Author : Rakesh Sood

Published on Oct 01, 2021 Updated 0 Hours ago

एक घोषणा जिसका तात्पर्य इंडो-पैसिफिक में हलचल पैदा करना था, उसने अटलांटिक के पार तूफ़ान खड़ा कर दिया है. लेकिन ये फ्रांस और भारत को एक मौक़ा देता है.

ऑकस: दोस्त का दिल ऐसे नहीं जीता जाता!

सितंबर महीने के आख़िरी दिनों में एक नए सुरक्षा गठबंधन का अजीबोगरीब ढंग से जन्म हुआ जिसका नाम ऑकस है और जिसने ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और यूनाइटेड स्टेट्स को एकजुट किया. इस गठबंधन में अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के द्वारा ऑस्ट्रेलिया के लिए आठ परमाणु अटैक पनडुब्बी के निर्माण का समझौता शामिल है. इस घोषणा के द्वारा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में हलचल होना निश्चित था लेकिन ऑस्ट्रेलिया के द्वारा फ्रांस के साथ डीज़ल से चलने वाले दर्जन भर अटैक पनडुब्बी के समझौते को रद्द करने से अटलांटिक के उस पार तूफ़ान खड़ा हो गया.

ऑकस का मक़सद “तेज़ी से बदलते ख़तरे से निपटना” है और ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), साइबर युद्ध और क्वॉन्टम कम्प्यूटिंग के क्षेत्रों में खुफिया जानकारी साझा करने और सहयोग में नज़दीकी लाने की संभावना पर विचार करेगा. अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया पहले से ही कनाडा और न्यूज़ीलैंड के साथ फाइव आइज़ इंटेलिजेंस नेटवर्क का हिस्सा हैं और इस बिंदु तक ऑकस को इंडो-पैसिफिक में एंग्लो-सैक्सन (मध्य युग की शुरुआत में इंग्लैंड में रहने वाला सांस्कृतिक समूह) गुट को मज़बूत करने की तरह देख जाता जिसके ख़िलाफ़ चीन की तरफ़ से बयानबाज़ी की जाती और हल्की अटकलें लगतीं कि क्वॉड के साथ ऑकस की भागीदारी कैसे बनेगी. लेकिन ऐसा होने के बजाय पनडुब्बी समझौते को अचानक रद्द करने की वजह से फ्रांस हैरान और ग़ुस्से में है.

ऑकस का मक़सद “तेज़ी से बदलते ख़तरे से निपटना” है और ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), साइबर युद्ध और क्वॉन्टम कम्प्यूटिंग के क्षेत्रों में खुफिया जानकारी साझा करने और सहयोग में नज़दीकी लाने की संभावना पर विचार करेगा. 

दांव पर सिर्फ़ 31 अरब यूरो की रक़म नहीं है. उस वक़्त ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस- दोनों ने पनडुब्बी समझौते को इस क्षेत्र में दीर्घकालीन निवेश और साझा हितों की पहचान के रूप में देखा. ये सच है कि बढ़ती लागत और देरी को लेकर कुछ नाराज़गी थी. तथ्य ये है कि चीन को लेकर ख़तरे के बारे में ऑस्ट्रेलिया की सोच में काफ़ी बदलाव आया है. दोनों देशों के संबंधों में काफ़ी गिरावट आई है. चीन की असर बढ़ाने वाली गतिविधियों पर ऑस्ट्रेलिया रोक लगा रहा है और ख़्वावे के कद को छोटा कर रहा है. दूसरी तरफ़ चीन भी ऑस्ट्रेलिया से आयात पर महत्वपूर्ण पाबंदी लगाकर जवाब दे रहा है.  तब भी, फ्रांस के द्वारा गुस्से में प्रतिक्रिया देने और विदेश मंत्री ज्यां य्वेस ले ड्रायन के द्वारा इसे “पीठ में छुरा घोंपना” बताने की वजह ये है कि ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने जून में पेरिस का दौरा किया था. इस दौरे का नतीजा एक बेहत प्रचारित विज़न स्टेटमेंट था जो ऑस्ट्रेलिया-फ्रांस पहल के ज़रिए साझेदारी को बढ़ाने की एक दीर्घकालीन रणनीति है. इस विज़न स्टेटमेंट के बाद 29 और 30 अगस्त को दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच 2+2 रणनीतिक संवाद का शुरुआती सत्र हुआ. ले ड्रायन के लिए ऑस्ट्रेलिया का फ़ैसला एक धक्का था क्योंकि फ्रांसुआ ओलांदे के कार्यकाल में रक्षा मंत्री रहते हुए 2016 में उन्होंने समझौते को लेकर बातचीत के बाद सहमति बनाई थी.

2015 में ऑस्ट्रेलिया ने विशेष तौर पर डीज़ल-इलेक्ट्रिक नावों की मांग की थी. फ्रांस ने बाराकुडा परमाणु अटैक पनडुब्बी को परंपरागत शॉर्टफिन बाराकुडा ब्लॉक 1ए डिज़ाइन में बदलकर जर्मनी और जापान को मुक़ाबले में पीछे छोड़ दिया. एक अलिखित समझौता बना कि अगर परमाणु शक्ति वाले विकल्प को तलाशने की ज़रूरत होगी तो वो उपलब्ध होगा. ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी एबॉट 2017 से अदला-बदली का अनुरोध कर रहे हैं. 2016 में ऑस्ट्रेलिया इस नतीजे पर पहुंचा कि अमेरिका न्यूक्लियर प्रोपल्शन तकनीक साझा नहीं करेगा. अमेरिका ने इसे सिर्फ़ यूनाइटेड किंगडम के साथ साझा किया है लेकिन वो साझेदारी अलग है क्योंकि अमेरिका यूनाइटेड किंगडम को ट्राइडेंट सबमरीन-लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल (एसएलबीएम) भी सप्लाई करता है.

2015 में ऑस्ट्रेलिया ने विशेष तौर पर डीज़ल-इलेक्ट्रिक नावों की मांग की थी. फ्रांस ने बाराकुडा परमाणु अटैक पनडुब्बी को परंपरागत शॉर्टफिन बाराकुडा ब्लॉक 1ए डिज़ाइन में बदलकर जर्मनी और जापान को मुक़ाबले में पीछे छोड़ दिया. 

चीन की चेतावनी

अमेरिका को लेकर एक कड़े बयान में ले ड्रायन ने शिकायत की कि “ये क्रूर, एकतरफ़ा और अप्रत्याशित फ़ैसला काफ़ी हद तक उसी तरह दिखता है जैसा (डोनाल्ड) ट्रंप करते थे. सहयोगी एक-दूसरे के साथ ऐसा नहीं करते, ये निश्चय ही असहनीय है”. इसके बाद फ्रांस ने अपनी नाराज़गी जताने के लिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूतों को “सलाह-मशविरे” के लिए बुला लिया. जब यूनाइटेड किंगडम के बारे में पूछा गया तो ले ड्रायन ने उपेक्षापूर्ण अंदाज़ में कहा कि वो सिर्फ़ “तीसरा पहिया” है और “अवसरवादिता यूनाइटेड किंगडम की चारित्रिक विशेषता” रही है. पनडुब्बी समझौते पर अलग-अलग देशों की प्रतिक्रिया उम्मीद के मुताबिक़ रही है. चीन ने इसे “ग़ैर-ज़िम्मेदाराना” बताते हुए चेतावनी दी है कि इससे “हथियारों की रेस तेज़” हो सकती है. जापान और ताइवान ने पनडुब्बी समझौते का स्वागत किया है जबकि दक्षिण कोरिया ख़ामोश है. इंडोनेशिया और मलेशिया ने चिंता जताई है.

वॉशिंगटन में क्वॉड शिखर वार्ता के दौरान भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने क्वॉड- “चार देशों का एक बहुपक्षीय समूह जिनकी विशेषताओं और मूल्यों का एक साझा दृष्टिकोण है”- को ऑकस- “तीन देशों के बीच एक सुरक्षा गठबंधन”- से अलग किया. उन्होंने ये भी कहा कि “हमारे दृष्टिकोण से ऑकस न तो क्वॉड के लिए प्रासंगिक है, न ही इसके कामकाज पर ऑकस का कोई असर पड़ेगा.” अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच टेलीफ़ोन पर बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने इस मुद्दे पर विराम लगाने की कोशिश की है. दोनों नेता अक्टूबर में मिलेंगे और फ्रांस के राजदूत फिर से वॉशिंगटन लौटेंगे.

यूनाइटेड किंगडम से अलग फ्रांस ने ख़ुद को हमेशा एक स्वतंत्र वैश्विक खिलाड़ी के तौर पर देखा है. साथ ही अमेरिका के अग्रणी होने को लेकर व्यावहारिक सोच के बावजूद फ्रांस ने ज़्यादा स्वायत्तता को प्राथमिकता दी है. 

लेकिन फ्रांस ब्रिटिश संस्कृति से प्रभावित देशों के साथ संबंधों की फिर से छानबीन करेगा. यूनाइटेड किंगडम से अलग फ्रांस ने ख़ुद को हमेशा एक स्वतंत्र वैश्विक खिलाड़ी के तौर पर देखा है. साथ ही अमेरिका के अग्रणी होने को लेकर व्यावहारिक सोच के बावजूद फ्रांस ने ज़्यादा स्वायत्तता को प्राथमिकता दी है. फ्रांस की ये विशेषता भारत के साथ उसकी नज़दीकी रणनीतिक साझेदारी, जो 1998 से है, के मामले में एक महत्वपूर्ण कारण रहा है.

भारत का परमाणु पनडुब्बी कार्यक्रम (एटीवी) 1980 के आसपास शुरू हुआ लेकिन इसकी प्रगति धीमी रही है. यही वजह है कि भारत रूस की परमाणु अटैक पनडुब्बी (आईएनएस चक्र I और II) को लीज़ पर लेता रहा है और 2025 में चक्र III की बारी है. भारत का ये कार्यक्रम 1998 के बाद बदलकर बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (एसएसबीएन) क्लास में हो गया. इस क्लास का अरिहंत तैनात है और अरिघाट ट्रायल के दौर से गुज़र रहा है. ये कार्यक्रम ज़्यादा दूरी की एसएलबीएम, के-5 और के-6 जिसकी रेंज क्रमश: 5,000 किमी और 6,000 किमी है, के विकास के साथ आगे बढ़ेगा. मूल रूप से 1999 में 24 पनडुब्बियों, 18 डीज़ल-इलेक्ट्रिक और 6 परमाणु शक्ति संपन्न, का लक्ष्य रखा गया था लेकिन उसे पूरा नहीं किया जा सका है. प्रोजेक्ट 75 के तहत छह परंपरागत नाव बनाई जा रही हैं; छह और परंपरागत जहाज़ों को पहले ही प्रोजेक्ट 75 I के तहत सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) की मंज़ूरी मिली थी जिनकी तैनाती 2030 के आसपास होगी.

अब जब अमेरिका ने न्यूक्लियर प्रोपल्शन को लेकर पाबंदी का उल्लंघन कर दिया है और रास्ता साफ़ कर दिया है तो भारत और फ्रांस के लिए अपनी रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने में एक नए मील का पत्थर बनाने का वक़्त आ गया है. 

नौसेना छह परमाणु अटैक पनडुब्बी परियोजना को फास्ट-ट्रैक करने के लिए तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की मांग को छोड़ने के लिए तैयार हो गई है. अब जब अमेरिका ने न्यूक्लियर प्रोपल्शन को लेकर पाबंदी का उल्लंघन कर दिया है और रास्ता साफ़ कर दिया है तो भारत और फ्रांस के लिए अपनी रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने में एक नए मील का पत्थर बनाने का वक़्त आ गया है. फ्रांस के रणनीतिककार ब्रूनो टेरटायस जैसा बताते हैं, “ट्रंप ने सहयोगियों की परवाह नहीं की; बाइडेन करते हैं लेकिन शायद सभी के लिए समान रूप से नहीं”.

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