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1971 से ही अमेरिका के साथ बांग्लादेश के रिश्ते बहुत अच्छे रहे हैं. अमेरिका, बांग्लादेश को सबसे पहले स्वतंत्र राष्ट्र के रूप मान्यता देने वाले देशों में से एक था. उसके बाद से ही दोनों देशों के संबंध मज़बूती से आगे बढ़ते रहे हैं. 2022 में दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों की स्वर्ण जयंती मनाई गई थी. इस समय अमेरिका, बांग्लादेश का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है; उसके बने बनाए कपड़ों (RMG) का सबसे बड़ा बाज़ार है; प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सबसे बड़ा स्रोत है; और, बांग्लादेश के ऊर्जा क्षेत्र में अमेरिका सबसे बड़ा निवेशक है. बांग्लादेश में अमेरिका की एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट प्रोग्राम, एशिया में सबसे बड़ी है और इसके तहत खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य के दुनिया के सबसे अहम कार्यक्रम चलाए जाते हैं. ‘रोहिंग्या संकट के कारण अमेरिका, बांग्लादेश को विशाल मानवीय मदद देने वाले देशों में से एक’ है. ज़ाहिर है कि अमेरिका को लेकर बांग्लादेश के नागरिकों की राय बहुत अच्छी है. महामारी के दौरान इसमें तब और बढ़ोत्तरी हो गई, जब अमेरिका ने बांग्लादेश को कोरोना के 10 करोड़ से ज़्यादा टीके दिए थे. इससे बांग्लादेश के टीकाकरण अभियान को काफ़ी मदद मिली थी. हालांकि, हाल के वर्षों में दोनों देशों के सौहार्दपूर्ण रिश्तों में दरार आती दिख रही है, क्योंकि अमेरिका, बांग्लादेश के घरेलू राजनीतिक- सामाजिक मंज़र से नाख़ुश है.
अमेरिका और बांग्लादेश के रिश्तों में दरार की जड़, बांग्लादेश में मानव अधिकारों और लोकतंत्र के हालात को लेकर अमेरिका की असंतुष्टि है. बांग्लादेश के हालात को लेकर अपने नज़रिए के आधार पर 2021 में अमेरिका की सरकार ने बांग्लादेश की ‘रैपिड एक्शन बटालियन’ के सात पूर्व और मौजूदा उच्च स्तरीय अधिकारियों पर पाबंदी लगा दी थी. इन अधिकारियों पर मानव अधिकारों के उल्लंघन के आरोप हैं. रैपिड एक्शन बटालियन बांग्लादेश की पुलिस की अपराध/ आतंकवाद निरोधक शाखा है.
2022 में बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर हास ने संदिग्ध रूप से अगवा किए गए लोगों के परिजनों से मुलाक़ात की थी. इनमें बांग्लादेश के मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के नेता सजेदुल इस्लाम सुमोन का परिवार भी था. अमेरिका के राजदूत ने बांग्लादेश में मानव अधिकारों के हालत की आलोचना की थी और कहा था कि बांग्लादेश की पहचान बन चुकी राजनीतिक हिंसा के माहौल में ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव’ कराना मुश्किल होगा. पीटर हास ने कहा था कि चुनाव की कवरेज करने वाले मीडिया को किसी भी तरह के उत्पीड़न से बचाकर रखना होगा. जब उनसे सवाल किया गया कि अमेरिका, बांग्लादेश के घरेलू मामलों में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है, तो अमेरिका राजदूत ने कहा कि बाइडेन प्रशासन की विदेश नीति का ज़ोर मुख्य रूप से लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर है.
अमेरिका के प्रतिबंध लगाने की तल्ख़ सच्चाई बांग्लादेश की आंखें खोलने वाली थी, क्योंकि वो हमेशा से अमेरिका का भरोसेमंद साथी रहा है. इसीलिए, बांग्लादेश ने अमेरिका को ये विश्वास दिलाने की कोशिश की कि कुछ निहित हितों वाले समूह, बांग्लादेश के हालात की ग़लत व्याख्या कर रहे हैं और बांग्लादेश की सरकार आलोचना को सकारात्मक सुझाव मानती है. इसके बाद, बांग्लादेश ने अपने यहां मानव अधिकारों के हालात की निगरानी के लिए, संयुक्त राष्ट्र के तहत एक मानव अधिकार प्रकोष्ठ स्थापित किया; 2021-2022 के दौरान बांग्लादेश ने अमेरिका के साथ कूटनीतिक संवाद और सरकारी दौरों में भी इज़ाफ़ा किया; यूक्रेन संघर्ष को लेकर निरपेक्ष नज़रिया अपनाया; और, अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को लागू भी किया. 2022 में अमेरिका के साथ सुरक्षा संवाद के दौरान बांग्लादेश ने लोकतंत्र और मानवाधिकारों को लेकर अपनी स्थिति और स्पष्ट की. इसके अलावा, जनवरी 2023 में बांग्लादेश के रूपपुर स्थित एटमी बिजली घर के लिए सामान लेकर आ रहे रूसी जहाज़ उर्सा मेजर को मोंगला पोर्ट पर लंगर नहीं डालने दिया गया, क्योंकि वो जहाज़ अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में आता था.
वैसे तो अमेरिका ने बांग्लादेश के इन क़दमों की सराहना की, लेकिन उसकी निंदा करने का सिलसिला भी जारी रहा. फ़रवरी 2023 में एक बार फिर, अमेरिका के विदेश विभाग के सलाहकार डेरेक शोलेट ने बांग्लादेश में लोकतंत्र की गिरावट पर चिंता जताई, और चेतावनी दी कि इससे अमेरिका का सहयोग सीमित हो जाएगा. उसी महीने में बांग्लादेश को एक बार फिर राष्ट्रपति बाइडेन के लोकतंत्र के शिखर सम्मेलन से अलग रखा गया. दिसंबर 2021 में पहले डेमोक्रेसी समिट के बाद ये दूसरा मौक़ा था, जब बांग्लादेश को इस सम्मेलन से दूर रखा गया था. इसी साल, बांग्लादेश के अपना 46वां स्वतंत्रता दिवस मनाने से कुछ दिनों पहले ही 21 मार्च को जब अमेरिका के राष्ट्रपति जोसेफ बाइडेन ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री को शुभकामनाएं देने वाली चिट्ठी भेजी, तो उसमें भी बांग्लादेश से मानव अधिकारों और लोकतंत्र को बनाए रखने की बात कही गई थी. इस चिट्ठी में लिखा था कि: ‘आज जब बांग्लादेश अपने अगले चुनाव की ओर बढ़ रहा है, तो मुझे याद आ रहा है कि हमारे दोनों देशों की जनता लोकतंत्र. समानता, मानव अधिकारों के सम्मान और निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनावों को कितनी अहमियत देती है.’
मेल-मिलाप बढ़ाने के बांग्लादेश के प्रयासों के बावजूद, जब अमेरिका की तरफ़ से आलोचना का दौर जारी रहा, तो प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने अमेरिका की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि लोकतंत्र और मानवाधिकारों को लेकर ख़ुद अमेरिका का रिकॉर्ड बेहद ख़राब रहा है. शेख़ हसीना ने कहा कि, ‘अमेरिका में देखा जाता है कि हर रोज़ लोग हथियार लेकर स्कूलों में दाख़िल होते हैं और छात्रों और अध्यापकों को गोली मार देते हैं. हथियारबंद लोग शॉपिंग मॉल्स और क्लब में घुसकर वहां भी गोलीबारी करते हैं.’ लोकतंत्र के मसले पर उन्होंने कहा कि, ‘मैं कहूंगी कि आज भी वो अपने बयानों से हमारे सामने लोकतंत्र का ढोंग करते हैं. कुछ लोग हमारे विपक्षी दलों के बयान सुनकर नाचने और शोर मचाने लगते हैं.’ शेख़ हसीना ने अमेरिका पर सत्ता परिवर्तन की कोशिश करने का आरोप लगाया और कहा कि, ‘वो यहां लोकतंत्र को ख़त्म करके ऐसी सरकार बिठाना चाहते हैं, जो लोकतंत्र के आधार पर अस्तित्व में नहीं आई होगी... वो किसी भी देश की सरकार को उखाड़ फेंक सकते हैं. ख़ास तौर से मुस्लिम देशों में. जब तक इस्लामिक देशों पर उनका क़ब्ज़ा रहा, तब तक कुछ नहीं हुआ.’ हाल ही में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने दावा किया कि अमेरिका उनके देश पर बिना किसी सबूत के आरोप लगा रहा है.
साफ़ है कि बांग्लादेश की सरकार अमेरिका द्वारा मानव अधिकारों और लोकतंत्र को ठीक से लागू करने पर ज़ोर देने को विपक्षी दलों के आरोपों से जोड़कर देख रही है. ये सच है कि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) अपनी रैलियों में, अवामी लीग सरकार पर इन मूल्यों से समझौता करने और आने वाले चुनाव में छल-कपट करने के इल्ज़ाम लगा रही है. विपक्ष के दावों में अमेरिका में रह रहे अप्रवासी BNP समर्थकों को भी सच्चाई नज़र आ रही है. यही वजह है कि विश्व बैंक और बांग्लादेश के संबंधों के 50 साल पूरे होने के जश्न में शामिल होने के लिए जब प्रधानमंत्री शेख़ हसीना, 28 अप्रैल को वाशिंगटन डीसी पहुंची थीं, तो व्हाइट हाउस से थोड़ी ही दूरी पर उनके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे. लोगों ने उन पर बांग्लादेश में ‘तानाशाही’ चलाने और ‘आर्थिक कुप्रबंधन’ के इल्ज़ाम लगाए थे. वैसे तो ऐसे इक्का-दुक्का विरोध प्रदर्शन लोगों की सियासी राय और पूर्वाग्रहों पर आधारित होते हैं. लेकिन, इनसे ये साफ़ दिखा कि अमेरिका और बांग्लादेश के रिश्ते काफ़ी तनावपूर्ण हो चुके हैं.
इन मतभेदों के बाद भी, बांग्लादेश अपनी अर्थव्यवस्था और विकास के लिए मोटे तौर पर अमेरिका पर निर्भर है, वो भी पहले से कहीं ज़्यादा क्योंकि आज बांग्लादेश सबसे कम विकसित देश के दर्जे को पीछे छोड़कर, 2026 तक ऊपरी मध्यम आमदनी वाला देश बनने की कामना कर रहा है. इसके साथ साथ, अमेरिकी कंपनियां उनके साझीदार और सहयोगी, बांग्लादेश के बाज़ार में अपना निवेश बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि बांग्लादेश में अमेरिका के निजी क्षेत्र की काफ़ी स्वीकार्यता है. बंगाल की खाड़ी में बांग्लादेश की भू-सामरिक स्थिति और उसकी बढ़ती आर्थिक ताक़त को देखते हुए अमेरिका, उसको अपनी ‘हिंद प्रशांत रणनीति का एक केंद्र बिंदु’ भी मानता है. क्योंकि, बंगाल की खाड़ी, हिंद प्रशांत का अभिन्न अंग है. इसी मक़सद से अमेरिका, बांग्लादेश के साथ इन दो रक्षा समझौतों पर दस्तख़त करना चाहता है: जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इन्फॉर्मेश एग्रीमेंट और एक्विज़िशन क्रॉस सर्विसिंग एग्रीमेंट, जिससे वो हिंद प्रशांत के सुरक्षा ढांचे को और मज़बूत कर सके. इन हालात में, बांग्लादेश और अमेरिका के रिश्तों में बढ़ती दरार से किसी भी देश को फ़ायदा नहीं होगा; इसके बजाय इन तकरारों से साझा सामरिक और आर्थिक आकांक्षाएं पूरी करने में ही बाधा आएगी और अंत में इसके बुरे नतीजों का बोझ दोनों ही देशों को उठाना पड़ेगे.
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Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...
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