13 सितंबर 2023 को अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद और विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी ने चीन के नवनियुक्त राजदूत झाओ शेंग का काबुल के राष्ट्रपति भवन में स्वागत किया. इसके बाद अफ़ग़ानिस्तान के चीनी दूतावास ने अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से तालिबान के साथ वार्ता जारी रखने का अनुरोध किया, और बदले में तालिबान को उदारवादी नीतियां अपनाने और समावेशी सरकार स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया. चीनी दूतावास के बयान में पश्चिम और कुछ अन्य देशों की निंदा भी की गई, और उनसे अफ़ग़ानिस्तान के हालात से सबक़ लेने, आतंकवाद पर दोहरे मानदंडों का त्याग करने, प्रतिबंध हटाने और विदेशों में अफ़ग़ानिस्तान की परिसंपत्तियां वापस करने को कहा गया. तालिबान ने इस वाक़ये को इस्लामी अमीरात के साथ जुड़ने के लिए अन्य देशों को प्रोत्साहित करने के मौक़े के तौर पर देखा.
तालिबान के साथ नज़दीकियों भरी चीन की ये नई चाल उसके दोहरे मानदंडों का ख़ुलासा करती है, क्योंकि वो तालिबानी हुकूमत वाले अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से लगे अपने अशांत शिनजियांग क्षेत्र में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ सांस्कृतिक नरसंहार को बदस्तूर जारी रखे हुए है.
तालिबान के साथ नज़दीकियों भरी चीन की ये नई चाल उसके दोहरे मानदंडों का ख़ुलासा करती है, क्योंकि वो तालिबानी हुकूमत वाले अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से लगे अपने अशांत शिनजियांग क्षेत्र में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ सांस्कृतिक नरसंहार को बदस्तूर जारी रखे हुए है. अगस्त के आख़िरी हफ़्ते में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शिनजियांग का औचक दौरा किया था, और उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के अधिकारियों से “कड़ी मेहनत से हासिल सामाजिक स्थिरता” की रक्षा के लिए “अवैध धार्मिक गतिविधियों” पर सख़्ती बढ़ाने का अनुरोध किया था. अपनी एकाधिकारवादी शिनजियांग नीति के तहत चीन “नक़ाब पहनने”, “लंबी दाढ़ी” बढ़ाने, और CCP की “परिवार नियोजन नीति” के उल्लंघन को अवैध धार्मिक गतिविधि या उग्रवाद मानता है.
चीन की विदेश नीति में उसकी सुरक्षा के साथ-साथ उसके भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों को हासिल करने के लिए स्व-संचालित कूटनीति और दादागीरी भरे उपायों को अमल में लाया जाता है. चीनी विदेश नीति का यही एजेंडा तालिबान के साथ रिश्ते गहरे करने को लेकर उसके दांव की व्याख्या करता है. हालांकि चीन की घरेलू नीति बिलकुल अलग है; इसमें अवैध धार्मिक गतिविधियों के छिछले बहाने बनाकर सेक्युलर वीगर मुसलमानों का दमन किया जाता है ताकि उनको चीनी रंग-ढंग में ढाला (सिनिसाइज़ेशन) जा सके.
तालिबान से दोस्ती, वीगरों पर सितम
हालिया वैश्विक टकरावों और प्रमुख शक्तियों के बीच जारी प्रतिस्पर्धा के मद्देनज़र चीन ने तालिबानी नेतृत्व वाले अफ़ग़ानिस्तान की ओर अधिक सक्रिय रुख़ अपनाया है. इन क़दमों का लक्ष्य चीन का क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाते हुए अमेरिका की घेराबंदी की नीति का मुक़ाबला करना है. इस नीति के ज़रिए अमेरिका सुरक्षा और भू-अर्थव्यवस्था से जुड़ी वजहों से अपनी “मित्र मंडली” का विस्तार करने में जुटा है. चीन ने तालिबान की इस दूसरी हुकूमत के साथ सक्रिय रूप से कूटनीतिक संबंध स्थापित कर लिए हैं. अगस्त 2021 के बाद से वो इस समूह के साथ 142 से भी ज़्यादा राजनयिक कार्यक्रम आयोजित कर चुका है. हालांकि इस तत्परतापूर्ण फ़ैसले की बुनियाद काफ़ी पहले तैयार कर ली गई थी. दरअसल चीन ने 1996 से 2001 के बीच तालिबान की पहली हुकूमत के साथ दोस्ताना संबंध क़ायम रखे थे. प्राथमिक रूप से इस रिश्ते का ज़ोर अस्थिर शिनजियांग क्षेत्र के संदर्भ में ईस्टर्न तुर्कमेनिस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) से सुरक्षा गारंटियों पर सौदेबाज़ी करने पर था. ग़ौरतलब है कि ETIM ने 1998 में अफ़ग़ानिस्तान में अपना आधार स्थापित कर लिया था. शिनजियांग में आतंकवाद के किसी भी स्वरूप के “फैलाव” को रोकने के लिए चीनी अधिकारियों ने तालिबानी नेता मुल्ला उमर से मुलाक़ात की थी. बैठक के दौरान उमर ने ये गारंटी दी थी कि तालिबान, वीगरों को शिनजियांग में हमले करने की इजाज़त नहीं देगा. हालांकि उन्होंने ये भी साफ़ कर दिया था कि वीगर लड़ाके तालिबानी टुकड़ियों में बरक़रार रहेंगे.
शिनजियांग में आतंकवाद के किसी भी स्वरूप के “फैलाव” को रोकने के लिए चीनी अधिकारियों ने तालिबानी नेता मुल्ला उमर से मुलाक़ात की थी. बैठक के दौरान उमर ने ये गारंटी दी थी कि तालिबान, वीगरों को शिनजियांग में हमले करने की इजाज़त नहीं देगा.
सितंबर 2001 के बाद घरेलू तौर पर चीन ने शिनजियांग में आतंक के ख़िलाफ़ जंग का इस्तेमाल करके वीगर मुसलमानों की सांस्कृतिक मान्यताओं और मजहबी ताने-बाने को निशाना बनाया. इसके साथ-साथ उसने शिनजियांग में हान प्रवासियों की संख्या बढ़ाकर वहां जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफिक) असंतुलन पैदा करने की नीति भी अपनाई गई. इसके बाद 2009 में आर्थिक शोषण, सीनीसाइजेशन और प्रांत की सेक्लुयर इस्लामिक संस्कृति के दमन ने शिनजियांग में व्यापक रूप से नस्लीय दंगों का रूप ले लिया. 2013 में बहुप्रचारित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की शुरुआत ने शिनजियांग को रणनीतिक और आर्थिक रूप से अहम बना दिया. ये प्रांत मध्य एशिया, यूरोप और यूरेशिया से जुड़ी BRI की अनेक महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का शुरुआती बिंदु बन गया. 2014 में शी ने अशांत शिनजियांग में राष्ट्रीय एकता और एकजुटता की रक्षा करने और और “सदी की परियोजना” BRI को सुरक्षित बनाने के लिए “फौलाद जैसी मज़बूत दीवार” तैयार करने पर ज़ोर दिया था.
अगस्त 2016 में पार्टी सेक्रेटरी चेन क्वांगुओ को सियासी और सुरक्षा रणनीति को लागू करने के लिए शिनजियांग भेजा गया. क्वांगुओ को उनकी अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों और चीन की नस्लीय नीति की शुरुआत करने वाले किरदार के तौर पर जाना जाता है. उन्होंने इलाक़े के मुस्लिमों पर अत्याधुनिक तरीक़े से निगरानी रखना और उनकी DNA प्रोफाइलिंग करना शुरू कर दिया. इस तरह शिनजियांग चीन का सबसे सैन्यीकृत क्षेत्र बन गया. 2017 में शी के मार्गदर्शन में CCP ने 1200 बंदी गृह तैयार करने में करोड़ो डॉलर का निवेश किया, और 10 लाख से भी ज़्यादा मुसलमानों को जेल में डाल दिया. इनमें वीगर, कज़ाक, उज़्बेक और किर्गी मुसलमान शामिल थे. इन बंदी गृहों में मुसलमानों को CCP के प्रति वफ़ादारी की शपथ लेने और इस्लाम और इस्लामिक संस्कृति (जैसे लंबी दाढ़ी रखना और नक़ाब पहनना) की निंदा करने को मजबूर किया गया. 2017 में मुसलमानों को नमाज़ अदा करने से रोक दिया गया. इन प्रतिबंधों का उल्लंघन करने पर जुर्माने लगाए गए और बंदी शिविरों में भेज दिया गया.
इसी बीच, चीन ने कट्टरपंथी तालिबान में तेज़ी से दिलचस्पी दिखाई और उनके साथ सीधा संपर्क स्थापित कर लिया. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा तालिबान के साथ बातचीत रद्द कर दिए जाने के बाद 2019 में बीजिंग ने तालिबानी प्रतिनिधिमंडल की मेज़बानी की. जुलाई 2021 में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने तियानजिन सिटी में तालिबान की मेज़बानी करते हुए उन्हें एक “अहम ताक़त” क़रार दिया. अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबानी क़ब्ज़े के बाद चीन ने तुरंत 1.3 करोड़ अमेरिकी डॉलर की मानवतावादी सहायता देने का वादा कर दिया. उसने ये भी कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में व्यवस्था बहाल करने के लिए एक नई अंतरिम सरकार की स्थापना ज़रूरी है. चीन ने अफ़ग़ानिस्तान का पुनर्निर्माण करने, पाबंदियां हटाने और विदेशों में अफ़ग़ान परिसंपत्तियों को मुक्त कराने के लिए सक्रिय रूप से अंतरराष्ट्रीय मदद मांगी है. चीन ने तालिबान के साथ अपने संबंधों में मज़बूती लाने के लिए कई अन्य क़दम भी उठाए हैं. इनमें बिना किसी शुल्क के अफ़ग़ानी वस्तुओं का आयात करना और अफ़ग़ानिस्तान से तेल निकालने के लिए अगले तीन सालों में 55 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश करना शामिल है. अभी हाल ही में चीनी टेलीकॉम कंपनी हुआवै को तालिबान ने निगरानी के लिए CCTV कैमरे लगाने का ठेका दिया है. इससे कट्टरपंथी समूह पर चीन का प्रभाव और बढ़ गया है.
अफ़ग़ानिस्तान के हालात और ज़्यादा चिंताजनक हो गए हैं. तालिबान महिलाओं और लड़कियों के प्रति और ज़्यादा दमनकारी हो गया है. उन्हें स्कूलों से प्रतिबंधित करते हुए बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया गया है.
बदले में, तालिबान ने वीगर लड़ाकों को चीन-अफ़ग़ानिस्तान सीमा से हटाकर दूसरी जगह भेज दिया है, और दशकों से अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे 2000 नस्लीय वीगरों की निगरानी बढ़ा दी है. हालांकि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) अब भी चीन की सुरक्षा और आर्थिक हितों, ख़ासतौर से पाकिस्तान में जारी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के लिए बड़ा ख़तरा बना हुआ है. जुलाई 2021 में उत्तरी पाकिस्तान में हुए आत्मघाती बम हमले के पीछे TTP का ही हाथ था, जिसमें चीन के 9 कामगारों की जान चली गई थी. अगस्त 2021 और अगस्त 2022 के बीच TTP की ओर से किए गए 250 हमलों में 433 नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों की जान जा चुकी है. वैचारिक तौर पर तालिबान और TTP नज़दीकी से जुड़े हुए हैं, और अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी अगुवाई वाली नेटो सेनाओं के ख़िलाफ़ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ चुके हैं. चीन ने पाकिस्तान में CPEC और चीनी कामगारों को सुरक्षित करने के मक़सद से TTP पर नकेल कसने के लिए तालिबान से मदद मांगी है.
अफ़ग़ानिस्तान के हालात और ज़्यादा चिंताजनक हो गए हैं. तालिबान महिलाओं और लड़कियों के प्रति और ज़्यादा दमनकारी हो गया है. उन्हें स्कूलों से प्रतिबंधित करते हुए बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया गया है. ये उत्पीड़न और बदतर हो गए हैं, तालिबानी शासन ने हाल ही में इस्लामिक क़ानूनों का हवाला देकर सभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगा दिया है. चीन और तालिबान के बीच बढ़ते आर्थिक और सियासी रिश्तों ने लोकतांत्रिक देशों और संयुक्त राष्ट्र के लिए महिलाओं के अधिकारों और एक समावेशी सरकार के गठन पर ज़ोर देने से जुड़े विकल्प सीमित कर दिए हैं. वैश्विक अलगाव के बीच तालिबान ने चीन की मदद से विदेशों में 14 राजनयिक मिशनों का नियंत्रण हासिल कर लिया है. इनमें पाकिस्तान, रूस, चीन, कज़ाख़िस्तान और ईरान में संचालित मिशन शामिल हैं.
इस्लामवादी और कम्युनिस्ट ताक़तों के बीच अवसरवादी साठगांठ ने दोनों देशों में अल्पसंख्यकों पर दमन का वातावरण तैयार कर दिया है. हालांकि अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान क्षेत्र में दूसरे आतंकी संगठनों की मौजूदगी को देखते हुए काबुल की सत्ता के साथ चीन की नज़दीकियों से दोनों पक्षों को केवल अस्थायी लाभ ही मिलेगा. चीन और तालिबान का ये दांव दीर्घकाल में विपरीत परिणाम देने वाला साबित होगा.
एजाज़ वानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.