Published on Nov 15, 2018 Updated 0 Hours ago

बांग्‍लादेश के सामने तमाम चुनौतियां हैं। हांलाकि सियासत के अपने जोखिम होते हैं — लेकिन सरकार अपने कर्तव्‍यों को पूरा करना चाहिए।

बांग्‍लादेश में गठबंधन की सियासत ने सत्‍ताधारी पार्टी की चिंता बढ़ाई

बांग्‍लादेश में चुनावी पारा चढ़ता जा रहा है और इस बीच कई चौकाने वाली चीज़ें हो रही हैं, ऐसा लग रहा है कि‍ सरकार के खि़लाफ़ एक ऐसे सियासी गठजोड़ को खड़ा करने की को‍शिश की जा रही है जो सत्‍ताधारी अवामी लीग को चुनौती दे सके। फि‍लहाल, ख़ासकर के अभी तक तो यही लग रहा है कि‍ आवामी लीग की सरकार को कोई ख़तरा नहीं है।

इसके पीछे एक बड़ी वजह है कि पूर्व विदेशमंत्री कमाल हुसैन और पूर्व राष्‍ट्रपति ए क्‍यू एम बदरुद्दोज़ा चौधरी एक मंच पर आ गए हैं लेकि‍न ये तय नहीं कर पाए हैं कि‍ बांग्‍लोदश नेशनलिस्‍ट पार्टी (बीएनपी) को साथ लिया जाए या नहीं। बीएनपी 12 साल से सत्‍ता और 5 साल से संसद से बाहर है। बीएनपी जमात-ए-इस्‍लामी का साथ छोड़ना चाहती है क्‍योंकि जमात को राजनीतिक पार्टी की सूची से बाहर कर दिया गया है। 1971 में हुई बांग्‍लादेश की आज़ादी की लड़ाई में पाकिस्‍तानी सेना का साथ देकर हत्‍या करने के आरोप में जमात के कई नेताओं को दोषी पाया गया। स्‍पेशल ट्राइब्‍यूनल ने जमात के नेताओं को युद्ध अपराध का दोषी ठहराया और उन्‍हें फ़ांसी दे दी गई।

चौधरी बीएनपी के संस्‍थापक सदस्‍य हैं और 2001 में बांग्‍लादेश के राष्‍ट्रपति बने और तब तक पद पर रहे जब उनकी ही पार्टी ने उन्‍हें बाहर का रास्‍ता नहीं दिखा दिया। अब उन्‍होंने बीएनपी से संभावित गठबंधन में शामिल होने के लिए शर्त रखी है कि‍ बीएनपी सार्वजनिक तौर पर जमात से अलग हो जाए जिसके साथ 2001 के चुनाव के वक़्त उसने गठबंधन किया था।

वहीं दूसरी तरफ़ डॉ कमाल हुसैन हैं, जो एक जानेमाने वकील हैं, क़ानून मंत्री रह चुके हैं और 70 के दशक में बांग्‍लादेश के संस्‍थापक शेख मुजिबुर रहमान की सरकार में विदेश मंत्री भी रहे।

हुसैन, 1981 में शेख हसीना के आवामी लीग का नेतृत्‍व संभालने के बाद पार्टी से अलग हो गए। अब वो Jatiyo Oikyo Front में बीएनपी का खुशी-खुशी स्‍वागत कर रहे हैं और बीएनपी से कोई सवाल भी नहीं पूछ रहे हैं।

बदरुद्दोज़ा चौधरी जो बांग्‍लादेश की विकल्‍प धारा पार्टी के नेता हैं, उन्‍होंने खुद को हुसैन के साथ किए उस गठबंधन से अलग कर लिया है जिसने देश के बड़े-बड़े वादे किए थे और हुसैन के गण फ़ोरम का बांग्‍लादेश की राजनीति में बहुत ज़्यादा प्रभाव नहीं है। अगर चौधरी को गठबंधन से हटा दें तों गठबंधन में राष्‍ट्रीय स्‍तर के अपेक्षाकृत छोटे कद के नेता बचे रह जाएंगे।

महमुदुर रहमान मन्‍ना, आवामी लीग के वफ़ादार होने से पहले कभी लेफ्ट विंग जातियो समाजतांत्रिक दल (जेएसडी) के चमकते सितारे थे, बाद में उन्‍होंने आवामी लीग छोड़ दी और जेल भी गए।

एएसएम अब्‍दुर रब, जो पूर्व छात्र नेता हैं और जेएसडी को बनाने में भी शामिल रहे। रब के फांसी पर चढ़ाए गए कर्नल अबु ताहेर से अच्‍छे संबंध थे जिन्‍होंने रिवर्स कूप (अहम संस्थानों पर क़ब्‍ज़ा करने के बाद सेना के कई अधिकारियों का क़त्‍ल कर दिया गया, आर्मी चीफ़ को हटा दिया) को अंजाम दिया, लेकिन ज़ि‍याउ‍र रहमान नवंबर 1975 में फि‍र आर्मी चीफ़ बन गए।

बांग्‍लादेश के दूसरे सैन्‍य शासक जनरल एचएम इरशाद के शासन के दौरान रब ने बाद में वफ़ादार संसदीय विपक्ष के नेता के तौर पर काम किया, बाद में वो 1996 में अवामी लीग से जुड़ गए। वो अवामी लीग की सरकार में जहाज़रानी मंत्री भी बने। हाल के सालों में उनकी लोकप्रियता काफ़ी घट गई है।

कुछ और लोग हैं जो कमाल हुसैन के साथ गठजोड़ में आना चाहते हैं लेकिन सबसे अहम बात है कि हुसैन चाहते हैं कि बीएनपी को गठजोड़ में शामिल किया जाए। विपक्ष की तरफ़ से बुलावा बीएनपी के लिए किसी वरदान से कम नहीं है क्‍योंकि वो मुसीबतों से गुज़र रही है।

बीएनपी की अध्‍यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़ि‍या, उनके बेटे और उत्‍तराधिकारी तारेक़ ज़ि‍या को भ्रष्‍टाचार के मामले में दोषी ठहराया गया है। बेगम ढाका की जेल में बंद हैं जबकि बेटा देश निकाले के बाद से लंदन में रह रहा है। 2007 में सेना का समर्थन हासिल करने वाली सरकार ने उन्‍हें देश छोड़कर जाने के लिए मज़बूर किया था।

लेकिन बस इससे ही बीएनपी की मुसीबतें ख़त्‍म नहीं हो जातीं, हाल ही में बीएनपी के कई नेताओं को 21 अगस्‍त 2004 को हुए ग्रेनेड हमलों की साज़ि‍श रचने के मामले में दोषी ठहराया गया है, इस हमले में आवामी लीग की नेता शेख हसीना को निशाना बनाने की कोशिश की गई थी।

ग्रेनेड हमले के वक़्त सरकार में शामिल जमात-ए-इस्‍लामी ने सही तरीके से जांच नहीं कराई और उल्‍टा शेख हसीना और आवामी लीग पर खुद ही ग्रेनेड हमले की योजना बनाने के आरोप लगा दिए।

हाल के फ़ैसले में कई लोगों को फांसी की सज़ा दी गई है जिसमें पूर्व गृह राज्‍य मंत्री लुत्फ़ोज़मां बाबर भी शामिल हैं। एक पूर्व वरिष्‍ठ पुलिस अधिकारी और कई दूसरे लोगों को जेल भी हुई है। लंदन में निर्वासित तारेक़ ज़ि‍या को 17 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई है।

बीएनपी फि‍लहाल जैसे बिना सिर के हो गई है और ऐसे वक़्त में कमाल हुसैन की तरफ़ से गठजोड़ का बुलावा उसके लिए जीवन देने वाली हवा की तरह है। बीएनपी लंबे समय से अंतरिम (केयरटेकर) सरकार बनाने की मांग कर रही है जिसके रहते अगले आम चुनाव कराए जाएं लेकिन अवामी लीग की सरकार ने संविधान का हवाला देते हुए इससे इंकार कर दिया है, सरकार का कहना है कि चुनाव के पहले ऐसा करने का संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। 2009 में सत्‍ता में वापसी के बाद अवामी लीग ने संविधान में संशोधन कर केयरटेकर सरकार के सिद्धांत को हटा दिया था।

गठबंधन के मंच से जो मांगे की गई हैं उनमें से चुनाव के पहले अंतरिम सरकार बनाने की मांग प्रमुख है। ये सुनकर बीएनपी को अच्‍छा लगा होगा लेकिन इससे सत्‍ताधारी पार्टी की तरफ से संभावित प्रतिक्रिया भी हुई। शेख हसीना अपने पुराने सहयोगी कमाल हुसैन पर हमलावर हो गईं, उन्‍होंने हुसैन के बीएनपी से हाथ मिलाने पर कहा है कि हुसैन ने क़ातिलों से हाथ मिला लिए हैं।

विपक्षी गठबंधन कमज़ोर है लेकिन इसके बावजूद सत्‍ताधारी अवामी लीग को खुशफ़हमी में नहीं रहना चाहिए क्‍यों कि चुनाव के मद्देनज़र बहुत सारे मुद्दे ऐसे हैं जिन पर तेज़ी से काम करना चाहिए था लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

प्रतिक्रिया की राजनीति भारी पड़ सकती है, इससे नाराज़गी बढ़ती है, यही बात पूर्व चीफ़ जस्टिस सुरेंद्र कुमार सिन्‍हा ने अपनी किताब ‘ए ब्रोकेन ड्रीम’ में कही है। सिन्‍हा बांग्‍लादेश के पहले हिंदू जज थे, जिन्‍हें देश छोड़ने पर मजबूर किया गया, अब वो अमेरिका में हैं, उन्‍होंने विदेश से ही अपना इस्‍तीफ़ा भेजा, ये सब प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। कई मुद्दों से किनारा कर लेना सरकार पर एक बोझ की तरह है।

पत्रकारों ने हाल ही में लागू किए गए डिज़ि‍टल सिक्‍योरिटी एक्ट का विरोध किया है जो देश में मीडिया की आज़ादी के सीधे तौर पर ख़तरा है, हांलाकि सरकार कहती है कि पत्रकारों को डरने की ज़रूरत नहीं है। हाल ही में लोगों के गायब होने के मामलों को भी सरकार अच्‍छे संभाल नहीं पाई, जिससे लोग असंतुष्‍ट हैं। इसके अलावा रोहिंग्‍या समस्‍या को नहीं भूलना चाहिए जो बोझ बनी हुई है और निकट भविष्‍य में इसका कोई हल भी नज़र नहीं आता।

एक और ख़तरा है पड़ोसी देश भारत के असम राज्‍य में नेशनल सिटीजन रजिस्‍टर (एनआरसी) का एलान होना, जिसके तहत 40 लाख लोगों पर अवैध नागरिक (बांग्‍लादेशी) होने का ख़तरा मड़रा रहा है। बांग्‍लादेश के सामने ये तमाम चुनौतियां हैं। हांलाकि सियासत के अपने जोखिम होते हैं लेकिन सरकार अपने कर्तव्‍यों को पूरा करना चाहिए।

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