Author : Aparna Roy

Published on Jun 27, 2023 Updated 0 Hours ago
भविष्य की क्लाइमेट रेज़िलियेंट स्वास्थ्य प्रणाली तभी मुमकिन होगी जब हेल्थकेयर वितरण भी हरित हो पायेगी!

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हाल ही में “वन हेल्थ फॉर ऑल” के विज़न के शुभारंभ के साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि भारत भविष्य के लिए रूपरेखा तैयार करने और एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अगुवाई के लिए तैयार है. यह जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के मेलजोल पर केंद्रित है. वैज्ञानिक तौर पर यह पूरी तरह से स्पष्ट है और हाल ही में जारी की गई IPCC सिंथेसिस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जलवायु कार्रवाई में देरी की हर बढ़ोतरी के साथ, पूर्व-औद्योगिक तापमान के 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर बने रहने का अंतर बढ़ रहा है और मनुष्यों पर इसके तमाम तरह के प्रभाव गंभीर होते जा रहे हैं. हालांकि, इससे भी ज़्यादा चिंता वाली बात यह है कि हेल्थकेयर प्रणाली खुद, जो कि प्रमुख रूप से मेडिकल कोल्ड चेन पर निर्भर करती है, में इसकी ऊर्जा की अत्यधिक मांग और शक्तिशाली फ्लोराइड युक्त ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने की ज़बरदस्त क्षमता है. हेल्थकेयर डीकार्बोनाइजेशन के लिए वैश्विक रोड मैप के अनुसार, ग्रीन पेपर वन भारत में दुनिया का सातवां सबसे बड़ा प्रत्यक्ष हेल्थ सेक्टर जलवायु फुटप्रिंट (39 Mt CO2e) है. इसलिए, नेट ज़ीरो की दिशा में प्रगति को तेज़ करने और अनिश्चित जलवायु व्यवधानों के प्रति लचीली स्वास्थ्य प्रणाली बनाने के लिए मेडिकल कोल्ड चेन के हरित समाधान न सिर्फ़ नए हैं, बल्कि अत्यंत ज़रूरी गति प्रदान करते हैं.

ये कोल्ड चेन यह सुनिश्चित करती है कि चिकित्सा सामग्री के निर्माण से लेकर उसके उपयोग तक चिकित्सा सामग्री की पूरी आपूर्ति को एक निर्धारित तापमान की सीमा के भीतर भंडारित किया जाता है और उसका परिवहन किया जाता है.

कोल्ड चेन बुनियादी ढांचा देखा जाए तो एक तापमान नियंत्रित भंडारण एवं परिवहन नेटवर्क है, जिसमें डीप फ्रीजरों, आइस-लाइन्ड रेफ्रिजरेटरर्स, कैरियर, रेफ्रिजरेटेड वैन्स और इसी तरह के अन्य उपकरण शामिल हैं. ये कोल्ड चेन यह सुनिश्चित करती है कि चिकित्सा सामग्री के निर्माण से लेकर उसके उपयोग तक चिकित्सा सामग्री की पूरी आपूर्ति को एक निर्धारित तापमान की सीमा के भीतर भंडारित किया जाता है और उसका परिवहन किया जाता है. फार्मास्यूटिकल्स के अपने विशाल मार्केट साइज़ की वजह से भारत का स्वास्थ्य सेवा के वैश्विक केंद्र के रूप में विस्तार वर्ष 2030 तक 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, ज़ाहिर है कि इससे आने वाले दिनों में ऊर्जा की मांग में ज़बरदस्त उछाल दर्ज किया जाएगा. इसके साथ ही चिकित्सा आपूर्ति के परिवहन के लिए रेफ्रिजरेंट में आवश्यक शीतलन की मात्रा में काफी वृद्धि होगी, उल्लेखनीय है कि ऐसी मांग को पूरा करने की क्षमता ग़ैरभरोसेमंद जीवाश्म ईंधन-केंद्रित बिजली ग्रिड, हानिकारक रसायनों और महंगे डीज़ल-संचालित जनरेटर पर आधारित है.

एक ऐसा देश, जो कि वर्ष 2030 तक अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने और वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है, ऐसे में उसके लिए हरित और स्थाई कोल्ड-चेन समाधान विकसित करना एक विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता भी है. लेकिन, लो-कार्बन मेडिकल कोल्ड चेन के विकास के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने में भारत किस प्रकार से अगुवाई कर सकता है? इस पर्यावरण दिवस के अवसर पर भारत एक क्रियाशील ढांचे को अपनाने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, जो भविष्य के लिए एक तेज़, हरित और लचीली चिकित्सा आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण सुनिश्चित करेगा.

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 

निस्संदेह रूप से चिकित्सा आपूर्ति के निर्बाध वितरण में रेफ्रिजरेटेड ट्रांसपोर्ट यानी प्रशीतित परिवहन एक अहम भूमिका निभाता है. ये रेफ्रिजरेटेड ट्रक ट्रांसपोर्ट रेफ्रिजरेशन यूनिट्स (TRU) को ले जाते हैं, जो परिवहन के दौरान वैक्सीन्स के लिए निर्धारित तापमान की सीमा को बनाए रखने के लिए एकीकृत डीजल-ईंधन वाली मोटरों/इंजनों द्वारा संचालित होते हैं. डियरमैन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पारंपरिक ट्रांसपोर्ट रेफ्रिजरेशन यूनिट्स ट्रक में खपत होने वाले कुल ईंधन का 20 प्रतिशत तक ख़र्च करते हैं, साथ ही अत्यधिक वायु प्रदूषण की वजह भी बनते हैं. यानी कि एक आधुनिक डीजल HGV इंजन के रूप में 29 गुना ज्यादा पार्टिकुलेट मैटर (PM) और छह गुना ज्यादा नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) का उत्सर्जन करते हैं. इसके अतिरिक्त, TRU रेफ्रिजरेंट गैसों के रिसाव का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर व्यापक रूप से विपरीत असर पड़ता है. आम तौर पर सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली ‘एफ-गैस’ CO2 की तुलना में लगभग 4,000 गुना अधिक ख़तरनाक है. इसके अलावा, भारत का ट्रांसपोर्ट सेक्टर देखा जाए तो सभी क्षेत्रों में तीसरा सबसे ज़्यादा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाला सेक्टर है. एक स्वच्छ विकल्प के अभाव में हरित भविष्य की दिशा में स्पष्ट परिवर्तन न के बराबर है. अधिक पर्यावरणीय स्थिरता और संक्रमण सुनिश्चित करने का एक प्रभावी तरीक़ा प्रत्येक डीजल-संचालित TRU को स्थाई, हरित/स्वच्छ शीतलन प्रौद्योगिकियों के साथ परिवर्तित किया जाना है. तरल नाइट्रोजन वाष्पीकरण या क्रायोजेन-आधारित प्रणालियों को अपनाने से न केवल शून्य-उत्सर्जन वाली कोल्ड ट्रांसपोर्ट सेवाएं सुनिश्चित होंगी, बल्कि इससे कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए क्लीनटेक-आधारित ‘टिकाऊ’ मॉडल भी सामने आएगा.

तरल नाइट्रोजन वाष्पीकरण या क्रायोजेन-आधारित प्रणालियों को अपनाने से न केवल शून्य-उत्सर्जन वाली कोल्ड ट्रांसपोर्ट सेवाएं सुनिश्चित होंगी, बल्कि इससे कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए क्लीनटेक-आधारित ‘टिकाऊ’ मॉडल भी सामने आएगा.

भारत के शहरों में शहरी फ्रेट या अंतिम छोर तक सामान के वितरण से जुड़े कार्यों में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) का उपयोग तेज़ी से बढ़ता जा रहा है. शहर के आसपास की सीमा के भीतर चिकित्सा आपूर्ति के वितरण के लिए एक आदर्श विकल्प के तौर पर बैटरी चालित प्रशीतन इकाइयों से लैस छोटे इलेक्ट्रिक वाहनों को इंसुलेटेड वैन की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है. ज़ाहिर है कि बैटरी चालित प्रशीतन इकाइयों में ज़ीरो टेलपाइप उत्सर्जन होता है, जो कि न केवल जीवाश्म-ईंधन मुक्त होता है, बल्कि इसकी उच्च ऊर्जा दक्षता भी होती है. शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन (SSEF) के सहयोग से दि एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) द्वारा वर्ष 2020 में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक़ छोटे वाणिज्यिक वाहन सेगमेंट में इलेक्ट्रिक वाहनों के अधिक से अधिक प्रवेश से वर्ष 2030 तक CO2 उत्सर्जन में 14 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है.

रेफ्रिजरेटेड ट्रांसपोर्टेशन के अलावा, वैक्सीन्स का कोल्ड स्टोरेज एक और महत्त्वपूर्ण चुनौती है. वैक्सीन के भंडारण में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन्स (HFCs) जैसे कि R134a, R404a और R407c जैसे रेफ्रिजरेंट्स का उपयोग किया जाता है, जिनमें ग्लोबल वार्मिंग की अत्यधिक क्षमता (GWP) होती है. ग्रीनहाउस गैसों के रूप में CO2 की तुलना में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन्स कहीं अधिक शक्तिशाली हैं. जैसे-जैसे रेफ्रिजरेशन की आवश्यकता बढ़ती है, तो कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की दिशा में उच्च ग्लोबल वार्मिंग क्षमता वाली ग्रीनहाउस गैसों पर आधारित पारंपरिक रेफ्रिजरेंट के स्थान पर और स्थिर एवं मोबाइल कोल्ड चेन में अधिक जलवायु-अनुकूल रेफ्रिजरेंट में बदलाव बेहद अहम भूमिका निभाएगा.

इस सेक्टर में उभरती सर्वोत्तम प्रथाएं इस प्रभावी और निर्बाध परिवर्तन में सहायक सिद्ध होंगी. इसका एक अच्छा उदाहरण बी मेडिकल सिस्टम्स (BMS) है, जो कि दुनिया में मेडिकल रेफ्रिजरेंट्स के अग्रणी निर्माताओं में से एक है. इस कंपनी ने अपने नवाचार के माध्यम से इस समाधान की अगुवाई करने का काम किया है. BMS के मेडिकल रेफ्रिजरेटर तापमान की रेंज को -86 तक बनाए रखने में सहायता करते हैं, जो बीच-बीच में बिजली कटौती के बावज़ूद चिकित्सा आपूर्ति को सुरक्षित बनाए रखने के लिए तापमान को आवश्यकता के मुताबिक़ बनाए रख सकता है. इतना ही नहीं बिजली चले जाने की स्थिति में भी यह रेफ्रिजरेटर दो दिनों तक अपना तापमान बनाए रखता है. ऐसे इलाक़ों, जहां बिजली की आपूर्ति नहीं है, वहां भी इस रेफ्रिजरेटर को इसी तरह के नतीज़ों के लिए सौर ऊर्जा के साथ जोड़ा जा सकता है. भारत में निर्मित ये रेफ्रिजरेंट अधिकतम ऊर्जा दक्षता प्रदान करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल हाइड्रोकार्बन-आधारित रेफ्रिजरेंट का इस्तेमाल करते हैं. इस तरह के प्रभावशाली उपक्रमों को बढ़ाने से टिकाऊ उपकरणों की अधिक से अधिक बढ़ोतरी सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत उपायों को बढ़ावा मिलेगा. प्राकृतिक रेफ्रिजरेंट्स को प्राथमिकता देने से भारत में वर्ष 2030 तक प्रति वर्ष 50 मिलियन टन CO2e की प्रत्यक्ष उत्सर्जन बचत होगी. यह HFC के उपयोग से होने वाले वर्तमान उत्सर्जन के 50 प्रतिशत से अधिक है.

इसके अतिरिक्त, जैसा कि भारत मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के किगाली संशोधन, उच्च ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP) के साथ HFC के उपभोग और उत्पादन को कम करने एवं वर्ष 2047 तक राष्ट्रीय HFC उत्सर्जन को 85 प्रतिशत तक कम करने को लेकर प्रतिबद्ध है, ऐसे में रेफ्रिजरेंट्स में प्राकृतिक रूप से व्यवहार्य विकल्प  की दिशा में एक तत्काल बदलाव बहुत आवश्यक है.

भारत क्या करे?

आख़िर में, रिसर्च एवं डेवलपमेंट (R&D) पर फोकस करने वाली और वैकल्पिक टेक्नोलॉजी के उपयोग को बढ़ावा देने वाली कोल्ड-चेन विकास-विशिष्ट  पॉलिसी की ज़रूरत शिद्दत से महसूस की जाती है. भारत जैसे देश के लिए हेल्थकेयर में विकास सहयोग में एक शक्तिशाली भूमिका निभाने के लिए, सर्वोत्तम नवाचारों के ज़रिए नेतृत्व करने हेतु अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र को रेफ्रिजरेशन सेक्टर से जोड़ना ज़रूरी है. जबकि BMS जैसी निजी सेक्टर की कंपनियों ने स्वतंत्र रिसर्च को चलाने के लिए अपने आर एंड डी इंफ्रास्ट्रक्चर और क्षमताओं को हाल ही में शुरू किया है. ऐसे में सरकार को स्थिरता पहलों के हिस्से के रूप में ऐसे क़दमों का समर्थन करना चाहिए और उन्हें अधिक से अधिक प्रोत्साहन देना चाहिए.

भारत जैसे देश के लिए हेल्थकेयर में विकास सहयोग में एक शक्तिशाली भूमिका निभाने के लिए, सर्वोत्तम नवाचारों के ज़रिए नेतृत्व करने हेतु अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र को रेफ्रिजरेशन सेक्टर से जोड़ना ज़रूरी है. 

ज़ाहिर है कि स्वच्छ और हरित विकल्पों की ओर परिवर्तन ख़र्चीला है. लेकिन स्वच्छ प्रशीतकों के लिए अधिक मज़बूत विज़न विकसित करने में सरकार का दख़ल, प्रौद्योगिकियों को वित्तपोषित और कार्यान्वयन योग्य बनाने के लिए आवश्यक कार्यों एवं नवाचारों का समर्थन व पहचान करते हुए, उनके अपनाने में एक लंबा रास्ता तय करेगा, साथ ही पारंपरिक साधनों से दूर एक सफल संक्रमण में मदद करेगा.

चिकित्सा नवाचार और मैन्युफैक्चरिंग में अपने नेतृत्व में भारत को मेडिकल वितरण एवं आपूर्ति को और अधिक टिकाऊ बनाने के लिए दुनिया के समक्ष एक रूपरेखा प्रस्तुत करना चाहिए. दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता के रूप में भारत को यह सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभानी है कि वैक्सीन सभी के लिए सुलभ हों और साथ ही साथ वैक्सीन उत्पादन एवं उसके वितरण को दौरान होने वाले कार्बन उत्सर्जन को भी कम किया जा सके. कोल्ड चेन में स्थाई प्रथाओं को लागू करके और हरित आपूर्ति-श्रृंखला प्रबंधन रणनीतियों को अपना कर भारत वैश्विक हेल्थकेयर के लिए अधिक पर्यावरणीय रूप से जवाबदेह नज़रिए को बढ़ावा देने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.


अपर्णा रॉय ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी (CNED) में, क्लाइमेट चेंज एंड एनर्जी की फेलो और लीड हैं.

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