Published on Jan 23, 2024 Updated 0 Hours ago

चीन के साथ सीमा को लेकर भूटान की बातचीत में नए प्रशासन की वजह से जहां बड़ा अंतर नहीं आएगा वहीं इससे भारत के साथ गहरे आर्थिक सहयोग और एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा. 

भूटान में चुनाव: भारत के लिए दांव पर क्या है?

2008 में लोकतांत्रिक देश बनने के बाद भूटान के मतदाताओं ने हर पांच साल पर एक नए प्रधानमंत्री और पार्टी के लिए वोट किया है. लेकिन 9 जनवरी को शेरिंग तोबगे और उनकी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) ने दोबारा चुनाव जीत कर इतिहास बनाया. देश में आर्थिक कठिनाई के साथ-साथ PDP सरकार के साथ अनुभव और उसके ट्रैक रिकॉर्ड ने इस नतीजे में योगदान दिया होगा. चीन के साथ सीमा को लेकर भूटान की बातचीत में नए प्रशासन की वजह से बड़ा अंतर नहीं आएगा लेकिन देश की अर्थव्यवस्था में फिर से जान फूंकने की महत्वाकांक्षा के साथ नया प्रशासन भारत के साथ गहरे आर्थिक सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देगा. 

सीमा विवाद

चूंकि भूटान संवैधानिक तौर पर राजशाही है, ऐसे में लोकतांत्रिक सरकारें अक्सर राजशाही की विदेश नीति के मूल तत्वों का पालन करती हैं. इनमें भारत के साथ दोस्ती, भारतीय हितों को लेकर संवेदनशीलता और चीन के साथ सीमा विवाद को ख़त्म करना शामिल हैं. भूटान के राजा यहां की विदेश नीति के नैतिक मार्गदर्शक, भूटान के सशस्त्र बलों के सुप्रीम कमांडर-इन-चीफ और रक्षा एवं सुरक्षा से जुड़े मामलों पर वास्तविक फैसला लेने वाले हैं. इसका नतीजा ये निकला है कि एक के बाद दूसरी निर्वाचित सरकारों ने चीन को लेकर पूर्व की सरकार की विदेश नीति को जारी रखा है. सभी सरकारों ने सीमा विवाद को ख़त्म करने का लक्ष्य बनाया, हालांकि अलग-अलग सरकारों की बातचीत के तरीके और रणनीति में अंतर था. 

उदाहरण के लिए, नई शताब्दी की शुरुआत में चीन की बढ़ती घुसपैठ के साथ पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री जिग्मे थिनले (2008-2013) ने पश्चिम के विवादित इलाकों में चीन के साथ साझा सर्वे आयोजित करवाने का फैसला लिया. उन्होंने चीन के साथ सीमा विवाद ख़त्म करने और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कूटनीतिक संबंधों की संभावना को लेकर भी बातचीत की. दूसरे प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे (2013-2018) ने चीन के साथ कूटनीतिक संबंधों की संभावना को खारिज कर दिया और 2013 से 2016 तक सालाना सीमा वार्ता की परंपरा को फिर से शुरू किया. 2016 तक दोनों देशों ने उत्तरी और पश्चिमी विवादित क्षेत्रों में साझा सर्वे का काम भी पूरा कर लिया. लेकिन 2017 में डोकलाम में चीन की घुसपैठ और उसके बाद बने गतिरोध की वजह से ये बातचीत रुक गई. 

नई सरकार बातचीत जारी रखेगी, भारत के साथ बातचीत करेगी, भारतीय चिंताओं का ध्यान रखेगी और चीन को नाराज़ करने से हिचकिचाएगी, भले ही उसकी घुसपैठ और आक्रामकताओं में बढ़ोतरी हो रही है. 

तीसरे प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग (2018-2023) ने गलवान में भारत और चीन के बीच संघर्ष और भूटान के साक्तेंग क्षेत्र में चीन के नए दावों के बीच 2020 में चीन के साथ बातचीत में आए गतिरोध को दूर करने की कोशिश की. सरकार ने पहले से मौजूद विशेषज्ञ समूह की बैठकों (EGM) की व्यवस्था का इस्तेमाल चुपचाप ढंग से मतभेदों को दूर करने के लिए किया. 2020 में दोनों देशों ने सीमा तय करने के लिए तीन चरणों के रोडमैप पर बातचीत की और 2021 में 10वीं EGM के दौरान समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए. 2023 में दोनों देशों ने 11वीं, 12वीं और 13वीं EGM का आयोजन किया. 13वीं EGM के दौरान सीमा तय करने के लिए एक साझा तकनीकी टीम (JTT) ने बातचीत की. दोनों देशों ने बातचीत के 25वें चरण का भी आयोजन किया जहां उन्होंने JTT के काम-काज और ज़िम्मेदारी को निर्धारित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और कूटनीतिक संबंधों को स्थापित करने की संभावनाओं पर चर्चा की. सीमाओं का निर्धारण तीन चरणों के रोडमैप वाले MoU का पहला चरण होने की संभावना है और इसके बाद सीमा का दौरा और फिर सीमाओं को अंतिम रूप देने का काम होगा. हालांकि भूटान सरकार ने कई मौकों पर ये आश्वासन दिया है कि इस बातचीत में डोकलाम ट्राइजंक्शन शामिल नहीं है और इसको लेकर भारत, भूटान और चीन अलग से बात करेंगे. 

प्रधानमंत्री शेरिंग तोगबे के सत्ता में लौटने के साथ मौजूदा बातचीत में बदलाव की बहुत कम संभावना है. पहले की सरकार की तरह उनकी सरकार भी जल्द-से-जल्द सीमा विवाद को दूर करने की कोशिश करेगी. सीमा विवाद को आंशिक तौर पर हल करने के करीब पहुंचने के बाद नई सरकार चीन को नाराज़ करने को लेकर सावधान रहेगी. चीन के साथ बातचीत में प्रगति को पटरी से उतारने की आशंका से तोबगे सरकार पहले की तरह चीन के साथ कूटनीतिक संबंधों पर चर्चा करने से परहेज करेगी. इसके अलावा अपनी आर्थिक आकांक्षाओं, चीन के साथ बढ़ते व्यापार और चीन की आर्थिक ताकत, आक्रामकता और घुसपैठ की वजह से भूटान जल्द-से-जल्द सीमा तय करना चाहता है. इसलिए नई सरकार बातचीत जारी रखेगी, भारत के साथ बातचीत करेगी, भारतीय चिंताओं का ध्यान रखेगी और चीन को नाराज़ करने से हिचकिचाएगी, भले ही उसकी घुसपैठ और आक्रामकताओं में बढ़ोतरी हो रही है. 

अर्थव्यवस्था एवं विकास

नई सरकार के सामने भूटान की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की बड़ी ज़िम्मेदारी भी है. पिछले पांच वर्षों में भूटान का औसत विकास दर महज़ 1.7 प्रतिशत रहा है. भूटान बहुत ज़्यादा महंगाई, युवाओं में बेरोज़गारी की ऊंची दर (29 प्रतिशत) और काम-काजी आबादी के व्यापक रूप से पलायन का सामना कर रहा है. साथ ही भूटान का कारोबारी और पर्यटन क्षेत्र कोविड-19 के झटकों से उबरने में नाकाम रहा है. भूटान के कर्ज़ और आयात में बढ़ोतरी हुई है, राजस्व कम हो गया है और विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 467 मिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया है यानी न्यूनतम सीमा से केवल 3 मिलियन अमेरिकी डॉलर ज़्यादा.

आर्थिक बहाली के लिए नई सरकार अपने घोषणापत्र को 13वीं पंचवर्षीय योजना के साथ जोड़ने के लिए उत्सुक है. दोनों का लक्ष्य बुनियादी ढांचे, सड़कों, पानी की सप्लाई, निजीकरण, FDI, सार्वजनिक-निजी साझेदारी और बेहतर कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है. सरकार पर्यटन उद्योग के विस्तार और उसको मज़बूती देने के लिए भी उत्सुक है. इन पहलों से सामाजिक-आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा और राजस्व, विदेशी मुद्रा भंडार एवं रोज़गार के अवसरों में बढ़ोतरी होगी. इसके नतीजतन महत्वाकांक्षी 13वीं पंचवर्षीय योजना के लिए 510 अरब रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है जो कि 12वीं पंचवर्षीय योजना की तुलना में 30 प्रतिशत ज़्यादा है जिसका बजट 390 अरब रुपये था.  

अपनी तरफ से भारत भूटान का सबसे बड़ा विकास साझेदार बना रहेगा. अनुमानों से संकेत मिलता है कि 13वीं योजना के लिए भारत 100 अरब रुपये की सहायता की पेशकश करेगा, वहीं जापान, यूरोपियन यूनियन (EU) एवं दूसरी बहुपक्षीय एजेंसियां 40 अरब रुपये मुहैया कराएंगी. भारत की तरफ से सहायता को मंज़ूरी मिली तो इसमें 11वीं और 12वीं पंचवर्षीय योजनाओं की तुलना में 45 अरब रुपये की भारी-भरकम बढ़ोतरी होगी. इसके अलावा, भूटान की सरकार एक प्रोत्साहन (स्टिमुलस) पैकेज के तौर पर भारत से 15 अरब रुपये के अनुदान का अनुरोध करने के लिए उत्सुक है. 

नई सरकार ने छह मेगा हाइड्रोपावर और सात छोटे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को विकसित करने का संकल्प लिया है. साथ ही पुनात्सांगछु 1, पुनात्सांगछु 2 और खोलोंगछु परियोजनाओं को रफ्तार और प्राथमिकता देने का भी फैसला लिया गया है.

पनबिजली (हाइड्रोपावर) एक और सेक्टर है जहां दोनों देश अगले पांच वर्षों के लिए अपने सहयोग में बढ़ोतरी करेंगे. कई दशकों से भारत ने भूटान की पनबिजली परियोजनाओं में वित्तीय और तकनीकी सहायता के साथ मदद की है और इसके बदले पनबिजली का आयात किया है. इस तरह भारत ने दोनों देशों के लिए फायदेमंद संबंधों में योगदान किया है. आज हाइड्रोपावर का योगदान भूटान के कुल निर्यात में 63 प्रतिशत है जबकि GDP में 14 प्रतिशत और सरकारी राजस्व में 26 प्रतिशत है. इसका नतीजा ये निकला है कि 13वीं पंचवर्षीय योजना में 300 अरब रुपये से ज़्यादा का बजट पनबिजली और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए रखा गया है. नई सरकार ने छह मेगा हाइड्रोपावर और सात छोटे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को विकसित करने का संकल्प लिया है. साथ ही पुनात्सांगछु 1, पुनात्सांगछु 2 और खोलोंगछु परियोजनाओं को रफ्तार और प्राथमिकता देने का भी फैसला लिया गया है. 1020 MW के पुनात्सांगछु 2 प्रोजेक्ट से अक्टूबर 2024 से बिजली का उत्पादन भी होने लगेगा. 

भारत और भूटान- दोनों देश व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नया इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट खोलने की संभावना को तलाश रहे हैं. चूंकि भूटान का लक्ष्य नेपाल, बांग्लादेश और थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने का है, ऐसे में ये परियोजनाएं दक्षिण एशिया के बाकी देशों और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भूटान के व्यापार और संपर्क को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण होंगी.

इसके अलावा भूटान इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी ध्यान दे रहा है. भूटान गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी प्रोजेक्ट बनाने जा रहा है. 1,000 वर्ग किमी. में फैला ये विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (SAR) भारत के असम की सीमा पर स्थित होगा. इसके अलावा सरकार का लक्ष्य नए SEZ, निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र (एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग ज़ोन), स्वायत्त आर्थिक क्षेत्र (ऑटोनोमस इकोनॉमिक ज़ोन) और औद्योगिक बस्ती (इंडस्ट्रियल एस्टेट) बनाने का है. साथ ही पांच ड्राई पोर्ट संचालित करने और पूर्व एवं दक्षिण भूटान में हवाई अड्डे और दक्षिण भूटान में कैसिनो बनाने की व्यावहारिकता की जांच करने का लक्ष्य भी है. इन कदमों से FDI आकर्षित होने, व्यापार एवं आर्थिक विकास में तेज़ी और टूरिज़्म को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. 

भूटान की इन परियोजनाओं की सफलता भारत के साथ कनेक्टिविटी पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर है. मिसाल के तौर पर, गेलेफू और कोकराझार को जोड़ने वाला रेल लिंक गेलेफू सिटी प्रोजेक्ट के लिए अहम होगा लेकिन भूटान को भारत के साथ रेल, सड़क और हवाई संपर्क के लिए और भी ज़ोर लगाने की ज़रूरत होगी. समत्से और बानरहाट के बीच एक नए रेल लिंक को लेकर बातचीत जारी है. भारत और भूटान- दोनों देश व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नया इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट खोलने की संभावना को तलाश रहे हैं. चूंकि भूटान का लक्ष्य नेपाल, बांग्लादेश और थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने का है, ऐसे में ये परियोजनाएं दक्षिण एशिया के बाकी देशों और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भूटान के व्यापार और संपर्क को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण होंगी. नई सरकार ने छह सीमावर्ती शहरों का भी प्रस्ताव दिया है जो भारत और दूसरे देशों से आने वाले सैलानियों के लिए एंट्री और एग्ज़िट प्वाइंट के तौर पर काम कर सकते हैं. इस तरह भूटान हर साल 3,00,000 पर्यटकों को आकर्षित करने के अपने लक्ष्य को पूरा कर सकता है. इसके अलावा भूटान और ज़्यादा भारतीय निवेश आकर्षित करना चाहता है. मौजूदा समय में 57 प्रतिशत FDI भारत से आता है. 2023 में भूटान के राजा ने अपने देश में निवेश को बढ़ावा देने के लिए भारत की प्रमुख कारोबारी हस्तियों से मुलाकात की थी.

गेलेफू प्रोजेक्ट के बारे में बताते हुए भूटान के पत्रकार तेनज़िंग लामसांग ने X पर ये कहते हुए पोस्ट किया कि “ये परियोजना भारत पर भूटान के भरोसे की गवाही देती है.” भूटान की 13वीं योजना और नई सरकार की शानदार पहलों के लिए भी ये बात सही है. वैसे तो चीन के साथ सीमा को लेकर भूटान की बातचीत में नए प्रशासन की वजह से जहां बड़ा अंतर नहीं आएगा वहीं इससे भारत के साथ गहरे आर्थिक सहयोग और एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा. ये उम्मीद है कि मज़बूत और तेज़ एकीकरण भूटान की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकता है और युवाओं को देश छोड़ने से रोक सकता है. 

आदित्य गोदारा शिवामूर्ति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.

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