कोविड-19 महामारी ने शहरी नियोजन में कई ख़ामियों को उजागर किया है, जिसके चलते कई लोगों ने इसके दुष्प्रभावों का परिणाम भुगता है. यहाँ शहरी नियोजन या शहरी योजना शब्द का अर्थ विकास के उपायों की एक विस्तृत श्रृंखला से है जैसे, समावेशी बुनियादी ढांचे को डिज़ाइन करना और साथ ही आवश्यक सुविधाओं, काम करने के हुनर और रोज़गार के अवसर प्रदान करने के लिए अलग-अलग रूप में डेटा एकत्रित करना. साल 2021 में प्रवेश के साथ, लिंग आधारित बुनियादी ढांचे की योजना यानी ऐसी शहरी योजनाएं जो सभी लिंगों की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम हों, सार्वजनिक स्थानों का लिंग-आधारित विश्लेषण और समावेशी डिज़ाइन को व्यवस्थित डेटा निर्माण और लिंग-संवेदी निर्णय लेने के लिए नीति निर्धारण में शामिल किया जाना चाहिए.
शहरी श्रमिक वर्ग में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना
डेटा से पता चलता है कि हालांकि, कुल मिलाकर कोविड-19 के मामले महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक हैं, वहीं प्रभावित महिला स्वास्थ्यकर्मियों की संख्य़ा कहीं अधिक है. लेकिन यह आश्चर्यजनक नहीं है, यह देखते हुए कि पुरुषों की तुलना में अति-आवश्यक सेवाओं में महिलाओं की भागीदारी अधिक है। भारत में, अधिकतर महिलाएं घर से काम करने वाले पेशों में अधिक रूप से कार्यरत हैं. यह स्व-नियोजित काम हैं या फिर अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े काम हैं. वहीं अनौपचारिक श्रमिकों के कुल कार्यबल में महिला कामगारों की संख्या 54.8 प्रतिशत है. महिलाओं द्वारा अधिक अनौपचारिक काम का मतलब है, कोविड-19 के प्रभावों के प्रति उनका अधिक संवेदनशील होना और यही वजह है कि इस क्षेत्र में बेरोज़गारों की संख्य़ा इतनी अधिक है.
कोविड-19 के मामले महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक हैं, वहीं प्रभावित महिला स्वास्थ्यकर्मियों की संख्य़ा कहीं अधिक है.
रोज़गार के ये ख़राब आंकड़े बताते हैं कि आजीविका मिशन के लिए ज़िम्मेदार शहरी निकायों को लिंग आधारित कौशल विकसित करने की दिशा में काम करना चाहिए. इसके लिए ज़रूरी है कि लिंग अंतराल पर आधारित डेटा बेस बनाया जाए और लिंग-संतुलित कौशल विकसित करने की दिशा में पहल की जाएं. साथ ही नौकरी के अवसरों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिसके माध्यम से रोज़गार के नए क्षेत्रों को कौशल संबंधी पाठ्यक्रमों के साथ जोड़ा जा सकता है, और पाठ्यक्रमों के लाभार्थियों को विशेष रूप से लक्षित किया जा सकता है ताकि वह विशेष रूप से इन नए इन क्षेत्रों में काम करने के लिए तैयार हो सकें. इस सभी में लिंग आधारित आंकड़े और तैयारी अहम भूमिका निभाएगी.
महिला श्रम शक्ति की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक स्थानों को डिज़ाइन करने से संबंधित परियोजनाओं के साथ इन कोशिशों का तालमेल बैठाना ज़रूरी है. अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर अधिक उपस्थिति दर्ज करती हैं अगर वह मिश्रित उपयोग वाले क्षेत्र हों, और वह जगहें जहां व्यावसायिक प्रतिष्ठान हर समय खुले रहते हैं. इस प्रकार इन जगहों पर महिलाओं की उपस्थिति से गतिविधि और घनत्व सुनिश्चित रहता है. जब सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा सुनिश्चित करने के मुद्दे को हल करने का प्रयास किया जाता है, तो इस तरह के संशोधनों की चर्चा से पहले इस बात को सुनिश्चित करना ज़रूरी समझा जाता है कि पर्याप्त महिलाएं इसके इस्तेमाल के लिए आगे आएंगी. ऐसे में निर्णय लेने वालों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पर्याप्त जगह और रौशनी जैसे भौतिक कारकों के माध्यम से लिंग-संवेदनशील योजनाएं बनायी जाएं और इनके बारे में जागरूकता और क्षमता निर्माण जैसे सामाजिक कारक अनिवार्य रूप से शहरी स्थानों में पहुंचने और अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति के मौजूद हो. उदाहरण के लिए, मुंबई के नागरिक निकाय के पास कई वार्डों में व्यावसायिक क्षेत्रों में और शिक्षण संस्थानों के पास कामकाजी महिलाओं के लिए बहुउद्देशीय घर बनाने के लिए जगहें आरक्षित की गई हैं, जिसमें चाइल्ड-केयर सुविधाएं और उद्यमशीलता प्रशिक्षण केंद्र शामिल होंगे. इन केंद्रों को जानबूझकर उच्च दृश्यता (high visibility) वाले क्षेत्रों जैसे बाज़ारों और रेलवे स्टेशनों के आस-पास बनाया जाता है. हालांकि, शहरी नियोजन में यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अधिक से अधिक स्थान महिलाओं के लिए सुरक्षित साबित हों ताकि महिलाएं अधिक जगहों तक पहुंच सकें. ये प्रगतिशील और आवश्यक योजनाएं हैं, जिन्हें यदि संपूर्ण रूप से क्रियान्वित किया जाता है, तो यह एक महत्वपूर्ण रूपरेखा साबित होगी जिसे अलग अलग क्षेत्रों में दोहराया जा सकता है.
शहरी प्रबंध निकायों के पास मौजूद हो मज़बूत लिंग आधारित डेटा तंत्र
हालांकि, लिंग-संवेदनशील बुनियादी ढाँचा और जागरूकता बढ़ाने की दिशा में किए जाने वाले काम, ऐसी जगहों व सेवाओं तक पहुंचने वाली महिलाओं की संख्य़ा की परवाह किए बिना किए जाने चाहिए, जिनके जुड़ने की संभावना हो. लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों में उपलब्ध नागरिक सुविधाओं की संख्य़ा पर लिंग-विच्छेदित डेटा (sex-disaggregated data) यानी लिंग आधारित डेटा तंत्र को समेटने व जुटाने के लिए एक केंद्रित अभियान चलाया जाना चाहिए. साथ ही शहरी क्षेत्रों में नौकरियों में हुए नुकसान और रोज़गार के घटते अवसरों पर महामारी के प्रभाव को जांचा जाना चाहिए ताकि पुनर्वास और टिकाऊ तंत्र विकसित करने के उपयुक्त प्रयास किए जा सकें. यह जानकारी कमज़ोर व असुरक्षित लोगों के लिए समय रहते और आवश्यक सेवाओं को उपलब्ध करने और अधिक से अधिक औपचारिक कार्यक्षेत्र बनाने के लिए बेरोज़गारी को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण होंगे. भारत में नीति निर्माताओं व सरकारी नागरिक निकायों के लिए यह ज़रूरी है कि वह 10 साल की जनगणना के आंकड़ों पर भरोसा करने के बजाय, अलग-अलग विभागों के साथ काम कर के वास्तविक समय के डेटा को जुटाएं और इस के आधार पर नागरिकों को बेहतर सेवाएं उपलब्ध कराने की दिशा में काम करें.
रोज़गार के ये ख़राब आंकड़े बताते हैं कि आजीविका मिशन के लिए ज़िम्मेदार शहरी निकायों को लिंग आधारित कौशल विकसित करने की दिशा में काम करना चाहिए. इसके लिए ज़रूरी है कि लिंग अंतराल पर आधारित डेटा बेस बनाया जाए
नेतृत्व वाली भूमिकाओं में महिलाएं
यह आवश्यक है कि अलग-अलग समूहों की ज़रूरतों का प्रतिनिधित्व करने वालों में महिलाओँ की आवाज़ भी शामिल हो ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्णय लेने वालों में लिंग संवेदनशीलता है जो इनके ज़रिए शहरी नियोजन में शामिल होगी. शहरी स्थानीय निकायों और नागरिक प्रतिष्ठानों सहित सभी सरकारी निकायों के जेंडर ऑडिट्स को प्रतिनिधित्व की गारंटी देने के लिए सही व सटीक रूप से लागू किया जाना चाहिए. लिंग समानता के प्रति ज़िम्मेदार निर्णय लेने की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है कि सभी कमज़ोर समूहों के लिए नागरिक सुविधाओं को प्रभावी ढंग से वितरित किया गया है. एक मनमाना कोटा पूरा करने के लिए शहरी स्थानीय निकायों में निचले पदों को भरने के लिए विरोध के रूप में ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाओं की देखरेख करने वाले प्रशासनिक निकायों के प्रमुखों के बीच संतुलित लिंग प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है.
शहरी स्थानीय निकायों और नागरिक प्रतिष्ठानों सहित सभी सरकारी निकायों के जेंडर ऑडिट्स को प्रतिनिधित्व की गारंटी देने के लिए सही व सटीक रूप से लागू किया जाना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 11 (टिकाऊ शहर और समुदाय) में कहा गया है कि शहरों में सभी वर्गों तक सुरक्षित और किफ़ायती आवास की पहुंच सुनिश्चित करना ज़रूरी है और यह काम सुरक्षित व सुलभ सार्वजनिक परिवहन में निवेश करके, शहरी योजना और प्रबंधन में भागीदारी और समावेशी तरीके से सुधार करके किया जा सकता है. इसके ज़रिए हम अपने शहरों को सुरक्षित और टिकाऊ बना सकते हैं. इसे प्राप्त करने के लिए, शहर के नागरिक निकाय, नीति विशेषज्ञ, शहरी योजनाकारों और वास्तुकारों को शहर के बुनियादी ढांचे को लिंग समानता के नज़रिए से देखना व मैप करना होगा, यानी- शहर की ज़ोनिंग, लाइटिंग, किराये के आवास और इसी तरह की अन्य सुविधाओं को समावेशी बनाया जाना चाहिए. इसके लिए कई विभागों के बीच लगातार चर्चाओं और बैठकों को समय समय पर आयोजित किए जाने की आवश्यकता होगी, जिसमें नगर निगमों से लेकर आवास, परिवहन और स्किलिंग विभागों को सामंजस्यपूर्ण योजनाएं बनाना शामिल है. लिंग-संवेदनशील नियोजन शहरों को भविष्य के संकटों से पूरी तरह भले ही न बचा पाए, लेकिन प्रतिकूल और असमान प्रभावों को कम करने और इसकी कमज़ोर आबादी के लिए लचीलापन पैदा करने में ज़रूर मदद कर सकता है.
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