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अमेरिका के तट के नज़दीक क्यूबा में इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस इकट्ठा करने और समुद्री गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए एक केंद्र की स्थापना को लेकर चीन और क्यूबा के बीच समझौते के बारे में मीडिया की खबरें अमेरिका के लिए अपने पड़ोस में एक नई चुनौती के तौर पर उभरी है. खबरों से पता चलता है कि क्यूबा में जासूसी का केंद्र होने से चीन को अमेरिका के पूरे दक्षिण-पूर्व हिस्से की जासूसी करने की सुविधा मिल जाएगी. इस इलाके में अमेरिका के कई सैन्य केंद्र हैं.
बातचीत के लिए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की चीन की यात्रा के बीच, जिसका मक़सद बिगड़े संबंधों को सुधारना है, क्यूबा में चीन के जासूसी के अड्डे के मुद्दे पर बाइडेन प्रशासन की शुरुआती ऊहापोह ने घरेलू राजनीति में मंथन का दौर शुरू किया है. शुरुआत में व्हाइट हाउस और रक्षा मंत्रालय ने चीन के जासूसी के अड्डे की खबरों को गलत बताया लेकिन बाद में बाइडेन प्रशासन ने इसे एक ‘विरासत में मिला मुद्दा‘ बताया. बाइडेन प्रशासन के मुताबिक ये मामला ट्रंप के दौर का है क्योंकि जासूसी अड्डा 2019 से काम कर रहा है. बाइडेन प्रशासन ने ये भी बताया कि इसको लेकर राष्ट्रपति बदलने के दौरान चर्चा हुई थी. जिस समय अमेरिका की राजनीति में चीन को लेकर दोनों पार्टियों के बीच सहमति है, उस समय रिपब्लिकंस अपनी विरोधी पार्टी से इस बात को लेकर खुश नहीं है कि वो ये बताना चाहती है कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी यानी रिपब्लिकंस राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर बेपरवाह है. सांसद माइक गल्लाघेर, जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) को लेकर संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं, का आकलन है कि ये घटनाक्रम CPC के द्वारा “मुनरो डॉक्ट्रिन से माओ डॉक्ट्रिन” में बदलने की कोशिश है. उन्होंने क्यूबा में चीन के जासूसी के अड्डे को लेकर बाइडेन प्रशासन के अलग-अलग बयानों को चीन से बातचीत की हालिया कोशिशों से जोड़ा.
बाइडेन प्रशासन के मुताबिक ये मामला ट्रंप के दौर का है क्योंकि जासूसी अड्डा 2019 से काम कर रहा है. बाइडेन प्रशासन ने ये भी बताया कि इसको लेकर राष्ट्रपति बदलने के दौरान चर्चा हुई थी.
क्यूबा में चीन के जासूसी के अड्डे से जुड़ा विवाद चीन और अमेरिका के बीच संबंधों में नरमी की अटकलों के बीच खड़ा हुआ है. अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने 16-21 जून के बीच बीजिंग और लंदन का दौरा किया. बीजिंग में ब्लिंकन के एजेंडे में मुख्य रूप से चीन के साथ संबंधों को संभालने के रास्तों को तलाशना और द्विपक्षीय सहयोग से जुड़े मुद्दे थे जो अमेरिका में जासूसी गुब्बारे की घटना के बाद से खत्म हो गए हैं. गल्लाघेर ने ये भी माना है कि क्यूबा में चीन का जासूसी अड्डा और इस क्षेत्र में अलग-अलग सरकारों के साथ चीन की भागीदारी अमेरिका के असर के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है. स्वाभाविक रूप से जैसे-जैसे अमेरिका 2024 के राष्ट्रपति चुनाव की तरफ बढ़ेगा, वैसे-वैसे ये मुद्दे बड़े होते जाएंगे. लेकिन ये विवाद ऐसे समय में खड़ा हुआ है जब मध्य एवं दक्षिणी अमेरिका और चीन की सरकारों के बीच भागीदारी में बढ़ोतरी हुई है.
चीन के साथ मार्च 2023 में औपचारिक संबंध स्थापित करने वाला होंडुरास ताइवान के साथ कूटनीतिक संपर्क को पूरी तरह तोड़ने वाले देशों में सबसे नया नाम बन गया है. होंडुरास की तरफ से इस बदलाव के लिए चीन ने मध्य अमेरिका के इस देश की पहली महिला राष्ट्रपति शियोमारा कास्त्रो के राजकीय दौरे के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया. होंडुरास मध्य अमेरिका के देशों में सबसे नया नाम है जो चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से जुड़ रहा है. 12 जून को चीन और होंडुरास ने द्विपक्षीय सहयोग के 19 समझौतों पर दस्तख़त किए जिनमें BRI के साझा निर्माण से जुड़ा एक समझौता भी शामिल है. चीन और होंडुरास के बीच सहयोग सभी क्षेत्रों में होगा जैसे कि खेती, आर्थिक एवं व्यापार से जुड़े मुद्दे, शिक्षा, विज्ञान एवं तकनीक और संस्कृति. कास्त्रो की यात्रा के दौरान चीन और होंडुरास के बीच कारोबारी सत्र में दोनों देशों के 200 डेलीगेट ने भागीदारी की. कास्त्रो ने शंघाई में न्यू डेवलपमेंट बैंक के मुख्यालय का दौरा करने के बाद होंडुरास को इसमें शामिल करने की मांग की. इस बैंक को ब्रिक्स समूह के द्वारा प्रमोट किया गया है. महत्वपूर्ण बात ये है कि कास्त्रो ने चीन की बड़ी टेलीकॉम कंपनी हुआवे के द्वारा संचालित एक केंद्र का दौरा भी किया. वैसे तो दोनों देशों ने मार्च 2023 में संबंध स्थापित किए लेकिन उनके बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर बातचीत ख़त्म होने के कगार पर है. ये समझौता होंडुरास के उत्पादों को चीन के बाजार तक पहुंचाना आसान बनाएगा और चीन की कंपनियों के लिए संवेदनशील क्षेत्रों जैसे कि इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा और दूरसंचार में निवेश करना सरल होगा. जिस वक्त़ भारत और अमेरिका जैसे देश इंफ्रास्ट्रक्चर में सफ़ेद हाथी जैसी परियोजनाओं के ज़रिए छोटे देशों को जाल में फंसाने की चीन की रणनीति के बारे में दुनिया का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं, उसी वक्त़ शी जिनपिंग की सबसे महत्वपूर्ण पहल BRI को अमेरिका के पड़ोस के देशों में सबसे ज्य़ादा मजबूती से समर्थन मिलता दिख रहा है. होंडुरास के आर्थिक विकास के मंत्री फ्रेडिस सेराटो ने “कर्ज के जाल” के नैरेटिव का ये कहते हुए खंडन किया है कि BRI से लोगों के रहन-सहन के स्तर में सुधार आएगा. उनका ये बयान अमेरिका के पड़ोस में चीन के द्वारा एक दुष्प्रचार में कामयाबी हासिल करने की तरह है.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जेम्स मुनरो के द्वारा अपनाए गए विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांतों में से एक मुनरो डॉक्ट्रिन में पश्चिमी गोलार्ध में विदेशी दख़ल से मना किया गया है. इसने इस सोच को मज़बूती दी कि पश्चिमी गोलार्ध असल में अमेरिकी प्रभाव में है. अमेरिका ने अतीत में अपने पड़ोस के देशों में विदेशी शक्तियों को अपना प्रभाव फैलाने से रोकने के लिए लिए ज़बरदस्ती दख़ल दिया था. 60 के दशक में शीत युद्ध 1.0 के चरम के दौर में क्यूबा महाशक्तियों के मुक़ाबले के केंद्र में था. 50 के दशक के आखिर में जब फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा के तानाशाह फुलजेंसियो बतिस्ता को बेदख़ल कर अमेरिका के तट के नजदीक कम्युनिस्ट शासन की स्थापना की थी तो डेमोक्रेट जॉन एफ कैनेडी के प्रशासन ने अमेरिका में निर्वासित क्यूबा के लोगों के द्वारा वहां की सत्ता हथियाने की एक कोशिश का साथ दिया था. इसे बे ऑफ पिग्स घटना के नाम से जाना जाता है. सोवियत संघ ने जब क्यूबा में परमाणु सक्षम मिसाइल की तैनाती की तो अमेरिका और सोवियत संघ परमाणु युद्ध के कगार पर आ गए थे. इसकी वजह से 1962 में क्यूबा की नौसैनिक घेराबंदी की गई थी जिसे क्यूबाई मिसाइल संकट के नाम से जाना जाता है. असली शीत युद्ध में ‘डोमिनो थ्योरी’ की एक सोच थी जिसके मुताबिक जिन देशों के पड़ोस में कम्युनिस्ट शासन स्थापित किया गया है वो डोमिनोज की तरह गिर जाते थे.
होंडुरास मध्य अमेरिका के देशों में सबसे नया नाम है जो चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से जुड़ रहा है. 12 जून को चीन और होंडुरास ने द्विपक्षीय सहयोग के 19 समझौतों पर दस्तख़त किए जिनमें BRI के साझा निर्माण से जुड़ा एक समझौता भी शामिल है.
आज शीत युद्ध 2.0 के दौर में हम डोमिनो इफेक्ट के उलट महसूस कर रहे हैं और अमेरिका के पड़ोस के देश चीन की आर्थिक राजनीति के आगे गिर रहे हैं. चीन के रणनीतिकारों के मुताबिक मध्य अमेरिका में चीन की दखलंदाजी के मामले में होंडुरास वास्तव में डोमिनो हो सकता है. पिछले दिनों अर्जेंटीना और चीन ने BRI को बढ़ावा देने के लिए एक समझौते पर दस्तखत किए. साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्रों में सहयोग को बेहतर करने के लिए भी तैयार हुए. चाइनीज़ एकेडमी ऑफ सोशल साइंस के झाऊ झीवी ने उम्मीद जताई कि चूंकि BRI का दख़ल बढ़ रहा है तो इस क्षेत्र के दूसरे देश जैसे कि ब्राज़ील और कोलंबिया भी चीन की प्रभावशाली शक्ति के आगे डोमिनो की तरह गिर जाएंगे. इससे भी बढ़कर क्यूबा और होंडुरास इस तथ्य के लिए संकेत के तौर पर हैं कि अगर अमेरिका ताइवान का समर्थन करता है तो चीन भी अमेरिका के क्षेत्र में घुसपैठ कर सकता है. अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ पिछले दिनों बातचीत के दौरान भी चीन के विदेश मंत्री किन गांग ने ज़ोर देकर कहा कि ताइवान को लेकर चीन के रुख़ का अमेरिका सम्मान करे और उसकी संप्रभुता को कमज़ोर करना बंद करे.
सोवियत संघ ने जब क्यूबा में परमाणु सक्षम मिसाइल की तैनाती की तो अमेरिका और सोवियत संघ परमाणु युद्ध के कगार पर आ गए थे. इसकी वजह से 1962 में क्यूबा की नौसैनिक घेराबंदी की गई थी जिसे क्यूबाई मिसाइल संकट के नाम से जाना जाता है.
दोनों शीत युद्धों में क्यूबा एक बड़े बदलाव का बिंदु है क्योंकि छद्म (प्रॉक्सी) युद्ध आम तौर पर महाशक्तियों से दूर देशों में लड़ा जाता है. सोवियत संघ का क्यूबा से हटना उसके अधिक महत्वाकांक्षी होने की वजह से हार के बारे में बताता है और अब जब CPC ने अमेरिका के पड़ोस में लड़ाई को ले जाना पसंद किया है तो सभी की नजरें इस बात पर रहेंगी कि आगे क्या होता है. लेकिन एक बार फिर ये कहना होगा कि जब अमेरिका चुनाव जैसे संवेदनशील राजनीतिक साल की तरफ बढ़ रहा है, उस वक्त अमेरिका के मतदाता मुनरो मानक को लेकर प्रदर्शन के बारे में अतीत और वर्तमान के डेमोक्रेटिक प्रशासन की प्रतिक्रिया की जांच करेंगे. एशिया के देश भी नज़दीकी तौर पर ब्लिंकन की बीजिंग यात्रा पर नजर रखेंगे. साथ ही ये भी देखेंगे कि अमेरिका अपने पड़ोस में ड्रैगन की ललकार से कैसे निपटता है. तभी पता चल पाएगा कि चीन की चुनौती को लेकर अमेरिका का संकल्प कितना मज़बूत है.
कल्पित ए मणिक्कर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
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Kalpit A Mankikar is a Fellow with Strategic Studies programme and is based out of ORFs Delhi centre. His research focusses on China specifically looking ...
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