भारत एक लोकतांत्रिक देश है. इसीलिए आज़ादी के बाद से तमाम सरकारों ने देश में अनेक स्वास्थ्य योजनाएं लागू की हैं. हालांकि, तमाम सियासी दलों ने सरकारों की इन स्वास्थ्य योजनाओं की लगातार निंदा भी की है. धुर विरोधी सियासी खिलाड़ी अपने विरोधी की योजनाओं की मुख़ालफ़त हमेशा से करते आए हैं. ऐसे में स्वास्थ्य योजनाएं भी इस राजनीति की शिकार होती रही हैं. इस सियासी शोर-शराबे से इतर, आज ये ज़रूरी है कि हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी स्वास्थ्य कल्याण योजना-आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की समीक्षा करें और ये समझें कि ये योजना कितनी कारगर है और क्या ये अपने मक़सद में क़ामयाब हो सकती है?
इस कार्यक्रम के दो मूल स्तंभ हैं. पहला तो है देश भर में स्वास्थ्य कल्याण केंद्र खोलना. इसके तहत देश भर में डेढ़ लाख से ज़्यादा स्वास्थ्य कल्याण केंद्र खोले जाने की प्रक्रिया जारी है. इसके तहत मौजूदा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उप-केंद्रों को स्वास्थ्य कल्याण केंद्रों में तब्दील किया जा रहा है. हर केंद्र का लक्ष्य 3 से 5 हज़ार लोगों को व्यापक बुनियादी स्वास्थ्य सेवा देने का है. आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का दूसरा प्रमुख स्तंभ है सरकार की मदद से सभी लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना. इसे दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य योजना कहा जा रहा है. इस योजना का लक्ष्य 50 करोड़ से ज़्यादा लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना है. लेकिन, इस योजना को लेकर कई विवाद उठ खड़े हुए हैं. आरोप है कि ये देश के सभी लोगों के सुविधा देने वाली योजना नहीं है.
इंस्टीट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक ग्रोथ नाम की संस्था ने इस योजना की स्वतंत्र रूप से समीक्षा की है. इस स्टडी में योजना को लेकर कई शंकाएं ज़ाहिर की गई हैं. कहा जा रहा है कि ये योजना लंबे समय तक चलने वाली नहीं है. हमारे देश में अस्पताल में भर्ती होने का ख़र्च लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का फ़ायदा उठाने के लिए हर परिवार को सालाना 2400 रुपए देने होंगे. फिलहाल ये रक़म केवल 1100 है. इस पैमाने पर देखें कि अगले पांच वर्षों में हमारे देश के सालाना स्वास्थ्य बजट का 75 फ़ीसद हिस्सा तो केवल इस योजना का प्रीमियम भरने में चला जाएगा. ऐसे में बाक़ी की स्वास्थ्य योजनाओं के लिए बहुत कम पैसा बचेगा.
25 फरवरी 2019 तक मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, झारखंड और बिहार ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना से जुड़े 10, 958,358 ई-कार्ड बांट कर इस योजना को करोड़ों लोगों तक पहुंचा दिया है. वहीं, अस्पताल में भर्ती होने वालों की सबसे ज़्यादा संख्या छत्तीसगढ़, गुजरात, केरल और तमिलनाडु के लोगों की है. 18 जून 2019 तक प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत 29 लाख 16 हज़ार 020 लाभार्थी अस्पताल में भर्ती होने का ख़र्च इस योजना से पा चुके हैं. जबकि 3, 74,35,078 लोगों को ई-कार्ड दिए जा चुके हैं.
हालांकि, इस योजना को क़ामयाब बताया जा रहा है. लेकिन कई राज्यों ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को अपने यहां लागू करने से मना कर दिया है. और कई राज्यों ने तो शुरुआत के कुछ महीने इस योजना को लागू करने के बाद ख़ुद को अलग कर लिया. इस वजह से प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना की स्वीकार्यता के बारे में देश के अलग-अलग हिस्सों में सवाल उठ रहे हैं. इसकी एक बड़ी वजह योजना के बीमा का प्रीमियम ज़्यादा होना है. तो दूसरी वजह तमाम साझीदारों को एकजुट करने में तकनीकी चुनौतियां भी हैं. फिर इस योजना के अधिकार क्षेत्र को लेकर भी विवाद है.
दिल्ली सरकार का आरोप है कि आयुष्मान भारत योजना बिना ज़मीनी काम किए लोगों तक पहुंचने की ग़लत कोशिश है. जबकि योजना के तहत पहले बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए. दिल्ली सरकार के तर्क के मुताबिक़ मौजूदा मुहल्ला क्लिनिक, पॉली क्लिनिक और बड़े अस्पतालों के नेटवर्क को पहले मज़बूत करने की ज़रूरत है. इनके माध्यम से आम नागरिकों को उनके घर पर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने का काम होता है.
दिल्ली की ही तरह तेलंगाना और ओडिशा ने भी केंद्र सरकार की योजना की जगह अपनी राज्य स्तरीय योजना को ज़ोर-शोर से लागू किया है. तेलंगाना की सरकार आरोग्यश्री के तहत स्वास्थ्य योजना चलाती है. तो, ओडिशा सरकार बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना पर ज़ोर देती है. भले ही आयुष्मान भारत योजना की लोकप्रियता बढ़ रही हो, लेकिन, पंजाब और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने इसे लागू करने के तौर-तरीक़े पर सवाल उठाए हैं. इन राज्यों को योजना की लागत में केंद्र और राज्यों की हिस्सेदारी के फ़ॉर्मूले पर भी ऐतराज़ है. जानकारों का तर्क है कि झारखंड जैसे राज्यों, जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, को इस योजना को लागू करने से बहुत नुक़सान होगा. क्योंकि इसे लागू करने के नियम क़ायदे तय नहीं हैं, और इन राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी बहुत कम है. साथ ही राज्य में विकास के काम भी बहुत कम हुए हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार बीमारी के इलाज़ इलाज़ से ज़्यादा बचाव पर ज़ोर देना चाहती है. इसीलिए वहां की सरकार एक वैकल्पिक योजना पर काम कर रही है, जिससे रोज़ाना के मरीज़ों की देखभाल हो सके. और दवाओं का ख़र्च उठाया जा सके. इसीलिए छत्तीसगढ़ सरकार दवाओं की ख़रीद, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और आशा नेटवर्क को दोबारा चालू करना चाहती है.
हमें ये देखना होगा कि आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के लागू होने से पहले से ही केरल, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्य नीति आयोग के हेल्थ इंडेक्स में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आयुष्मान भारत योजना से इन राज्यों में क्या नया होगा? इसके अलावा अगर प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत अच्छा काम कर रहे छत्तीसगढ़ जैसे राज्य इस योजना से अलग हो जाते हैं, तो क्या इस योजना का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा?
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के सीईओ के मुताबिक़, इस योजना से जुड़ी लोगों की दो चिंताएं हैं. पहली तो ये कि आयुष्मान भारत योजना मौजूदा स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान नहीं है. और दूसरा सवाल ये है कि इस योजना में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं से ज़्यादा ख़र्च हो रहा है. जबकि, हमारे देश में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की हमेशा से अनदेखी हुई है. इन चुनौतियों से निपटने के लिए ये ज़रूरी है कि हम आयुष्मान भारत योजना को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम का भी पर्दाफ़ाश करें. हमें ये समझना होगा कि लोगों की स्वास्थ्य की ज़रूरतें केवल बुनियादी सुविधाओं तक सीमित नहीं हैं. जो लोग ये कह रहे हैं कि अस्पताल में भर्ती होने के ख़र्च पर बहुत ज़ोर देने की ज़रूरत नहीं है. उन्हें ये समझना होगा कि ये हक़ीक़त नहीं है. साथ ही इस झूठ का पर्दाफ़ाश करने की ज़रूरत भी है कि आयुष्मान भारत योजना पर होने वाले ख़र्च से बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की अनदेखी हो रही है और निजी अस्पतालों को फ़ायदा पहुंच रहा है.
प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं और उपचारात्मक सुविधाएं एक-दूसरे की पूरक हैं. हमारे देश में गैर-संक्रामक बीमारियों की संख्या काफ़ी है. इसके अलावा नागरिकों की औसत आयु भी बढ़ रही है. ऐसे में उपचारात्मक और अस्पताल में भर्ती होने की सुविधाओं के विस्तार की ज़रूरत है. अभी ये सुविधाएं निजी क्षेत्र ही ज़्यादा मुहैया करा रहा है. आज ज़रूरत है इन सुविधाओं तक आम आदमी की पहुंच बढ़े. अभी आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत ज़्यादातर सर्जिकल इलाज़ जैसे एंजियोप्लास्टी, वाल्प प्रत्यारोपण या मरम्मत, बाइपास सर्जरी, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट जैसे इलाज़ के लिए दावे किए गए हैं. आयुष्मान भारत योजना ऐसे महंगे इलाज़ लोगों तक पहुंचाने का काम कर रही है. वहीं, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों का विस्तार हो रहा है.
आज ज़रूरत इस बात की है कि हम बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं या इलाज़ की सुविधाएं एक-दूसरे की क़ीमत पर न मुहैया कराएं. ऐसी नीति बनाकर ही हम इन दोनों को मज़बूत बना सकते हैं. जिस तरह से आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का दायरा तेज़ी से बढ़ रहा है, उससे इसे बेहतर तरीक़े से लागू कर के हम सबको स्वास्थ्य सुविधाएं देने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रहे हैं. हालांकि, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के लाभार्थियों से जुड़े आंकड़े धीरे-धीरे ही सामने आ रहे हैं. आज ज़रूरत इस बात की है कि इन आंकड़ों को लोगों तक तेज़ी से पहुंचाया जाए, ताकि जवाबदेही तय हो और योजना को लागू करने में पारदर्शिता भी आए.
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