पास इंटरनेट और सुरक्षित ऑनलाइन एक्ससैस की कोई कमी नहीं है। यह बात उन लोगों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमियों को बेहतर ढंग से समझने की जरूरत की ओर इशारा करती है, जो जोखिम में हैं। [25]

डेली मेल में प्रकाशित एक समाचार में केरल, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश जैसे दक्षिण राज्यों के बाद अब उत्तर प्रदेश को युवा आईएसआईएस समर्थकों के नए प्रमुख प्रजनन स्थल के रूप में रेखांकित किया गया है। [26] सांप्रदायिक तनाव और बेरोजगारी आग में घी डालने वाले साबित हो रहे हैं, क्योंकि असंतुष्ट मुस्लिम युवक आईएसआईएस के ऑनलाइन रूहानी वीडियो जैसे खिलाफत में जीवन तथा भारत और विश्व में मुस्लिमों को निशाना बनाने वालों से जघन्य बदला लेने से संबंधित वीडियो के प्रति आकर्षित हो रहे हैं [27]

चित्र 1 भारत में उग्रवाद के कारक: सामाजिक राजनीतिक जलवायु [28]

दबाव बनाने वाले कारक  यानी पुश फैक्टर
(सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक)
आकर्षित करने वाले कारक यानी पुल फैक्टर
(व्यक्तिगत प्रकृति के और सीधे तौर पर भर्ती को प्रभावित करने वाले)
हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच धार्मिक/साम्प्रदायिक तनाव वैचारिक: उच्च “उद्देश्यों” के लिए प्रयास कर रहे लोगों का आह्वान करने का बोध, साथ जुड़ने/साहस/साथियों के प्रति सम्मान का बोध
कथित या वास्तविक भेदभाव/असंतोष/ अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ बदला और प्रतिशोध रुहानी आकर्षण खिलाफत के अंतर्गत ‘बेहतर जीवन’ का आकर्षण (विशेषकर खिलाफत से संबंधित)
बेरोजगारी और आर्थिक हताशा और खराब प्रबंधन राजनीतिक प्रेरणा और धर्म/धार्मिक पहचान का “गौरव”
सामाजिक नेटवर्कस/सामाजिक संघटन का बिखरना विशिष्ट नेताओं के साथ निजी संबंध, चाहे निजी तौर पर या इंटरनेट पर फॉलो करने के माध्यम से

स्रो

कड़े या नरम उपायों के माध्यम से आतंकवाद से सफल तरीके से निपटने के दृष्टिकोण के तहत उसमें निहित जटिलता की इन तहों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए, लेकिन साथ ही “इस्लामिक उग्रवाद” की  सहज परिकल्पना से आगे जाना चाहिए।  भारत में सुरक्षा और खुफिया अधिकारियों का मानना है कि जम्मू कश्मीर से बाहर और उसके अलावा, प्रेरक, मकसद और लॉजिस्टिकल समर्थन सहित कारक किसी को हिंसक उग्रवाद की राह पर धकेल सकते हैं। चाहे 1993 के मुम्बई बम धमाके हों या गुजरात में 2002 के बाद की आतंकी घटनाएं या 2008 में सिलसिलेवार झूठी गिरफ्तारियों के बाद हुए दंगे, सांप्रदायिक तनाव और हिंसा जैसे ”पुश फैक्टर्स” प्रेरक दोनों ने सीमा पार पाकिस्तान की ताकतों के उकसावे का लाभ उठाया है।

हालांकि आईएसआईएस से प्रभावित या उसके द्वारा भर्ती किए जाने वालों के मामले में, प्रेरक प्रमुख रूप से ऑनलाइन उपलब्ध हैं यथा  “पुल फैक्टर्स” जो सुरक्षा और निजी स्वतंत्रता /निजता के बीच लकीर खींचने की कोशिश में जुटी सरकार के लिए नए तरह की चुनौतियां तैयार कर रहे हैं। आईएसआईएस के आगमन और गुट द्वारा युवाओं को उनके कंप्यूटर और सेल फोन के जरिए लुभाए जाने से पहले (पुल फैक्टर्स), उन्हें हिंसा की ओर धकेलने वाले प्रमुख कारकों में — सांप्रदायिक तनाव और इस्लाम के प्रति घृणा और प्रोफाइलिंग द्वारा उकसायी जा रही अत्याचार की कल्पित या वास्तविक भावना शामिल थे।आज की सामाजिक अलगाव वाली ऑनलाइन दुनिया में, इंटरनेट विचारक अत्याधिक धार्मिक तनाव वाले मौजूदा राजनीतिक वातावरण का इस्तेमाल कट्टरवाद को हवा देने के लिए कर रहे हैं और इस प्रकार हिंसा का जोखिम बढ़ गया है। [29]

राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ) और इंटरनेट की गतिविधियों की निगरानी कर रही खुफिया एजेंसियों ने भारत में हिंदु-मुस्लिम तनाव के खबरों में छाए रहने के दौरान ऐसी साइट्स पर ट्रैफिक में वद्धि दर्ज की है। [30] मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक वातावरण में, जहां एजेंसियों की कुल मिलाकर यही राय है कि आतंकवाद किसी विचारधारा को दिमाग में भरने और हिंसक दुष्प्रचार के कारण फैलता है, वहीं धार्मिक ध्रुवीकरण और तनाव के इस राजनीतिक वातावरण में ऐसे मामलों की संख्या में वृद्धि को लेकर बेहद चिंता रही है, यह इस बात की मौन स्वीकृति है कि बहुत से मामलों में कट्टरवाद ने इसी संदर्भ में ऐसा किया।

भारत के पड़ोसी देश ने भी उग्रवादी हिंसा से ऑनलाइन और वास्तविक दुनिया में निपटने में सक्षम प्रभावी क्षेत्रीय सीवीई नीति की आवश्यकता के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराए हैं। [31] ढाका की होली आर्टिसन बेकरी में जुलाई 2016 का हमला, जिसमें 29 लोग मारे गए थे, ने न केवल बांग्लादेश को हिलाकर रख दिया, बल्कि यह भारत के लिए खतरे की घंटी भी था। पांच हमलावरों में से दो उच्च शिक्षा प्राप्त, समृद्ध किशोर थे, उनकी उम्र 20 से 25 साल के बीच थी और वे सोशल मीडिया पर मुम्बई के जाकिर नाइक को फॉलो कर रहे थे। जाकिर नाइक विवादास्पद इस्लामिक उपदेशक और इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ)का संस्थापक है। निबरास इस्लाम, नाम का एक अन्य युवक, एक व्यापारी का पुत्र और बांग्लादेशी नौकरशाह का भतीजा था, वह भी इस्लामिक स्टेट के प्रचारक मेंहदी मसरूर बिस्वास उर्फ शमी व्हिटनेस का ट्विटर अकांउट फॉलो कर रहा था। उसे 2014 के आखिर में बेंगलुरु से गिरफ्तार किया गया और उस पर आईएस का दुष्प्रचार करने के आरोप में मुकदमा चलाया जा रहा है। लेकिन अन्य धर्मों के खिलाफ वैमनस्यपूर्ण भाषण देने वाले नाइक पर ब्रिटेन और कनाडा में प्रतिबंध है तथा वह मलेशिया में प्रतिबंधित 16 इस्लामिक विद्वानों में से एक है और दुबई से प्रसारित होने वाले अपने पीस टीवी के माध्यम से बांग्लादेश में बहुत लोकप्रिय है। जहां भारत और बांग्लादेश ने इस टीवी चैनल पर प्रतिबंध लगा दिया है, वहीं नाइक का आईआरएफ मुम्बई में खुलेआम काम करता है। और बेशक, उसके भाषण बड़े पैमाने पर ऑनलाइन प्रसारित किये जाते हैं।

निष्कर्ष: भारत की चुनौतियां

अशफाक मजीद के माता-पिता द्वारा उसकी गतिविधियों को स्पष्ट तौर खारिज किए जाने और उनकी रिपोर्ट किए जाने के बावजूद, उसका कट्टरवाद और भारत से रवानगी में नाइक के आईआरएफ के एक सदस्य ने आर्थिक सहायता प्रदान की, जिसके साथ वह अपने गृहनगर में ही सम्पर्क में आया था। क्या कोई संकेत थे, जो उसके कट्टरवाद की ओर बढ़ने की चेतावनी दे सकते थे और यदि थे, तो क्या उनके बारे में पता लगा लिया गया था, या उससे भी बदतर बात, उनकी अनदेखी की गई थी? क्या उसके घर या समुदाय में किसी ने उन संकेतों को समझ लिया था और उन्हें महज बेरोजगार युवा का भटकाव समझकर उन संकेतों की अनदेखी कर दी थी? काश अतीत में सोशल नेटवर्कस और ढांचों में कोई ऐसी स्थायी खराबी आई होती जिसने उस कट्टरवाद का पता लगा लिया होता या उसे रोक लिया होता, जिससे मजीद गुजर रहा था? समाज उन लोगों में इन संकेतों को कैसे पहचानें, जो एकांत में बैठकर उन उपकरणों पर नफरत और हिंसा को जन्म देने वाले वीडियो देखने या साइट्स को पढ़ने में अपना समय व्यतीत करते हैं, जो किसी भी इंसान के साथ सम्पर्क की जरूरत खत्म कर देते हैं?

भारत सरकार आतंकवाद को “युद्ध अपराध के समान शांतिकाल के रूप में परिभाषित करती है। भारत में आतंकी गतिविधि का आशय हिंसा की मंशा से किया गया कोई भी कार्य है, जिससे मृत्यु, चोट या सम्पत्ति को नुकसान पहुंचे, जिसमें भय शामिल हो और जिसे अपने राजनीतिक, दार्शनिक, जातीय, नस्ली या किसी अन्य अन्य हस्ती चिन्हित व्यक्तियों के समूह को निशाना बनाकर अंजाम दिया गया हो।” आतंकवाद का निशाना आकस्मिक (अवसर के आधार पर चुना गया)या चयनात्मक (प्रतीकात्मक या प्रतिनिधि निशाने) हो सकता है।

गैरकानूनी गतिविधि निवारक अधिनियम (यूएपीए) की अनुसूची 1 के अंतर्गत निषिद्ध 36 आतंकी गुटों [32]में से 14 गुट इस्लामिक हैं। इनमें पाकिस्तानी गुट और स्वदेशी कश्मीर आधारित गुट शामिल हैं। भारत सरकार ने आतंकवाद की चार प्रमुख श्रेणियों को चिन्हित किया है:

  • जातीय राष्ट्रवादी (भारत से पृथक होने की मंशा वाले जातीय नेतृत्व वाले आतंकी गुट)
  • धार्मिक आतंकवाद
  • (कम्युनिस्ट) आर्थिक विचारधारा पर आधारित वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई), जहां सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्थाओं को “हिंसक क्रांति” के माध्यम से चुनौती दी जाती है।
  • नारको-आतंकवाद या मादक पदार्थों से संबंधित हिंसा और आतंक, जो विशेषकर पूर्वोत्तर भारत में मादक पदार्थों की तस्करी के गैर कानूनी क्षेत्र बनाता है। [33]

यह वर्गीकरण पश्चिम, विशेषकर अमेरिकी सीवीई के लक्ष्य और कार्यान्वयन से फर्क होने की ओर संकेत करता है, जो पूरी तरह मोटे तौर पर प्रवासी मुस्लिम समुदाय की ओर लक्षित है, जबकि हिंसक उग्रवाद में लिप्त विभिन्न गुटों के साथ भारत की अपनी चिंताएं हैं। ऐसे में देश विशेष के आधार पर रणनीति बनाना आवश्यक हो जाता है, जो भारत की धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृति परिदृश्य से संबंधित चिंताओं को दूर करे।

सीवीई रणनीतियों का एकल प्रमुख उद्देश्य कड़ी आतंकवाद विरोधी नीतियों को नरम दृष्टिकोण के माध्यम से सहायता प्रदान करना है अर्थात:

  • समुदायों और सामाजिक संगठनों को अधिकार सम्पन्न बनाकर,
  • ऑनलाइन और ऑफलाइन मैसेजिंग और काउंटर मैसेजिंग तैयार करके, और
  • लोगों को उग्रवाद के रास्ते पर ले जाने वाले प्रेरक (दबाव बनाने वाले और आकर्षित करने वाले यानी पुश फैक्टर्स और पुल फैक्टर्स) कारकों को हल करके

सामाजिक सम्पर्क पर इंटरनेट का प्रभाव कितना है, इस प्रश्न का उत्तर महत्वपूर्ण है।  देश के बहुत से हिस्सों में ऐतिहासिक रूप से सामाजिक सम्पर्क सामुदायिक सुरक्षा और संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण रहा है।

सामुदायिक पुलिसिंग — गांव के बुजुर्ग, स्थानीय बीट कांस्टेबल्स, शहरी रेजीडेंट्स वेल्फेयर असोसिएशन्स सभी अपने-अपने तरीकों से ऐसे प्रयासों में अग्रणी रहे हैं। यहां तक कि ऐसे प्रयासों को सशक्त बनाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं [34] की व्याख्या विभिन्न स्तरों पर की जा सकती है। हालांकि, विशेषकर कस्बों और शहरों में इंटरनेट इन व्यवस्थाओं को चुनौती दे रहा है । ऑनलाइन कट्टरवादी बनाए गए बहुत से लोगों की पहचान जब तक की जा सकी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी, महज इसलिए क्योंकि उन्हें अलग-थलग करके, बिना किसी इंसान के सम्पर्क में आए ऐसा बनाया गया, ताकि घर या समुदाय में कोई चौकन्ना न हो जाए। भारत के सीवीई प्रयासों के तहत ऐसे तरीकों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है, जो परिवारों को उनके घरों में कट्टरवाद के संकेतों की पहचान करने में सहायता प्रदान कर सकें।

भारत को उसकी चिंताओं के अनुरूप सीवीई कार्यक्रम तैयार करने में सहायता देने के लिए विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सीवीई कार्यक्रमों के अनुभव और ढांचों के साथ उसके समक्ष सामूहिक राजनीतिक इच्छाशक्ति सुनिश्चित करने की भी चुनौती मौजूद होगी, ताकि परम्परागत तौर पर सरकार का उत्तरदायित्व समझे जाते रहे कार्यों में भी नॉन-स्टेट एक्टर्स को शामिल किया जा सके, विशेषकर  सुरक्षा और निजता के बीच तालमेल बैठाते हुए कड़ी सुरक्षा और कानून प्रवर्तन व्यवस्थाओं पर अपनी पूर्ण निर्भरता को संतुलित बनाया जा सके।

जहां तक विशेषकर देश के भीतर आतंकवाद मुकाबले का प्रश्न है, सरकार को अपनी हिचकिचाहट पर काबू पाना होगा और समुदायों तथा सामाजिक संगठनों के नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए विभिन्न तरीकों और उपलब्ध साधनों के जरिए आतंकवाद से निपटने में मदद करनी होगी। हिंसक नक्सलवाद से निपटने का आंध्र प्रदेश पुलिस का अनुभव [35] असंतुष्ट समुदाय को साथ जोड़ने और इस प्रकार स्थानीय सहायता, जो सामान्यत: किसी मकसद के लिए काम कर रहे उग्रवादियों को प्राप्त होती है, को हासिल करने की दिशा में सबक है । यह आतंकवाद से निपटने के प्रभावी तरीके तैयार करने के लिए सम्पर्क और जागरूकता के महत्व को रेखांकित करता है।

जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक शेष पाल वैद्य के साथ साक्षात्कार [36]

प्रश्न: अनेक देशों ने हिंसक उग्रवाद से निपटने के लिए विशिष्ट नीतियां या सीवीई तैयार की हैं, जो कड़ी आतंकवाद निरोधी रणनीतियों के साथ-साथ समुदाय पर आधारित प्रयासों या नरम दृष्टिकोण का इस्तेमाल करते हुए कट्टरवाद को पनपने से रोकने का प्रयास करती हैं। क्या आपको लगता है कि जम्मू-कश्मीर में भी ऐसे कदम उठाए जाने की संभावना है?

उत्तर: बिल्कुल। वहां इसकी तत्काल जरूरत है। वर्तमान में हम सिर्फ कानून और व्यवस्था की स्थिति से निपट रहे हैं, लेकिन वहां अन्य एजेंसियों द्वारा कार्य करने की भी जरूरत है। वहां शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हो सकते हैं, सामाजिक या अन्य क्षेत्रों में सरकारी और एनजीओ, दोनों स्तरों पर सुधार हो सकते हैं, जिन्हें विशेषकर दक्षिण कश्मीर में, समाज को उग्र कट्टरवाद से बचाने की कोशिश करने के लिए अपनाया जा सकता है।

प्रश्न: दक्षिण कश्मीर की हालत राज्य के बाकी हिस्सों से इतनी ज्यादा बदतर क्यों है?

उत्तर: जमात का प्रभाव वहां बहुत अधिक है। मुझे लगता है कि वे भूमिकाएं निभा रहे हैं, जो अनुकूल नहीं हैं।

प्रश्न: राजमार्ग पर हमारी मुलाकात सीआरपीएफ के जिन जवानों से हुई, उन्होंने हमें बताया कि आतंकवादियों को बहुत ज्यादा स्थानीय समर्थन मिल रहा है और लोग उनकी मौजूदगी की जानकारी नहीं देते। आप इस मानसिकता से कैसे निपटेंगे?

उत्तर:  मुझे लगता है कि पूर समाज को जोड़ने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए। ऐसे कदम उठाने चाहिए, जो लोगों को दिखा सकें कि बेहतर भविष्य, बेहतर स्वस्थ जीवन, बेहतर मानसिक स्वास्थ्य कैसा हो सकता है।

प्रश्न: क्या इस सिलसिले में पुलिस और सुरक्षा बलों को संवेदनशील बनाए जाने की गुंजायश हो सकती है?

उत्तर: मेरे दृष्टिकोण से, संवेदनशील बनाने से मदद मिलगी, बाहर से आने वाले सुरक्षा बलों का कश्मीर के बारे में पहले से ही मन में तय नजरिया होता है। लेकिन अच्छा होगा कि यह काम ज्यादा व्यवस्थित ढंग से किया जाए। हमारे पास स्थानीय पुलिस, जम्मू-कश्मीर में शामिल किए गए अर्धसैनिक बलों और सीआरपीएफ के प्रशिक्षण के लिए व्यापक व्यवस्था मौजूद है।

अमेरिका के इस्लामिक कट्टरवाद पर केंद्रित संकुचित दृष्टिकोण को व्यापक तौर पर नजरंदाज करते हुए भारत अपनी कुछ कार्यपद्धतियों को अब तक अपना सकता है:

  • आतंकवाद में शामिल होने के आशंका वाले लोगों को स्थानीय पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसी का इस्तेमाल करते हुए हतोत्साहित करना या सक्रियता से रोकना।
  • व्यापक समुदायों को जातीय, भाषायी और सांस्कृतिक मतभेदों के बारे में संवेदनशील बनान और उनके बीच सौहार्द कायम करने की आवश्यकता।
  • गैर सरकारी संगठनों, स्कूलों, सामुदायिक केंद्रों और धार्मिक संगठनों के बीच सहयोग [37]

यूनेस्को के अध्ययन दर्शाते हैं कि स्कूलों में बाल्यावस्था के दौरान किए गए हस्तक्षेप आगे चलकर युवाओं का मुख्यधारा में बने रहना और उग्रवादी विचारधारा के प्रति उनका भटकाव न होना सुनिश्चित करते हैं। हालांकि इस नेटवर्क्डक दुनिया में, जहां वैश्विक स्तर पर कट्टरवाद व्यारप्तग है, ऐसे में स्थानीय प्रभाव वाले असरदार काउंटर मैसेजिंग में वैश्विक दृष्टिकोण होना आवश्यक है। पश्चिम एशिया की आतंकवाद से निपटने की रणनीति — जिनमें उन देशों में काम की तलाश में गए भारतीय कामगारों सहित जोखिम की आशंका वाले सभी लोगों को लक्षित किया गया है, उन्हें भारत में कामगारों के गृहनगर तक पहुंच कायम करनी चाहिए — जहां उनके सामुदायिक हस्तक्षेप अब तक मजबूत हैं।

स्थानीय समुदायों को सोशल मीडिया, जमीनी स्तर पर और सरकार में मौजूद सभी हितधारकों के बीच बेहतर संचार के माध्यम से व्यापक सीवीई प्रयास नेटवर्क्डम किए जाने की आज प्रमुख रूप से आवश्यकता है। इस सिलसिले में, विस्तृत अध्ययन बहुमूल्य महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत में प्रभावी सीवीई नीति में एजेंट के तौर पर महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। शांति की परिभाषा सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को शिक्षकों के रूप में और विकास, स्वास्थ्य और राजनीति में साझेदार के तौर पर लम्बी दूरी तय करनी है। [38] कोई भी सरकार सीवीई प्रयासों में उन्हें शामिल न करने की लापरवाही नहीं बरतेगी।

भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठानों के लिए इन्हें और ज्यादा जटिल बनाना, गाय की रक्षा और हत्या के मामले में धार्मिक मतभेद उत्पन्न करेगा, प्रधानमंत्री मोदी पहले ही इसके विरुद्ध राय रख चुके हैं। [39]

जहां एक ओर पश्चिम में सीवीई/पीवीई रणनीतियों के जातीय प्रोफाइलिंग और निगरानी के प्रति कोमल रुख को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं, वहीं ब्रिटेन, इस्लाम के प्रति घृणा से संबंधित शिकायतों को दूर करने का छोटे-छोटे प्रयास कर रहा है और नव-नाजी गुटों को भी शामिल करने के लिए इस्लामिक कट्टरवाद से आगे जा रहा है। पिछले साल दिसम्बर में, ब्रिटेन के नव-नाजी गुट नेशनल एक्शन पर आतंकवाद से संबंधित ब्रिटेन के कानूनों के तहत गृहमंत्री ने प्रतिबंध लगा दिया था। अम्बर रड ने इस गुट को नस्ली, यहूदी—विरोधी और समलैंगिक विरोधी करार दिया। दुनिया भर की खुफिया एजेंसियों द्वारा इस्लाम के प्रति नफरत को उग्रवाद का प्रमुख कारक माने जाने के मद्देनजर ऐसे गुटों पर रोक लगाना महत्वपूर्ण है। [40]

भारत में भी, जहां धार्मिक धुव्रीकरण और साम्प्रदायिक या जातीय तनाव भय और कट्टरवाद को पोषित करते हैं, सामुदायिक नेताओं को ऐसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने होगी, जहां इंटरनेट की पैंठ धीमी है। कट्टरवाद के खतरों के बारे में जागरूकता फैलाने तथा हिंसा की “अविश्वसनीयता” को रेखांकित करने तथा ऐसे मार्ग का अनुसरण करने के परिणामों के बारे में बताने लिए स्थानीय धार्मिक नेताओं और उद्यमियों का सहयोग लिया जा सकता है। सरकार—-स्थानीय, राज्य और केंद्रीय स्तर पर — देश भर में कई ऐसे व्यक्तियों की पहचान करके उनका समर्थन प्राप्त कर सकती है।

भारत के विविध धर्मों, विविध भाषाओं और विविध संस्कृतियों वाले सामाजिक ताने-माने के मद्देनजर, सीवीई प्रयासों द्वारा विशिष्ट स्थानीय चिंताओं और तकलीफों को दूर करना आवश्यक है। ऐसे में किसी भी सफल प्रयास के लिए सरकारों और समस्त हितधाराकों के लिए इस वास्तविकता को स्वीकार किए जाने की आवश्यकता होगी कि आतंकवाद और उग्रवाद भारत में सभी धर्मों और जातियों में फैला हुआ है। संकुचित दृष्टिकोण से इसकी बारीकियों का नहीं, बल्कि केवल इस समस्या के एक अंश का समाधान होगा।


एंडनोट

[1] “Kerala youth calls up mother, says he is in Afghanistan following ‘true Islam’.” http://indianexpress.com/article/india/nia-zakir-naik-kerala-youth-calls-up-mother-says-he-is-in-afghanistan-4406002/.

[2] See “A Comprehensive US Government Approach to Countering Violent Extremism.” US Department of Homeland Security. https://www.dhs.gov/sites/default/files/publications/US%20Government%20
Approach%20to%20CVE-Fact%20Sheet.pdf
.

[3] “OCP implements a full range of partnerships to support and enhance efforts by faith leaders, local government officials, and communities to prevent radicalisation and recruitment by terrorist organisations. OCP also provides these stakeholders with training and technical assistance to develop CVE prevention programmes in support of resilient communities. OCP leads the department’s CVE mission with the following objectives: https://www.dhs.gov/countering-violent-extremism#.”

[4] US policy in Iraq is undermined by Iraqi perceptions that US engagement is superficial and transitory. Both ISIS and Iran promote the idea that the US cannot be relied on for a long-term partnership. http://www.publications.atlanticcouncil.org/wp-content/uploads/2017/05/Future-of-Iraq-Task-Force-web-0531.pdf.

[5] In February 2014, the Pakistan government’s Ministry of Interior issued its first integrated National Internal Security Policy (2014­–18), which acknowledges the CVE role of the civilian government, the military, civil-society stakeholders (including religious leaders, educational institutions and the media), Pakistanis living overseas, and the international community.

[6] Pakistan continues to receive financial assistance from the US, despite consistent, worried commentary in Washington over its being a safe haven for Al Qaeda and the Taliban, as well as terror groups that operate against India.

[7] In July 2012, the New York Times reported that the campaign to eradicate polio in Pakistan had fallen victim to the CIA’s decision to send a polio vaccination team into the Bin Laden compound in Abbottabad to gather DNA samples. The report says angry villagers chased legitimate vaccinators out, accusing them of being spies for the US. http://www.nytimes.com/2012/07/10/health/cia-vaccine-ruse-in-pakistan-may-have-harmed-polio-fight.html?pagewanted=all&_r=0.

[8] “CSOs find it difficult to engage in CVE activities as the sociopolitical climate in Pakistan becomes increasingly dented by anti-Americanism. There is a perception among many Pakistanis that CVE programmes are conducted only at the behest of the US as part of a broader western agenda to interfere in Pakistan’s affairs.” https://www.brookings.edu/wp-content/uploads/2016/06/Empowering-Pakistans-Civil-Society-to-Counter-Violent-Extremism-English.pdf.

[9] The allegation of corruption against Pakistan’s Children’s Television Project is one of several high-profile cases of CSO mismanagement of USAID funding. See “Pakistan’s ‘Sesame Street’ Hits Dead End Amidst Fraud Charges.” The Express Tribune. 6 June 2012. https://tribune.com.pk/story/389577/pakistans-sesame-street-hits-dead-end-amid-fraud-charges/.

[10] Afghanistan and Pakistan were top recipients for requested aid under CVE assistance between 2014–16. http://securityassistance.org/fact_sheet/us-countering-violent-extremism-aid?gclid=Cj0KCQjwh_bLBRDeARIsAH4ZYEO_JcbakTQ3Dw6yQmPHsXmV06w2w2L-PAT8oBhmJ71Oq_OWbRSUnjoaAonXEALw_wcB.

[11] “New documents obtained via Freedom of Information Act requests by the Brennan Center for Justice suggest these fears were well-founded. In an internal memo, officials at the FBI — one of the main agencies involved in CVE — acknowledged that engagement with radical ideas is not a clear predictor of terrorist acts. And, in another document, the Bureau described CVE as a means of strengthening its ‘investigative [and] intelligence gathering’ abilities, which seems to contradict the Obama administration’s claims that CVE is not about law enforcement.” https://www.theatlantic.com/politics/archive/2017/03/countering-violent-extremism/519822/.

https://www.brennancenter.org/sites/default/files/publications/Brennan%20Center%20
CVE%20Report.pdf
.

[12] “We have been paying Pakistan billions and billions of dollars; at the same time, they are housing the very terrorists that we are fighting.” Mr Trump said on 21 August 2017 at Fort Myers in a speech outlining his administration’s Afghanistan and South Asia Policy: https://www.whitehouse.gov/the-press-office/2017/08/21/remarks-president-trump-strategy-afghanistan-and-south-asia.

[13] “Commissioner of the Metropolitan Police, Cressida Dick, told a radio show that she gets more information now from Muslim communities than we ever have on the antiterrorist hotline. However, given recent examples of people who’ve carried out attacks or are violent extremists who are home-grown or may have travelled or been influenced by someone overseas but are living in our communities, the UK needs more people to talk to the police. The comments came in the wake of attacks on Finsbury ParkLondon Bridge, and Westminster. Lone-wolf terrorist Khalid Masood rammed into pedestrians on Westminster Bridge in March before stabbing a policeman outside Parliament.” http://www.standard.co.uk/news/crime/five-terror-attacks-stopped-in-london-over-past-12-weeks-some-with-just-minutes-to-spare-met-police-a3587781.html.

[14] Despite criticism over its failure to stop the Manchester attack, and concern expressed by British Muslims over fuelling surveillance, profiling and Islamophobia, British Home Secretary Amber Rudd defended the Prevent programme in the British press. http://www.telegraph.co.uk/news/0/anti-terror-prevent-programme-controversial/

[15] “Indonesia, Australia host counterterrorism meeting to address rising threat of Islamic militancy.” http://www.firstpost.com/world/indonesia-australia-host-counter-terrorism-meeting-to-address-rising-threat-of-islamic-militancy-3869551.html.

[16] In May 2016, the Abu Dhabi based Hedayah Center’s report on “Countering Violent Extremism in South East Asia” highlighted the need for regional approaches. Participants suggested that South East Asians finding religious identities rooted in localised, contextualised Islam could be one way to counter the violent extremist claim of being “the only pure” form of Islam. http://www.hedayahcenter.org/Admin/Content/File-2792016102253.pdf

[17] The Countering Violent Extremism Unit in the Australian Attorney General’s Department supports a comprehensive and coordinated strategy across government, and develops initiatives to address extremist influences before these influences threaten Australia’s security. https://www.livingsafetogether.gov.au/pages/home.aspx.

[18] The UK government’s strategy to counter Islamist extremism is affecting the discussion of terrorism, the UN’s special rapporteur on the right to Freedom of Assembly, Maina Kiai, has said. Attempts to identify and counter Islamist extremism through the Prevent programme had “created unease and uncertainty around what can be legitimately discussed in public.” Critics of PREVENT believe it is counterproductive and discriminates against Muslims, while others have said there is no clear way to measure its effectiveness. https://www.theguardian.com/politics/2016/apr/21/government-prevent-strategy-promoting-extremism-maina-kiai.

[19] Fighting radical religious beliefs and extremist ideology in Saudi Arabia is no easy task, given that politics and government are viewed through the prism of religious practice. The Saudi government has been forced to confront the perversion of faith that foments radicalism and separate it from religious conservatism and orthodoxy. http://www.mepc.org/combating-extremism-brief-overview-saudi-arabias-approach.

[20] The increasing use of unconventional, “soft” measures to combat violent extremism in Saudi Arabia is bearing positive results, leading others in the region, including the US in Iraq, to adopt a similar approach. Roughly 3,000 prisoners have participated in Saudi Arabia’s rehabilitation campaign. Saudi authorities claim a rehabilitation success rate of 80 to 90 percent, having re-arrested only 35 individuals for security offenses. http://carnegieendowment.org/2008/09/22/saudi-arabia-s-soft-counterterrorism-strategy-prevention-rehabilitation-and-aftercare-pub-22155.

[21] The UN General Assembly Resolution 70/291. (The United Nations Global Counter-Terrorism Strategy Review). Adopted on 1 July 2016, it “recognises the role of the regional organisations, structures and strategies in combating terrorism and encourages those entities to enhance interregional dialogue and cooperation and consider using best practices developed by other regions in their fight against terrorism, as appropriate, taking into account their specific regional and national circumstances. It encourages member states, UN entities, regional and subregional organisations, and relevant actors to consider instituting mechanisms to involve the youth in the promotion of a culture of peace, tolerance, and intercultural and interreligious dialogue and develop, as appropriate, an understanding of respect for human dignity, pluralism and diversity, including, as appropriate, through education programmes, that could discourage their participation in acts of terrorism, violent extremism conducive to terrorism, violence, xenophobia and all forms of discrimination. The resolution also encourages member states to empower youth through the promotion of media and information literacy by including youth in decision-making processes and considering practical ways to include them in the development of relevant programmes and initiatives aimed at preventing violent extremism conducive to terrorism. It urges member states to take effective measures, in conformity with international law, to protect young people affected or exploited by terrorism or violent extremism conducive to terrorism.”

[22] The GCTF was set up in September 2011 to focus on capacity-building and countering violent extremism. The aim is to increase the capability of countries to address terrorist threats within their own borders and in their region.

[23] Author interviews with members of India’s security and intelligence community.

[24] Data accessed by Hindustan Times newspaper shows about 70 percent of 152 Indians arrested, detained or counselled for links to IS were from middle and upper-middle classes, with half of them holding graduate degrees and 23 percent completing their masters. Only a quarter of them had religious degrees. In contrast, an overwhelming majority of 645 terrorism suspects interrogated between 2000 and 2014, before the rise of IS, was from poor families. More than 90 percent of them did not complete school, and their trigger for radicalisation was mostly perceived victimhood at home, not a desire for global jihad. http://www.hindustantimes.com/delhi-news/is-snares-mostly-educated-young-men-from-india/story-jAQapsm9f1YJs4YMTY8a7I.html.

[25] “Facebook and Twitter are patronised for exchanging trivialities, but there is a large segment of people who use the internet for less peaceful ends. There are groups and chat rooms that entrench radical positions in individuals. Those then sometimes translate to terrorist activity.” Nehchal Sandhu’s keynote address during a workshop on “Realities of Terrorism in India.” https://www.thequint.com/india/2015/09/24/why-over-30-indians-chose-baghdadis-isis-over-hafiz-saeeds-let.

[26] In 2016, according to home ministry data, the NIA arrested 36 radicalised IS supporters, while the state police in Maharashtra, Karnataka, Madhya Pradesh, Telangana and Tamil Nadu arrested 18 IS supporters.

http://www.livemint.com/Politics/ZIT3LeDiDnit80XPF9LpHN/Social-media-apps-radicalization-tools-for-Islamic-State.html.

[27] About 15–20 youths are being de-radicalised by the UP Anti-Terrorism Squad, while over 100 sympathisers are under surveillance from various security agencies. The reports come days after state police gunned down a suspected ISIS-inspired home-grown terrorist in Lucknow during an operation that lasted about 13 hours. http://www.dailymail.co.uk/indiahome/indianews/article-4302620/Uttar-Pradesh-breeding-ground-ISIS-recruits.html#ixzz4og9P6LnK.

[28] “Structural ‘push’ factors create conditions that foster the rise or spread in appeal of violent extremism… often work indirectly and in conjunction with other variables. There has been an under-emphasis on ‘pull’ factors and the role of human agency.” http://www.cipe.org/publications/detail/drivers-violent-extremism.

[29] One example is of ISIS member Mohammad Shafi Armar alias Yusuf al-Hindi, who recruits people by sending them a message after tracking the activity of a particular Facebook page. Intelligence inputs reveal a skype account is then created to send messages and conduct discussions on instances of anti-Muslim acts of violence.

[30] *Such traffic peaked during 23–29 July 2015, coinciding with the hanging of 1993 Mumbai bombings convict Yakub Memon.

*More people logged into jihadist websites from India between 17 and 23 April this year, around the time as a controversy over the National Investigation Agency softening its terrorism charges against people linked to Hindu radical groups. http://www.hindustantimes.com/delhi-news/is-snares-mostly-educated-young-men-from-india/story-jAQapsm9f1YJs4YMTY8a7I.html.

[31] The Global Terrorism Index of 2016 classified South Asia as the second region most affected by terror globally, with Afghanistan, Pakistan and India dealing with the highest impact of terror. http://economicsandpeace.org/wp-content/uploads/2016/11/Global-Terrorism-Index-2016.2.pdf.

[32] List of Banned Terrorist Organisations Under Section 35 of Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 (As on 30 June 2015). http://mha.nic.in/bo.

[33] Schedule 1 of India’s Unlawful Activities Prevention Act (UAPA) lists 36 terrorist organisations proscribed by the Indian state. http://arc.gov.in/8threport.pdf.

[34] Sections 37 to 39 of India’s CrPC refer to the public’s role in assisting magistrates and law enforcement, give information regarding offences as well as aid those enforcing a warrant.

[35] “The success of Andhra Pradesh in containing the Naxalite problem cannot merely be attributed to the military one-upmanship the police enjoyed over the Maoists, but on a comprehensive strategy encompassing military tactics supported by a successful surrender and rehabilitation package.” http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-national/success-of-ap-model-in-containing-naxalism/article3171323.ece.

[36] Interview with the author at Jammu and Kashmir Police Headquarters in Srinagar on 27 June 2017.

[37] The Australian government’s Living Safe Together Grant Programme is focused on strengthening community-based organisations to do two things: “identify and disengage individuals from extremist ideology, and deliver services such as employment support, counselling and mentoring to those who could be susceptible or vulnerable to such recruitment.”

[38] Including women and girls and gender mainstreaming improves the design, implementation, and evaluation of CVE efforts. It brings additional resources by promoting the unique and significant roles of women and girls in CVE. It also ensures that CVE efforts counter female radicalisation and the various ways women and girls are involved in violent extremism and terrorism in all its forms and manifestations. Comprehensive approaches to CVE should also consider how violent extremism and counterterrorism impact women and girls differently and give a fuller picture of security concerns, including within those communities where radicalisation is taking place and where more engagement may be sought. Family and community relationships are critical determinants in the process of radicalisation, and both women and men are part of that dynamic process. https://www.thegctf.org/Portals/1/Documents/Framework%20Documents/A/GCTF-Good-Practices-on-Women-and-CVE.pdf.

[39] At Mahatma Gandhi’s Sabarmati Ashram in June 2017, Prime Minister Narendra Modi criticised vigilantes involved in violence in the name of cow protection. He said India is the land of non-violence, and we must not forget this. The statement came on a day a man was beaten to death by a Hindu mob in Jharkhand on suspicion that he was carrying beef in his vehicle.

[40] There are currently 70 organisations proscribed under the act. The majority are Islamist groups. A further 14 organisations in Northern Ireland were proscribed under previous legislation. http://www.independent.co.uk/news/uk/home-news/neo-nazi-national-action-ban-home-secretary-amber-rudd-terror-laws-a7470371.html.

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