अस्वीकृति को अक्सर नकारात्मक समझा जाता है. जब चार सितंबर को चिली की 62 प्रतिशत आबादी ने एक राष्ट्रीय जनमत संग्रह (जिसमें 85 प्रतिशत ने मतदान किया) में मसौदा संविधान को अस्वीकार करने का फैसला सुनाया तो कई विश्लेषकों ने संवैधानिक सम्मेलन को खुले तौर पर वामपंथी और ‘जागृत’ मसौदा बताते हुए इसकी आलोचना की. अन्य लोगों ने इस बात को लेकर खेद व्यक्त किया कि चिली ने केवल एक ऐसा मसौदा तैयार करने और संकलित करने में दो साल लगा दिए, जिसे लोगों ने भारी मतों से खारिज कर दिया.
इसके बावजूद इस विशेष मामले को लेकर हमें निराश नहीं होना चाहिए. चिली इस वक्त एक ऐसे सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है, जो इस वर्तमान जनमत संग्रह से कहीं ज्यादा बड़ा है. दरअसल इस दौर को ‘‘शांतिपूर्ण क्रांति’’ का अहम चरण समझा जाना चाहिए.[i]
2019 में चिली में हुए लोकप्रिय प्रदर्शन हिंसक नहीं थे, लेकिन उसके बाद चर्चा, सुलह, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं जैसे अक्तूबर 2020[ii] और सितंबर 2022 में हुए जनमत संग्रह का निरंतर दौर चला है. स्पष्ट रूप से खारिज किए जाने के बावजूद यह मतदान, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के वर्तमान दौर में परिपक्वता का ही प्रतीक समझा जाएगा. चिली के नागरिक आज भी लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण प्रक्रियाओं के सहयोग से एक नए संविधान की तलाश में एकजुट हैं.
चिली इस वक्त एक ऐसे सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है, जो इस वर्तमान जनमत संग्रह से कहीं ज्यादा बड़ा है. दरअसल इस दौर को ‘‘शांतिपूर्ण क्रांति’’ का अहम चरण समझा जाना चाहिए.
इस अस्वीकृति को 36 वर्षीय गेब्रियल बोरिक की और संवैधानिक सम्मेलन के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार की विफलता समझने की बजाय मैक्सिकन स्तंभकार गेब्रियल गुएर्रा द्वारा एक अधिक उपयुक्त तुलना की गई है. गुएर्रा ने वर्तमान चिली प्रशासन की तुलना ग्रीक पौराणिक कथाओं के इकारस से की है, जो प्रसिद्ध रूप से उड़ते हुए सूर्य के काफी नज़दीक पहुंच गए और फिर भस्म हो गए थे. इस मामले में प्रशासन के पर जल गए है, लेकिन ये अभी तक पिघले नहीं है. अब प्रशासन को पुन: कड़ी मेहनत करते हुए राजनीतिक क्षेत्र के सभी अहम खिलाड़ियों और अलग अलग वैचारिक दृष्टिकोण रखने वाले लोगों के बीच आम सहमति बनानी होगी.
चिली के लोगों ने मसौदा संविधान को खारिज क्यों किया?
मसौदा संविधान में काफी खामियां थी. यह मसौदा काफी लंबा, विशाल था, जिसमें यूटोपियन आदर्शो को शामिल किया गया था, बगैर यह बताए कि आखिर इन आदर्शो पर अमल किस तरह किया जाएगा. इसमें काफी व्यापाक और दूरगामी सुधारों की बात की गई थी, जिन्हें संविधान में शामिल किए जाने से पहले इस पर लंबी बहस किए जाने की आवश्यकता थी. इसकी अपनी कुछ खासियत भी थी. इसमें महिलाओं को समाज में बराबरी का स्थान दिया गया था. इसमें चिली के लोगों के लिए समान रूप से मूल स्वास्थ्य, शिक्षा और भोजन के अधिकार की बात की गई थी. इसके अलावा इसमें एक ऐसे देश की तैयार करने की बात की गई थी जो पर्यावरण पूरक हो और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहे.
मसौदे की वास्तविक सामग्री के अलावा, आज की हाइपरकनेक्टेड, डिजटल दुनिया में किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में मीडिया की भूमिका और दुष्प्रचार की उपेक्षा करना गलत ही होगा. चिली के रुढ़ीवादी संपन्न लोगों ने ‘अस्वीकार’ अभियान पर काफी तगड़ी राशि खर्च की. कहा जाता है कि यह राशि सोशल और परंपरागत मीडिया के माध्यम से ‘स्वीकार’ अभियान चलाने पर खर्च की गई राशि का तीन गुना थी. इसकी वजह से ‘अस्वीकार’ के पक्ष में व्यापक दुष्प्रचार हुआ. रॉयटर ने पुष्टि की कि 65 प्रतिशत मतदान करने वाले उत्तरदाताओं ने मसौदा संविधान से संबंधित दुष्प्रचार का सामना किया. कुछ फर्जी खबरों में यहां तक कहा गया कि, ‘‘नया संविधान गर्भावस्था के नौवें महीने तक गर्भपात की अनुमति देगा और निजी संपत्ति को खत्म कर देगा.’’ लैटिन अमेरिका में मतदान के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड लैटिनोबारोमेट्रो के संस्थापक मार्टा लागोस ने दुष्प्रचार अभियान का वर्णन इस प्रकार किया: ‘‘सत्य का विनाश, ‘संदेह ’ और ‘अविश्वास’ का लोगों की गहनतम आशा पर हमला करने के लिए हथियार के रूप में उपयोग कर एक ऐसा अभियान चलाया गया, जिसकी कोई सीमा नहीं थी. ठीक ट्रम्प जैसा अभियान, जहां आप जीतने के लिए सब कुछ करते हैं.’’
गोल्ड स्टैंडर्ड लैटिनोबारोमेट्रो के संस्थापक मार्टा लागोस ने दुष्प्रचार अभियान का वर्णन इस प्रकार किया: ‘‘सत्य का विनाश, ‘संदेह ’ और ‘अविश्वास’ का लोगों की गहनतम आशा पर हमला करने के लिए हथियार के रूप में उपयोग कर एक ऐसा अभियान चलाया गया, जिसकी कोई सीमा नहीं थी.
तो आखिर मसौदे में क्या शामिल था और नया मसौदा संविधान कौन सा आकार ले सकता है?
मुद्दे |
वर्तमान मसौदा संविधान |
संभावित भविष्य का मसौदा |
प्रकृति एवं जलवायु
परिवर्तन
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प्रकृति और जानवरों को कानूनी वैधता और अधिकार प्रदान किए गए, जिसमें नदी, जलमयभूमि, ग्लेशियर
और जंगल का समावेश हैं. इसके साथ ही राज्य को जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करने का अधिकार दिया गया.
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प्राकृति को दिए गए अधिकांश अधिकार वापस लिए जाने की संभावना, ताकि उत्खनन उद्योग को संरक्षण दिया जा सके. राज्य को जलवायु परिवर्तन से संबंधित कुछ अधिकार दिए जाने की संभावना. |
मूल अधिकार |
चिली को ‘बहुराष्ट्रीय’ देश बनाने का प्रस्ताव, ताकि जनसंख्या में कुल 13 प्रतिशत हिस्सा रखने वाले मूल
समूहों को उनकी अपनी अदालत और प्रशासन व्यवस्था मुहैया करवाई जा सकें.
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केवल मूल समूहों को मान्यता देकर उन्हें नए अधिकार प्रदान करेगा, लेकिन चिली को कभी ‘बहुराष्ट्रीय’ देश नहीं बनने देगा. मूल नागरिकों को अपने क्षेत्र में विकास योजना पर वीटो अधिकार नहीं होगा. |
संसद और उनके
कार्यकाल की सीमा
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सीनेट को समाप्त करने का प्रस्ताव, ताकि चिली को सदनीय देश बनाया जा सके, जिसमें केवल एक राष्ट्रीय कांग्रेस हो. इसके साथ ही राष्ट्रपति को लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ने का मौका मिले. |
चिली के दो सदनों वाला देश ही बने रहने की संभावना, जिसमें विधायिका के दो सदन होंगे. राष्ट्रपति के कार्यकाल की सीमा में भी बदलाव होने की संभावना. कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ने का मौका मिले. |
लिंग समानता |
सार्वजनिक संस्थाओं में लिंग समानता सख्ती से लागू की जाएगी और राज्य को लिंग आधारित हिंसा से निपटना होगा. इसी प्रकार यौन और प्रजनन संबंधी अधिकार सुनिश्चित किए जाएंगे. |
यह एक ऐसा विषय है, जिस पर राजनीतिक हल्कों में व्यापक सहमति है. महिलाओं के अधिकारों को नए मसौदे में भी बरकरार रखा जाएगा. |
सामाजिक सुरक्षा कवच |
व्यापक सामाजिक अधिकार का प्रस्ताव, जिसमें सभी की स्वास्थ्य सुरक्षा, शिक्षा का अधिकार, आवास स्वच्छ हवा, जल, अन्न और इंटरनेट सुविधा के समान अधिकार. |
अधिकांश सामाजिक सुरक्षा के लाभ वापस लिए जाने की संभावना. इस पर विधायिका में चर्चा के बाद निर्णय के बारे में विचार. |
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आगे जाकर क्या उम्मीदें?
शायद चिली की ‘शांतिपूर्ण क्रांति’ की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता सरकार और समाज दोनों ही मामलों में देश के नेतृत्व की समझौता करने का खुलापन है. बोरिक ने पहले ही अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करते हुए आंतरिक, स्वास्थ्य, विज्ञान और ऊर्जा विभागों का प्रबंधन करने के लिए अधिक उदारवादी, मध्यमार्गी मंत्रियों को नामित कर दिया है. वह एक नई संविधान सभा का चुनाव करवाने को भी तैयार हैं. अपने शेष कार्यकाल के दौरान बोरिक अधिक उदारवादी नीतियां लागू करेंगे.
भले ही इसके लिए कुछ वर्ष और क्यों न लग जाए और एक ऐसा संविधान तैयार हो जो जनसंख्या के ज्यादा से ज्यादा लोगों को पसंद आता हो. संविधान के मसौदे को तैयार करने की प्रक्रिया ने पहले ही महिलाओं के समान अधिकारों को लेकर जागृति को बढ़ा दिया है.
वर्तमान मसौदे को भारी मतों से खारिज करने के बावजूद चिली के अधिकांश नागरिक नए संविधान की मांग को लेकर अपनी बात पर अड़िग हैं. भले ही इसके लिए कुछ वर्ष और क्यों न लग जाए और एक ऐसा संविधान तैयार हो जो जनसंख्या के ज्यादा से ज्यादा लोगों को पसंद आता हो. संविधान के मसौदे को तैयार करने की प्रक्रिया ने पहले ही महिलाओं के समान अधिकारों को लेकर जागृति को बढ़ा दिया है. इसके साथ ही चिली के पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर प्रबंधन को लेकर भी जागरुकता बढ़ी है. जैसा कि फाइनांशियल टाइम्स के माइकल स्टॉट ने लिखा है, ‘‘चिली के नागरिक एक ऐसा नया अध्याय लिखेंगे, जो मजबूत व्यक्तिगत अधिकार देने के साथ-साथ प्रशासन को भी सार्वजनिक सुविधाओं की गारंटी देने में बड़ी भूमिका निभाने का मौका देगा. संक्षेप में, यह यूरोपीय शैली के कल्याणकारी राज्य की तरह ही कुछ होगा ना कि फ्रीडमैनाइट मुक्त बाजार की तरह.’’
यह याद रखना भी उपयोगी हो सकता है कि संविधान, आखिरकार, मूलभूत दस्तावेज होते हैं, जो यात्रियों का मार्गदर्शन करने वाले नॉर्थ स्टार के समान हैं. संविधान का काम लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं को समर्थन देना है ना कि उन्हें दबाना. सामाजिक न्याय के निरंतर मध्यस्थ के रूप में विधायिका, अदालतें और सरकार के कार्यकारी प्रमुख यकीनन अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे.
चिली ही एकमात्र देश नहीं है जो हाल के वर्षों में इस संवैधानिक प्रक्रिया से गुजरा हैं. वह इसी तरह के रास्ते पर जाने वाले दूसरों देशों से भी सीख सकता है. कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, हेस्टिंग्स में कानून के एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर नाओमी रोहत-अरियाजा, ने पुष्टि की है कि, ‘‘चिली को ट्यूनीशिया से सीखना चाहिए. एक ऐसा देश जिसने व्यापक विरोध के बाद व्यापक, समावेशी संवैधानिक सुधार का प्रयास किया. जैसा कि कई विश्लेषकों ने मुझे बताया, ट्यूनीशियाई लोगों के लिए यह बेहतर होता कि वे संवैधानिक स्तर पर कम व्यापक सुधारों का लक्ष्य रखते और सीधे 2011 के व्यापक विरोध का जवाब देने वाले सामान्य कानून पर अधिक समय व्यतीत करते. चिली के लिए भी यही सच हो सकता है.’’
[i] Not to be confused with Germany’s ‘peaceful revolution,’ which saw the reunification of East and West Germany in 1990.
[ii] Nearly 80 percent of Chileans voted in 2020 to replace the current version of the constitution that was imposed on the country by then-president Gen. Augusto Pinochet.
उपरोक्त विचार लेखक के हैं.
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