Author : Anirban Sarma

Published on Jun 17, 2022 Updated 0 Hours ago

ये समझ से परे है कि बीबीएनएल- बीएसएनएल के विलय से गांवों तक ब्रॉडबैंड सुविधा पहुंचाने की कोशिशों को आख़िर किस तरह ताक़त मिलेगी.

BBNL-BSNL का विलय: एक लड़खड़ाती संस्था के पत्थर से टकराने जैसा है

अप्रैल 2022 में ऐलान  किया गया कि भारत में ग्रामीण इलाक़ों को ब्रॉडबैंड सेवा उपलब्ध कराने की अग्रणी संस्था: भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (BBNL) का राष्ट्रीय दूरसंचार सेवा कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) में विलय किया जाएगा. भारत नेट को ख़ास तौर से गांवों तक ब्रॉडबैंड सेवा पहुंचाने के लिए गठित किया गया था.

इस विलय के पक्ष में तीन मोटे तर्क दिए गए हैं, जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. पहला, भारतनेट द्वारा अपने लक्ष्य पूरे करने में बार-बार नाकाम रहने से देश के 250,000 ग्राम पंचायतों तक तेज़ गति वाली ब्रॉडबैंड सेवा पहुंचाने की रफ़्तार बहुत धीमी हो गई है. दूसरा, परियोजना में बार-बार देरी होने के कारण इसकी लागत भी बेतहाशा बढ़ गई है. मिसाल के तौर पर एक किलोमीटर लंबी ऑप्टिकल फाइबर केबल (OFC) बिछाने की लागत, 2020-21 से 2021-22 के बीच दोगुनी हो गई और इस परियोजना की कुल लागत 20,100 करोड़ से तीन गुना बढ़कर 61,100 करोड़ पहुंच गई. तीसरा, बीएसएनएल और बीबीएनएल के विलय से दोनों कंपनियों में तालमेल बढ़ेगा, जिससे इस परियोजना के लिए समन्वय में इज़ाफ़ा होगा, लागत नहीं बढ़ेगी और तय किए गए लक्ष्य हासिल करने की रफ़्तार तेज़ होगी.

अब तक का सफ़र

सरकार द्वारा तय किए गए लक्ष्य हासिल करने को लेकर भारतनेट का जो नज़रिया रहा है, वो उस कहावत को सही साबित करता है कि जो जितनी जल्दी पिछड़ता है, उसे फिर लक्ष्य हासिल करने में उतनी ही देर लग जाती है. इस परियोजना की शुरुआत साल 2011 में नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (NOFN) के तौर पर हुई थी. लेकिन, साल 2011 से 2014 के दौरान इसमें कोई ख़ास प्रगति नहीं हो पाई. 2014 में मौजूदा सरकार को ये परियोजना विरासत में मिली थी. उसने 2015 में इसका नाम बदलकर भारतनेट किया और देश की ढाई लाख ग्राम पंचायतों तक हाई स्पीड ब्रॉडबैंड सेवा पहुंचाने का लक्ष्य हासिल करने की मियाद साल 2018 तय की. कार्य योजना में आने वाली बाधाओं और इसे लागू करने में गड़बड़ियों के चलते जल्दी ही ये साफ़ हो गया कि 2018 तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने का लक्ष्य हासिल करना असंभव होगा. फिर अलग अलग समय पर इस लक्ष्य में बदलाव किए गए. पहले 2020 और फिर 2021 तक ये काम पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया. राष्ट्रीय डिजिटल दूरसंचार नीति में ये कल्पना की गई कि वर्ष 2020 तक देश की ग्राम पंचायतों को 1 Gbps की स्पीड वाली ब्रॉडबैंड सेवा पहुंचा दी जाएगी, जिसे साल 2022 तक बढ़ाकर 10 Gbps किया जाएगा. हालांकि, एक बार फिर इस मियाद को बढ़ाना पड़ा. पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान  किया कि अगले 1000 दिनों यानी साल 2024 के मध्य तक, देश का हर गांव ऑप्टिकल फाइबर केबल (OFC) से जुड़ जाएगा. हालांकि अब ये सारी योजनाएं पटरी से उतर चुकी हैं और अब कहा जा रहा है कि शायद ये काम 2025 तक पूरा हो जाए और गांवों को ब्रॉडबैंड सेवा हासिल हो जाए.

पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान  किया कि अगले 1000 दिनों यानी साल 2024 के मध्य तक, देश का हर गांव ऑप्टिकल फाइबर केबल (OFC) से जुड़ जाएगा.

अब इस बात पर ज़्यादातर लोगों की राय यही है कि भारतनेट ने इस परियोजना का बहुत ही घटिया प्रबंधन किया है. हाल ही में राज्यसभा में मंत्री द्वारा दिए गए बयान में कहा गया था कि मार्च 2022 तक देश के केवल 27 प्रतिशत गांवों तक ही ब्रॉडबैंड नेटवर्क की सुविधा पहुंचाई जा सकी थी. यहां पर हमारे लिए कनेक्टिविटी रेशियो या अनुपात (CR) को समझना बहुत अहम है. कनेक्टिविटी रेशियो, (a) किसी राज्य में उन गांवों की संख्या, जहां पर ब्रॉडबैंड की सेवा पहुंच चुकी है, और (b) राज्य के कुल गांवों की संख्या के बीच का अनुपात है. अगर किसी राज्य का कनेक्टिविटी रेशियो 20 प्रतिशत है, तो इसका मतलब ये है कि उस राज्य विशेष के हर 100 में से 20 गांवों तक ब्रॉडबैंड की सेवा पहुंच चुकी है. भारत के 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल दो, पंजाब और चंडीगढ़ ही ऐसे हैं जहां पर कनेक्टिविटी रेशियो (CR) 90 प्रतिशत है. आठ अन्य राज्यों का कनेक्टिविटी अनुपात 60 फ़ीसद के आस-पास है. वहीं हिमाचल इस पायदान में सबसे नीचे है, जिसका कनेक्टिविटी अनुपात महज़ 2.1 फ़ीसद है.

भारत के एक तिहाई से भी कम गांव ब्रॉडबैंड सुविधा वाले हैं

 स्त्रोत – राज्यसभा, बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा विश्लेषण

इससे भी ख़राब बात तो ये है कि जिन गांवों तक ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाई जा चुकी है उनके और जिन गांवों में ब्रॉडबैंड सेवा शुरू हो चुकी है, और वो इसकी नियमित सेवा का लाभ उठा रहे हैं, उनके बीच बहुत बड़ा फ़ासला बना हुआ है. ये कमी, तब से बनी हुई है जब भारतनेट सेवा के तहत पहली लाइनें बिछाई गई थीं. महामारी के दौरान ये अंतर तो और भी बढ़ गया. हालांकि साल 2020 के आख़िरी महीनों से ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने और कनेक्टिविटी देने, दोनों की दर में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है.

पूरे देश के गांवों और ग्राम पंचायतों में भारत नेट की सेवा की गुणवत्ता (QoS) भी बहुत ख़राब रही है. गांव के अधिकारी अक्सर ये शिकायत करते हैं कि लाइन में गड़बड़ी आ गई है. इंटरनेट सेवा नहीं चल रही है. वो ये भी कहते हैं कि जब इन गड़बड़ियों की शिकायत की जाती है, तो मरम्मत करने के लिए सुनवाई तक नहीं होती. सेवा की गुणवत्ता इन मसलों का ज़िक्र 2021 की CAG रिपोर्ट में भी किया गया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतनेट की सेवाएं लागू करने के लिए जो समझौते हुए थे, उनमें ये व्यवस्था ही नहीं थी कि जो कंपनियां ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछा रही हैं, उन्हें इसके रख-रखाव का भी ज़िम्मा उठाना होगा. राज्य सरकारों और परियोजना के अधिकारियों द्वारा भारतनेट के केंद्रीय प्रशासकों से बात करके इन मसलों को सुलझाने की कोशिशों का भी कोई ख़ास नतीजा नहीं निकल सका है. इसकी वजह से गांवों को ब्रॉडबैंड सेवा देने की योजना खंड-खंड हो गई है. अब कई राज्यों ने तो ख़ुद से ही इस परियोजना को गांवों तक पहुंचाने के लिए अलग संस्थाएं बना ली हैं.

क्या विलय से मदद मिलेगी?

अभी ये साफ़ नहीं है कि बीबीएनएल और बीएसएनएल का विलय आख़िर किस तरह से ग्रामीण क्षेत्र में ब्रॉडबैंड पहुंचाने की चुनौती का समाधान बनेगा. बीएसएनल ख़ुद पिछले पांच साल से भयंकर घाटे में चल रहा है. यही नहीं, उसने फ़ैसले लेने में ढिलाई और लाल-फीताशाही में काफ़ी बदनामी भी कमा ली है. ये सरकारी दूरसंचार कंपनी इस वक़्त ख़ुद में नई जान डालने के लिए सरकार से 44,720 करोड़ की पूंजी हासिल कर रही है, जिससे वो दोबारा अपने पैरों पर खड़ी हो सके. नई तकनीक हासिल कर सके और अंदरूनी तौर पर पुनर्गठन कर सके और 4G स्पेक्ट्र के आवंटन में मददगार बन सके.

अभी ये साफ़ नहीं है कि बीबीएनएल और बीएसएनएल का विलय आख़िर किस तरह से ग्रामीण क्षेत्र में ब्रॉडबैंड पहुंचाने की चुनौती का समाधान बनेगा. बीएसएनल ख़ुद पिछले पांच साल से भयंकर घाटे में चल रहा है.

बीबीएनएल और बीएसएनएल ने पहले भी साथ काम किया है और इसके नतीजों को देखें, तो विलय का फ़ैसला कोई उम्मीद नहीं जगाता है. ब्लॉक, पंचायत और गांवों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी पहुंचाने और बैंडविड्थ के लिए बीबीएनएल , पूरी तरह से बीएसएनएल के भरोसे है. लेकिन, अक्सर यही होते देखा गया है कि बीएसएनएल अपने वादे पूरे करने में नाकाम रही है. पिछले कई साल से बीबीएनएल  ने अपना काम बीएसएनएल को देना बंद कर दिया है. इसकी बड़ी वजह यही रही है कि बीएसएनएल अक्सर, बीबीएनएल से उसके काम के लिए जो पैसे लेती है, उसका इस्तेमाल ठीक से नहीं किया जाता. कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि बीबीएनएल के प्रोजेक्ट के लिए मिली रक़म को बीएसएनएल ने दूसरे काम में ख़र्च कर डाला. बीबीएनएल ने तो 120,000 पंचायतों में ऑप्टिकल फाइबर केबल के रख-रखाव का जो ठेका पहले बीएसएनल को दिया था, उसे ‘वापस लेकर’ किसी और एजेंसी को देना पड़ा. BBNL और BSNL के बीच इस असहज और कई बार पूरी तरह नाकाम रिश्ते वाले तजुर्बे को देखते हुए, इस बात की कल्पना करना मुश्किल हो जाता है कि आख़िर बीएसएनल किस तरह बीबीएनएल की सारी ज़िम्मेदारियां अपने सिर पर ले कर, पहले से बिछाई जा चुकी ऑप्टिकल फाइबर केबल के नेटवर्क को चलाने, उनके उपयोग और रख-रखाव का काम किस तरह से कर पाएगी.

इस विलय से बीएसएनएल जो शायद इकलौता फ़ायदा भारतनेट परियोजना को दे पाएगी वो ये है कि बीएसएनएल के पास पहले से ही लगभग बीस लाख फाइबर टू द होम (FTTH) कनेक्शन हैं और इनमें हर महीने दस हज़ार का इज़ाफ़ा हो रहा है. फिक्स्ड लाइन के ये बढ़ते कनेक्शन आगे चलकर बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं. दूसरे मामलों में बीएसएनएल, बीबीएनएल के काम में मदद की क्षमता दिखा पाने में पूरी तरह नाकाम रही है. अब ऐसा लगता है कि बीबीएनएल की कई कमज़ोरियां और परियोजना में देरी की बड़ी वजह बीएसएनएल का नाकारापन रही थी.

इन हालात में कोई भी यही मानेगा कि बीएसएनएल और बीबीएनएल का विलय कहीं लड़खड़ाती सेवा के अचल पत्थर से टकराने की मिसाल न साबित हो. भारतनेट परियोजना को सरकारी क्षेत्र से साझेदारी के साथ लागू करने की कमियां हमें कई साल से दिख रही हैं. लेकिन, जुलाई 2021 में जाकर बीबीएनएल ने आख़िरकार निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की साझेदारी (PPP) वाला एक टेंडर जारी किया था और निजी क्षेत्र के संभावित साझीदारों से बातचीत शुरू की थी. निजी क्षेत्र की प्रतिक्रिया बहुत सधी हुई रही थी. कंपनियों को इस परियोजना की कमियों की बख़ूबी जानकारी थी. उन्हें ये भी पता था कि PPP की शर्तों के तहत अगले 30 सालों के लिए 16 राज्यों में भारतनेट को चलाने, उसे अपग्रेड करने और रख-रखाव की ज़िम्मेदारी दिया जाना, उनके लिए पर्याप्त प्रोत्साहन के बग़ैर एक विशाल जहाज़ को चलाने की ज़िम्मेदारी मिलने जैसा होगा. ऐसे में हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इस टेंडर को लेने निजी क्षेत्र की कोई कंपनी आगे नहीं आई और फरवरी 2020 में इसे रद्द करना पड़ा था.

निजी क्षेत्र के दिलचस्पी न लेने का सीधा सा मतलब है कि उसे भारतनेट परियोजना में कोई यक़ीन नहीं है. अब सरकार 2022 के आख़िरी महीनों में एक संशोधित पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) का टेंडर जारी करने के बारे में विचार कर रही है. लेकिन, अगर नई योजना पिछली से बिल्कुल अलग नहीं होगी, तो इस बात का भरोसा करने की कोई वजह नहीं बनती कि इस टेंडर को लेकर निजी क्षेत्र की कोई अलग प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी.

निष्कर्ष

भारतनेट का देश की 250,000 लाख पंचायतों और 6 लाख गांवों को हाई स्पीड ब्रॉडबैंड सेवा से जोड़ने का लक्ष्य, केंद्र सरकार के उस नज़रिए का अहम हिस्सा है, जिसके तहत वो भारत को दुनिया में ब्रॉडबैंड से जुड़े सबसे बड़ा देश बनाता चाहती है, और ‘अगले दो साल में 1.5 अरब भारतीयों को इंटरनेट से जोड़ना’ चाहती है.

2022 का केंद्रीय बजट पेश करते समय वित्त मंत्री ने कहा था कि यूनिवर्सल सर्विसेज़ ऑब्लिगेशन फंड (USOF) के तहत जुटाई गई रक़म का पांच फ़ीसद हिस्सा पूरे ग्रामीण भारत में ब्रॉडबैंड और मोबाइल सेवाओं के विस्तार में इस्तेमाल किया जाएगा और भारतनेट के तहत, ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का काम 2022-23 में भी पूरी रफ़्तार से चलता रहेगा.

इस परियोजना को मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता हासिल है. प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा है कि ‘आज ग्रामीण क्षेत्र की डिजिटल कनेक्टिविटी एक आकांक्षा भर नहीं, बल्कि ज़रूरत बन गई है.’ इसके अलावा 2022 का केंद्रीय बजट पेश करते समय वित्त मंत्री ने कहा था कि यूनिवर्सल सर्विसेज़ ऑब्लिगेशन फंड (USOF) के तहत जुटाई गई रक़म का पांच फ़ीसद हिस्सा पूरे ग्रामीण भारत में ब्रॉडबैंड और मोबाइल सेवाओं के विस्तार में इस्तेमाल किया जाएगा और भारतनेट के तहत, ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का काम 2022-23 में भी पूरी रफ़्तार से चलता रहेगा.

लेकिन, इस परियोजना को ज़मीनी तौर पर लागू करना हमेशा से चुनौती भरा रहा है. ऐसे में बुनियादी सवाल यही है कि क्या बीबीएनएल-बीएसएनएल का विलय, भारतनेट को वैसी फुर्तीली और तेज़ रफ़्तार परियोजना बना पाएगा, जिसकी दरकार है. दोनों ही कंपनियों का हालिया प्रदर्शन, फिर चाहे दोनों के साथ काम करने का हो या फिर अलग अलग, वो अपेक्षा से कमतर ही रहा है. और इसी दौरान, भारतनेट के पीछे की नेकनीयती के बावजूद, आज ये परियोजना नाकारेपन, घटिया गुणवत्तावाली और कभी समय पर लक्ष्य न हासिल करने की मिसाल बन चुकी है. जब तक विलय के बाद इन समस्याओं का समाधान नहीं खोज लिया जाता, तब तक देश के सभी नागरिकों तक ब्रॉडबैंड सेवा पहुंचाने का लक्ष्य असंभव बना रहेगा और भारत की विकास गाथा का एक अध्याय अधूरा ही रहेगा.

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