Author : Nivedita Kapoor

Published on Jan 04, 2021 Updated 0 Hours ago

आज जब वैश्विक व्यवस्था उठा-पटक के दौर से गुज़र रही है, तो ब्रिक्स के सदस्य देशों ने आपसी सहयोग के क्षेत्रों की तलाश करने की प्रासंगिकता स्वीकार की है, ख़ास तौर से तब और जब नई विश्व व्यवस्था का निर्माण होना बाक़ी है. फिर भी, ब्रिक्स के वर्ष 2020 के शिखर सम्मेलन ने ऐसा कुछ नहीं किया कि आने वाली कई चुनौतियों से निपटने से संबंधित सवालों के जवाब मिल सकें.

रूस की अध्यक्षता में ब्रिक्स: 2020 का शिखर सम्मेलन और आगे की चुनौतियां

पिक्चर कैप्शन-2019 के शिखर सम्मेलन से पहले एक साथ खड़े दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सीरिल रामाफोसा, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो. तस्वीर-मिखाइल मेटज़ेल-तास वाया गेटी

कोविड-19 की महामारी के चलते, 2020 का ब्रिक्स शिखर सम्मेलन वर्चुअल रूप से आयोजित किया गया. इसकी अध्यक्षता रूस ने की, जिसने इस बार के सम्मेलन का सूत्र वाक्य, ‘वैश्विक स्थिरता, साझा सुरक्षा और इनोवेटिव विकास के लिए ब्रिक्स की भागीदारी’ को चुना था. ब्राज़ील में 2019 के शिखर सम्मेलन के समापन के अवसर पर, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एलान किया था कि ‘ब्रिक्स के सदस्य देशों के बीच, अंतरराष्ट्रीय मंचों और ख़ास तौर से संयुक्त राष्ट्र में विदेश नीति के मसले पर आपसी समन्वय का विस्तार करने पर ख़ास ध्यान दिया जाएगा.’ एक और लक्ष्य था 2015 में हस्ताक्षर की गई आर्थिक साझेदारी की रणनीति को अपडेट करना, जिससे वर्ष 2025 तक ब्रिक्स का एजेंडा तय हो सकेगा.

ये लक्ष्य, ब्रिक्स को लेकर रूस के व्यापक सामरिक मक़सदों का भी हिस्सा हैं, जिसमें आर्थिक प्रशासन की मौजूदा संस्थाओं में सुधार करना, बहुपक्षीय नीति का अनुपालन करना और ब्रिक्स देशों के बीच विदेश नीति के मसलों पर सहयोग बढ़ाना शामिल है. रूस इन उपायों के ज़रिए विश्व में अपनी स्थिति को मज़बूत करना चाहता है. 2020 में वैश्विक महामारी के प्रकोप के बावजूद इन लक्ष्यों की पूर्ति हो सकी. महामारी ने शीत युद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था के ख़ात्मे की रफ़्तार को तेज़ कर दिया है. एक संगठन के रूप में ब्रिक्स और इसके घोषित लक्ष्यों पर इन वैश्विक बदलावों के प्रभाव को कमतर करके आंकना ग़लत होगा.

प्रमुख दस्तावेज़

एक क़दम आगे बढ़ते हुए शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स आर्थिक साझेदारी 2025 की उस रणनीति पर दस्तख़त किए गए, जिसके पांच साल पूरे होने पर समीक्षा की जा रही थी. प्राथमिकता वाले तीन क्षेत्रों-व्यापार, निवेश एवं वित्त; डिजिटल अर्थव्यवस्था और टिकाऊ विकास-पर ध्यान केंद्रित करते हुए, इस रणनीतिक दस्तावेज़ के माध्यम से ब्रिक्स देशों के बीच भविष्य में आर्थिक सहयोग का मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश की गई है. ये बिल्कुल स्पष्ट है कि इन तीन क्षेत्रों को ही क्यों चुना गया, क्योंकि यही तीन बिंदु 2015 मे विकसित की गई पूर्ववर्ती रणनीति के भी अभिन्न अंग थे. इससे ज़ाहिर होता है कि भविष्य में ब्रिक्स देशों की आर्थिक प्राथमिकताएं और निगाहें किधर होंगी.

शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स आर्थिक साझेदारी 2025 की उस रणनीति पर दस्तख़त किए गए, जिसके पांच साल पूरे होने पर समीक्षा की जा रही थी. प्राथमिकता वाले तीन क्षेत्रों-व्यापार, निवेश एवं वित्त; डिजिटल अर्थव्यवस्था और टिकाऊ विकास-पर ध्यान केंद्रित करते हुए, इस रणनीतिक दस्तावेज़ के माध्यम से ब्रिक्स देशों के बीच भविष्य में आर्थिक सहयोग का मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश की गई है

इस रणनीति को स्वीकार करके ब्रिक्स देशों ने ये संकेत दिया है कि वो आपस में मौजूदा सहयोग को कारोबारी क्षेत्र में आगे भी बढ़ावा देते रहेंगे; विश्व व्यापार संगठन, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में सुधार; कंटिंजेंसी रिज़र्व एग्रीमेंट (CRA) को आगे बढ़ाने; और नए विकास बैंक को मज़बूत करने पर भी काम जारी रहेगा. जिन अन्य क्षेत्रों को भी इस रणनीति में जगह दी गई है, वो इनोवेशन और तकनीक, डिजिटलीकरण की चुनौतियां और चौथी औद्योगिक क्रांति, स्थायी विकास, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, मूलभूत ढांचे का विकास और खाद्य सुरक्षा हैं. कोविड-19 की वैक्सीन के टेस्ट और उत्पादन के क्षेत्र में रूस व ब्राज़ील, भारत और चीन के बीच समन्वय को ब्रिक्स देशों के बीच आपसी सहयोग की सफलता मिसाल के तौर पर पेश किया गया है. इसके अलावा, न्यू डेवेलपमेंट बैंक (NDB) ने सदस्य देशों को कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए दस अरब डॉलर का फंड आवंटित किया है. ये भी NDB के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, ख़ास तौर से तब और जब इसकी सदस्यता के विस्तार की चर्चा गति पकड़ रही है.

हालांकि, ये सभी विषय ब्रिक्स देशों के लिहाज़ से वो क्षेत्र हैं जिनमें आपसी सहयोग लाभकारी दिखता है. ज़ाहिर तौर पर आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र वो मुख्य बिंदु हैं जहां इस संगठन ने NDB और CRA जैसी संस्थागत व्यवस्थाएं विकसित करके सबसे अधिक सफलता प्राप्त की है. लेकिन, कम और मध्यम अवधि में हम संगठन के सफर के सुगम होने की अपेक्षा नहीं कर सकते. उदाहरण के लिए, वैसे तो चीन ने ब्रिक्स देशों से अपील की है कि ‘वो डिजिटल परिवर्तन के लिए और ख़ास तौर से 5G, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI), डिजिटल इकॉनमी और अन्य क्षेत्रों में आपसी सहयोग का निर्माण करें.’ लेकिन, भारत ने सीमा पर हालिया संघर्षों के बाद अपने यहां के 5G ट्रायल में चीन की टेलीकॉम कंपनियों के हिस्सा लेने पर रोक लगा दी है. वर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव के बाद भारत ने किसी ऐसे देश से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सरकार की मंज़ूरी को अनिवार्य कर दिया है, जिसकी ज़मीनी सरहदें उससे मिलती हों. इसके लिए भारत ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी आशंकाओं का हवाला दिया है. इसका मतलब ये है कि चीन से भारत में होने वाले सभी निवेशों को सरकार की समीक्षा का सामना करना होगा, जबकि ब्रिक्स की रणनीति का मक़सद, सदस्य देशों के बीच निवेश संबंधी सहयोग को मज़बूत करना है. पिछले साल जुलाई महीने तक ही भारत में निवेश के चीन से आए, कम से कम 200 प्रस्ताव भारत के गृह मंत्रालय के सामने लंबित थे.

जहां तक ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार बढ़ाने की बात है, तो इस मोर्चे पर रूस को सीमित सफलता ही मिली है. वर्ष 2019 में ब्रिक्स देशों के साथ रूस का कुल व्यापार 125 अरब डॉलर का था. इसमें से 110 अरब डॉलर का व्यापार तो रूस अकेले चीन के साथ ही कर रहा था. भारत के साथ रूस के व्यापार में वृद्धि भले हुई है, लेकिन ये अब भी 10-11 अरब डॉलर के स्तर के आस-पास ही है. ब्रिक्स देशों के साथ भारत का कुल व्यापार जो वर्ष 2018-19 में 114.1 अरब डॉलर था, उसमें भी चीन की हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा यानी 87.1 अरब डॉलर थी.

में ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका के साथ रूस का व्यापार क्रमश: 6.25 अरब डॉलर और 97.5 करोड़ डॉलर का था. वर्ष 2019 तक ब्राज़ील के साथ रूस का व्यापार घटकर 4.61 अरब डॉलर सालाना हो गया. वहीं, दक्षिण अफ्रीका के साथ रूस के व्यापार में मामूली बढ़ोत्तरी हुई और ये 1.11 अरब डॉलर तक पहुंच गया. संयुक्त राष्ट्र के कॉमट्रेड डेटा के अनुसार, वर्ष 2010 तक ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका के बीच 2.06 अरब डॉलर का व्यापार होता था, जो 2019 के आते-आते घटकर 1.88 अरब डॉलर ही रह गया. हालांकि, ब्रिक्स देशों के बीच इतने कम व्यापार का अर्थ ये नहीं है कि भविष्य में आर्थिक साझेदारी की रणनीति न बनाई जाए. लेकिन, अमेरिका और चीन के बीच बंटती दुनिया, आगे चलकर तमाम देशों के व्यापार संबंधी फ़ैसलों पर असर डालेगी. ख़ास तौर से तब और जब ख़ुद ब्रिक्स के दो सदस्य देशों, भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंध लगातार बिगड़ रहे हैं. ऐसे में ब्रिक्स के सभी देशों के बीच आपसी सहयोग की संभावनाएं सीमित होती जा रही हैं.

वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान, सदस्य देशों ने ब्रिक्स काउंटर टेररिज़्म स्ट्रैटेजी पर भी हस्ताक्षर किए. इसका मक़सद आतंकवाद से लड़ने के वैश्विक प्रयासों में सहयोग देने के साथ-साथ ब्रिक्स देशों के बीच इस मुद्दे पर आपसी सहयोग को बढ़ाना है. इस रणनीति में सदस्य देशों के बीच संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के बारे में ख़ुफ़िया जानकारी साझा करना, उनके वित्तीय स्रोतों पर शिकंजा कसना और आतंकवाद के प्रचार प्रसार को रोकना शामिल है. जब वर्ष 2021 में भारत के पास ब्रिक्स की अध्यक्षता होगी, तो वो आतंकवाद के मुद्दे पर आपसी सहयोग के इस सिलसिले को और आगे बढ़ाएगा. मॉस्को घोषणापत्र में मोटे तौर पर किसी नए एलान को शामिल नहीं किया गया था और पूरे दस्तावेज़ में पिछले साल की थीम को ही बार-बार दोहराया गया. इनमें नीति एवं सुरक्षा; अर्थव्यवस्था एवं वित्त; सरकारों के बीच आपसी सहयोग; और सांस्कृतिक व सदस्य देशों के आम नागरिकों के बीच संपर्क बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया था.

वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान, सदस्य देशों ने ब्रिक्स काउंटर टेररिज़्म स्ट्रैटेजी पर भी हस्ताक्षर किए. इसका मक़सद आतंकवाद से लड़ने के वैश्विक प्रयासों में सहयोग देने के साथ-साथ ब्रिक्स देशों के बीच इस मुद्दे पर आपसी सहयोग को बढ़ाना है. 

रूस ने ब्रिक्स देशों के बीच विदेश नीति के मसले पर सहयोग बढ़ाने का जो एलान अपनी अध्यक्षता की शुरुआत में किया गया था, उसे हासिल न कर पाना, पिछले एक वर्ष में ब्रिक्स देशों की सबसे बड़ी नाकामी कहा जा सकता है. घोषणापत्र में तमाम अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों की लंबी लिस्ट को शामिल ज़रूर किया गया है. लेकिन ब्रिक्स देशों ने ख़ुद को इन विषयों पर महज़ अपनी ‘राय’ ज़ाहिर करने तक सीमित रखा है. इससे विद्वानों को ये टिप्पणी करने का मौक़ा मिला है कि एक साझा रवैया व्यक्त करने का अर्थ ये नहीं है कि ब्रिक्स देश एक समूह के तौर पर नियम तय कर पा रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां

उभरते वैश्विक परिदृश्यों ने भी ब्रिक्स के संदर्भ में रूस द्वारा तय किए गए लक्ष्य हासिल करने को पेचीदा बना दिया है. इसकी एक वजह ये भी है कि ब्रिक्स की स्थापना जिन वैश्विक हालात में की गई थी, उनमें आज क्रांतिकारी बदलाव आ चुका है. ये सच है कि ब्रिक्स देशों ने अपने तमाम लक्ष्यों में से एक बात ये भी शामिल की हुई है कि वो एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं. लेकिन, इस ख़्वाब को पूरा करने को लेकर सदस्य देशों के बीच वैचारिक एकता का अभाव दिखता है. ख़ास तौर से तब और, जब चीन ने बाक़ी देशों को तमाम मामलों में बहुत पीछे छोड़ दिया है. हाल के वर्षों में चीन ने बेहद आक्रामक रुख़ अपनाकर, ख़ास तौर से भारत के साथ अपने संबंध को और तब और विवादित बना दिया, जब वैश्विक महामारी के दौरान उसने भारत के साथ सीमा पर संघर्ष छेड़ा.

भले ही अब तक चीन ने ब्रिक्स में अपना प्रभुत्व जताने की कोशिश नहीं की है और आपसी विवादों के बावजूद, भारत और चीन ब्रिक्स के मंच पर सहयोग करते रहे हैं. दोनों देशों ने विवादित मसलों को ब्रिक्स या अन्य किसी बहुपक्षीय मंच से बाहर सुलझाने की कोशिश जारी रखी है. लेकिन, मौजूदा हालात में भी यही नीति जारी रहेगी, ये कह पाना संभव नहीं है. अगर अमेरिका और चीन के बीच दोध्रुवीय व्यवस्था का टकराव तेज़ होता है, जिसकी संभावना जताई जा रही है, तो इसका असर इन दोनों शक्तियों के साथ भारत और रूस के संबंधों और विदेश नीतियों पर भी पड़ना तय है. ब्रिक्स के तीन बड़े देशों के क्रियाकलाप ही इस संगठन के अंदरूनी आयाम और इसके भविष्य की दशा-दिशा तय करेंगे.

कोई भी विपरीत परिस्थिति पैदा होने की सूरत में, वैश्विक प्रशासन में ब्रिक्स के किसी बड़ी भूमिका निभाने की राह में अड़चनें आएंगी. ऐसी सूरत में ब्रिक्स ग़ैर पश्चिमी देशों के एक बड़े समूह के तौर पर बहुध्रुवीय व्यवस्था के निर्माण में बहुत सीमित भूमिका ही निभा सकेगा. इससे एक संगठन के तौर पर ब्रिक्स की उपयोगिता पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा. अब तक तो ब्रिक्स इन चुनौतियों का सामना कर पाने में सफल रहा है. लेकिन, बदलती हुई विश्व व्यवस्था के चलते, अब ये संतुलन बनाना पहले से ज़्यादा मुश्किल हो गया है.

समग्र मूल्यांकन

इस साल का ब्रिक्स सम्मेलन मोटे तौर पर पिछले वर्षों के आर्थिक सहयोग की बुनियाद पर आयोजित किया गया था. इस संदर्भ में ये कहा जा सकता है कि सदस्य देशों ने आपसी सहयोग के कई ऐसे हित देखे हैं, जिन्हें हासिल करने के लिए वो मौजूदा व्यवस्थाओं और संस्थाओं की मदद से सहयोग जारी रखना चाहेंगे. और हां, जब वैश्विक व्यवस्था बदलाव के दौर से गुज़र रही है, तो ब्रिक्स देशों ने आपसी सहयोग के नए क्षेत्रों की तलाश करने को प्रासंगिक माना है, ख़ास तौर से तब और जबकि नई विश्व व्यवस्था का निर्माण होना अभी बाक़ी है.

ये सच है कि ब्रिक्स देशों ने अपने तमाम लक्ष्यों में से एक बात ये भी शामिल की हुई है कि वो एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं. लेकिन, इस ख़्वाब को पूरा करने को लेकर सदस्य देशों के बीच वैचारिक एकता का अभाव दिखता है.

फिर भी हम ये बात यक़ीन से कह सकते हैं कि ब्रिक्स 2020 शिखर सम्मेलन, अपने भविष्य को लेकर उठ रहे सवालों और अपने सामने खड़ी चुनौतियों का जवाब दे पाने में असफल रहा है. अब ये देखना बाक़ी है कि क्या मौजूदा सहयोग को संस्थागत बनाना ही इस संगठन को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त होगा? सवाल ये भी है कि बदलती विश्व व्यवस्था के हिसाब से ब्रिक्स ख़ुद को कैसे ढालेगा? इससे ये फ़ैसला भी हो जाएगा कि आने वाले वर्षों में क्या ब्रिक्स, रूस को उसके सामरिक लक्ष्य प्राप्त करने में सफल बनाएगा. साथ ही साथ ये भी देखना होगा कि 2014 के यूक्रेन संकट के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों और पश्चिमी देशों के साथ रूस के संबंध ख़राब होने की भरपाई, ब्रिक्स कर सकेगा?

भारत ने पहले ही ये अंदाज़ा लगा लिया है कि कोविड-19 की महामारी का वैश्विक व्यवस्था पर कितना गहरा प्रभाव पड़ा है. इसके बाद भारत ने अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार भी किया है. अब जबकि वर्ष 2021 में भारत, ब्रिक्स की अध्यक्षता ग्रहण करेगा, तो इस भूमिका में उसका बर्ताव ही ये तय करेगा कि वो ब्रिक्स में अपना कैसा भविष्य देखता है. चीन के साथ पेचीदा होते संबंधों के दौरान, ब्रिक्स के प्रति भारत का कैसा रवैया रहता है, ये देखना बेहद दिलचस्प होगा. क्योंकि, जहां भारत ने अमेरिका से अपनी नज़दीकी बढ़ाई है, तो वहीं रूस और चीन के बीच बढ़ती नज़दीकी का असर, रूस के साथ भारत के रिश्तों पर भी दिखने लगा है.

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