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दक्षिण-पूर्व एशिया के अभी तक के अछूते कोनों तक पहुंचने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों ब्रुनेई की दो दिनों की द्विपक्षीय राजकीय यात्रा की. इस तरह वो ब्रुनेई की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए. ये दौरा इस वजह से और भी महत्वपूर्ण हो गया क्योंकि भारत और ब्रुनेई इस साल अपने द्विपक्षीय संबंधों की 40वीं सालगिरह मना रहे हैं जो कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ की शुरुआत की 10वीं वर्षगांठ भी है.
पिछले दिनों मोदी की ऑस्ट्रिया और पोलैंड यात्रा संकेत देती है कि उनकी पहुंच (आउटरीच) की कोशिशें उन देशों के दौरे की तरफ है जो भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं और जिनमें मज़बूत साझीदार बनने की क्षमता है लेकिन पिछले कुछ दशकों के दौरान उन देशों की यात्रा नहीं की गई है.
वैसे तो भारत-ब्रुनेई कूटनीतिक संबंध महत्वपूर्ण है लेकिन ये अक्सर पूरब की तरफ भारत के जुड़ाव का एक महत्वहीन पहलू बना रहता है. कई लोगों को साधारण लग सकता है लेकिन भारत की एक्ट ईस्ट रणनीति में ब्रुनेई सामरिक रूप से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेष रूप से ऊर्जा और अंतरिक्ष के सेक्टर में. ब्रुनेई आसियान के बड़े देशों जैसे कि मलेशिया, सिंगापुर या इंडोनेशिया की तरह भले ही महत्वपूर्ण नहीं लगता है लेकिन फिर भी कई अल्पकालीन और दीर्घकालीन कारणों से ये अहम है. भारत के साथ ऊर्जा, विज्ञान एवं तकनीक और बुनियादी ढांचा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपनी भूमिका की वजह से ब्रुनेई दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में भारत के लिए ‘दूसरा सिंगापुर’ बनने की क्षमता रखता है.
मोदी की कूटनीतिक पहुंच
मोदी के ब्रुनेई दौरे को एक बार की घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. वो उन देशों तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं जिनकी तरफ अभी तक बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया गया है. उदाहरण के लिए, पिछले दिनों मोदी की ऑस्ट्रिया और पोलैंड यात्रा संकेत देती है कि उनकी पहुंच (आउटरीच) की कोशिशें उन देशों के दौरे की तरफ है जो भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं और जिनमें मज़बूत साझीदार बनने की क्षमता है लेकिन पिछले कुछ दशकों के दौरान उन देशों की यात्रा नहीं की गई है.
दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में सिंगापुर के बाद सबसे छोटा देश ब्रुनेई दारुस्सलाम इस रणनीति में पूरी तरह फिट बैठता है. अपने छोटे आकार के बावजूद ब्रुनेई इस क्षेत्र में सबसे मज़बूत अर्थव्यवस्था और दक्षिण-पूर्व एशिया में चार अग्रणी तेल उत्पादक देशों में से एक है. ब्रुनेई दुनिया में प्राकृतिक गैस का नौवां सबसे बड़ा निर्यातक देश भी है. इस बात का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ब्रुनेई की GDP (सकल घरेलू उत्पाद) में तेल और गैस का योगदान 90 प्रतिशत है.
इस तरह ऊर्जा सहयोग भारत-ब्रुनेई संबंधों की बुनियाद है. आगे बढ़ते भारत, जो कि दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा तेल की खपत करने वाला और आयातक देश है, के लिए ये सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि वो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए कुछ मुट्ठी भर देशों पर निर्भर नहीं बना रहे. हाइड्रोकार्बन के भरोसेमंद निर्यातक के रूप में ब्रुनेई की भूमिका भारत के द्वारा अपने ऊर्जा भंडार को विविध बनाने और रूस एवं पश्चिम एशियाई सप्लाई पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता कम करने के रणनीतिक लक्ष्य के साथ अच्छी तरह से मेल खाती है.
दोनों देशों के बीच अधिक ऊर्जा सहयोग किफायती भी होगा क्योंकि रूस और पश्चिम एशिया की तुलना में दोनों देशों के बीच भौगोलिक नज़दीकी है. रिफाइनिंग और उसके बाद की प्रक्रियाओं (डाउनस्ट्रीम प्रोसेस) में भारत की विशेषज्ञता को देखते हुए ब्रुनेई में ऊर्जा के बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर गहरे तालमेल का भविष्य अच्छा है. ONGC विदेश लिमिटेड (OVL) और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (GAIL) जैसी भारतीय कंपनियों ने ब्रुनेई के तेल और गैस सेक्टर में दिलचस्पी दिखाई है. ये अधिक ऊर्जा सहयोग की क्षमता के बारे में बताता है. इस बात पर विचार करते हुए कि ब्रुनेई से तेल और प्राकृतिक गैस के आयात के मामले में भारत अभी तक शीर्ष पांच देशों में से एक नहीं बना है, इस सेक्टर में तालमेल का महत्वपूर्ण दायरा है. ब्रुनेई के हाइड्रोकार्बन निर्यात में भारत का हिस्सा 12 प्रतिशत से कम है.
दक्षिण चीन सागर में बेहद मैत्रीपूर्ण भारतीय मौजूदगी की तरफ
इस प्रकार इस सहयोग का एक स्वाभाविक विस्तार भारत और ब्रुनेई के बीच आवागमन के समुद्री रास्तों की सुरक्षा होगी. वैसे चीन के साथ ब्रुनेई भी कुछ समुद्री क्षेत्रों पर दावा करता है लेकिन इस विवाद को लेकर वो चुप रहने को प्राथमिकता देता है.
जैसे-जैसे ब्रुनेई के साथ भारत का ऊर्जा सहयोग बढ़ रहा है, वैसे-वैसे अपने आर्थिक और ऊर्जा हितों से प्रेरित होकर उन समुद्री रास्तों में भारत की मौजूदगी बढ़ेगी. भारत ने दक्षिण चीन सागर में नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और विवादों के निपटारे की लगातार वकालत की है जो ब्रुनेई के रुख से मेल खाती है.
जैसे-जैसे ब्रुनेई के साथ भारत का ऊर्जा सहयोग बढ़ रहा है, वैसे-वैसे अपने आर्थिक और ऊर्जा हितों से प्रेरित होकर उन समुद्री रास्तों में भारत की मौजूदगी बढ़ेगी. भारत ने दक्षिण चीन सागर में नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और विवादों के निपटारे की लगातार वकालत की है जो ब्रुनेई के रुख से मेल खाती है. दोनों देशों के बीच अधिक साझेदारी को लेकर साझा बयान में “शांति, स्थिरता, समुद्री सुरक्षा बनाए रखने और बढ़ावा देने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कानून यानी समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS), 1982 के आधार पर आवाजाही की स्वतंत्रता और बिना किसी बाधा के कानूनी वाणिज्य का सम्मान करने” को लेकर प्रतिबद्धता को दोहराया गया है.
अंतरिक्ष सहयोग: भारत-ब्रुनेई साझेदारी में एक महत्वपूर्ण तत्व
भारत-ब्रुनेई संबंधों में समान रूप से महत्वपूर्ण एक अन्य स्तंभ अंतरिक्ष क्षेत्र है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने वर्ष 2000 में ब्रुनेई में अपना टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड टेलीकमांड (TTC) स्टेशन स्थापित किया जो पूर्व की तरफ जाने वाले सभी सैटेलाइट और सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल की निगरानी करता है. दोनों सरकारों के बीच लंबे समय से चले आ रहे समझौता ज्ञापनों (MoU) के ज़रिए इस महत्वपूर्ण सेक्टर में तालमेल संभव हो पाया है.
बोर्नियो के द्वीप में स्थित ब्रुनेई की भूमध्यरेखीय लोकेशन उसे जियोस्टेशनरी सैटेलाइट छोड़ने, ग्राउंड स्टेशन और अंतरिक्ष की निगरानी के उद्देश्य से बुनियादी ढांचे के लिए एक उपयुक्त साइट बनाती है. ऐसी लोकेशन न केवल सैटेलाइट के साथ संचार आसान बनाती है और अधिक सटीक ट्रैकिंग, डेटा रिसेप्शन और नियंत्रण की सुविधा देती है बल्कि इससे कम लागत में सैटेलाइट छोड़ना भी संभव हो पाता है क्योंकि यहां से ईंधन की ख़पत कम होगी. इंडो-पैसिफिक में लंबे समय के विज़न के साथ एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में भारत को चाहिए कि वो ब्रुनेई को भी एक स्पेसपोर्ट के रूप में विकसित करने के लिए उसके साथ तालमेल करे.
व्यापार विविधता एक आवश्यकता है
दूसरे आसियान देशों के साथ भारत के व्यापार की तुलना में 195.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर (2023) के साथ दोनों देशों के बीच व्यापार अपेक्षाकृत मामूली है लेकिन हाल के वर्षों में इसमें लगातार बढ़ोतरी हुई है. दोनों देशों को नए क्षेत्रों में व्यापार और निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है जिनमें इंफ्रास्ट्रक्चर, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटैलिटी (आतिथ्य) उद्योग, पर्यटन और फार्मास्युटिकल्स शामिल हैं. भारत और ब्रुनेई के बीच व्यापार आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौता (AIFTA) के ज़रिए होता है जो डेढ़ दशक पहले लागू हुआ था और वर्तमान में इसकी समीक्षा की जा रही है.
बहुपक्षीय सहयोग को समान स्तर पर लाना
बहुपक्षीय और द्विपक्षीय- दोनों स्तंभों पर दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत की व्यापक भागीदारी में ब्रुनेई एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. आसियान के साथ भारत का संबंध उसकी लुक/एक्ट ईस्ट पॉलिसी के लिए महत्वपूर्ण है और भारत जो क्षेत्रीय कूटनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संवाद गहरा करना चाहता है, ब्रुनेई की सदस्यता ये सुनिश्चित करती है. 1992 में जब भारत ने दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ अपनी द्विपक्षीय और बहुपक्षीय भागीदारी की शुरुआत की थी तो ब्रुनेई सबसे आगे था. जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने लुक ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की थी तो महामहिम सुल्तान हाजी हसनल बोल्कियाह ने 5-18 सितंबर 1992 के बीच पहली बार भारत का अपना राजकीय दौरा किया. 2012 और 2015 के बीच ब्रुनेई आसियान क्षेत्र में भारत के लिए समन्वय करने वाला देश भी था.
आसियान के सदस्य के रूप में ब्रुनेई ने आसियान के साथ भारत के संस्थागत जुड़ाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. आसियान के सदस्य के रूप में ब्रुनेई की भूमिका भारत को उसके साथ द्विपक्षीय और आसियान के नेतृत्व वाली रूप-रेखा के माध्यम से जुड़ने की अनुमति देती है. इस तरह की भागीदारी भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने असर का विस्तार करने और इस क्षेत्र के आर्थिक विकास और सुरक्षा में योगदान करने में सक्षम बनाती है.
संस्कृति, लोग और शिक्षा: भारत-ब्रुनेई रिश्तों में पारंपरिक पुल
भारत और ब्रुनेई मज़बूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संपर्क साझा करते हैं जो प्राचीन समुद्री व्यापार के रास्तों के समय से है. भारतीय व्यापारियों, विशेष रूप से दक्षिणी हिस्से के व्यापारियों, ने मलय द्वीपसमूह और दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे भागों का बार-बार दौरा किया और इस तरह क्षेत्र की संस्कृति, भाषा और धार्मिक प्रथाओं को प्रभावित किया. आज ब्रुनेई एक उदारवादी और सहिष्णु इस्लामिक समुदाय का एक आदर्श बन गया है जिसे भारत समेत एशिया के कई देश अपना सकते हैं.
छोटा सा भारतीय प्रवासी समुदाय, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और व्यवसाय जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले प्रोफेशनल शामिल हैं, दोनों संस्कृतियों के बीच सेतु के रूप में काम करता है.
शिक्षा एक और क्षेत्र हैं जहां भारत और ब्रुनेई के बीच तालमेल के लिए महत्वपूर्ण संभावना है. ब्रुनेई के छात्र तेज़ी से भारतीय विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा के अवसर तलाश रहे हैं, विशेष रूप से इंजीनियरिंग, मेडिसिन और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में.
शिक्षा एक और क्षेत्र हैं जहां भारत और ब्रुनेई के बीच तालमेल के लिए महत्वपूर्ण संभावना है. ब्रुनेई के छात्र तेज़ी से भारतीय विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा के अवसर तलाश रहे हैं, विशेष रूप से इंजीनियरिंग, मेडिसिन और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में. अपने फेलोशिप के प्रस्ताव के माध्यम से भारत ने उच्च शिक्षा के स्रोतों के लिए ख़ुद को एक उभरते केंद्र के रूप में स्थापित किया है. भारत का IT सेक्टर डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और क्षमता निर्माण के कार्यक्रम जैसे क्षेत्रों में ब्रुनेई के साथ द्विपक्षीय सहयोग की संभावनाएं पेश करता है. बंदर सेरी बेगावन और चेन्नई के बीच सीधी विमान सेवा शुरू करने के फैसले से अधिक संख्या में लोगों के दोनों तरफ आने-जाने में आसानी होगी. इस तरह व्यापार, पर्यटन, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्रों में अधिक सहयोग की सुविधा मिलेगी.
रक्षा एवं सुरक्षा तालमेल के लिए मज़बूत संभावना
भारत और ब्रुनेई ने साझा प्रशिक्षण अभ्यासों, क्षमता निर्माण कार्यक्रमों और सैन्य कर्मियों के बीच आदान-प्रदान समेत रक्षा सहयोग के लिए अवसर की तलाश शुरू कर दी है. भारत ने ब्रुनेई के रक्षा बलों को समुद्री सुरक्षा और आपदा राहत अभियान जैसे क्षेत्रों में ट्रेनिंग की पेशकश की है जो दोनों देशों के बीच बढ़ते सुरक्षा पहलू को उजागर करता है.
दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी व्यापक पहुंच के हिस्से के रूप में भारत ने ब्रुनेई के साथ समुद्री सहयोग बढ़ाने की भी कोशिश की है, विशेष रूप से समुद्री डकैती के ख़िलाफ़ अभियानों और आतंकवाद विरोधी प्रयासों जैसे क्षेत्रों में. चूंकि भारत इस क्षेत्र में एक बड़ा रक्षा निर्यातक बनने की आकांक्षा रखता है, ऐसे में ब्रुनेई के साथ मज़बूत अवसर है. इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और फिलिपींस जैसे दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों के साथ समुद्री सहयोग और रक्षा भागीदारी सहयोग के एजेंडा के मामले में पहले ही उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है. सुरक्षा से जुड़ी कई कमज़ोरियों के साथ छोटे देश के रूप में ब्रुनेई एक अच्छा आयात साझीदार बन सकता है. भारत की तरफ से निर्यात किए जाने वाले सामानों की मौजूदा टोकरी ब्रुनेई की ज़रूरतों को अच्छी तरह से पूरा कर सकती है.
आगे का रास्ता
भारत-ब्रुनेई संबंधों की सकारात्मक राह के बावजूद कई चुनौतियां बनी हुई हैं. ब्रुनेई की अर्थव्यवस्था की सीमित विविधता अधिक आर्थिक भागीदारी की राह में एक बड़ी बाधा है. तेल और गैस सेक्टर पर ब्रुनेई की बहुत ज़्यादा निर्भरता को देखते हुए उसकी आर्थिक स्थिरता वैश्विक ऊर्जा की कीमत में उतार-चढ़ाव को लेकर संवेदनशील है. ऐसी स्थिति में ऊर्जा से परे पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, बुनियादी ढांचा और तकनीक जैसे क्षेत्रों में सहयोग का पता लगाना दोनों देशों के लिए ज़रूरी है.
दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रुनेई एक छोटा सा किरदार लग सकता है लेकिन भारत के लिए उसका महत्व ऊर्जा सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और बहुपक्षीय सहयोग जैसे क्षेत्रों में है.
एक और चुनौती ब्रुनेई के बाज़ार का अपेक्षाकृत छोटा आकार है जो व्यापार के विस्तार के दायरे को सीमित करता है. लेकिन आसियान के क्षेत्र में भारत की बढ़ती आर्थिक मौजूदगी ब्रुनेई को अलग-अलग क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी के ज़रिए व्यापक क्षेत्रीय बाज़ारों का फायदा उठाने का अवसर मुहैया कराती है. सिंगापुर मॉडल का पालन करते हुए भारत को अपने बुनियादी ढांचे के क्षेत्र, ख़ास तौर पर बंदरगाह विकास, आतिथ्य और पर्यटन के क्षेत्रों में, निवेश करने के लिए ब्रुनेई को न्योता देना चाहिए. इस तरह भारत के सागर (SAGAR या सिक्युरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) और अतुल्य भारत अभियानों में ब्रुनेई को एक साझीदार बनाना चाहिए.
वैसे तो भारत-ब्रुनेई संबंध अक्सर दूसरे आसियान देशों के साथ भारत के व्यापक जुड़ाव की वजह से प्रभावित होता है लेकिन वृद्धि और विकास के लिए इसमें महत्वपूर्ण क्षमता है. दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रुनेई एक छोटा सा किरदार लग सकता है लेकिन भारत के लिए उसका महत्व ऊर्जा सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और बहुपक्षीय सहयोग जैसे क्षेत्रों में है.
सही समय पर मोदी की बंदर सेरी बेगावन की यात्रा भारत की एक्ट ईस्ट योजनाओं को बेहतर ढंग से साकार करने के लिए अधिक सहयोग का मंच तैयार करती है.
राहुल मिश्रा थाईलैंड की थम्मासत यूनिवर्सिटी के जर्मन-साउथ-ईस्ट एशियन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर पब्लिक पॉलिसी एंड गुड गवर्नेंस में सीनियर रिसर्च फेलो हैं. साथ ही वो दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज़ में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.
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