Author : Khalid Shah

Published on Sep 21, 2018 Updated 0 Hours ago

अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम समुदाय और मानवाधिकारों के रक्षकों के लिए ज़रूरी है कि वे फिलिस्तीनियों, रोहिंग्या और विघरों को एक मंच पर रखें।

दुनिया के सामने है चीन की काली करतूत, लेकिन खामोश हैं सब

झिनजियांग में चीन एक ख़तरनाक नज़ीर स्थापित कर रहा है। फ़ोटो: एवजेनि ज़ोटोव — © फ़्लिकर/CC BY-NC-ND 2.0

यह The China Chroniclesसीरीज की 66वीं कड़ी है।

अन्य आलेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


पश्चिमी मीडिया चीन के झिनजियांग प्रांत में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा कराई जा रही ‘सांस्कृतिक सफ़ाई’ की खबरों से पटा पड़ा है। जहां चीन के पुनर्शिक्षण कार्यक्रम की भयावह कहानियों ने विघर मुसलमानों की पहचान और संस्कृति पर लगातार चल रहे हमले को बेनक़ाब किया है, वहीं, इस पर मुस्लिम दुनिया मोटे तौर पर खामोश है। चुप्पी का यह सिलसिला मुस्लिम समुदाय तक ही सीमित नहीं है, यह दुनिया भर में भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों तक भी पसरा हुआ है जहां मानवाधिकार और स्वतंत्रता की आवाज़ें ख़ामोश हैं।

मीडिया की ख़बरों के मुताबिक विघरों को पुनर्शिक्षण शिविरों में रखा गया है जहां उन्हें जबरन पोर्क खिलाया जाता है और शराब पिलाई जाती है। उन्हें मजबूर किया जाता है कि वे अपने नस्ली समूहों और अपनी धार्मिक आस्थाओं की निंदा करे और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा में दीक्षित हों। ये प्रक्रिया झिनजियांग इलाक़े में धड़ल्ले से चल रही है जहां, संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक 10 लाख विघर ऐसे शिविरों में हैं। चीनी सरकार इस इलाक़े में सुरक्षा का ढांचा और नए शिविर बनाने में बहुत बड़े पैमाने पर ख़र्च कर रही है। पार्टी के प्रचारवादियों की निगाह में ये शिविर ‘वैचारिक बीमारी’ के इलाज के लिए अस्पताल जैसे हैं। कई मामलों में, इन पुनर्शिक्षण केंद्रों में यातना की वजह से कई लोगों की मौत भी हो चुकी है, लेकिन अभी तक इनकी तादाद का कोई अनुमान नहीं है।

एक ख़बर पार्टी के एक अधिकारी को उद्धृत करती है, “वैचारिक बीमारियां जिस्मानी बीमारियों जैसी ही होती हैं, उनका वक़्त रहते इलाज होना चाहिए, इनकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि मामला गंभीर हो जाए। वरना बाद में हम पछताएंगे। तब इसमें बहुत देर हो चुकी होगी। धार्मिक अतिवाद और हिंसक आतंकवादी विचारधारा की चपेट में आ जाना और इलाज न कराना ऐसे रोग से पीड़ित होना है जिसका समय पर इलाज नहीं हुआ या ये नशीली दवाएं लेने जैसा है।”

ये नस्ली अल्पसंख्यक दुनिया में सबसे भयावह यातना झेल रहे हैं लेकिन इस पर दुनिया अपनी आँख भी नहीं झपका रही है।

झिनजियांग में धार्मिक अतिवाद और कट्टरता का ख़ासा असर है, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी धार्मिक अतिवाद के नाम पर इस पूरी अल्पसंख्यक आबादी को उसके अलगाववादी रुझानों के साथ बंधक बना रही है। चीन की प्रतिक्रिया अनुपात में बहुत ज़्यादा है और संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका के अधिकारी इसकी आलोचना कर रहे हैं। प्रांत में अतिवादी तत्वों को मिटाने के नाम पर जो मुहिम शुरू हुई, वह अब विघरों को सांस्कृतिक तौर पर अपने साथ जोड़ने की विराट मुहिम में बदल चुकी है।

झिनजियांग चीन का सबसे बड़ा प्रांत है। इसका क्षेत्रफल 16,60,000 वर्ग किलोमीटर है। आबादी क़रीब 2.2 करोड़ है। भारत के जम्मू-कश्मीर का जो हिस्सा, अक्साई चिन, चीन के क़ब्ज़े में है, वह भी इसी प्रांत का हिस्सा है और इसकी सीमाएं पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, और दूसरे मध्य एशियाई देशों से लगती हैं। वाइगर चीन के 55 मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक समूहों में एक हैं और झिनजियांग में 45 फ़ीसदी आबादी इनकी है। जब ये नस्ली अल्पसंख्यक सबसे भयावह यातना झेलने को विवश हैं, दुनिया अपनी आंख तक नहीं झपका रही।

चीन के सदाबहार दोस्त पाकिस्तान ने विघरों के लिए आवाज़ उठाना उचित नहीं समझा है। पाकिस्तान ख़ुद को बड़े जोशो-ख़रोश से दुनिया भर में मुसलमानों की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार बताता है और उनके समर्थन का दावा करता रहा है। चाहे फ़िलिस्तीन का मसला हो, रोहिंग्याओं का उत्पीड़न हो, पाकिस्तान शोर मचाने हमेशा सबसे आगे रहा है।

लेकिन विघर मुसलमानों के मामले में उसकी तुरही अपनी आवाज़ खो चुकी है। पाकिस्तान की सरकार का ही नहीं, पाकिस्तान की अवाम — कट्टरपंथी मुल्लाओं से लेकर उदारवादियों तक का — हाल एक है। उनकी चुप्पी ने विघरों के उत्पीड़न को एक खामोश मंज़ूरी दे दी है और वे चीन के परोक्ष सहयोगी हैं।

दूसरी तरफ, मुस्लिम दुनिया भी अजीब ढंग से इस पर खामोश रही है- ये पाखंड बिल्कुल पाकिस्तान से मिलता-जुलता है। निहित स्वार्थों की दुहाई देते हुए अरब दुनिया ने इस तथ्य को नज़रअंदाज़ किया है कि दस लाख मुसलमानों को शिविरों में धकेल कर इस्लाम में उनकी आस्था का सफ़ाया किया जा रहा है। दरअसल चीनी अधिकारियों ने उन्हें एक ‘वैचारिक बीमारी’ की चपेट में आए मरीज़ करार दिया है और अपने उत्पीड़न और जबरन उनके सैद्धांतिक प्रशिक्षण को सही ठहरा रहे हैं।

भारत में वामपंथीयों कई वैश्विक मुद्दों के लिए आवाज़ उठाई है और भारत में मुसलमानों का साथ दिया है, उनके उत्पीडन के खिलाफ उनका साथ दिया है। लेकिन विघरों के मुद्दे पर वामपंथ और मुस्लिम समुदाय इस पर एक अजीब चुप्पी साधे हुए हैं, जो सामान्य नहीं है।

ये चुना हुआ गुस्सा इस बात का एक और इशारा है कि किस तरह इस्लामी मक़सद के चैंपियन अपने हितों के लिए एक देशज मुस्लिम समुदाय के साथ धोखा कर सकते हैं। जो इस्लामवादी मुसलमानों के उत्पीड़न की निंदा करने के लिए जाने जाते हैं, विघरों की बदहाली से बेअसर हैं।

इसी तरह भारत में भी किसी को गुस्सा नहीं आ रहा। अतीत में चीन भारत को कश्मीर मुद्दे पर पिन चुभोता रहा है, भारत कूटनीतिक स्तर पर विघरों के उत्पीड़न का मसला उठा कर बराबरी पर जवाब दे सकता था। डोकलाम संकट के बाद भारत ने चीन के साथ टकराव टाला है। इसलिए यह संभव नहीं लगता कि भारत सरकार इस मुद्दे पर अपनी चिंता जताएगी।

अतीत में भारत में नागरिक अघिकारों और मानवाधिकारों के चैंपियनों ने रोहिंग्याओं के पक्ष में ज़ोरदार आवाज़ उठाई है और फिलिस्तीनियों के पक्ष में बी। बिल्कुल हाल में जेरुसलम में अमेरिकी दूतावास ले जाए जाने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन आयोजित किए हैं। भारत का वाम दल हमेशा अंतरराष्ट्रीय मक़सदों पर आवाज़ उठाते रहे हैं और मुसलमानों के ग़लत उत्पीड़न के ख़िलाफ़ देश के मुसलमानों के साथ चलते रहे हैं। लेकिन भारत के वाम और मुसलमान दोनों इस मुद्दे पर असामान्य ढंग से ख़ामोश हैं।

झिनजियांग में चीन एक ख़तरनाक नज़ीर स्थापित कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम समुदाय और मानवाधिकारों के रक्षकों के लिए ज़रूरी है कि वे फिलिस्तीनियों, रोहिंग्या और विघरों को एक मंच पर रखें और चीन पर दबाव बनाए कि वह झिनजियांग में अपना शैतानी अभियान रोके।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.