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सवाल ये है कि क्यों चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम बार-बार ऐसा होने दे रहा है?
अंतरिक्ष में चीन की गतिविधियां हाल के दिनों में ग़लत वजहों से चर्चा में रही हैं. कुछ दिन पहले चीन के एक रॉकेट का मलबा फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल हुआ और हिंद महासागर में समा गया. लॉन्ग मार्च 5-बी रॉकेट को 29 अप्रैल को लॉन्च किया गया था और ये चीन के नये अंतरिक्ष स्टेशन तियानहे के पहले मॉड्यूल को लेकर हाइनान प्रांत के वेनचांग स्पेस लॉन्च सेंटर से उड़ा था. चाइना मैन्ड स्पेस एजेंसी के द्वारा मुहैया कराए गए अनुमानों के मुताबिक रॉकेट का मलबा मालदीव द्वीप-समूह के पश्चिम में गिरा. मलबे के गिरने की जगह को लेकर अटकलों पर प्रतिक्रिया देते हुए चीन के अधिकारियों ने बार-बार दोहराया कि आबादी वाले क्षेत्रों को इससे कोई जोखिम नहीं है. लेकिन दूसरे लोग इस भरोसे को लेकर इतने आशावादी नहीं थे. नासा के प्रशासक सीनेटर बिल नेल्सन ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि, “अंतरिक्ष की सैर करने वाले देशों को निश्चित रूप से अंतरिक्ष की चीज़ों के फिर से पृथ्वी में दाखिल होने पर लोगों और संपत्तियों से जुड़े जोखिम को कम-से-कम करना चाहिए और इन अभियानों को लेकर पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए. ये साफ़ है कि चीन अंतरिक्ष में अपने मलबे को लेकर मानक ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में नाकाम हो रहा है.” ये बात सही है कि रॉकेट हिंद महासागर में लोगों या संपत्तियों को बिना कोई नुक़सान पहुंचाए या तबाही के गिरा लेकिन प्रमुख सवाल ये है कि: क्यों चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम बार-बार ऐसा होने दे रहा है?
चीन एक महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम की योजना बना रहा है जिसमें उसका अपना अंतरिक्ष स्टेशन शामिल है. ऐसे में इस बात की संभावना ज़्यादा है कि भविष्य में भी इस तरह की जोखिम भरी घटनाएं होती रहेंगी.
ये कोई पहला मौक़ा नहीं है जब चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम ऐसी घटना के लिए ज़िम्मेदार रहा है. 2018 में चीन की अंतरिक्ष प्रयोगशाला तिआनगोंग-1 भी पृथ्वी के वायुमंडल में ऐसे ही अनियंत्रित होकर गिरी थी. ये उस वक़्त हुआ जब चीन की अंतरिक्ष एजेंसी ने अंतरिक्ष यान से अपना संपर्क खो दिया. ये स्पष्ट नहीं है कि चीन ने ऐसा क्यों होने दिया. एरोस्पेस कॉरपोरेशन के सेंटर फॉर ऑर्बिटल एंड रि-एंट्री डेबरीज़ स्टडीज़ के प्रधान निदेशक टेड जे म्यूलहॉप्ट कहते हैं, “ये डिज़ाइन करने वाली कोई मामूली चीज़ नहीं है कि उसकी जानबूझकर फिर से एंट्री कराई जाए लेकिन फिर भी ये ऐसी चीज़ नहीं है कि जिसे दुनिया में इसलिए लाया गया हो क्योंकि हमें इसकी ज़रूरत है.” रॉकेट को जान-बूझकर फिर से एंट्री के लिए डिज़ाइन करने से इस बात पर ज़्यादा नियंत्रण होता कि वो कहां गिरेगा. इस तरह लोगों और संपत्ति की ज़्यादा सुरक्षा होती.
चीन एक महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम की योजना बना रहा है जिसमें उसका अपना अंतरिक्ष स्टेशन शामिल है. ऐसे में इस बात की संभावना ज़्यादा है कि भविष्य में भी इस तरह की जोखिम भरी घटनाएं होती रहेंगी. ये एक तरह से परेशान करने वाली बात है क्योंकि चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम उस स्थिति तक आगे बढ़ गया है जहां वो ऐसे अभियान चला रहा है जिसमें दक्षिणी ध्रुव-एटकेन घाटी (चंद्रमा का सुदूर हिस्सा) पर लैंडिंग, चंद्रमा से चट्टान लेकर आना और मंगल ग्रह का मिशन शामिल है. ये अभियान साफ़ तौर पर दिखाते हैं कि चीन के पास रॉकेट को डिज़ाइन और लॉन्च करने की तकनीकी क्षमता है और रॉकेट का कार्यकाल ख़त्म होने के बाद वो दूसरों को जोखिम में डाले बिना लैंड कर सकता है. लेकिन चीन का ऐसा नहीं करना अजीब बात है. ये ऐसी चीज़ नहीं है जिसे अंतरिक्ष में ज़िम्मेदाराना बर्ताव करार दिया जा सके.
चीन की तरफ़ से नियमों को तोड़ने और अंतरिक्ष में गैर-ज़िम्मेदाराना बर्ताव में शामिल होने का एक और उदाहरण है उसका एसैट (एंटी-सैटेलाइट) टेस्ट. जनवरी 2007 में 850 किलोमीटर की ऊंचाई पर चीन के पहले सफल एंटी-सैटेलाइट (एसैट) टेस्ट का नतीजा अंतरिक्ष के मलबे के 3,000 टुकड़ों के रूप में सामने आया. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि इसकी वजह से दो दशक पुरानी अलिखित पाबंदी टूट गई. अमेरिका से मुक़ाबला करने के मक़सद से चीन ने अंतरिक्ष में अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रमों की शुरुआत की. लेकिन इसके बावजूद चीन के हर एक क़दम से डर बढ़ता गया. दूसरे देश, ख़ास तौर से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देश चीन के क़दमों का मुक़ाबला करने के लिए तैयारी करने लगे. इसकी वजह एशिया और वैश्विक भू-राजनीति का संघर्ष वाला स्वभाव है. उदाहरण के लिए चीन की तरफ़ से बार-बार एसैट टेस्ट की वजह से अमेरिका के एसैट टेस्ट (2008 में ऑपरेशन बर्न्ट फ्रॉस्ट) और भारत के एसैट टेस्ट (2019 में मिशन शक्ति) को प्रेरणा मिली. चीन के एसैट टेस्ट से पहले भारत ने इस रास्ते पर चलने की कोई योजना नहीं बनाई थी लेकिन चीन के टेस्ट करने के बाद भारत को भी अपना रुख़ बदलना पड़ा. हालांकि, तब भी भारत ने एक दशक से ज़्यादा समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन आख़िरी फ़ैसला सोच-समझकर लिया गया और ये चीन की बढ़ती अंतरिक्ष क्षमताओं और उसकी कम ज़िम्मेदाराना बर्ताव का सीधा जवाब था. जापान और फ्रांस जैसे देश भी इस दिशा में क़दम उठाने के बारे में विचार कर रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया के भी बहुत पीछे रहने की उम्मीद नहीं है.
अमेरिका से मुक़ाबला करने के मक़सद से चीन ने अंतरिक्ष में अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रमों की शुरुआत की. लेकिन इसके बावजूद चीन के हर एक क़दम से डर बढ़ता गया.
चीन के रॉकेट की अनियंत्रित रि-एंट्री से ये बात भले ही न जुड़ा हो लेकिन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोफ़िज़िक्स सेंटर के एस्ट्रोफ़िज़िसिस्ट जोनाथन मैकडॉवेल ने ग़ौर किया कि, “तियानहे और सीज़ेड-5बी के अलग होने के क़रीब 6 मिनट बाद दोनों अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के क़रीब आ गए. ये दूरी 300 किलोमीटर से कम थी जो प्रक्षेप पथ की अनिश्चतताओं को देखते हुए थोड़ा ख़तरनाक है.” जोनाथन ने ये भी कहा कि “संभव है कि अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन और तियानहे के बीच की ये नज़दीकी मुठभेड़ किसी अविश्वसनीय संयोग में से एक हो. मैं इस संभावना के लिए तैयार हूं लेकिन उन्हें तब भी इस नज़दीकी का पता लगाना चाहिए था और नासा को चेतावनी देनी चाहिए थी (या अच्छा होता कि टक्कर से बचने का उपाय करते).” .
रॉकेट का फिर से प्रवेश करना असामान्य बात नहीं है. लेकिन अंतरिक्ष की शक्तियों ने नियंत्रित रि-एंट्री को संचालित करके इससे परहेज़ करने की कोशिश की है जिससे कि मलबा महासागर में गिरे या फिर मलबा बेकार हो चुकी कक्षा की तरफ़ चला जाए और कई दशकों तक ऐसे ही पड़ा रहे. लेकिन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोफ़िज़िक्स सेंटर के एस्ट्रोफ़िज़िसिस्ट जोनाथन मैकडॉवेल दलील देते हैं कि चीन के रॉकेट को इस तरह से डिज़ाइन किया गया था कि वो “निचली कक्षा को छोड़ देते हैं.” यहां तक कि नियंत्रित रि-एंट्री के मामले में भी कई बार नाकामी मिलती है और ये ख़तरनाक भी हो सकते हैं. इस साल मार्च में वॉशिंगटन के एक फार्म में स्पेसएक्स के रॉकेट मलबे का गिरना इसका एक उदाहरण है.
ऑस्टिन में यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस की एसोसिएट प्रोफेसर मोरिबा जाह ने मीडिया से एक इंटरव्यू में दलील दी कि इस तरह की घटनाएं आने वाले समय में ज़्यादा सामान्य होने वाली हैं और ये बार-बार होंगी. इसलिए मानवता को एकजुट होकर “समन्वय, नियम और व्यवहार के ज़रिए साझा तौर पर अंतरिक्ष की देखभाल करनी चाहिए ताकि सुरक्षा और निरंतरता को ज़्यादा-से-ज़्यादा किया जा सके.” नासा के प्रशासक के बयान पर जाह ने कहा कि इसके ज़रिए “चीन को अलग-थलग नहीं” किया जाना चाहिए. निश्चित रूप से ये आरोप लगाने से नहीं जुड़ा है लेकिन चीन के क़दमों की अनदेखी भी नहीं की जा सकती.
इस बात की ज़रूरत है कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम करने वाले सभी देश क़दम उठाएं ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी गतिविधियों से अंतरिक्ष में और ज़्यादा प्रदूषण नहीं फैले और निकट भविष्य में अंतरिक्ष इस्तेमाल के लायक रहे.
फिर क्या किया जा सकता है? इस बात को देखते हुए कि अंतरिक्ष में इस्तेमाल होने वाले ऑर्बिट सीमित होते हैं, इस बात की ज़रूरत है कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम करने वाले सभी देश क़दम उठाएं ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी गतिविधियों से अंतरिक्ष में और ज़्यादा प्रदूषण नहीं फैले और निकट भविष्य में अंतरिक्ष इस्तेमाल के लायक रहे. अलग-अलग देशों को इस तरह की तकनीक में निवेश करना होगा जिससे अंतरिक्ष को स्वच्छ रखने में मदद मिले और वहां के कुछ मलबों से निजात मिल सके. अलग-अलग देशों को विशाल रॉकेट की रि-एंट्री को लेकर क़ानूनी तौर पर बाध्यकारी नियम बनाने के लिए एकजुट होने की भी ज़रूरत है.
लॉन्ग मार्च 5बी प्रकरण ने एक बार फिर रॉकेट और विशाल पिंडों की रि-एंट्री को लेकर नियमों की ज़रूरत पर बहस को फिर से ताज़ा किया है. उदाहरण के लिए, सिक्योर वर्ल्ड फाउंडेशन के ब्रियान वीडेन ने सवाल उठाया कि चीन के रॉकेट रि-एंट्री के मुद्दे पर सभी तरह की निंदा के बावजूद अमेरिका के विदेश विभाग ने क्यों “स्वैच्छिक दिशानिर्देश के अलावा किसी भी ठोस क़दम का लगातार विरोध किया.” वीडेन ने बाहरी अंतरिक्ष को लेकर क़ानूनी समझौते में शामिल होने के बारे में अमेरिका की झिझक पर एक उपयोग ट्विटर थ्रेड मुहैया कराया है. एक समस्या ये है कि जहां अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का पालन करता है, वहीं दूसरे देश ऐसा नहीं करते. इस चिंता के बारे में वीडेन कहते हैं कि इसमें “कुछ हद तक ही सच्चाई” है लेकिन वो ये चेतावनी भी जोड़ते हैं कि “सच्चाई उतनी निर्णायक नहीं है.”
अगर हमें सुरक्षित और बाधारहित पहुंच अंतरिक्ष तक सुनिश्चित करनी है तो इसके लिए मज़बूत, टिकाऊ और पूर्वसूचनीय बाहरी अंतरिक्ष की रूपरेखा ज़रूरी है.
वीडेन इस मामले में सही हैं कि ये मुद्दा जटिल है लेकिन ये भी सही है कि जब समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता निभाने की बात आती है तो चीन जैसे देशों का पिछला रिकॉर्ड बेहद ख़राब है. परमाणु अप्रसार या दक्षिणी चीन सागर और पूर्वी चीन सागर के मामले में चीन के द्वारा अपनी ही प्रतिबद्धता का उल्लंघन सब जानते हैं. इस इतिहास को देखते हुए इस बात पर भरोसा करना मुश्किल है कि अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम पर किसी तरह के नियंत्रण को चीन मानने के लिए तैयार होगा, भले ही वो किसी समझौते पर ही हस्ताक्षर क्यों न कर दे. लेकिन क़ानूनी समझौते पर हस्ताक्षर, जिसका चीन जैसे दूसरे देश उल्लंघन कर सकते हैं, को लेकर अमेरिका की लगभग बर्दाश्त नहीं करने वाली प्रतिक्रिया को देखते हुए चीन को कोई नुक़सान नहीं होता कि वो पीपीडब्ल्यूटी (प्रिवेंशन ऑफ द प्लेसमेंट ऑफ वेपन्स इन आउटर स्पेस, द थ्रेट ऑर यूज़ ऑफ फोर्स अगेंस्ट आउटर स्पेस ऑब्जेक्ट्स) जैसे उपायों को हर वक़्त लाता रहे. इससे पूरा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय बंधन में बंध जाता है. अगर हमें सुरक्षित और बाधारहित पहुंच अंतरिक्ष तक सुनिश्चित करनी है तो इसके लिए मज़बूत, टिकाऊ और पूर्वसूचनीय बाहरी अंतरिक्ष की रूपरेखा ज़रूरी है. लेकिन जब तक सभी देश मौजूदा नियमों और मानकों पर खरा उतरने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर नहीं करते हैं, तब तक नये नियमों और मानकों को बनाना मुश्किल साबित होगा.
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Dr Rajeswari (Raji) Pillai Rajagopalan was the Director of the Centre for Security, Strategy and Technology (CSST) at the Observer Research Foundation, New Delhi. Dr ...
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