बहुध्रुवीयता (मल्टी पोलैरिटी), बहु-गठबंधन (मल्टी-अलाइनमेंट), सामरिक स्वायत्तता (स्ट्रैटेजिक ऑटोनोमी) और सक्रिय गुटनिरपेक्षता (एक्टिव नॉन-एलाइनमेंट) पिछले दो वर्षों के दौरान भारत में विदेश नीति से जुड़े समुदाय में प्रचलित शब्द बन गए हैं. वैसे तो इन शब्दों के बीच बारीक अंतर में इनका इस्तेमाल करने वाले ज़्यादातर लोग और विश्लेषक भी खो जाते हैं लेकिन इनके स्वभाव को परिभाषित करने का सबसे स्पष्ट शब्द मल्टी पोलैरिटी है. आसान शब्दों में कहें तो मल्टी पोलैरिटी एक ऐसी दुनिया के बारे में बताता है जहां कई ‘पोल (ध्रुव)’ या सत्ता के केंद्र हैं.
दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के तौर पर कई लोग दलील देते हैं कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में भारत अपने आप में एक पोल है. प्रोफेसर हैप्पीमॉन जैकब मानते हैं कि भारत के नीति निर्माता ख़ुद को आसानी से एक मल्टी पोलर दुनिया में एक पोल के तौर पर समझते हैं.
भारत जो भी कहे लेकिन इस तरह सोचने वाला भारत अकेला देश नहीं है. एक देश जो भारत से 15,000 किलोमीटर दूर स्थित है, वो भी एक मल्टी पोलर दुनिया में ख़ुद के बारे में इसी तरह की सोच रखता है. ये देश ब्राज़ील है. भारत की तरह ब्राज़ील भी दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देशों में से एक है और वैश्विक स्तर पर 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से भी एक है. आख़िरकार, ब्राज़ील भरपूर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न है. इसकी वजह से ब्राज़ील को ‘दुनिया का ब्रेड बास्केट यानी रोटी की टोकरी’ भी कहा जाता है. इसमें हैरानी की बात नहीं है क्योंकि ब्राज़ील का क्षेत्रफल भारत के आकार से लगभग तीन गुना है.
30 के दशक से ब्राज़ील के विदेश नीति के पांच “स्वायत्तवादी काल” रहे हैं: 1930-45 तक गेटुलियो वर्गास सरकार, 1961 से 1964 तक जोआओ गूलार्ट प्रशासन की ‘स्वतंत्र’ विदेश नीति, 1964 से 1985 तक ब्राज़ील की सैनिक तानाशाही का ‘ज़िम्मेदार व्यवहारवाद का एजेंडा’, मौजूदा राष्ट्रपति लुईज़ इनासियो ‘लूला’ द सिल्वा के 2003 से 2010 तक पहले दो कार्यकालों के दौरान ‘विदेश नीति का साझा आधार’ और अंत में लूला का वर्तमान कार्यकाल. नवंबर 2022 में मिस्र के शर्म अल-शेख़ में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP27) के दौरान लूला ने ज़ोर देकर कहा कि उन्होंने “ऐसी विश्व व्यवस्था बनाने में मदद की कोशिश की जो शांतिपूर्ण हो और संवाद, मल्टीलेटरलिज़्म (बहुपक्षवाद) और मल्टी पोलैरिटी पर आधारित हो.”
ब्राज़ील-चीन: अपने-आप मज़बूत होता एक भरोसेमंद रिश्ता
अप्रैल 2023 में लूला के चीन दौरे को ब्राज़ील की इस स्वतंत्र विदेश नीति के व्यापक संदर्भ में देखना चाहिए. ये याद दिलाती है कि भारत की तरह ब्राज़ील भी इस मान्यता के आधार पर विदेश नीति बनाता है कि एक मल्टी पोलर दुनिया में वो भी एक पोल है. इस बात को देखते हुए कि लूला ने सबसे पहले फरवरी 2023 में अमेरिका का दौरा किया, कुछ समीक्षकों ने ये सवाल उठाया कि ब्राज़ील अमेरिका का साथ देने का ज़्यादा इच्छुक है या चीन का. लेकिन ये विचार करने वाली बात है कि ब्राज़ील को किसी एक पक्ष या दूसरे को चुनने की ज़रूरत नहीं है. ब्राज़ील अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर अमेरिका और चीन- दोनों देशों के साथ भागीदारी जारी रखेगा.
इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि ब्राज़ील और चीन के बीच रिश्ते पहले से ही अच्छी तरह बने हुए हैं. ज़्यादा मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों की बुनियाद इस शताब्दी के शुरुआती वर्षों में लूला के पहले कार्यकाल के दौरान रखी गई थी, उस दौरान चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ थे. दो दशक बाद संबंध चट्टान की तरह मज़बूत हैं और अपने-आप ये दोस्ती आगे बढ़ रही है.
लूला के चीन दौरे में अर्थव्यवस्था और राजनीति का मिला-जुला रूप दिखा.
ज़्यादातर मामलों की तरह अर्थव्यवस्था राजनीति को पछाड़ रही है. 2009 से चीन ब्राज़ील का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है. इस व्यापार के ज़्यादातर हिस्से में ब्राज़ील से चीन को सामानों का निर्यात शामिल है. ब्राज़ील चीन को सोयाबीन, चिकन और चीनी का सबसे बड़ा सप्लायर है. इसके अलावा ब्राज़ील लौह अयस्क, पेट्रोलियम, कॉटन और तंबाकू का भी एक बड़ा सप्लायर है. इस तरह ये कोई हैरानी की बात नहीं है कि लूला ने ब्राज़ील के लगभग 200 कारोबारियों की टीम के साथ चीन का दौरा किया. इस दौरे का नतीजा ये रहा कि ब्राज़ील की सरकार ने 50 अरब ब्राज़ीलियन रियल (10 अरब अमेरिकी डॉलर के क़रीब) के समझौतों पर हस्ताक्षर किए. फिर भी ये समझौते ब्राज़ील और चीन के बीच 2022 में 165 अरब अमेरिकी डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार की तुलना में काफ़ी कम हैं. ब्राज़ील और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार का ये आंकड़ा भारत के द्वारा अपने सबसे बड़े साझेदार अमेरिका के साथ 2022 में 131 अरब अमेरिकी डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार से बहुत ज़्यादा है.
उम्मीद के मुताबिक़, लूला के दौरे का एक मज़बूत राजनीतिक पक्ष भी था. घरेलू नज़रिये से इस दौरे ने लूला को एक मौक़ा मुहैया कराया कि वो ब्राज़ील के बेहद असरदार कृषि कारोबारियों की लॉबी को शांत करें. इन कारोबारियों में से कई ब्राज़ील में दक्षिणपंथी विपक्ष के समर्थक हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये थी कि चीन यात्रा के दौरान और उसके ठीक बाद लूला ने भू-राजनीति पर अपेक्षाकृत समझदारी भरा बयान दिया. उन्होंने ब्राज़ील को यूक्रेन में शांति लाने वाले संभावित मध्यस्थ के तौर पर पेश किया और इंटरनेशनल रिज़र्व करेंसी के रूप में अमेरिकी डॉलर की कमियों पर चर्चा की (उस वक़्त जब चीन का युआन यूरो को पीछे छोड़ते हुए ब्राज़ील की दूसरी सबसे बड़ी रिज़र्व करेंसी बन गया है). इन बयानों का महत्व सभी अच्छी तरह जानते हैं क्योंकि रूस के विदेश मंत्री ने लूला के चीन दौरे के फ़ौरन बाद ब्राज़ील की यात्रा शुरू की.
भू-राजनीति के वैश्विक मेज पर ये चालाक क़दम हैं. यह एक और कारण है जिसकी वजह से ब्राज़ील एक मल्टी पोलर दुनिया में अपने पोल का दावा करता है. वास्तव में इसका सबूत बाद में पता चला जब अमेरिका ने यूक्रेन और अमेरिकी डॉलर को लेकर लूला के तीखे बयानों पर ध्यान देते हुए और कुछ हद तक ब्राज़ील को अपनी तरफ़ मोड़ने की कोशिश के तहत ब्राज़ील के अमेज़न फंड में अपनी हिस्सेदारी फरवरी 2023 में शुरुआती 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर कर दी. वैश्विक कूटनीति में ये एक सबक़ है और भारत को भी इस पर ध्यान देना चाहिए.
ब्राज़ील अगले कुछ वर्षों तक भू-राजनीतिक चर्चा के केंद्र में बना रह सकता है. G20 की अध्यक्षता 2023 में भारत से ब्राज़ील को मिलेगी और ब्राज़ील सबकी आंखों के आकर्षण का केंद्र बन जाएगा क्योंकि वो ऐसे सम्मेलन की मेज़बानी करेगा जिसे लूला ने उत्साह से ‘कूटनीतिक विश्व कप’ का नाम दिया था.
Hari Seshasayee ORF के विज़िटिंग फेलो हैं. साथ ही वो पनामा के विदेश मंत्रालय के सलाहकार और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के एशिया-लैटिन अमेरिका विशेषज्ञ हैं.
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