Published on Aug 27, 2022 Updated 0 Hours ago

खुले डिजिटल टेलीहेल्थ कार्यक्रम से देशभर में स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं के विस्तार की रफ़्तार बढ़ाने में मदद मिलेगी. साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े तमाम लक्ष्यों की पूर्ति का मक़सद भी हासिल हो सकेगा.

भारत का टेलीहेल्थ सेक्टर: प्लेटफ़ॉर्म आधारित क़वायद से होगा नए युग का आग़ाज़?

हाल के वर्षों में टेलीहेल्थ ख़ासा लोकप्रिय हो गया है. इसमें छिपी तमाम संभावनाओं को प्लेटफ़ॉर्म आधारित विचारों के ज़रिए सामने लाया जा सकता है. नागरिकों की बेहतर सेहत से जुड़े लक्ष्य हासिल करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े प्रतिकूल घटनाक्रमों (जैसे महामारी) में तेज़ रफ़्तार समाधान मुहैया कराने में ये मददगार साबित हो सकता है. भारतीय टेलीहेल्थ सेक्टर के दायरे में अपोलो टेलीहेल्थ सर्विसेज़ और प्रैक्टो टेक्नोलॉजिज़ जैसे निजी क्षेत्र की कंपनियों के अलावा ई-संजीवनी जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की सेवाएं भी आती हैं. पिछले कुछ वर्षों में इन सेवाओं के आकार और संभावनाओं में विस्तार हुआ है. ई-संजीवनी हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (HWC) तक़रीबन 80,000 HWCs में सक्रिय हैं. मार्च 2022 तक इनके ज़रिए तीन करोड़ से ज़्यादा टेलीकंसल्टेशंस रजिस्टर किए जा चुके थे. इसके ज़रिए मरीज़ों को डॉक्टरों से जोड़कर सलाहकारी सेवाएं (ई-संजीवनी ओपीडी) मुहैया करवाई जाती हैं. इसके अलावा चिकित्सकों के बीच भी आपसी जुड़ाव (ई-संजीवनी आयुष्मान भारत-हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर) को अंजाम दिया जाता है. उधर प्रैक्टो टेक्नोलॉजिज़ का भी विस्तार हुआ है. इसके तहत अब अपॉइंटमेंट बुकिंग और शुरू से अंत तक सर्जरी सविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं. 2021 में प्रैक्टो क़रीब 17 करोड़ मरीज़ों को अपनी सेवाएं मुहैया करा चुका है.

हाल के वर्षों में टेलीहेल्थ ख़ासा लोकप्रिय हो गया है. इसमें छिपी तमाम संभावनाओं को प्लेटफ़ॉर्म आधारित विचारों के ज़रिए सामने लाया जा सकता है. नागरिकों की बेहतर सेहत से जुड़े लक्ष्य हासिल करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े प्रतिकूल घटनाक्रमों (जैसे महामारी) में तेज़ रफ़्तार समाधान मुहैया कराने में ये मददगार साबित हो सकता है.

टेलीहेल्थ बाज़ार के विस्तार के बावजूद ये क्षेत्र टुकड़ों में बंटा है. निजी कंपनियां मुख्य रूप से दौलतमंद लोगों को सेवाएं मुहैया करवाती हैं जबकि ई-संजीवनी ग़रीब तबक़ों के काम आती है. यही बात चिकित्सकों के संदर्भ में भी लागू है. ई-संजीवनी के साथ सिर्फ़ सरकारी चिकित्सक जुड़े हुए हैं जबकि निजी टेलीहेल्थ कंपनियों के साथ निजी चिकित्सक काम कर रहे हैं. इतना ही नहीं, ई-संजीवनी के तहत डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर ‘राज्य की सीमाबंदी’ भी लागू है. इसके तहत किसी एक राज्य के निवासियों के साथ सिर्फ़ उसी राज्य के सरकारी डॉक्टर्स उपलब्ध होते हैं.

खुले डिजिटल टेलीहेल्थ कार्यक्रम की संभावनाएं

टेलीहेल्थ के लिए एकीकृत बाज़ार स्थापित करने को लेकर प्लेटफ़ॉर्म आधारित विचार के इस्तेमाल की भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं. इससे इन सुविधाओं की संभावनाएं और आकार में ज़बरदस्त विस्तार आ जाएगा. नतीजतन सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े कार्यों के लिए डेटा के बेशक़ीमती स्रोत तैयार करने में मदद मिलेगी. खुला डिजिटल टेलीहेल्थ कार्यक्रम (ODTI) देश के निजी और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा संस्थानों, चिकित्सकों और नागरिकों को जोड़ता है. लिहाज़ा इस व्यवस्था के तहत कनेक्टिविटी, सर्विस डिलिवरी और वाणिज्य से जुड़े कार्यों को अंजाम देना आसान हो जाता है. ये ‘ई-संजीवनी‘ के दायरे की नए सिरे से परिकल्पना पेश करता है. इसमें पहले से कहीं बड़ा कार्यक्षेत्र हासिल होता है, जिसमें किरदारों और सेवाओं का एक व्यापक क्षेत्र जुड़ता है. इस सिलसिले में प्रोटोकॉल और प्लेटफ़ॉर्मों का मिला-जुला रूप प्रयोग में आता है.

प्रस्तावित ODTI की मुख्य विशेषताएं:

  1. विभिन्न प्लेटफ़ॉर्मों ने टुकड़ों में बंटे बाज़ार तैयार कर दिए हैं. इन सीमाबंदियों को तोड़ने के लिए आपसी कनेक्टिविटी और मानकीकृत प्रोटोकॉल के ज़रिए तमाम किरदारों को एकल बाज़ार के साथ जो़ड़ा जाएगा. इसमें सरकारी और निजी- दोनों क्षेत्रों के चिकित्सकों और संस्थानों को शामिल किया जाएगा. इस तरह हर तबक़े के मरीज़ों को सेवाएं मुहैया करवाई जाएंगी.
  1. सभी किरदारों के बीच सर्विस डिलिवरी और ई-कॉमर्स की सुविधा सुलभ कराना. इसके लिए भुगतान को एकीकृत करने के साथ-साथ प्लेटफ़ॉर्म में वीडियो-ऑडियो संचार के पहलुओं को शामिल करना होगा.
  1. प्लेटफ़ॉर्म और मानकीकृत खुले प्रोटोकॉल का मिश्रण:बाज़ार में व्यापक रूप से पैठ बनाने के लिए खुला प्रोटोकॉल और प्लेटफ़ॉर्म- दोनों उपयोगी होंगे. प्राइवेट कंपनियां अपने प्रोटोकॉल्स के साथ-साथ निजी तौर-तरीक़ों वाले (customised) ऐप्स तैयार कर सकती हैं. इस सिलसिले में यूनिफ़ाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (UPI) जैसी क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. मार्केटिंग की रणनीतियों से ज़्यादा से ज़्यादा मरीज़ों तक पहुंच बनाई जा सकेगी. इस तरह वो देश भर में फैले डॉक्टरों के नेटवर्क का इस्तेमाल कर सकते हैं. प्रोटोकॉल्स अहम पहलुओं का मानकीकरण सुनिश्चित करते हैं, जिनमें डॉक्टरों को साथ लाना, चिकित्सकीय पर्चियों का स्वरूप, सर्च के आधार पर डॉक्टर ढूंढना और क़ीमतों का तुलनात्मक विश्लेषण शामिल हैं.
  1. चिकित्सकों और स्वास्थ्य सेवा संस्थाओं के सत्यापन सेये सुनिश्चित किया जा सकता है कि सरकारी मान्यता वाली व्यापक रजिस्ट्री में शामिल सिर्फ़ राजकीय निबंधन वाले डॉक्टर ही इस प्लेटफ़ॉर्म से जु़ड़ सकें.  

खुला डिजिटल टेलीहेल्थ कार्यक्रम क्यों अहम है?

चित्र: खुले डिजिटल टेलीहेल्थ कार्यक्रम के संभावित लाभ

भौगोलिक दुश्वारियों के निपटारे में मददगार: भारत में राज्यों के बीच और शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की संख्या के मामले में भारी क्षेत्रीय असमानताएं है. मिसाल के तौर पर तमिलनाडु में डॉक्टरों की प्रति व्यक्ति तादाद विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानक से भी ज़्यादा है. अतीत में राज्य में मेडिकल ग्रेजुएट्स की संख्या सीमित करने की मांग भी उठी है. उधर देश के ज़्यादातर प्रदेशों में हालात बिलकुल जुदा हैं.

एकीकृत भारतीय टेलीहेल्थ बाज़ार डॉक्टरों को किसी भी स्थान से मरीज़ों की सेवा करने का अवसर देगा. इस तरह किसी एक क्षेत्र में ‘बहुतायत में मौजूद डॉक्टरों’ को दूसरे भौगोलिक इलाक़ों के मरीज़ों के इलाज में लगाया जा सकेगा. विशेषज्ञ सेवाओं के लिए भी ये क़वायद अहम है. अक्सर ऐसी सेवाएं हासिल करने के लिए मरीज़ों को बड़े शहरों की दौड़ लगानी पड़ती है. इसी तरह डॉक्टरों के बीच आपस में सलाहकारी सुविधा शुरू होने से दूरदराज़ के इलाक़ों में भी विशेषज्ञतापूर्ण परामर्श पहुंचाने का नेटवर्क तैयार किया जा सकेगा. फ़िलहाल ई-संजीवनी के तहत वैकल्पिक राय-मशविरे और सामूहिक परामर्श के लिए सिर्फ़ सरकारी संस्थाओं के भीतर चिकित्सकों के बीच आपसी सलाहकारी सुविधाएं उपलब्ध हैं. खुले डिजिटल टेलीहेल्थ कार्यक्रम से इस नेटवर्क को निजी संस्थानों और डॉक्टरों तक विस्तार देने में मदद मिल सकती है.

फ़िलहाल ई-संजीवनी के तहत वैकल्पिक राय-मशविरे और सामूहिक परामर्श के लिए सिर्फ़ सरकारी संस्थाओं के भीतर चिकित्सकों के बीच आपसी सलाहकारी सुविधाएं उपलब्ध हैं. खुले डिजिटल टेलीहेल्थ कार्यक्रम से इस नेटवर्क को निजी संस्थानों और डॉक्टरों तक विस्तार देने में मदद मिल सकती है. 

एकीकृत टेलीहेल्थ बाज़ार का निर्माण: इस क़वायद से टेलीहेल्थ से जुड़ा तंत्र अखिल भारतीय स्तर पर एकीकृत हो जाएगा. इसमें मरीज़, चिकित्सक और संस्थान शामिल होंगे. इस तरह राज्यों की सीमाओं या निजी और सरकारी स्तर पर टुकड़ों में बंटी मौजूदा व्यवस्था ख़त्म हो जाएगी. निजी चिकित्सकों और स्वास्थ्य सेवा संस्थानों के लिए उनके भौतिक स्थान से परे भी बाज़ार का विस्तार हो जाएगा. लिहाज़ा उन्हें पूरे भारत के मरीज़ों तक पहुंच हासिल हो जाएगी. इसके साथ-साथ प्लेटफ़ॉर्म पर टेलीमेडिसिन मुहैया कराने वाले प्रदाताओं की तादाद भी बढ़ जाएगी. मरीज़ के पास तमाम चिकित्सकों के शुल्क का तुलनात्मक ब्योरा होगा. इस तरह वो अपनी सहूलियत से डॉक्टर का चुनाव कर सकेंगे. इससे महंगे डॉक्टरों पर सेवाओं की बेहतर गुणवत्ता मुहैया कराने या अपनी फ़ीस घटाने का दबाव भी बनेगा.

स्वास्थ्य के मोर्चे पर दूसरी विषमताओं का निपटारा: इस प्लेटफ़ॉर्म से सामुदायिक और आर्थिक आधार पर मौजूद विषमताओं के निपटारे में भी मदद मिल सकती है. मिसाल के तौर पर अक्सर हाइपरटेंशन की चपेट में आने वाले आदिवासी समुदायों को हृदय की बेहतर देखभाल के लिए सीधे सब्सिडी मुहैया कराई जा सकती है. इसे e-RUPI के ज़रिए अंजाम दिया जा सकता है. इसके तहत कार्यक्रम आधारित ख़र्च की सुविधा मिलती है. प्रवासी आबादी को अक्सर संचार से जुड़ी दिक़्क़तें पेश आती हैं. इससे स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं तक उनकी पहुंच में बाधा आती है. भाषा-आधारित फ़िल्टर सुविधा मिल जाने से वो अपनी ज़ुबान में बोलने वाले डॉक्टरों का चयन कर उनसे चिकित्सकीय परामर्श हासिल कर सकते हैं.

स्वास्थ्य से जुड़ी प्रतिकूल घटनाओं की पूर्व चेतावनी देने वाला तंत्र: निजी टेलीहेल्थ कंपनियों द्वारा जुटाए गए डेटा सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यों के लिए आसानी से नहीं मिल पाते. ये प्लेटफ़ॉर्म कमोबेश वास्तविक समय में सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े डेटा को अखिल भारतीय स्तर पर इकट्ठा करने में मदद के साथ-साथ उसका स्रोत तैयार कर सकते हैं. ऐसे डेटा तक पहुंच से राष्ट्रीय, प्रादेशिक और स्थानीय स्तरों पर लक्षणों की निगरानी और बीमारियों पर नज़र बनाए रखने में मदद मिलेगी.

रोगों के लक्षणों की पड़ताल में नए झंडे गाड़े जा सकते हैं: चाहे बात बीमारियों के बदलते रुझानों को समझने की हो या महामारियों और स्वास्थ्य से जुड़ी प्रतिकूल घटनाओं की पूर्व चेतावनी देने वाले तंत्र की. डेटा तक पहुंच से स्थानीय तौर पर और बड़े स्तर पर फैली महामारियों से जुड़ी जानकारियों को बेहतर तरीक़े से हासिल करने में मदद मिलेगी. इससे बीमारियों की रोकथाम, नियंत्रण और जांच-पड़ताल की क़वायद में सुधार लाने में सहायता मिलेगी. सभी क्षेत्रों के लिए स्वास्थ्य से जुड़े दस्तावेज़ तैयार करने में भी इस डेटा का प्रयोग किया जा सकता है. इससे स्थानीय स्तर पर माकूल स्वास्थ्य नीतियां तैयार की जा सकेंगी.

मेडिकल रिकॉर्ड्स के डिजिटल भंडारण से मरीज़ों को अपने मेडिकल दस्तावेज़ साझा करने की सहूलियत मिल जाएगी. इस तरह वो इस बात की तस्दीक़ कर सकेंगे कि स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा पर्चियां तैयार करने और मेडिकल जांच-पड़ताल में उचित दिशानिर्देशों का पालन किया गया या नहीं.

सार्वजनिक स्वास्थ्य के दूसरे लक्ष्यों से जुड़े डेटा: ODTI के मानकीकृत प्रोटोकॉल्स से डेटा के और बड़े दायरे तक पहुंच बनाने में मदद मिलेगी. इनमें बताई गई दवाइयां और इलाज भी शामिल हैं. एक अहम संकेतक, एंटीबायोटिक प्रेस्क्रिप्शंस में बदलाव एंटीबायोटिक प्रतिरोध के शुरुआती संकेत हो सकते हैं. मेडिकल रिकॉर्ड्स के डिजिटल भंडारण से मरीज़ों को अपने मेडिकल दस्तावेज़ साझा करने की सहूलियत मिल जाएगी. इस तरह वो इस बात की तस्दीक़ कर सकेंगे कि स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा पर्चियां तैयार करने और मेडिकल जांच-पड़ताल में उचित दिशानिर्देशों का पालन किया गया या नहीं. ODTI में स्वास्थ्य से जुड़े संकेतकों के निरीक्षण की तमाम संभावनाएं हैं. इससे अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य सेवा से जुड़े तंत्र के आकलन की सुविधा मिल पाएगी. प्रति व्यक्ति आंकड़ों से स्वास्थ्य से जुड़े संकेतकों के क्रियाकलापों और रुझानों की तत्काल बारीक़ तस्वीर मिल पाएगी. इससे मांग-आपूर्ति से जुड़ी व्यवस्था को बेहतर तरीक़े से समझने में मदद मिलेगी.

पड़ोसी देशों को एकीकृत करना: UPI की तरह टेलीहेल्थ सेवाओं का भी दूसरे देशों तक विस्तार किया जा सकता है. भारत में 2019 में तक़रीबन 7 लाख मेडिकल टूरिस्ट आए थे. इनमें से ज़्यादातर पड़ोसी मुल्कों से थे. 2019 में भारत में मेडिकल सुविधाओं का लाभ उठाने आए कुल विदेशी नागरिकों में से 57.5 प्रतिशत लोग अकेले बांग्लादेश के थे. लिहाज़ा ODTI दूसरे देशों के मरीज़ों द्वारा सीमा पार से स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने की संभावनाएं और क्षमताएं भी पैदा कर सकता है. इससे अर्थव्यवस्था को रफ़्तार मिलेगी. साथ ही भारत को टेलीहेल्थ सेंटर बनाने में भी मदद मिलेगी.

निजता और दूसरी चिंताएं: चूंकि ODTI के तहत संवेदनशील निजी सूचनाएं जुटाई जाएंगी, लिहाज़ा निजता और डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मज़बूत उपाय करना बेहद अहम है. इसके अलावा उत्पीड़न और दुराचार से जुड़े वाक़यों को न्यूनतम करने के उपायों पर अमल करना भी ज़रूरी होगा. इससे मरीज़ों और चिकित्सकों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित किया जा सकेगा. इसे प्लेटफ़ॉर्म के ढांचे और प्रक्रियाओं के साथ जोड़कर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के तयशुदा मसौदा दिशानिर्देशों को मज़बूती से अमल में लाया जा सकता है.

निष्कर्ष

ODTI के निर्माण और तैनाती से टेलीहेल्थ सेवाओं में भारी सुधार होगा. इससे स्वास्थ्य सेवाओं को सबके लिए सुलभ ओर सस्ता बनाने के राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी. इससे देशभर में स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं के विस्तार की रफ़्तार बढ़ाने में मदद मिलेगी. साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े तमाम लक्ष्यों की पूर्ति का मक़सद भी हासिल किया जा सकेगा.

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