एक अवलोकन
पिछले दशक में अपने विशेष ‘गरीबी में कमी लाने वाले मॉडल’ के साथ बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने का बेहतरीन उदाहरण है. 1971 में मुक्ति के वक़्त बांग्लादेश, दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक था. लेकिन 1990 के आरंभिक वर्षो में बड़े पैमाने पर कारोबार अर्थात व्यापार उदारीकरण के बाद 2000 के दौरान हुए उच्च आर्थिक विकास ने बांग्लादेश को गरीबी से निपटने में सहायता प्रदान की. 1991 में वहां गरीबी 43.5 प्रतिशत थी, जो घटकर (अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा पर आधारित, 2011 क्रय शक्ति समता विनिमय दर का उपयोग करते हुए प्रति दिन यूएस अमेरिकी डॉलर 1.90 के हिसाब से) 2016 में 14.3 प्रतिशत हो गई. इसके बावजूद, 1980 के दशक से बांग्लादेश में आर्थिक असमानता बढ़ी है. 2021 के आंकड़ों के अनुसार उसकी राष्ट्रीय आय के 16.3 प्रतिशत हिस्से पर केवल एक प्रतिशत आबादी का ही कब्ज़ा है. बांग्लादेश ने 2015 तक एक निम्न-आय वाले देश से निम्न-मध्यम-आय वाला देश बनने तक का सफ़र तय कर लिया है, जबकि 2026 तक वह इसे कम से कम विकसित देशों की सूची में शामिल करने की राह पर चलते हुए 2041 तक एक विकसित देश बनने के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है.
बांग्लादेश ने 2015 तक एक निम्न-आय वाले देश से निम्न-मध्यम-आय वाला देश बनने तक का सफ़र तय कर लिया है, जबकि 2026 तक वह इसे कम से कम विकसित देशों की सूची में शामिल करने की राह पर चलते हुए 2041 तक एक विकसित देश बनने के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है.
फिगर 1: बांग्लादेश का गरीबी अनुपात प्रति दिन 1.90 अमेरिकी डॉलर (2011 पीपीपी) (2000-2016)
स्त्रोत : लेखक का अपना. विश्व बैंक के गरीबी की संख्या का अनुपात संबंधी आंकड़े.
प्रभावी जनसांख्यिकीय लाभांश और बांग्लादेश की आर्थिक प्रगति के प्रमुख चालकों में से एक प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार जैसे पर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों के अलावा श्रम प्रधान कपड़ा और रेडी-मेड गारमेंट्स (आरएमजी) देश के प्रमुख उद्योगों में शामिल हैं. इस उद्योग ने न केवल घरेलू रोजगार में वृद्धि की है, बल्कि देश के निर्यातोन्मुखी औद्योगीकरण का मार्ग भी प्रशस्त किया है. इसhttps://www.undp.org/bangladesh/blog/digital-bangladesh-innovative-bangladesh-road-2041
के साथ ही विदेशी प्रेषण के अलावा कृषि और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र ने भी बांग्लादेश के उत्थान में बड़ी भूमिका निभाई है. ‘डिजिटल बांग्लादेश’ जैसी पहलों के माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) को बढ़ावा देने की दिशा में उठाए गए मौजूदा कदमों से तकनीकी नवाचारों, कौशल और मानव पूंजी के मामले में एक नई उम्मीद दिखाई देती है. इसके चलते लंबी अवधि में ग्रोथ ट्रजेक्टरी अर्थात विकास प्रक्षेपवक्र को गति मिल रही है. ऐतिहासिक रूप से दोस्ताना संबंधों वाले पड़ोसी देशों ने सितंबर 2022 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत की हालिया यात्रा के दौरान, रेलवे, अंतरिक्ष, जल साझाकरण, न्यायपालिका और विज्ञान से संबंधित सात समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर भी किए हैं.
हालांकि, बांग्लादेश का भूगोल उसे लगातार चक्रवात और बाढ़ के साथ जलवायु परिवर्तन को लेकर सबसे अधिक संवेदनशील देशों में से एक बनाता हैं. यह बात उनकी घरेलू अर्थव्यवस्था के साथ ही ग्रामीण से शहरी प्रवास के तरीकों पर कल्पना से परे दबाव डालने वाला साबित होती है. एक अनुमान के अनुसार हाल के ही वर्षो में ग्रामीण इलाकों में नदी किनारे रहने वाले 50 प्रतिशत लोगों को वहां आने वाली बाढ़ के कारण पलायन करते हुए कम जीवन स्तर वाले अर्बन स्लम अर्थात शहरी झोपड़ियों में रहने पर मजबूर होना पड़ा है. इसके अलावा मई 2020 में, जब कोविड-19 महामारी अपने आरंभिक चरण में थी, तो बांग्लादेश को उसके इतिहास के सबसे शक्तिशाली चक्रवात अम्फान का सामना करना पड़ा था. चक्रवात अम्फान की वजह से भारत में पश्चिम बंगाल और ओड़िशा जैसे राज्यों के बड़े हिस्से भी तबाह हो गए थे. इस चक्रवात ने बांग्लादेश के नौ जिलों में दस लाख से अधिक लोगों की जिंदगी को प्रभावित करते हुए वहां की सड़कों और पुलों जैसे भौतिक बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचाया था. एक अनुमान के अनुसार इसकी वजह से अकेले बांग्लादेश को 130 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था.
बांग्लादेश ने 2015 तक एक निम्न-आय वाले देश से निम्न-मध्यम-आय वाला देश बनने तक का सफ़र तय कर लिया है, जबकि 2026 तक वह इसे कम से कम विकसित देशों की सूची में शामिल करने की राह पर चलते हुए 2041 तक एक विकसित देश बनने के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है.
इसके अतिरिक्त, कोविड-19 महामारी ने न केवल बांग्लादेश, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र को बुरी तरह से प्रभावित किया है. वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (जीवीसी) के परस्पर जुड़ाव के साथ-साथ क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के राजनीतिक आधारों को देखते हुए हाल में बांग्लादेश के आर्थिक संकटों के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण बना लेना सुसंगत नहीं होगा. एक ओर जहां श्रीलंका ईंधन और खाद्यान्न जैसी मूलभूत चीजों की कमी के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, वहीं पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता, बढ़ती मुद्रास्फीती और विदेशी मुद्रा भंडार में निरंतर हो रही गिरावट के कारण बेहद खस्ता आर्थिक स्थिति देखी जा रही है. नेपाल को भी उसके बैंकिंग क्षेत्र में तरलता के संकट, सुस्त विदेशी प्रेषण और बढ़ते व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है, जबकि म्यांमार ने भी 2021 की शुरुआत में सैन्य तख्तापलट के बाद आर्थिक गतिविधियों में जबरदस्त संकुचन के कारण बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी देखी है. अभी दुनिया महामारी से उपजे मैक्रोइकॉनॉमिक प्रभावों को काबू में करने की तैयारी में जुटी ही थी कि उसे रूस और यूक्रेन के संकट ने एक नई चिंता में डाल दिया. यह चिंता गैस और तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर है. इस चिंता ने बांग्लादेश सहित ग्लोबल साउथ अर्थात वैश्विक दक्षिण के सामने पहले से मौजूद गंभीर खाद्य सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाने का ही काम किया है.
आईएमएफ पैकेज और अन्य वित्तीय सहायता
श्रीलंका और पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से क्रमश: 2.9 बिलियन और 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बेलआउट अर्थात राहत पैकेज मांगा है. अब बांग्लादेश भी आईएमएफ से लगभग 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बेलआउट पैकेज का अनुरोध करते हुए राहत पैकेज मांगने वाले दक्षिण एशियाई देशों की सूची में जुड़ गया है. नवंबर 2022 तक बांग्लादेश को पैकेज देने के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने पर सहमत विश्व बैंक हो गया है. यह राशि उसे दिसंबर 2026 तक सात किश्तों में वितरित की जाएगी. वहां की सरकार ने एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) से भी जून 2023 तक 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण मांगा है. इसके अलावा वह जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) तथा एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) के साथ भी वित्तीय सहायता हासिल करने को लेकर बातचीत कर रही है. मार्च 2022 तक, बांग्लादेश के कुल द्विपक्षीय ऋणदाताओं में 45 प्रतिशत ऋण देकर जापान सर्वोच्च स्थान पर है.
फिगर 2 : बांग्लादेश के द्विपक्षीय ऋण का अनुपात (31 मार्च, 2022 तक)
स्त्रोत : लेखक का अपना. बांग्लादेश के वित्त मंत्रालय से मिली जानकारी पर आधारित.
सरकार ने आर्थिक विकास में सुधार के लिए विभिन्न अल्पकालिक उपाय किए हैं. लेकिन विभिन्न बहुपक्षीय संस्थानों से ऋण मांगने का फैसला उसे एक कदम पीछे हटते हुए बहु-आयामी सुधार कार्यक्रमों की सहायता से देश की विकास रणनीति को लेकर पुनर्विचार करने का मौका प्रदान करता है. इस तरह की वित्तीय सहायता हासिल करने की कोशिशों को भले ही एहतियाती उपाय बताया गया हो, लेकिन वर्तमान आर्थिक स्थिति की जड़ें अर्थव्यवस्था की अंतनिर्हित संरचना और यह कैसे कार्य कर रही है इस बात से ही जुड़ी हुई है. लगातार चालू और राजकोषीय खाते का घाटा, रीमिटन्स अर्थात प्रेषण में कमी, विनिर्माण क्षेत्र में विविधीकरण की कमी, घटता विदेशी मुद्रा भंडार, मुद्रास्फीति का उच्च स्तर, गैर-समावेशी विकासात्मक पैटर्न आदि एक आसन्न ऊर्जा संकट के साथ मिलकर आगे बढ़ने की कोशिश में जुटे देश के भविष्य के प्रक्षेपवक्र को परेशान कर रहे हैं. इन सबके बावजूद बांग्लादेश ने कोविड-19 के दौरान 2020 में 3.4 प्रतिशत की सकारात्मक विकास दर हासिल की थी. इसी अवधि में भारत समेत अधिकांश अन्य विकासशील देशों में विकास दर नकारात्मक रही थी. दरअसल, वित्तीय वर्ष 2021-22 में उसका 2503 अमेरिकी डॉलर का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), दक्षिण एशियाई औसत 2176 अमेरिकी डॉलर से काफी आगे रहा था.
आने वाले दशकों में बांग्लादेश की विकास की कहानी को निर्धारित करने वाले खतरे के निशानों और मजबूत बिंदुओं पर गंभीरता से विचार करना महत्वपूर्ण साबित होगा.
यह कहना बेमानी ही होगा कि आईएमएफ समेत अन्य बहुपक्षीय एजेंसी से मिलने वाला ऋण कड़ी शर्तो के साथ दिया जाता है. कर्ज लेने वाले देश के लिए इन शर्तो पर अमल करना बाद में मुश्किल ही साबित होता है. यह भी सच ही है कि बहुपक्षीय संगठन से मिलने वाले बेलआउट पैकेज अर्थात राहत पैकेज का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमता के बगैर बेलआउट की बढ़ती मांग न केवल देश की व्यापक आर्थिक स्थिरता को बाधित करेगी, बल्कि यह अन्य बाहरी लेनदारों की नज़रों में देश की छवि को भी प्रभावित करेगी. यह बात इस क्षेत्र और उससे आगे देश की आर्थिक साझेदारी को भी प्रभावित करती है. ऐसे में आने वाले दशकों में बांग्लादेश की विकास की कहानी को निर्धारित करने वाले खतरे के निशानों और मजबूत बिंदुओं पर गंभीरता से विचार करना महत्वपूर्ण साबित होगा.
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