Published on Oct 03, 2023 Updated 0 Hours ago

वैसे तो बायोहैकिंग बेहतर स्वास्थ्य के लिए उम्मीद जगाती है लेकिन ये महत्वपूर्ण नैतिक और सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी पैदा करती है जिनका समाधान सरकार की तरफ से रेगुलेशन या नियंत्रण के ज़रिए करने की ज़रूरत है.

बायोहैकिंग और नियंत्रण: मानवीय बेहतरी का बदलता परिदृश्य

बायोहैकिंग का मतलब लोगों के बायोलॉजिकल सिस्टम (जैविक प्रणाली) में फेरबदल और उसे बेहतर करके उनके अनुभव को बढ़ाना या सुधारना है. जैसे-जैसे बायोटेक्नोलॉजी और जेनेटिक्स में आगे बढ़ने की रफ्तार तेज़ हुई है, वैसे-वैसे लोगों और समुदायों की तरफ से इस प्रक्रिया में भागीदारी बढ़ी है. लोगों की भागीदारी के पीछे पर्सनल मेडिकल डेटा की सुरक्षा और ओपन-सोर्स मेडिसिन की प्रेरणा है. लेकिन बायोहैकिंग की तेज़ रफ्तार ने कई महत्वपूर्ण नैतिक, सामाजिक और रेगुलेटरी चिंताएं पैदा की हैं. 

जेनेटिक इंजीनियरिंग बायोहैकिंग का सबसे जाना-पहचाना प्रकार है. इस क्षेत्र में सबसे लोकप्रिय प्रयोग एक मशहूर बायोहैकर जोसिया ज़ेनर ने किया है. कुछ प्रयोग जहां सफल रहे हैं वहीं कुछ मुश्किल होम-बेस्ड जेनेटिक बायोहैकिंग, जैसे कि CRISPR DNA को इंजेक्ट करना या किसी व्यक्ति में कोशिका की लंबाई को बदलना, असफल साबित हुए हैं. इसी तरह का एक और क्षेत्र है नॉट्रोपिक्स की खपत. ये एक रसायनिक दवाई है जिसके बारे में दावा किया जाता है कि इसे लेने से याददाश्त, फोकस और क्रिएटिविटी में बढ़ोतरी होती है. 

बायोहैकिंग के तहत शरीर में बदलाव भी शामिल है. कुछ बायोहैकर्स इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, मैग्नेट या रेडियो-फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) इम्प्लांट करवा कर अपने शारीरिक रूप-रंग या क्षमता में बदलाव करते हैं.

बायोहैकिंग के तहत शरीर में बदलाव भी शामिल है. कुछ बायोहैकर्स इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, मैग्नेट या रेडियो-फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) इम्प्लांट करवा कर अपने शारीरिक रूप-रंग या क्षमता में बदलाव करते हैं. इस तरह के बदलाव से यूज़र तकनीक़ के साथ और भी ज़्यादा बेहतर ढंग से व्यवहार करने में सक्षम हो जाते हैं या सोच-समझ के नए अनुभव को हासिल करते हैं. इस प्रकार वो साइबोर्ग (कहानियों में बताया गया सुपर ह्यूमन) के युग, जिसे ‘ग्राइंडर्स’ कहा जाता है, को करीब ले आते हैं. 

बायोहैकर्स की मौजूदगी “ज़रूरत से ज़्यादा रेगुलेशन” की वजह से बायोटेक्नोलॉजी की स्पीड को लेकर लोगों और प्रोफेशनल्स की हताशा के बारे में इशारा करती है. हालांकि, बायोहैकिंग अपने आप में जेनेटिक बदलाव और बिना मंज़ूरी की दवाइयों को इस्तेमाल करने और इसके साथ जुड़े स्वास्थ्य के जोखिमों के बारे में नैतिक चिंताएं पैदा करती है. साथ ही सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि की वजह से बायोहैकिंग की उपलब्धता के मामले में असमानता में बढ़ोतरी भी एक नैतिक चिंता है. 

इसके अलावा, जेनेटिक बायोहैकिंग के प्रयोग, भले ही वो ख़ुद पर हों या दूसरों पर, सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े अहम जोखिम पेश करते हैं. इन जोखिमों में अपर्याप्त सुरक्षा या कार्यकुशलता के साथ संभावित हस्तक्षेप, सोच-समझकर असली सहमति की गैर-मौजूदगी और बाज़ार में असुरक्षित एवं अप्रमाणित “इलाज” को शुरू करना और अपनाना शामिल हैं. जेनेटिक बायोहैकिंग को बिना नियंत्रण के छोड़ने से सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े ये जोख़िम और बढ़ते हैं क्योंकि कई प्रयोगों में आसानी से उपलब्ध मैटेरियल और डू-इट-योरसेल्फ (DIY) मार्केट के लिए काम करने वाली कंपनियों के इक्विपमेंट का इस्तेमाल किया जाता है या उन मैटेरियल और इक्विपमेंट का इस्तेमाल होता है जो बायोहैकर्स के बीच खुलकर शेयर किए जाते हैं.  

1996 में पांच देशों- जर्मनी, जापान, यूनाइटेड किंगडम (UK), फ्रांस और अमेरिका- ने बरमूडा में आयोजित बैठक के दौरान इंटरनेशनल ह्यूमन जीनोम सीक्वेंसिंग कंसोर्टियम (बरमूडा सिद्धांत 1996) पर हस्ताक्षर किए. 1999 में चीन भी इस समझौते में शामिल हो गया. 

स्रोत: कुक-दीगान, रॉबर्ट एंड एमी एल. मैकगाइर के लेख “मूविंग बियॉन्ड बरमूडा: शेयरिंग डेटा टू बिल्ड ए मेडिकल इन्फॉर्मेशन कॉमन्स. 

मौजूदा समय में ग्लोबल अलायंस फॉर जीनोमिक हेल्थ (GA4GH) में 70 से ज़्यादा देश शामिल हैं और ये बरमूडा सिद्धांत के दायरे में विस्तार करता है. लेकिन दोनों में से कोई भी समझौता दुनिया भर में अनौपचारिक बायोहैकिंग पर नियंत्रण नहीं करता है. 

चूंकि बायोहैकिंग काफी हद तक बायोलॉजिकल डेटा, इन्फॉर्मेशन शेयरिंग और क्लिनिकल रिसर्च स्टैंडर्ड को बरकरार रखने पर निर्भर करती है, ऐसे में अलग-अलग देशों के लिए ये अनिवार्य हो जाता है कि वो ख़ुद को ग्लोबल बायोहैकिंग स्टैंडर्ड के साथ जोड़ें और सुनिश्चित करें कि राष्ट्रीय स्तर के सरकारी किरदार इस तरह के उपायों को अमल में लाएं. 

रेगुलेटरी परिदृश्य 

पढ़ाई-लिखाई और विकास के ज़्यादा औपचारिक क्षेत्रों में बायोहैकिंग को शामिल करने के लिए सरकार की तरफ से कोशिशें हुई हैं. उदाहरण के तौर पर, अमेरिका में फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (FBI) सुरक्षित वैज्ञानिक रिसर्च को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से और गलत लोगों के द्वारा बायोलॉजिकल मैटेरियल्स के संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए 2009 से सक्रिय तौर पर बायोहैकिंग कम्यूनिटी के साथ जुड़ी हुई है. FBI के द्वारा कदम बढ़ाने, जिसका आम तौर पर अमेरिका के बायोहैकर्स ने स्वागत किया है, का लक्ष्य बायोहैकर्स के साथ नज़दीकी संबंध बनाना और उनके काम-काज एवं तकनीकों के बारे में अपनी समझ को बढ़ावा देना है. FBI की बायोलॉजिकल काउंटरमेज़र्स यूनिट ने बायोटेररिज़्म के मामले में बायोहैकिंग के द्वारा खड़े किए गए रिस्क का अध्ययन किया है और उन कम्यूनिटी लैब के साथ मज़बूत संबंधों को बढ़ावा दिया है जहां जेनेटिक प्रयोग होते हैं. 

FBI के द्वारा कदम बढ़ाने, जिसका आम तौर पर अमेरिका के बायोहैकर्स ने स्वागत किया है, का लक्ष्य बायोहैकर्स के साथ नज़दीकी संबंध बनाना और उनके काम-काज एवं तकनीकों के बारे में अपनी समझ को बढ़ावा देना है.

हालांकि, यूरोप के कुछ बायोहैकर्स इस जुड़ाव को संदेह और सतकर्ता के नज़रिए से देखते हैं. इसकी वजह कानून लागू करने वाली एजेंसियों की घुसपैठ का इतिहास है. उन्हें अपनी गतिविधियों में कानूनी एजेंसियों को शामिल करने के संभावित नतीजों को लेकर डर है और इसके परिणामस्वरूप वो FBI के मेलजोल को संदेह से देखते हैं. उदाहरण के तौर पर, जर्मनी में बायोहैकर्स को बिना रजिस्टर्ड DIY गतिविधियों में शामिल होने के लिए तीन साल तक कैद की सज़ा मिल सकती है. 

इसके अलावा, किसी खालीपन की स्थिति में बायोहैकिंग का वजूद नहीं होता. अमेरिका में ज़्यादातर बायोहैकिंग उत्पाद और बायोलॉजिक्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. लेकिन वर्तमान समय में एक अलग रूप में बायोहैकिंग को लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइंस नहीं हैं. अधिकार क्षेत्र को लेकर इस तरह की अनिश्चितता स्टेम सेल रिसर्च की शुरुआत में भी दिखाई दी थी. इसे अब नीतियों और अधिकार क्षेत्र के ज़रिए कम किया जा सकता है. 

अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया में बायोहैकिंग अभी भी अपने पैर फैला रही है. इन महादेशों में कुल मिलाकर 60 से कम DIY बायोलैब्स हैं. इन महादेशों में मैटेरियल तक सीमित पहुंच की वजह से बायोहैकिंग का उतनी अच्छी तरह विस्तार नहीं हुआ है और इस तरह नियंत्रण के लिए रेगुलेशन भी नहीं बन पाए हैं. 

भारत में रेगुलेटरी परिदृश्य अमेरिका की तरह ही हैं. वैसे तो कोई भी सरकारी रेगुलेशन सीधे तौर पर बायोहैकिंग और बायोहैकर्स पर नियंत्रण नहीं रखता है लेकिन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और आयुष मंत्रालय के तहत सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइज़ेशन (CDSCO) और फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) इन पर नज़र रखते हैं. CDSCO ने जैव प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ मिलकर बायोलॉजिक्स की मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन को रेगुलेट करने के लिए कुछ गाइडलाइंस जारी की है जैसे कि गाइडलाइंस ऑन सिमिलर बायोलॉजिक्स: रेगुलेटरी रिक्वायरमेंट फॉर मार्केटिंग अथॉराइज़ेशन इन इंडिया, 2016. ये बायोलॉजिक्ल उत्पादों पर निगरानी रखने के लिए ज़रूरी गाइडलाइन है. CDSCO ने बायोलॉजिकल प्रोडक्ट के लिए डिस्ट्रीब्यूशन की पद्धति पर अच्छी गाइडलाइन भी तैयार की है. 

भारत में बायोहैकिंग प्रोडक्ट के अनैतिक एवं असुरक्षित इस्तेमाल और मार्केटिंग का दायरा ज़्यादा ख़तरनाक है. इसकी वजह रेगुलेशन से बाहर आयुर्वेदिक दवाओं की गहरी पैठ है. आयुर्वेद में अक्सर उन नतीजों का वादा किया जाता है जो सख्त़ क्लिनिकल ट्रायल पर आधारित नहीं होते हैं.

लेकिन, भारत में बायोहैकिंग प्रोडक्ट के अनैतिक एवं असुरक्षित इस्तेमाल और मार्केटिंग का दायरा ज़्यादा ख़तरनाक है. इसकी वजह रेगुलेशन से बाहर आयुर्वेदिक दवाओं की गहरी पैठ है. आयुर्वेद में अक्सर उन नतीजों का वादा किया जाता है जो सख्त़ क्लिनिकल ट्रायल पर आधारित नहीं होते हैं. लेकिन भारतीय संस्कृति के साथ आयुर्वेद के जुड़ाव की वजह से कई बीमारियों के इलाज के लिए उस पर भरोसा किया जाता है. हाल के वर्षों में भारत में परंपरागत इलाज का ये विस्तार आधुनिक बायोहैकिंग तक हो गया है, यहां तक कि अग्रणी बायोहैकर्स के द्वारा भी. वैसे सरकार FSSAI स्टैंडर्ड्स के तहत आयुर्वेदिक उत्पादों को रेगुलेट करती है और CDSCO विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की तरफ से स्वीकृत विक्रेता के उत्पादों की सूची जारी करता है.

इस क्षेत्र में नियंत्रण की कमी की वजह से घरेलू जीन थेरेपी के ख़राब असर का जोखिम है. साथ ही वायरल वेक्टर जैसे जेनेटिक रिएजेंट को गलत ढंग से रख-रखाव की वजह से पर्यावरण के प्रदूषण और डू-इट-योरसेल्फ के प्रायोगिक नज़रिए के पक्ष में परंपरागत इलाज को छोड़ने का ख़तरा भी है. इंसान से जुड़ी जीन बायोहैकिंग के विशेष जोखिम और संभावित फायदे इस बात पर निर्भर करेंगे कि उन्हें किस संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है. 

स्पष्ट रेगुलेशन के लिए ज़रूरत 

भारत में तात्कालिक जोख़िम का समाधान करने और ज़िम्मेदार एवं नैतिक ढंग से बायोहैकिंग में समुदाय की भागीदारी को बढ़ाने के लिए CDSCO अभी भी बायोहैकिंग और जेनेटिक से जुड़े क्षेत्रों के लिए गाइडलाइंस विकसित कर सकता है. इससे लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी और जानकारी एवं सोच-समझकर मंज़ूरी की कमी की वजह से उपयोग करने वालों के शोषण को सीमित किया जा सकेगा.

कुल मिलाकर, सरकारी रेगुलेशन के लिए ज़रूरत बनी हुई है जो कि स्पष्ट रूप से बायोहैकिंग पर निगरानी रखे ताकि स्टैंडर्ड टेस्टिंग (मानक परीक्षण) और सुरक्षा की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर प्रोडक्ट तैयार हों. इस तरह के उपाय अप्रमाणित बायोहैकर्स के बेकाबू फैलाव को रोकते हुए रिसर्च और इनोवेशन को भी बढ़ावा देंगे. इसके अलावा, बायोहैकिंग उत्पादों एवं सेवाओं के बारे में स्पष्ट लेबलिंग और सटीक जानकारी भी आवश्यक हैं ताकि उपभोक्ताओं को उत्पाद के इस्तेमाल के संबंध में गुमराह करने वाले, गलत और ख़तरनाक दावों से बचाया जा सके.
इसके अलावा, सरकार की कोशिशों में नैतिक तौर पर नज़र रखने वाले बोर्ड की स्थापना को भी शामिल करना चाहिए जो स्पष्ट दिशा-निर्देश की आवश्यकता वाले जर्म सेल या भ्रूण के जेनेटिक बदलाव को देखे और अनायास या अनैतिक नतीजों को रोकने के लिए निगरानी करे. 

एक ज़िम्मेदार और आने वाले समय के बारे में सोचकर तैयार रेगुलेशन बायोहैकिंग के संभावित फायदों का पूरा इस्तेमाल करने के लिए ज़रूरी है.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो जीनोमिक एडिटिंग गवर्नेंस और अलायंस में बायोहैकिंग पर विचार करना चाहिए या ऐसे अलायंस तैयार करने चाहिए जो जीन एडिटिंग और दूसरे प्रकार की बायोइंजीनियरिंग समेत DIY बायोहैकिंग पर नज़र रखे. इसके अतिरिक्त, GA4GH की तरह इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन वैश्विक स्तर पर नैतिक मानदंडों, इनोवेशन से जुड़ी बाहरी चीज़ों, इंडस्ट्री स्टैंडर्ड और वैश्विक चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं. 

इस तरह बायोहैकिंग तकनीक़, जीव विज्ञान और मानवीय आकांक्षाओं का एक आकर्षक मेलजोल पेश करती है. ये बेहतर सेहत, कॉग्निटिव बेहतरी (सीखने, याद रखने, ध्यान देने की बेहतर क्षमता) और ज़्यादा समय तक जीने के लिए अवसर प्रदान करती है लेकिन महत्वपूर्ण रूप से नैतिक और सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी पैदा करती है. एक ज़िम्मेदार और आने वाले समय के बारे में सोचकर तैयार रेगुलेशन बायोहैकिंग के संभावित फायदों का पूरा इस्तेमाल करने के लिए ज़रूरी है. इससे लोगों की सेहत से जुड़े संभावित जोखिम भी कम होंगे. इनोवेशन और रेगुलेशन के बीच सही संतुलन को स्थापित करने से लोगों की बेहतरी वाला भविष्य तैयार होगा और सुनिश्चित किया जा सकेगा कि ये तरीके समाज के लिए सकारात्मक योगदान करें.


श्रविष्ठा अजय कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में एसोसिएट फेलो हैं.

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